Author : Ramanath Jha

Published on Jan 03, 2024 Updated 23 Days ago

भारत के शहरों से जुड़ी चुनौतियों के काफी गहरे एवं व्यवस्थित होने की वजह से, उन्हें तात्कालिक उपायों के ज़रिये ठीक नहीं किया जा सकता है. ज़रूरी ये है कि किसी भी तरह के बदलाव के लिये लंबे समय तक चलने वाली रणनीति और विचारधारा को अपनाया जाये.

ASICS की रिपोर्ट और शहरों  में परिवर्तन लाने के लिये ज़रूरी 10 उपाय: एक विश्लेषण

शहरी परिवर्तन के क्षेत्र में काम करने वाली बेंगलुरु की गैर-लाभकारी संस्थान, जनाग्रह सेंटर फॉर सिटीजनशिप एंड डेमोक्रेसी ने एक रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट का शीर्षक ‘एनुअल सर्वे ऑफ़ इंडियाज़ सिटी सिस्टम्स: शेपिंग इंडियाज़ अर्बन एजेंडा’ यानी भारत के शहरी एजेंडे को आकार देती, भारत की शहरी प्रणाली (एएसआईसीएस) था. ये सर्वेक्षण दिसंबर 2021 और दिसंबर 2022 के दौरान कराई गई थी. इसका उद्देश्य देश के भीतर नगर प्रशासन और इसकी सतत् गुणवत्ता का मूल्यांकन करना था. पाये गए परिणामों के तहत, इसने भारतीय शहरों में शहरी योजना की स्थिति का जायज़ा लेने का काम किया था. ये अध्ययन, एक नये रूप में और नये सरोकारों के साथ पांच साल के अंतराल के बाद छपा है. इस बार, इसने राज्य में, पहले की तरह शहरों को शासन सूचकांकों के आधार पर रैंकिंग देने के बजाय, एक इकाई के तौर पर रैंकिंग देने पर ज़ोर दिया है. इस रिपोर्ट में भारत के कुल 35 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 4,800 शहरों को शामिल किया गया है. इसके अंतर्गत देश के कुल 82 म्युनिसिपल कानून, 44 नगर, और देशीय योजना कानूनों, 176 संबद्ध कानून व नियम और दस्तावेज़ों से संबंधित 32 नीतियों का मूल्यांकन किया है.   

इस रिपोर्ट में भारत के कुल 35 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के 4,800 शहरों को शामिल किया गया है. इसके अंतर्गत देश के कुल 82 म्युनिसिपल कानून, 44 नगर, और देशीय योजना कानूनों, 176 संबद्ध कानून व नियम और दस्तावेज़ों से संबंधित 32 नीतियों का मूल्यांकन किया है.

इस रिपोर्ट से मुख्य बात निकलकर सामने आयी वो ये है कि, आवास एवं शहरी मामलों (एमएचयूए) के मंत्रालय के खर्चों में काफी भारी वृद्धि आई है. ये 2009-0 में भारतीय रुपये के अनुसार 80 बिलियन से करीब-करीब 488 प्रतिशत तक की बढ़त बना चुका है. और अब ये बढ़कर 2021-22 में 470 बिलियन तक पहुँच चुका है. एमएचयूए (MHUA) ने विभिन्न शहरी मिशन एवं योजनाओं जैसे अटल कायाकल्प एवं शहरी परिवर्तन मिशन (AMRUT), स्वच्छ शहरी भारत मिशन (SBM-U), स्मार्ट सिटी मिशन (SCM), मेट्रो रेल जैसी यातायात योजना, और अन्य बुनियादी ढांचों से संबंधित परियोजनाओं के ज़रिये धन का संयोजन करने की कोशिश की है. हालांकि, ये कोशिश भी बहुत सफल होती नहीं दिखे क्योंकि शहरीकरण जिस गति से बढ़ रहा है उसके सामने ये तमाम प्रयास अपर्याप्त थे . इस वजह से, शहरी  जीवन की गुणवत्ता संबंधी चुनौतियाँ भी लगातार बढ़ती जा रहीं थीं. 

कुछ और भी प्रमुख निष्कर्ष जो सामने आये उसके अनुसार, राज्यों ने 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के प्रावधानों के महज़ 42 प्रतिशत अधिनियमों को ही लागू किया है. औसतन, नगरपालिका खर्च का सिर्फ़ 20 प्रतिशत ही संपत्ति कर के दायरे में आ सकता था. एक तरफ जहां 90 प्रतिशत शहरी इलाकों व नगरीय स्थानों के पास डिजिटल सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली मौजूद नहीं था, वहीं शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के द्वारा स्वीकृत पदों में से 36 प्रतिशत पद अभी तक खाली हैं. 

शहरीकरण के मुद्दे

इस रिपोर्ट में, ‘शहर’ की परिभाषा से जुड़े पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है और इसने भारत में वास्तविक शहरीकरण की मात्रा के संबंध में भी कई प्रश्न उठाये हैं. इसके परिणामस्वरूप, विश्व बैंक के रिपोर्ट और यूरोपीय संघ के ग्लोबल ह्यूमन सेटलमेंट लेयर ऑफ द ग्रुप ऑन अर्थ आब्ज़र्वेशन के उपग्रह द्वारा शहरों के गठन और जनसंख्या की गणना एवं परिसर को चुनौती दी गई थी. विश्व बैंक ने माना कि भारत की शहरी आबादी 50 प्रतिशत से भी ज्य़ादा थी जबकि यूरोपियन कमीशन ने साल 2015 में अनुमान लगाया था कि ये संख्या कम से कम 63 प्रतिशत है. 

शहरी योजना के संबंध में, तैयार रिपोर्ट में जिन 39 प्रतिशत शहरों की चर्चा की गयी है, और जो राज्यों की राजधानी थे, उनके पास किसी प्रकार की भी सक्रिय स्थानीय योजनाएं नहीं थीं. इसके अलावा, मुंबई के अलावा, इस लिस्ट में शामिल  सभी अन्य शहरों में विकास प्राधिकरण नामक इकाई के प्रभावी होने की वजह से, शहरों में स्थानीय स्तर पर काफी कम योजना कार्यों को लागू किया जा रहा था. इस रिपोर्ट ने शहरों में स्तरीय योजनाओं को लागू करने की दिशा में आने वाली समस्या की पहचान की क्योंकि, ज्य़ादातर शहरों के पास योग्य अर्बन प्लानिंग पेशेवरों की कमी थी, जो एक प्रभावी योजना बना पाने में सक्षम हो. इस रिपोर्ट में जो अन्य मुख्य बिंदुओं पर ध्यान दिया गया उसमें एक ही राज्य में अनेक नगरपालिका कानूनों का होना था, जिसमें महापौर के पद पर बैठे व्यक्ति का गैर-सशक्त होना और शहर के लिये लिये जा रहे निर्णयों में नागरिकों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर देना था.   

यह रिपोर्ट बेंगलुरु में केन्द्रीय शहरी विकास और आवास मंत्री द्वारा जारी किया गया था. उद्घाटन भाषण के दौरान बोलते हुए उन्होंने कहा कि 13वें और 15वें वित्त आयोगों के दौरान यूएलबी को दिए गए वित्तीय आवंटन में छः गुणा वृद्धि की गई है.

यह रिपोर्ट बेंगलुरु में केन्द्रीय शहरी विकास और आवास मंत्री द्वारा जारी किया गया था. उद्घाटन भाषण के दौरान बोलते हुए उन्होंने कहा कि 13वें और 15वें वित्त आयोगों के दौरान यूएलबी को दिए गए वित्तीय आवंटन में छः गुणा वृद्धि की गई है. इसके अलावा ये पहली बार हुआ है कि 15वें वित्त आयोग ने 10 लाख से भी अधिक शहरों और अन्य यूएलबी के बीच फर्क निर्धारित किया है और परिणाम-आधारित वित्तपोषण के तौर पर इन 50 यूएलबी को करीब 38,196 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है.  

इस सर्वेक्षण से प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर ये माना गया कि भारत की शहरी चुनौतियां काफी गहरी और व्यवस्थित थीं, जिन्हें कुछ ‘सामरिक’ उपायों द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता था. शहरी परिवर्तन के लिए ज़रूरी, एक दीर्घ-कालीन सामरिक दृष्टिकोण की सख्त़ आवश्यकता महसूस की जा रही थी. इस रिपोर्ट में ‘परिवर्तन के दस (10) साधनों’ की सिफ़ारिश की गई थी जो इस तरह से हैं:  

  • स्थानीय स्तर पर विकास योजनाओं की तैयारी एवं कार्यान्वयन, जो अर्थव्यवस्था, इक्विटी, पर्यावरण और जुड़ाव को एक करे. 
  • सड़क और सार्वजनिक स्थानों के डिज़ाइन मानकों के साथ-साथ उनके मानकीकृत अनुबंधों का निर्धारण एवं संचालन. 
  • शहरों को सशक्त बनाने वाले संवैधानिक संशोधन और उन्हें शासन के विशिष्ट इकाई के रूप में मान्यता प्रदान करना. 
  • 40 लाख से ज्य़ादा की आबादी वाले शहरों के शासन के लिए महानगरीय प्राधिकरणों का निर्माण करना. 
  • भारतीय शहरों में स्थित संभावनाओं का समुचित फायदा उठाने के लिए महापौर एवं सभासदों का सशक्तिकरण करना. 
  • प्रौद्योगिकी एवं पारदर्शिता द्वारा संचालित होने वाले शहरी ढांचों का निर्माण जहां नागरिकों एवं सरकारों को संबद्ध करने के लिए डेटा एवं मैट्रिक्स - उन्मुख इंटरफेस का इस्तेमाल किया जाता है. 
  • पूर्व-नियोजित हस्तांतरण एवं स्व:राजस्व वृद्धि माध्यमों के द्वारा शहरी शासन व्यवस्था को वित्तीय तौर पर मज़बूती प्रदान करना.   
  • नगरपालिका कर्ज़ के ज़रिये शहरी बुनियादी ढांचों के लिए ज़रूरी बड़े पैमाने वाली वित्तीय ज़रूरतों का प्रबंध करना. 
  • शहरी प्रशासन को सही समय पर अनुदान राशि का ट्रांसफर करने के लिये ज़रूरी, ढांचागत परियोजनाओं के बुनियादी और वित्तीय बेहतरी पर नज़र रखना और विश्वसनीय डेटा के एकल स्रोत के आधार पर उसकी रिपोर्टिंग और मॉनिटरिंग करना. 
  • साझा सेवा, काडर और भर्ती के नियम होना.

 

कई संस्थान और अर्बन प्लानिंग के विषय पर काम करने वाले अध्येता भी इस बात की सिफारिश करते रहे हैं कि शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) और उनके मेयर को ज़्यादा प्रशासनिक ताक़त मिलनी चाहिये. 


निष्कर्ष

इस लेख के ज़रिए परिवर्तन के लिये जिन साधनों की सिफारिश की गई है उसकी आलोचनात्मक विश्लेषण करने की कोशिश की गई है. इन साधनों को चार उपश्रेणियों में बांटा जा सकता है. इनमे से दो शहरी स्थानिक योजना एवं शहरी डिज़ाइन से जुड़े हुए हैं बाकी दो डिजिटलीकरण पर केंद्रित है. दो सिफारिशें नगरपालिका के वित्त से जुड़े हैं और शेष चार शहरी शासन-व्यवस्था से संबंधित. आइये सबसे पहले हम भूमि इस्तेमाल योजना और शहरी डिज़ाइन नामक दो सिफ़ारिशों पर बात करें. हर 20 वर्ष में, स्थानीय योजनाओं को तैयार करना एक ज़रूरी गतिविधि है जो लगभग सभी बड़े शहरों को करना चाहिए. शहर एक योजनाबद्ध निकाय है जिसे किसी स्थानीक योजना के बिना तैयार नहीं किया जा सकता है.सड़कों एवं सार्वजनिक स्थानों के डिज़ाइन के मानकों से जुड़ी सिफारिशें, शहर की सुंदरता और उसके कार्यान्वयन क्षमता के नज़रिए से काफी महत्वपूर्ण है. यह एक प्रशंसनीय सिफ़ारिश भी है और इसे शहरी कार्य के रूप में बनाया अथवा अपनाया जाना चाहिए. चूंकि अलग-अलग नियोजित सुविधाओं में भूमि अधिग्रहण भी शामिल होता है, इस वजह से, स्थानीय योजनाओं के लागू किए जाने में शहरों की पूर्ण अक्षमता को प्रकाश में लाया जा सकता था. शहरों की वित्तीय अक्षमता को ध्यान में रखते हुये, ये शहरों के पहुँच से काफी दूर भी है.   

कई संस्थान और अर्बन प्लानिंग के विषय पर काम करने वाले अध्येता भी इस बात की सिफारिश करते रहे हैं कि शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) और उनके मेयर को ज़्यादा प्रशासनिक ताक़त मिलनी चाहिये. 

नगरपालिका के दैनिक कामकाज में डिजिटलीकरण का इस्तेमाल ज़्यादा से ज़्यादा करने के संबंध में की गई सिफारिशों के बाबत पिछले कुछ समय से लगातार बातें हो रही हैं और सरकार भी इसके समर्थन में रही है. परंतु अलग-अलग शहर ने इसे बिल्कुल अपने मनमुताबिक अलग तरह ग्रहण किया है. जिसके कारण, इनमें से अधिकांश शहरें, अब भी अपने आप को पूर्ण डिजिटलीकृत कहने की स्थिति में नहीं है. हालांकि, इस कारण उनका किसी प्रकार का कोई राजनीतिक विरोध नहीं है, परंतु, डिजिटलीकरण से जुड़े मुद्दे के कारण उनसे कई अपेक्षायें जुड़ी हुई हैं. इसके अलावा साझा सेवाओं और कैडर एवं बहाली के दौरान किसी प्रकार की कोई जटिलता नहीं आयेगी.    

हालांकि, शहर और महानगरीय शासन और यूएलबी के वित्तपोषण संबंधी सिफारिशें, लगभग नई नहीं है. कई संस्थाएं और शहरी शिक्षाविद शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) एवं उनके महापौरों के सशक्तिकरण को अपना समर्थन दे रहे है. कई अन्य ने सक्रिय नागरिकों के नगरपालिका मामलों में, भागीदारी का समर्थन किया है. इसके अलावा भी, नगरपालिका के वित्तीय क्षेत्र में काम कर रहे अधिकांश लोगों का मिजाज़, यूएलबी के वित्तपोषण, नगरपालिका बॉन्ड और उसके कर-मुक्त स्थिति को लेकर उत्साहजनक नहीं है. 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम (एक्ट) में भी ये मुद्दा शामिल था.

पिछले तीस सालों से, सभी राज्यों ने इन सुधार उपायों के प्रति उदासीन रवैया अपना रखा था, जिसके फलस्वरूप, इस क्षेत्र में किसी प्रकार की प्रगति दर्ज नहीं हुई है. जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) और इसके बात की कई केन्द्रीय योजनाओं के ज़रिये चंद सुधारों को केंद्रीय आवंटन से लिंक करके प्रोत्साहित करने की भी मांग की गई. जहां कुछ शहरों ने चंद शुरुआती कदम उठाए हैं, उसके बावजूद, उन्होंने इसका पूर्ण पालन नहीं किया और सुधार की दिशा में पूरा रास्तान पूरा न करने के बाद भी, केंद्र निधि तक पहुँचने में सफल रहे थे. भारत सरकार, इन राज्यों को इनके उदासीन रवैयों के लिए दंडित करने के प्रति भी अनिच्छुक दिखी.      

उपर के संदर्भ में, दिए गए सुझाव बहरे कानों में जाता प्रतीत हो रहा है. केंद्र  सरकार ने इस मुद्दे को लागू किए जाने के प्रति ज़रूरी जिजीविषा नहीं दिखलाई है, और राज्य सरकारों ने, शहरों के सशक्तिकरण के मुद्दे को, वो चाहे शासन के क्षेत्र में हो अथवा वित्त के उसे अपनी प्राथमिकता से हमेशा बाहर ही रखा है.

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