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दुनिया भर में बढ़ते युद्ध ने परमाणु ब्लैकमेल का ख़तरा बढ़ा दिया है, इसकी वजह से परमाणु बिजली प्लांट की धारणा संपत्ति की जगह बोझ में बदल गई है.
6 जून 2024 को दुनिया के स्वतंत्र देशों ने फ्रांस के नॉरमैंडी में निर्णायक आक्रमण (जिसे क़यामत का दिन भी कहते हैं), जिससे द्वितीय विश्व युद्ध को ख़त्म करने में मदद मिली, की 80वीं सालगिरह मनाई. आज एक बार फिर यूरोप में युद्ध चल रहा है. रूस ने पश्चिमी देशों के साथ अच्छा संबंध बनाने की इच्छा रखने वाले लोकतांत्रिक देश यूक्रेन पर आक्रमण किया है.
2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने दुनिया की सुरक्षा के लिए बेहद कम स्वीकार किए गए लेकिन एक गंभीर ख़तरे के बारे में बताया- ये ख़तरा परमाणु ब्लैकमेल का है. शीत युद्ध के चरम के दिनों में अमेरिका के विदेश नीति और परमाणु विशेषज्ञ बेनेट रोमबर्ग के द्वारा विकसित परमाणु ब्लैकमेल का सिद्धांत कहता है कि बिजली केंद्र, इस्तेमाल हो चुके परमाणु ईंधन रिप्रोसेसिंग प्लांट और परमाणु कूड़े के भंडार जैसी परमाणु सुविधाएं संभावित रूप से युद्ध जीतने के लक्ष्य के रूप में काम करते हैं. परमाणु ब्लैकमेल का तौर-तरीका सरल है: इसके तहत दुश्मन की एक या उससे ज़्यादा परमाणु सुविधाओं, उदाहरण के लिए परमाणु संयंत्र या कूड़ा भंडार, को नुकसान पहुंचाने या बर्बाद करने की भरोसेमंद धमकी जारी करना शामिल है. एक या उससे अधिक परमाणु सुविधाओं पर सफल हमले के परिणामों, उदाहरण के लिए ज़मीन के एक बड़े हिस्से को निर्जन या बंजर बना देना, से आबादी के एक बड़े भाग में रेडियोसक्रिय मिश्रण और लंबे समय तक आर्थिक रुकावट को देखते हुए इस बात की संभावना है कि इस तरह की धमकी जारी करने से आक्रमण करने वाले का मक़सद पूरा होगा. इन मक़सदों में विवादित क्षेत्र का आत्मसमर्पण और ब्लैकमेल होने वाले देश की तरफ से अपनी स्थिति को लेकर सहानुभूति रखने वाले देशों या गठबंधनों की मदद हासिल नहीं करना शामिल हैं.
इन मक़सदों में विवादित क्षेत्र का आत्मसमर्पण और ब्लैकमेल होने वाले देश की तरफ से अपनी स्थिति को लेकर सहानुभूति रखने वाले देशों या गठबंधनों की मदद हासिल नहीं करना शामिल हैं.
बेनेट रैमबर्ग की 1985 की किताब न्यूक्लियर पावर प्लांट्स: एन अनरिकॉग्नाइज्ड मिलिट्री पेरिल (परमाणु ऊर्जा संयंत्र: एक अज्ञात सैन्य संकट) और 2023 में उन्हीं की किताब एटॉमिक ब्लैकमेल? द वेपनाइज़ेशन ऑफ न्यूक्लियर फैसिलिटीज़ ड्यूरिंग द रशिया-यूक्रेन वॉर (परमाणु ब्लैकमेल? रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान परमाणु सुविधाओं का हथियारों के रूप में इस्तेमाल) ने परमाणु उद्योग और उसके ग्राहक देशों को परमाणु ऊर्जा संयंत्रों (NPP) और उससे जुड़े प्रतिष्ठानों जैसे कि इस्तेमाल किए गए परमाणु ईंधन रिप्रोसेसिंग प्लांट को हथियारबंद संघर्ष, आतंकवाद, कर्मचारियों की तोड़-फोड़, ऑपरेटर की गलती (उदाहरण के लिए तनाव और थकान की वजह से) और सप्लाई चेन में रुकावट से पैदा ख़तरों की छानबीन करने का जरिया प्रदान किया.
आक्रमण करने वाले देश के युद्ध के लक्ष्य के साथ सहानुभूति रखने वाले NPP के कर्मचारी भीतर से कहर बरपा सकते हैं.
अपनी 1985 की किताब में रैमबर्ग ने युद्ध के समय में NPP और उससे जुड़े प्रतिष्ठानों के बारे में कई टिप्पणियां की जो इस प्रकार हैं:
अभी तक NPP रिएक्टर कंटेनमेंट सिस्टम पर जानबूझकर निशाना नहीं साधा गया है लेकिन NPP के आस-पास की इमारतों और NPP की सुरक्षा करने वाले सैनिकों पर निशाना साधा गया है. रूस और यूक्रेन- दोनों ने NPP साइट पर परंपरागत हथियार दागे हैं, हालांकि इन हमलों का मक़सद दुश्मन के सैनिकों को मारना और सहायक उपकरणों को बेकार बनाना था. युद्ध के शुरुआती चरणों में रूस ने चेर्नोबिल NPP कम्प्लेक्स, जिसका इस्तेमाल अब बंद हो चुका है, पर परंपरागत हथियारों से हमला किया था. यूक्रेन में ज़ेपोरिज़िया NPP, जो कि यूरोप का सबसे बड़ा परमाणु प्लांट है, पर अप्रैल 2024 की शुरुआत में सुसाइड ड्रोन से हमला किया गया था. अच्छी बात ये रही कि जपोरिजिया के रिएक्टर कंटेनमेंट सिस्टम को नुकसान नहीं हुआ. रूस, जिसका इस NPP पर नियंत्रण है, ने हमलों के लिए यूक्रेन पर आरोप लगाया. यूक्रेन ने NPP पर हमले के लिए रूस के फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन को ज़िम्मेदार ठहराया. फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन वो होता है जिसके तहत कोई देश अपने ही लोगों की हत्या करके या अपने प्रतिष्ठानों को नुकसान पहुंचाकर या उसे नष्ट करके अपने विरोधी को फंसाना चाहता है.
यूक्रेन के NPP और दूसरी परमाणु सुविधाओं जैसे कि लैबोरेटरी और कूड़ा भंडार के आस-पास हथियारों का इस्तेमाल करना बहुत ख़तरनाक है.
यूक्रेन के NPP और दूसरी परमाणु सुविधाओं जैसे कि लैबोरेटरी और कूड़ा भंडार के आस-पास हथियारों का इस्तेमाल करना बहुत ख़तरनाक है. ये साबित हो चुका है कि हथियार- यहां तक कि सबसे महंगे आधुनिक GPS-गाइडेड हथियार जैसे कि रूस की कैलिबर क्रूज़ मिसाइल भी- 100 प्रतिशत सटीक नहीं होते हैं. पावर यूनिट (कंबशन, जेट या रॉकेट इंजन) में ख़राबी आ जाती है या उनका ईंधन ख़त्म हो जाता है. गाइडेंस सिस्टम ख़राब हो जाता है या इलेक्ट्रॉनिक काउंटरमेज़र (ECM) से वो जाम हो जाते हैं. थके हुए रॉकेट सैनिक गाइडेंस सिस्टम को गलत तरीके से प्रोग्राम करते हैं. हथियारों को रोक लिया जाता है, इसकी वजह से बहुत अधिक गतिज ऊर्जा (काइनेटिक एनर्जी) के साथ छर्रे (शार्पनेल) पैदा होते हैं. यूक्रेन के कस्बों और शहरों को हुए नुकसान के पीछे अक्सर पश्चिमी देशों की तरफ से सप्लाई किए गए एयर डिफेंस सिस्टम जैसे कि जर्मनी की घातक गेपर्ड सेल्फ-प्रोपेल्ड एंटी-एयरक्राफ्ट गन और अमेरिका की पैट्रियट सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल को रूस के ड्रोन, क्रूज़ और बैलिस्टिक मिसाइल के द्वारा सफलता से रोका जाना है.
यूक्रेन के NPP रिएक्टर कूलिंग के लिए देश के हाई-वोल्टेज पावर ग्रिड पर निर्भर हैं. यूक्रेन के नये-नवेले हथियार उद्योग को बिजली से वंचित करने और वहां के लोगों की हिम्मत तोड़ने के इरादे से रूस यूक्रेन के पावर ग्रिड पर निशाना साधता है. यूक्रेन के पावर ग्रिड पर रूसी हमले में 2024 में तेज़ी आई है. जब ग्रिड की सप्लाई में रुकावट आती है तो यूक्रेन का NPP अपने डीज़ल जनरेटर पर वापस आ जाता है जो कि NPP की सुरक्षा का आख़िरी सहारा है. बैकअप डीज़ल जेनरेटर का इस्तेमाल यूक्रेन, अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) और यूक्रेन के पड़ोसियों को परेशान करता है. NPP के डीज़ल जनरेटर के लिए कोई बैकअप नहीं है. अगर उनमें ख़राबी आ जाए या उनका ईंधन ख़त्म हो जाए या उन्हें नष्ट कर दिया जाए (हमले में या तोड़-फोड़ के ज़रिए) तो रिएक्टर की कूलिंग बंद हो जाएगी. इसकी वजह से पिघलने की आशंका बढ़ जाएगी. यूक्रेन के पावर ग्रिड पर हमलों के बाद दोनों देशों के बीच उग्र झड़प शुरू हो जाती है, यूक्रेन अपने NPP के सुरक्षित कामकाज के लिए महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे पर हमले का आरोप रूस पर लगाता है और रूस आरोप लगाता है कि यूक्रेन उसकी गलत छवि बनाने के लिए ख़ुद ही अपने खंभों और सब-स्टेशनों को नष्ट करता है. यूक्रेन के NPP हमलों में बाल-बाल बचे हैं. NPP के रिएक्टर कंटेनमेंट सिस्टम के नज़दीक हथियारों में विस्फोट हुए हैं और रूस की क्रूज़ और बैलिस्टिक मिसाइल NPP के ऊपर से होकर गुज़री हैं. जैसा कि ऊपर बताया गया है, सबसे आधुनिक हथियार भी हवा में नाकाम हो सकते हैं और इस तरह वो ख़राबी के समय जिसके ऊपर से उड़ रहे हैं, उसे ख़तरे में डालते हैं. पिछले दिनों ब्रिटेन का कई अरब पाउंड का ट्राइडेंट सबमरीन-लॉन्च्ड बैलिस्टिक मिसाइल (SLBM) सिस्टम परीक्षण के दौरान असफल हो गया.
वैसे तो ये लगता है कि अभी तक NPP कंटेनमेंट सिस्टम पर निशाना नहीं साधा गया है लेकिन यूक्रेन के थर्मल पावर प्लांट पर हमले हुए हैं. 2024 की पहली छमाही में रूस ने यूक्रेन के कई सरकारी और प्राइवेट थर्मल पावर प्लांट पर बार-बार हमले किए हैं. इस वजह से व्यापक नुकसान हुआ है और सरकार को रोलिंग ब्लैकआउट (बारी-बारी से बिजली बंद करना) लागू करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. उदाहरण के लिए, 7 मई 2024 को रूस ने यूक्रेन के लीव, कीव, विनित्सिया, पोल्तावा, किरोवोह्राद, ज़ेपोरिज़िया और इवानो-फ्रैंकिव्स्क क्षेत्रों में बिजली स्टेशन पर लगभग 50 मिसाइल और 20 ड्रोन दागे.
जितने लंबे समय तक रूस-यूक्रेन युद्ध चलेगा, परमाणु ब्लैकमेल और परमाणु ऊर्जा में निवेश करने वाले देशों से फिरौती मांगने की रैमबर्ग की भविष्यवाणी के सही साबित होने के अवसर उतने अधिक होंगे.
कुछ देश जैसे कि यूनाइटेड किंगडम (UK) और फ्रांस परमाणु बिजली को मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग के समाधान का हिस्सा मानते हैं. दूसरे देश, उदाहरण के लिए जापान, परमाणु बिजली को मुख्य रूप से अपने देश की सदियों पुरानी ऊर्जा असुरक्षा की समस्या का हल मानते हैं. अनंतकाल से जापान की सबसे बड़ी समस्या ईंधन के मामले में कमी रही है. 2023 के अंत में 32 देशों (ताइवान को जोड़कर) में लगभग 440 परमाणु रिएक्टर काम कर रहे थे. 2022 में परमाणु रिएक्टर ने दुनिया की लगभग 10 प्रतिशत बिजली की सप्लाई की. 60 से ज़्यादा रिएक्टर बन रहे हैं और 110 और रिएक्टर तैयार करने की योजना बनाई गई है. जिन रिएक्टर की योजना बनाई गई है या जो बन रहे हैं, उनमें से ज़्यादातर एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में हैं. जितने अधिक रिएक्टर होंगे, परमाणु ब्लैकमेल की आशंका उतनी ही अधिक होगी. यानी आक्रमण करने वाला देश अपने रास्ते में आने वाले देशों- जैसे कि यूक्रेन- के NPP और उससे जुड़ी परमाणु सुविधाओं को धमकी देकर अपने उद्देश्यों को पूरा कर सकता है. रूस-यूक्रेन युद्ध में अभी तक ऐसी नौबत नहीं आई है लेकिन इसकी आशंका बनी हुई है. भविष्य के लिए अतीत एक अविश्वसनीय मार्गदर्शक है. कुछ समय पहले तक ज़्यादातर विश्लेषक पहले और दूसरे विश्व युद्ध के पैमाने पर तीसरे बड़े यूरोपीय युद्ध की आशंका से इनकार करते थे. लेकिन आज यूरोप के केंद्र में यूक्रेन एक वैचारिक संघर्ष में रूस का मुकाबला कर रहा है जो आसानी से तीसरे विश्व युद्ध की तरफ ले जा सकता है. जितने लंबे समय तक रूस-यूक्रेन युद्ध चलेगा, परमाणु ब्लैकमेल और परमाणु ऊर्जा में निवेश करने वाले देशों से फिरौती मांगने की रैमबर्ग की भविष्यवाणी के सही साबित होने के अवसर उतने अधिक होंगे. परमाणु ब्लैकमेल की आशंका NPP को संपत्ति की जगह बोझ में बदलती है.
साइमन बेनेट इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ लेस्टर में रिस्क मैनेजमेंट पढ़ाते हैं.
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Simon Bennett teaches risk management at the University of Leicester, England. ...
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