Author : Premesha Saha

Published on Oct 26, 2023 Updated 0 Hours ago

लोगों की आम सोच के उलट, आसियान के साझा अभ्यास का मक़सद अपनी एकजुटता को ज़ाहिर करना और इसके सदस्य देशों के बीच समुद्री सुरक्षा सहयोग को शुरू करना था.

आसियान (ASEAN) का एकजुटता का अभ्यास: क्या इससे चीन को कड़ा संदेश मिल रहा है?

आसियान देशों ने (ASEAN) सितंबर 2023 में इंडोनेशिया में ‘आसियान सॉलिडैरिटी एक्सरसाइज़ (ASEX)’ के नाम से अपना पहला संयुक्त नौसैनिक युद्धाभ्यास  किया था. ये युद्ध अभ्यास सिंगापुर के दक्षिण में स्थित बटाम द्वीप से लेकर नटुना द्वीप समूहों के बीच के इलाक़े में किया गया था. इंडोनेशिया की सेना के प्रमुख एडमिरल युडो मारगोनो के एक बयान के मुताबिक़, इस युद्धाभ्यास  के दौरान साझा समुद्री निगरानी गश्ती के अभियान, खोज और बचाव के अभियान और आपदा राहत अभियान चलाने का अभ्यास किया गया. इस अभ्यास का मक़सद, ‘आसियान देशों के बीच सैन्य संबंध मज़बूत करना और मिलकर काम करने का अनुभव और बेहतर बनाना था.’ अभ्यास के दौरान आपदा से बचाव और राहत के काम में लगे असैन्य संगठनों ने भी हिस्सा लिया था. इससे पहले आसियान के सदस्य देश, संगठन के बाहर के देशों जैसे कि अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और भारत के साथ नौसैनिक अभ्यास करते रहे हैं. लेकिन, ये पहली बार था, जब केवल आसियान के सदस्य देशों ने ही आपस में मिलकर अभ्यास किया. कुछ लोगों का मानना है कि ये आसियान की तरफ़ से ‘चीन को संकेत’ देने का प्रयास था. लेकिन, इससे सवाल ये पैदा होता है कि क्या आसियान देश वास्तव में अपने पहले संयुक्त युद्ध अभ्यास को इसी तरह पेश करना चाहते हैं?

अभ्यास के दौरान आपदा से बचाव और राहत के काम में लगे असैन्य संगठनों ने भी हिस्सा लिया था. इससे पहले आसियान के सदस्य देश, संगठन के बाहर के देशों जैसे कि अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और भारत के साथ नौसैनिक अभ्यास करते रहे हैं.

आसियान का युद्धाभ्यास

जैसा कि पहले बताया गया कि ये युद्ध अभ्यास नटुना सागर में हुआ, जो चीन और इंडोनेशिया के बीच विवादित समुद्री क्षेत्र है. क्योंकि, चीन की बदनाम नाइन-डैश लाइन, इंडोनेशिया के नटुना द्वीपों के पास से होते हुए उसके विशेष आर्थिक क्षेत्र के एक हिस्से से होकर गुज़रती है. लेकिन, ये नौसैनिक अभ्यास, जो शुरू में तो उत्तरी नटुना सागर में होना था– और जो दोनों देशों के बीच विवाद का प्रमुख इलाक़ा है- लेकिन बाद में इसकी जगह बदलकर दक्षिणी नटुना द्वीपों की ओर कर दी गई, जो विवादित समुद्री क्षेत्र से दूर है, ताकि चीन को इससे कोई नाराज़गी न हो.

दक्षिणी चीन सागर में चीन की भूमिका

इस समय साउथ चाइना सी में चीन की आक्रामक गतिविधियों को लेकर इस पर दावा करने वाले दूसरे दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों जैसे फिलीपींस और वियतनाम की तरफ़ कड़ा प्रतिरोध दिखाया जा रहा है. मसलन, ऐसी ख़बरें हैं कि फिलीपींस, साउथ चाइना सी में पर्यावरण तबाह करने को लेकर चीन के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय पंचायत में दूसरा केस दाख़िल करने वाला है. यही नहीं, फिलीपींस और अमेरिका के बीच एनहैंस्ड डिफेंस कोऑपरेशन  एग्रीमेंट (EDCA) के ज़रिए रक्षा सहयोग भी बढ़ रहा है. इसके अतिरिक्त, पिछले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, वियतनाम के दौरे पर भी गए थे, और दोनों देशों के रिश्ते अब व्यापक सामरिक साझेदारी के तौर पर विकसित हो रहे हैं, जिनका मुख्य मक़सद दोनों देशों के बीच सैन्य साझेदारी को बढ़ाना है. इसकी भी काफ़ी चर्चा हो रही है. पर इसके साथ साथ, विवादित समुद्री क्षेत्र में चीन की आक्रामक गतिविधियों के ख़िलाफ़ एक संगठन के रूप में आसियान की एकजुट प्रतिक्रिया अभी भी दूर की कौड़ी ही मालूम देती है. ये बात 7 सितंबर 2023 को हुए 43वें आसियान शिखर सम्मेलन और 18वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के बाद चेयरमैन की तरफ़ से जारी बयानों के रूप में साफ़ हो जाती है. दोनों ही बयानों में कहा गया था कि, ‘हाल की गतिविधियों को देखते हुए, आपसी भरोसे और विश्वास को बढ़ाने, तनाव बढ़ाने की आशंका वाले और, शांति और स्थिरता को जटिल बनाने और विवाद बढ़ाने वाले क़दम उठाने को लेकर सावधानी बरतने की ज़रूरत है और हम ये दोहराते हैं कि विवादों का सार्वभौमिक  रूप से स्वीकार्य अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और 1982 के UNCLOS के तहत शांतिपूर्ण समाधान करने की ज़रूरत है.’ इसलिए , इस बयान से साफ़ है कि जब बात दक्षिणी चीन सागर में विवाद की आती है, तो आसियान के बयान बहुत सावधानी से भरे होते हैं, ताकि चीन के साथ रिश्ते ख़राब न हों.

युद्ध अभ्यास नटुना सागर में हुआ, जो चीन और इंडोनेशिया के बीच विवादित समुद्री क्षेत्र है. क्योंकि, चीन की बदनाम नाइन-डैश लाइन, इंडोनेशिया के नटुना द्वीपों के पास से होते हुए उसके विशेष आर्थिक क्षेत्र के एक हिस्से से होकर गुज़रती है.

इसीलिए, भले ही फिलीपींस और वियतनाम जैसे देशों ने चीन को लेकर अपना रुख़ बदला है और साउथ चाइना सी के विवाद को लेकर कड़ा रुख़ अपनाया है. पर, इस बात की उम्मीद कम ही है कि इसका आसियान के रवैये पर कोई असर पड़ेगा. आसियान के बयान में इस बात का भी ज़िक्र था कि कोड ऑफ कंडक्ट के दूसरे ड्राफ्ट पर परिचर्चा कामयाबी के साथ पूरी हो गई है. लेकिन, इससे कोड ऑफ कंडक्ट (COC) पर आख़िरी मुहर लगेगी, ये बात साफ़ नहीं की गई. इसीलिए, आसियान के नरम रवैये के पीछे एक वजह ये भी हो सकती है कि कोड ऑफ कंडक्ट को जल्दी से जल्दी अंजाम तक पहुंचाया जा सके. लेकिन, COC को लेकर बातचीत तो बहुत लंबे समय से चल रही है और आसियान के नरम रवैये के बावजूद इसे अमली जामा पहनाने की प्रक्रिया को गति नहीं मिल सकी है. ऐसे में ये सही समय होगा जब आसियान के देश ये सोचें कि क्या ऐसे सपाट बयानों से आसियान को अपना वो अपेक्षित लक्ष्य हासिल करने में कोई मदद मिल रही है कि चीन एक क़ानूनी रूप से बाध्यकारी कोड ऑफ कंडक्ट के लिए राज़ी हो जाए. इसके उलट, विद्वानों का कहना है कि COC को लेकर धीमी प्रगति और आसियान का नरम रुख़, साउथ चाइना में दावेदार इसके सदस्य देशों को मज़बूर कर रहे हैं कि वो अपनी संप्रभुता और आर्थिक हितों की रक्षा के लिए एकपक्षीय नीतियों पर अमल करें. इससे तो आसियान के अंदरूनी मतभेद और भी उजागर हो जाते हैं और इससे ‘हिंद प्रशांत क्षेत्र में आसियान की केंद्रीय भूमिका’ को भी चोट पहुंचती है.

आसियान के पहले संयुक्त नौसैनिक अभ्यास (ASEX) को भी इसी नज़रिए से देखे जाने की ज़रूरत है.

आसियान शिखर सम्मेलन के ठीक पहले चीन ने अपना नया 10 डैश लाइन का नक़्शा जारी किया था. जिसके बाद, साउथ चाइना सी के दावेदार एशिया के सभी देशों ने इस नक़्शे को ख़ारिज करने वाले बयान जारी किए थे. इससे ऐसा लगा था कि आसियान की तरफ़ से आपसी तालमेल के साथ एक कड़ी प्रतिक्रिया की उम्मीद लगाई जा सकती है. लेकिन, साफ़ है कि ‘आपसी तालमेल के साथ ख़ारिज करने वाले बयान’ आसियान की स्थिति पर कोई ख़ास असर नहीं डालते हैं. यहां तक कि शिखर सम्मेलन के बाद जारी बयान में नक़्शे का कोई ज़िक्र नहीं किया गया था. चीन ने हमेशा ही इस विवाद के निपटारे के लिए सभी देशों से एक संगठन के रूप में आसियान के मंच पर एक साथ वार्ता करने के बजाय, अलग अलग द्विपक्षीय बातचीत करने को तरज़ीह दी है. इसीलिए, दावेदार देशों द्वारा चीन का 10 डैश लाइन वाला नक़्शा ख़ारिज करते हुए आसियान की तरफ़ से संयुक्त बयान जारी करने के बजाय अलग अलग बयान देना ये दिखाता है कि भले ही आसियान को चीन के आक्रामक रुक़ का अंदाज़ा तो है. पर, चीन को नाराज़ करके उससे रिश्ते ख़राब करने वाला कोई क़दम उठाने से गुरेज़ करने के विचार को भी उतनी ही अहमियत दी जाती है.

आगे कि राह

आसियान में इंडोनेशिया, हमेशा की ‘समकक्षों में अव्वल’ की भूमिका अदा करता रहा है. और, अपनी इस भूमिका को और मज़बूत करने के लिए वो सदस्य देशों को साथ लाने के लिए कई बैठकें आयोजित कर चुका है. 2023 में आसियान के अध्यक्ष के तौर पर इंडोनेशिया ने बहुत सी बैठकें और पहलें करने की कोशिश की जिससे आसियान में ये नियम और मज़बूत बने. आसियान के पहले संयुक्त नौसैनिक अभ्यास (ASEX) को भी इसी नज़रिए से देखे जाने की ज़रूरत है. साझा नौसैनिक अभ्यास की मेज़बानी करने के अलावा इंडोनेशिया ने पहले आसियान इंडो पैसिफिक फोरम की मीटिंग की भी मेज़बानी की और आसियान मेरीटाइम  आउटलुक और ब्लू इकॉनमी की एक रूपरेखा भी जारी की. इस युद्ध अभ्यास की मेज़बानी करने का मक़सद दो तरफ़ा लगता है. पहला लक्ष्य तो वैश्विक समुदाय को ये संदेश देना था कि, म्यांमार और साउथ चाइना सी जैसे मसलों पर मतभेद के बावजूद आसियान के बीच एकजुटता अभी भी मज़बूत है. जैसा कि कुछ विद्वानों ने कहा है कि युद्ध अभ्यास का दूसरा मक़सद किसी भी तरह से ‘चीन को संकेत या मज़बूत संदेश देना’ नहीं था. ये अभ्यास युद्ध की तैयारी करने वाला नहीं था. लेकिन, ये अभ्यास एक मज़बूत प्रयास के रूप में उभरे, इसके लिए जानकारों ने बिल्कुल सही कहा है कि इसे एक वार्षिक कार्यक्रम बनाने और संस्थागत रूप देने की ज़रूरत है, जिससे ये केवल एक दिन की चांदनी बनकर न रह जाए, और जैसा कि इंडोनेशिया के सेना प्रमुख ने कहा कि जिससे भविष्य में इस अभ्यास को वास्तविक युद्ध अभ्यास के रूप में विस्तारित किया जा सके, जिसमें ‘सभी देशों की थल सेनाएं, नौसेनाएं और वायुसेनाएं भाग ले सकें’

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Premesha Saha is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses on Southeast Asia, East Asia, Oceania and the emerging dynamics of the ...

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