Expert Speak India Matters
Published on Jan 20, 2024 Updated 0 Hours ago

अपने विकास लक्ष्यों और ऊर्जा परिवर्तन लक्ष्यों, दोनों को हासिल करने के लिए भारत को राष्ट्रीय आय में वृद्धि की निरंतर ऊंची दरों की दरकार है ताकि निवेश-योग्य पूंजी के भंडार को बढ़ाया जा सके .

ऊर्जा परिवर्तन: आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त निवेश ज़रूरी

ऊर्जा संक्रमण की आर्थिक रुकावटों के बावजूद भारत 2047 तक "विकसित" अर्थव्यवस्था बनने की योजना पर काम कर रहा है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को राष्ट्रीय आय में वृद्धि के निरंतर ऊंचे स्तरों की दरकार है ताकि निवेश-योग्य पूंजी का भंडार बढ़ पाए- जो विकास के लिए एक अहम इनपुट है. 

विकसित देश के रूप में योग्य होने के लिए उच्च राष्ट्रीय आय एक आवश्यक (भले ही पर्याप्त ना हो) पात्रता है. 2024 में दुनिया में ऊंची आय वाले 83 देश हैं, जिनमें से हरेक की मौजूदा प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय सकल आय (GNI) 13,846 अमेरिकी डॉलर या उससे ज़्यादा है. इसे विश्व बैंक की एटलस प्रणाली का उपयोग करके गिना गया है. विकास को लेकर संयुक्त राष्ट्र के समग्र मापक SDG सूचकांक 2023 के शीर्ष एक तिहाई में इनमें से सिर्फ़ आधे दिखाई देते हैं. विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका 33वें स्थान पर है. चीन 63वें, जापान 21वें, जबकि भारत (निम्न मध्यम-आय वाली अर्थव्यवस्था) 13वें स्थान पर है. 

विकास के दोहरे मापदंड

विकसित अर्थव्यवस्थाओं पर दोहरे मापदंड लागू होते हैं- SDG सूचकांक के शीर्ष एक-तिहाई में दिखाई देते हैं और उच्च-आय का दर्जा हासिल करते हैं. ऊर्जा संक्रमण के लिए बिजली प्रमुख ऊर्जा स्रोत है. प्रतिस्पर्धी दरों पर स्वच्छ, उच्च-गुणवत्ता वाली बिजली की आपूर्ति आर्थिक वृद्धि में एक अहम इनपुट होगी. यहां हम ऊर्जा (जिसमें कोयला, ठोस जैव-ईंधन, तेल और गैस शामिल है) के ज़्यादा समग्र मापक की बजाए बिजली पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिसकी दो वजहें हैं. पहला, जीवाश्म ईंधन अब गिरावट की ओर हैं. अगर विकसित अर्थव्यवस्थाएं, जो मोटे तौर पर वैश्विक टेक्नोलॉजी विकल्पों को निर्धारित करती हैं, को 2050 तक कार्बन उत्सर्जन में नेट ज़ीरो बनना है तो जीवाश्म ईंधनों को नवीकरणीय बिजली और हरित हाइड्रोजन के साथ काफ़ी हद तक प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए. हरित हाइड्रोजन का निर्माण भारी मात्रा में नवीकरणीय बिजली का उपयोग करके इलेक्ट्रोलाइज़र्स में किया जाता है. बिजली 2050 तक वैश्विक ऊर्जा खपत का 41 प्रतिशत तक पूरी कर सकती है, जो 20 प्रतिशत के मौजूदा स्तर से ज़्यादा है.

अगर विकसित अर्थव्यवस्थाएं, जो मोटे तौर पर वैश्विक टेक्नोलॉजी विकल्पों को निर्धारित करती हैं, को 2050 तक कार्बन उत्सर्जन में नेट ज़ीरो बनना है तो जीवाश्म ईंधनों को नवीकरणीय बिजली और हरित हाइड्रोजन के साथ काफ़ी हद तक प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए.

दूसरा, जीवाश्म ईंधनों से बिजली की ओर मुड़ने से तकनीकी ऊर्जा दक्षता में भारी फ़ायदे पैदा होते हैं. मिसाल के तौर पर गैस से खाना पकाने की तुलना में इलेक्ट्रिक इंडक्शन कुक स्टोव से रसोई बनाना ज़्यादा ऊर्जा दक्ष होता है. इसी प्रकार, पेट्रोल या डीज़ल से चलने वाले आंतरिक प्रज्ज्वलन इंजन से संचालित वाहनों की तुलना में इलेक्ट्रिक वाहन अधिक ऊर्जा कुशल होते हैं. ये विशेषता किसी अर्थव्यवस्था में उपयोग की गई बिजली की मात्रा को ऊर्जा इस्तेमाल में उच्च दक्षता के लिए भविष्य में तार्किक रूप से प्रॉक्सी बना देती है. 

सकल ऊर्जा खपत के गिरने की सूरत में भी बिजली आपूर्ति में उछाल की उम्मीद है. 

अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुमानों के मुताबिक, ऊर्जा दक्षता प्रयासों की शुरुआत के साथ 2022 से 2050 के कालखंड में वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति (सभी स्रोत) में 19 प्रतिशत की गिरावट आएगी. इसी अवधि में, वैश्विक बिजली आपूर्ति का 130 प्रतिशत बढ़ना तय है क्योंकि ऊर्जा अंतिम-उपयोग वाले उपकरण और एपलायंस बिजली पर निर्भर करते हैं. अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान 101 प्रतिशत, 85 प्रतिशत और 28 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ विद्युतीकरण के इस रुझान का पालन कर रहे हैं, जहां ऊर्जा के समग्र उपयोग में क्रमश: 32 प्रतिशत (अमेरिका और यूरोपीय संघ) जापान में 18 प्रतिशत की कमी आई है. चीन में, ऊर्जा उपयोग में 9 प्रतिशत की गिरावट के बावजूद विद्युतीकरण में 95 प्रतिशत बढ़ोतरी होना तय है. भारत में, जो कम आमदनी के चलते फ़िलहाल ऊर्जा-उपयोग में निम्न स्तर पर है, इस कालखंड में ऊर्जा आपूर्ति 22 प्रतिशत बढ़ेगी जबकि बिजली की आपूर्ति में 274 प्रतिशत का उछाल होगा. ऐसा मोटे तौर पर अतिरिक्त नवीकरणीय विद्युत क्षमता की वजह से होगा.

भारत की प्रति व्यक्ति बिजली आपूर्ति समृद्ध अर्थव्यवस्था के स्तर का एक अंश है

2050 तक भारत में बिजली आपूर्ति की इस तीव्र वृद्धि के बावजूद, निम्न-आधार स्तर के चलते, 2050 में 3950 kWh पर प्रति व्यक्ति बिजली की आपूर्ति अमेरिका के छठे हिस्से से भी कम है और जापान, यूरोपीय संघ और चीन के तीसरे हिस्से से नीचे है. विकासशील देशों में नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन हासिल करने के लिए ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों द्वारा मांग को संकुचित किए जाने के बावजूद भारत और अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं के बीच ये अंतर इस बात पर संदेह खड़ा करता है कि क्या बुनियादी ढांचे से जुड़े हमारे अनुमान 2047 तक एक विकसित देश बनने के लक्ष्य से मेल खाते हैं.

विकासशील देशों में नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन हासिल करने के लिए ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों द्वारा मांग को संकुचित किए जाने के बावजूद भारत और अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं के बीच ये अंतर इस बात पर संदेह खड़ा करता है कि क्या बुनियादी ढांचे से जुड़े हमारे अनुमान 2047 तक एक विकसित देश बनने के लक्ष्य से मेल खाते हैं.

ये दलील दी जा सकती है कि अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं को संबंधित ऊर्जा-गहन निर्मित संरचनाओं और जीवनशैली का नुक़सान है, जिससे हम बच सकते हैं क्योंकि भविष्य के आधे से अधिक भारत का निर्माण अभी बाक़ी है. ये सच है कि हम कम ऊर्जा गहनता वाले बुनियादी ढांचे का निर्माण कर सकते हैं- निजी से पहले सार्वजनिक परिवहन, परिवहन-उन्मुख विकास, ऊर्ध्वाधर विकास, विविधता भरा आस-पड़ोस, और निष्क्रिय शीतलकारी संरचनाएं. हालांकि, निर्माण सामग्रियों, संरचनाओं या शहरी नियोजन में ये परिवर्तन अब तक दिखाई नहीं दिया है. निर्माण के विनियमन के लिए विकेंद्रीकृत प्रशासकीय व्यवस्थाओं और केंद्रीय समन्वयकारी एजेंसी की ग़ैर-मौजूदगी को देखते हुए, क्षेत्र-स्तरीय परिवर्तनों को साकार करने के लिए ज़्यादा वक़्त की दरकार है. 

ऊंची विकास आकांक्षाओं के साथ बिजली आपूर्ति अनुमानों का तालमेल बिठाना     

फिर भी, विरासत में मिली उच्च ऊर्जा गहनता के ज़रिए भारत और अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं के बीच प्रति व्यक्ति बिजली आपूर्ति में भारी अंतर की पूरी तरह से व्याख्या नहीं की जा सकती. ऐसा दिखाई देता है कि हम बिजली की मांग के लचर लक्ष्यों से फ़ैसले लेते हुए राष्ट्रीय आय में उल्लेखनीय वृद्धि की योजना नहीं बना रहे हैं. ग़ौरतलब है कि 2030 (सबसे दूर का उपलब्ध अनुमान) में उत्पादन के लिए CEA का आकलन 2400 TWh (इसको लेकर IEA का अनुमान 2672 TWh) है. दो दशक पहले 2010 में चीन के 4200 TWh उत्पादन के साथ उसकी प्रति व्यक्ति मौजूदा GDP महज़ 4,550 अमेरिकी डॉलर थी, 2022 में उसकी प्रति व्यक्ति GDP 12,720 अमेरिकी डॉलर हो गई. इस तुलना के आधार पर वो अब भी उच्च-आय अर्थव्यवस्था नहीं है.

निम्न-ऊर्जा गहन के रूप में बरक़रार रहने के लक्ष्य के समानांतर सकल घरेलू उत्पाद में तेज़ बढ़ोतरी की उम्मीद करना ऊर्जा पहुंच में मौजूदा दोहरेपन को और गहरा कर सकता है. फ़िलहाल, रईस घरों को तीसरी दुनिया के शुल्क पर पहली दुनिया की सेवा मिलती है, जबकि जनसंख्या के ज़्यादातर हिस्से को लगभग मुफ़्त ऊर्जा का निर्वाह स्तर मिलता है. उद्योग जगत को क्रॉस सब्सिडी-आधारित अर्द्ध-कर का कमरतोड़ बोझ झेलना पड़ता है, जिसके बावजूद खुदरा आपूर्ति से उपयोगिता परिचालन लागत (लगाई गई पूंजी पर रिटर्न के बिना) वसूल नहीं हो पाती है. वित्त वर्ष 2022 में, ये अंडर-रिकवरी 1.4 खरब रु के बराबर (मौजूदा GDP का लगभग 0.6 प्रतिशत) रही, जिसे राज्य सरकार के सब्सिडी भुगतानों द्वारा वहन किया गई, जो विकास को लेकर उनकी क्षमता को कम कर देती है.   

इष्टतम स्तर से कम विकास की ये रणनीति विषम विकास में प्रदर्शित होती है. औपचारिक अर्थव्यवस्था के एक हिस्से तक सीमित उच्च लेकिन संकेंद्रित GDP वृद्धि कार्यबल के पांचवें से भी कम हिस्से को सहारा दे पाती है. सन-सेट सेक्टरों (कृषि, छोटे उद्योग, और सूक्ष्म उद्यम) में गतिहीनता या निम्न वृद्धि, श्रमबल के ज़्यादातर हिस्से को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है. अच्छी तन्ख़्वाह वाली सरकारी नौकरी आसानी से हाथ नहीं आने वाला आकर्षण बनी हुई है, जो बेहतर भविष्य को लेकर व्यक्तिगत उम्मीदों को ज़िंदा रखती है.  

सार्वजनिक वित्त गहन निवेश

व्यवस्थागत विकृतियों की एक श्रृंखला व्यापक विस्तार कार्यक्रमों से परे भारत के वित्तीय संसाधनों की जड़ें खोद रही हैं. स्वच्छ बिजली उत्पादकों को भुगतान की गारंटी देने, स्वच्छ टेक्नोलॉजियों के लिए प्रदर्शन परियोजनाओं को लागू करने और स्वच्छ ऊर्जा तक मुफ़्त ट्रांसमिशन पहुंच उपलब्ध कराने के लिए राजकीय-स्वामित्व वाले उद्यमों के बैलेंस शीट पर निर्भरता बढ़ रही है. विनिर्माण क्षेत्र में नई, अच्छी नौकरियां पैदा करने को लेकर औद्योगिक उत्पादन योजनाओं में वित्तीय प्रोत्साहनों के बोझ को इसमें जोड़ने पर वित्तीय रुख़ उपलब्ध संसाधनों से बेमेल हो जाता है. 

राजकोषीय सीमा से परे, ऊर्जा संक्रमण के लिए एक संयुक्त रणनीति की ज़रूरत होती है ताकि विकास या टेक्नोलॉजी हस्तांतरण के लिए प्रयोगशाला/प्रदर्शन स्तर पर संभावित टेक्नोलॉजी को लक्षित किया जा सके.

वित्तीय अस्थिरता या निम्न आर्थिक वृद्धि निवेश को बाधित कर सकती है

ऊर्जा संक्रमण को लागू करना बेहद पूंजी-सघन है, अगले 25 वर्षों या शायद उससे भी आगे के लिए इसमें सकल घरेलू उत्पाद का लगभग कम से कम 0.5 प्रतिशत ख़र्च होने का अनुमान है. अत्यधिक उधारी के कारण केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति पहले से ही GDP के लगभग 2 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ गई है. जब तक परिणामी अत्यधिक ऋण को मानदंड के भीतर कम नहीं किया जाता, तक तक व्यय आवंटनों को राजकोषीय स्थिरता को ध्यान में रखते हुए संरचित किए जाने की दरकार है. नोटबंदी के बाद आर्थिक अव्यवस्था और मांग में संकुचन के दो सालों (2017 और 2018) को छोड़कर 2005 के बाद से मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत के मानक से ऊपर रही है. 

प्रशासनिक पहल

राजकोषीय सीमा से परे, ऊर्जा संक्रमण के लिए एक संयुक्त रणनीति की ज़रूरत होती है ताकि विकास या टेक्नोलॉजी हस्तांतरण के लिए प्रयोगशाला/प्रदर्शन स्तर पर संभावित टेक्नोलॉजी को लक्षित किया जा सके. कम उपयोग की जाने वाली उच्च क्षमता के नवीकरणीय ऊर्जा स्थानों को नए निवेश और लचीले, डिजिटल रूप से प्रबंधित, एकीकृत, ट्रांसमिशन और वितरण ग्रिड तैयार करने के लिए मुक्त किए जाने की ज़रूरत है. इससे थोक बिजली और नई खुदरा मांग सेवा में तरल बाज़ारों की सहायता की जा सकेगी. ऊर्जा संक्रमण को संचालित करना एक पूर्णकालिक कार्य है- जिसमें राज्य सरकारों के साथ वार्ताएं करना और कम से कम लागत वाले नवाचार भरे विकल्पों के साथ राजकोषीय बाधाओं से पार पाने की क़वायद शामिल है. इसे मंत्रिस्तरीय एकाकी दायरों की खींचतान और दबाव के भरोसे छोड़ने से इष्टतम से कम और ऊंची लागत वाली प्रतिक्रिया का जोख़िम रहता है. इसे वहन करना संभव नहीं होगा. 

---------------------------------------------------------------------------------------------

संजीव अहलूवालिया ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सलाहकार हैं

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Author

Sanjeev Ahluwalia

Sanjeev Ahluwalia

Sanjeev S. Ahluwalia has core skills in institutional analysis, energy and economic regulation and public financial management backed by eight years of project management experience ...

Read More +

Related Search Terms