Published on Sep 28, 2021 Updated 0 Hours ago

अगर भारत ख़ुद को कम अवधि में एक महाशक्ति के तौर पर देखता है तो भारत को अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बढ़ाना चाहिए और चीन की चुनौतियों से सामना करने के लिए अमेरिका की तकनीक पर भरोसा जताना चाहिए. लंबी अवधि में अगर भारत ख़ुद को महाशक्ति के तौर पर देखना चाहता है तो अपनी शक्ति की पहचान करने के लिए देशी विकल्पों को तैयार करना चाहिए.

तकनीकी प्रतियोगिता को लेकर भारतीय युवाओं का रुख़

1947 में स्वतंत्र होने के बाद से ही भारत ने हमेशा से प्रजातांत्रिक परंपराओं का पालन किया है. 1950 में भारतीय गणराज्य की घोषणा के साथ ही इस परंपरा को और बढ़ावा मिला, जिसके तहत किसी व्यक्ति या फिर ऑफिस ही नहीं बल्कि सामूहिक तौर पर नागरिकों के लिए गणराज्य की परिकल्पना को मज़बूत किया गया.

इस प्रसिद्ध संप्रभुता का मतलब यह था कि भारत से ना सिर्फ संप्रभुता कभी समाप्त नहीं होगी बल्कि यहां के नागरिक अपने प्रतिनिधि का चुनाव भी करेंगे और तो और देश के नागरिक सिर्फ शासित होने वाले समूह नहीं रहेंगे. दरअसल भारतीय नागरिक देश के भाग्यविधाता कहलाएंगे : वो भारत का भाग्य लिखने वाले हैं. जिनका विश्वास, विचार और हित राष्ट्र की नीतियों में परिलक्षित होगा.

मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों में जबकि महाशक्तियों के बीच दुश्मनी बढ़ रही है, निजी तकनीक का शस्त्रीकरण, सीमा पार निगरानी और विदेशी प्रभाव वाले अभियान जिसके चलते लगातार युद्ध की रूपरेखा में बदलाव आ रहा है, ऐसे में भारत की शासन व्यवस्था काफी गंभीर समस्या झेलने को मज़बूर है.

मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों में जबकि महाशक्तियों के बीच दुश्मनी बढ़ रही है, निजी तकनीक का शस्त्रीकरण, सीमा पार निगरानी और विदेशी प्रभाव वाले अभियान जिसके चलते लगातार युद्ध की रूपरेखा में बदलाव आ रहा है, ऐसे में भारत की शासन व्यवस्था काफी गंभीर समस्या झेलने को मज़बूर है. भारत के युवा, जो विश्व भर में सबसे ज़्यादा संख्या में हैं, वो इस हलचल के पहले शिकार हो रहे हैं. इसलिए आधुनिक विश्व व्यवस्था के मुकाबले भारतीय युवाओं के सामूहिक विचार को समझना भारतीय गणराज्य के भविष्य के लिए, ख़ास तौर पर डिजिटल होती दुनिया के बीच समझना बेहद जरूरी है.

इसे लेकर ओआरएफ फॉरेन पॉलिसी सर्वे 2021 एक अहम प्रयास माना जा सकता है. इस सर्वे में जो बातें सामने लाई गई हैं वो ख़ास कर मौजूदा तकनीकी और सुरक्षा माहौल में भारतीय नीति निर्माताओं के लिए इसे लेकर समाधान खोजने में काफी मददगार साबित हो सकती है. इसके अतिरिक्त यह सर्वे भविष्य में वैश्विक व्यवस्था में भारत की स्थिति के लिहाज से एक स्पष्ट दिशा की ओर इशारा करती है.

लगता है कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन (पीआरसी) की सामरिक चुनौतियों की पहचान कर ली गई है जो कि भारतीय युवाओं में बढ़ते संदेह के रूप में व्यक्त हो रही है. इसके अतिरिक्त इस सर्वे में हिस्सा लेने वाले ज़्यादातर लोगों ने चीन के अहम शक्ति के रूप में उभरने को लेकर चिंता जताई है. भारत के पड़ोस में चीन का बढ़ता हस्तक्षेप, आर्थिक और सैन्य शक्ति और सीमा पर होने वाले संघर्ष जैसे कई मुद्दे हैं जिन्हें लेकर युवाओं ने इसे नई वैश्विक व्यवस्था का हिस्सा माना है.

उभरती हुई नई विश्व व्यवस्था में बदलते गठजोड़ और सहयोगियों के बीच बतौर क्षेत्रीय शक्ति भारत का वैश्विक शक्तियों- अमेरिका और चीन- से रिश्ता ख़ुद को भविष्य में महाशक्ति के तौर पर परिभाषित करना है. 

यह समझ युवाओं के साइबर स्पेस और तकनीक के क्षेत्र में संप्रभुता की अवधारणा में परिलक्षित होता है. सर्वे में ज़्यादातर लोगों ने चीन के ऐप पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है जो कि इस अवधारणा के ठीक उलट था जब भारतीय युवा इस ऐप पर पाबंदी लगाने के समर्थक नहीं थे. सर्वे से जो बातें साइबर सुरक्षा को लेकर चिंता जाहिर करने वाली सामने आई उससे विदेशी रिफ्लेक्सिविटी (स्वतुल्यता) को कम करने के समर्थन में आवाज़ उठ सकती है. पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चीन के नैशनल इंटेलिजेंस लॉ (एनआईएल) की आड़ में चीन के ऐप ऑपरेट करते हैं, जिन्हें विदेशी स्वतुल्यता को कम करने के मकसद से बैन कर दिया गया. झेनुआ डेटा लीक जैसी घटना के संदर्भ में, जहां चीन 10 हज़ार भारतीयों के आंकड़े की निगरानी करता पकड़ा गया जिसके डेटा चीनी ऐप के जरिए जुटाए गए, इस  सर्वे में युवाओं ने इसे लेकर भी अपनी चिंताएं साझा कीं जो काफी उचित नज़र आई.

अमेरिका, भारत का सबसे मज़बूत सहयोगी होगा?

उभरती हुई नई विश्व व्यवस्था में बदलते गठजोड़ और सहयोगियों के बीच बतौर क्षेत्रीय शक्ति भारत का वैश्विक शक्तियों- अमेरिका और चीन- से रिश्ता ख़ुद को भविष्य में महाशक्ति के तौर पर परिभाषित करना है. इस संबंध में युवाओं ने स्वीकार किया कि भारत के लिए अमेरिकी सहयोग की तो आवश्यकता होगी ही साथ ही अगले 10 साल में अमेरिका, भारत का सबसे मज़बूत सहयोगी होगा. हालांकि इन परिस्थितियों में ज़्यादातर सर्वे में हिस्सा लेने वाले युवाओं ने अमेरिका पर पूरी तरह भरोसा नहीं जताया, जबकि 15 फ़ीसदी युवा तटस्थ रहे या फिर नए सामरिक सहयोग को लेकर अविश्वास जताया.

कौटिल्य, भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंध के विचारक, ने सदियों पहले इस आधुनिक दुविधा को लेकर समाधान की व्याख्या कर दी थी. कौटिल्य के विचार के मुताबिक राज्य का हित सर्वोपरि होता है और नीतियां मौजूदा भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर विकसित करनी चाहिए. वास्तविक राजनीतिक सिद्धान्त के इस दौर में गठजोड़ या गठबंधन तब तक अस्तित्व में रहते हैं जब तक वो राज्य के हितों को ‘अरि’: विरोधी, से संतुलित करते हैं. यह तरीका इस बात की ओर इशारा करता है कि गठबंधन में रहते हुए भी संबंधित राष्ट्र को अपनी शक्ति को बढ़ाने की कोशिश जारी रखनी चाहिए जिसका उद्देश्य आखिरकार ‘चक्रवर्ती’ : महाशक्ति बनने का होना चाहिए.

लंबी अवधि में अगर भारत ख़ुद को महाशक्ति के तौर पर देखना चाहता है तो अपनी शक्ति की पहचान करने के लिए देशी विकल्पों को तैयार करना चाहिए. 

यह सर्वे इस सवाल का जवाब देता है कि क्या वाकई भारत ‘विजिग्सु’ के तौर पर ख़ुद को देखता है: एक ऐसा राष्ट्र जो किसी कालखंड में चक्रवर्ती बनने की ख़्वाहिश रखता है या नहीं.  प्रिज़्म कार्यक्रम के तहत अमेरिका द्वारा सबसे ज़्यादा संरक्षित राष्ट्रों में से एक भारत रहा है. अब जबकि भारत काफी हद तक पीपुल्स ऑफ चीन की स्वतुल्यता को देश के 5 जी इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने के अभियान से बाहर कर, यहां तक कि चीन निर्मित वायरलेस डिवाइस पर पाबंदी लगाकर कम कर चुका है. क्योंकि यही कंपनियां प्रिज़्म सर्विलांस में शामिल थीं और अब भारत के तकनीकी क्षेत्र में इनका प्रभाव है.

देशी विकल्पों को तैयार करना भारत के लिए ज़रूरी

अगर भारत ख़ुद को कम अवधि में एक महाशक्ति के तौर पर देखता है तो भारत को अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बढ़ाना चाहिए और चीन की चुनौतियों से सामना करने के लिए अमेरिका की तकनीक पर भरोसा जताना चाहिए. लंबी अवधि में अगर भारत ख़ुद को महाशक्ति के तौर पर देखना चाहता है तो अपनी शक्ति की पहचान करने के लिए देशी विकल्पों को तैयार करना चाहिए. यह कहना नहीं होगा कि अमेरिका कि ऐसी कोई मंशा है या रहेगी कि वो भारतीय युजर्स के डेटा को प्रभाव संचालन के लिए इस्तेमाल में लाएगा जैसा कि चीन ने किया था. फिर भी सवाल इस बात का ज़्यादा है कि भारत की महत्वाकांक्षा क्या है. युवा इसी भावना से प्रेरित हैं.  जबकि ज़्यादातर युवा बहुआयामी तंत्र पर भरोसा जताते हैं लेकिन एक ही समय में यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ के समर्थन की तुलना में कथित विरोधाभास को इसके जरिए समझने का मौका भी प्रदान करता है. युवा चाहते हैं कि भारत विश्व की शक्तियों के साथ गठजोड़ बनाए लेकिन लंबी अवधि में भारत विश्व का नेतृत्व करे और इस क्रम में स्वदेशीकरण एक जरिया हो सकता है जो हमारी ताकत को छिपा कर हमें इस लक्ष्य के लिए ज़्यादा समय दे सकता है.

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