Author : Gurjit Singh

Expert Speak Raisina Debates
Published on May 27, 2024 Updated 0 Hours ago

हालांकि आसियान देशों ने एक बयान जारी कर फ़िलीस्तीन और इज़रायल से ग़ाज़ा में शत्रुतापूर्ण रवैया त्यागने की अपील की है, लेकिन इस मुद्दे पर आसियान देशों के बीच सर्वसम्मति नहीं बन पा रही है. हर देश अपनी राष्ट्रीय हितों के हिसाब से अपना रुख़ तय कर रहा है.

ग़ाज़ा संकट पर ASEAN देशों के रुख़ में इतना असमंजस क्यों है?

7 अक्टूबर 2023 को इज़रायल पर हमास के हमले और फिर ग़ाज़ा पर इज़रायल के पलटवार ने आसियान यानी दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) को असमंजस में डाल रखा है. इज़रायल और फ़िलीस्तीन को लेकर सभी आसियान देशों का दृष्टिकोण एक जैसा नहीं है. इज़रायल के हमलों की मार झेल रहे ग़ाज़ा के लोगों के लिए सहानुभूति बढ़ती जा रही है.

ग़ाज़ा पर प्रतिक्रिया

इज़रायल पर हमास के हमले के बाद आसियान के विदेश मंत्रियों ने पांच पैराग्राफ का एक बयान जारी किया. इस बयान में दोनों पक्षों से दुश्मनी ख़त्म करने और बंधक बनाए गए आसियान देशों के लोगों की सुरक्षा की अपील की गई. इस बयान में कई देशों की राष्ट्रीय भावनाओं को मान्यता दी गई लेकिन इसके दो मुख्य बिंदु थे: पहला, वो इस क्षेत्र में सशस्त्र संघर्ष बढ़ने से चिंतित थे. दूसरा, उन्होंने हिंसा की निंदा की और बातचीत के ज़रिए दो देश के समाधान की दिशा में आगे बढ़ने की अपील की. बयान के दो लंबे पैराग्राफ्स में नागरिकों को हुए नुकसान की बात थी. इसमें आसियान देशों के नागरिक भी शामिल थे, जिनके लिए आसियान ने सुरक्षा और आपातकालीन मदद की मांग की थी. आसियान ने इस क्षेत्र में दीर्घकालिक स्थिरता के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से समर्थन भी मांगा. कुल मिलाकर ये बयान आसियान देशों के नागरिकों की सुरक्षा को लेकर था, बाकी सब चीजें आशा और उम्मीदों को लेकर थीं. 

इज़रायल पर हमास के हमले के बाद आसियान के विदेश मंत्रियों ने पांच पैराग्राफ का एक बयान जारी किया. इस बयान में दोनों पक्षों से दुश्मनी ख़त्म करने और बंधक बनाए गए आसियान देशों के लोगों की सुरक्षा की अपील की गई.

हमास के हमले में थाईलैंड के 32 नागरिक मारे गए, जबकि 24 को बंधक बनाया गया. इज़रायल में थाईलैंड के करीब 30,000 लोग थे और ये प्रमुख तौर पर खेती का काम करते थे. फिलीपींस के भी 30,000 नागरिक इज़रायल में थे और इनमें से एक बंधक है. फिलिपानोज़ के तीन और कंबोडिया के एक छात्र की भी इस हमले में जान गई. इस सबके बीच ग़ाज़ा में इंडोनेशिया 100 बिस्तरों वाले एक अस्पताल को सफलतापूर्व चला रहा था. 2011 से ही मुहम्मदिया और कुछ नागरिक संगठन इस अस्पताल का खर्च उठा रहे हैं लेकिन नवंबर 2023 में इज़रायल ने इस अस्पताल को अपने कब्ज़े में लेकर यहां अपना अड्डा बनाया. इज़रायल का आरोप था कि इस अस्पताल से हमास अपनी आतंकी गतिविधियां संचालित करता है.

नवंबर 2023 में इंडोनिया में इज़रायल का समर्थन करने वाले अमेरिका और कुछ पश्चिमी उत्पादों (ब्रांड्स) के ख़िलाफ फ़तवा जारी किया गया. इसकी वजह से इंडोनेशिया में पश्चिमी उत्पादों की बिक्री में 25 प्रतिशत तक की गिरावट आ गई. मार्च 2024 में कराए गए एक सर्वे में इंडोनेशिया के 65 प्रतिशत नागरिकों ने इस फ़तवे का समर्थन किया. इसमें 121 ब्रांड्स के बहिष्कार की बात कही गई थी, जिसके बाद स्थानीय मैकडोनाल्ड कंपनी को अपने यहां फ़िलीस्तीन का झंडा लगाना पड़ा, जिससे ये साबित किया जा सके कि इस फ्रेंचाइज़ी के मालिक इंडोनेशियाई ही हैं. मलेशिया में बहिष्कार की ये मांग सिंगापुर की टैक्सी ऐप कंपनी ग्रैब तक फैल गई. मलेशिया ने अपने बंदरगाहों को इज़रायली के शिपिंग के काम के लिए बंद कर दिया. हालांकि इज़रायली रक्षा उद्योग ने फरवरी 2024 में सिंगापुर में हुए एयरशो में भाग लिया.

जब ग़ाज़ा में संकट दोबारा शुरू हुआ, तब इंडोनेशिया में चुनाव चल रहे थे. इंडोनेशिया ने 2021 में फ़िलीस्तीन के लिए गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का समर्थन मांगा था. इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो की विदेश नीति में थोड़ा मुस्लिम एंगल भी है. वो फ़िलीस्तीन का जमकर समर्थन करते हैं और इज़रायल से कई संपर्क नहीं रखना चाहते. मलेशिया ने संघर्ष के दौरान यही नीति जारी रखी. मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम और विदेश मंत्री ने इज़रायल की कड़े शब्दों में निंदा की और फ़िलीस्तीन के समर्थन को लेकर वो मुखर रहे. इंडोनेशिया में राष्ट्रपति पद के प्रमुख उम्मीदवार प्राबोबो सुबियांतो से भी इसी नीति को जारी रखने की उम्मीद है.

मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम और विदेश मंत्री ने इज़रायल की कड़े शब्दों में निंदा की और फ़िलीस्तीन के समर्थन को लेकर वो मुखर रहे. इंडोनेशिया में राष्ट्रपति पद के प्रमुख उम्मीदवार प्राबोबो सुबियांतो से भी इसी नीति को जारी रखने की उम्मीद है.

ब्रुनेई इस मुद्दे पर उतना मुखर नहीं है. हालांकि उसके भी इज़रायल के साथ संबंध नहीं है. ब्रुनेई चाहता है कि इज़रायल की सीमा की स्थिति 1967 से पहले की जैसी हो. लेकिन आसियान के भीतर इज़रायल-फ़िलीस्तीन संकट को लेकर आम सहमति का अभाव है. ये संघर्ष अब जिस स्थिति में पहुंच गया है, उससे आसियान देश भौचक्के हैं. कुछ देशों के नागरिकों को तो ग़ाज़ा में बंधक बना लिया गया है और इस समस्या से बाहर निकलने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है. हालांकि,आसियान के सभी देश इस बात पर सहमत है कि शांतिपूर्ण सह अस्तित्व के साथ दो देश समाधान ही व्यावाहिरक विकल्प है. नवंबर 2023 में आसियान के रक्षा मंत्रियों ने एक बयान जारी किया.

मुस्लिम एंगल 

हालांकि, सभी आसियान देश शांति और दो देश वाले समाधान की बात कर रहे हैं लेकिन मुस्लिम एंगल की वजह से उनमें कुछ मतभेद भी हैं. ये मुस्लिम एंगल इज़रायल-फ़िलीस्तीन मुद्दे पर हमेशा हावी रहता है. इंडोनेशिया, मलेशिया और ब्रुनेई ग्लोबल साउथ में बदलाव को इस मुद्दे पर आसियान में लेकर आते हैं. हर कोई ये सोचता है कि क्या करना है, कैसे आगे बढ़ना है. आसियान के लिए सबसे बड़ी चुनौती ये है कि 55 साल के सहयोग के बावज़ूद ये अंतर्राष्ट्रीय संकट के मुद्दों पर आम राय नहीं बना पाता, जैसा कि यूक्रेन संकट के दौरान भी देखा गया. सर्वसम्मति की ये कमी आसियान को संकट के समाधान की स्थिति में कोई ठोस और उपयोग कदम उठाने से रोकती है.

ग़ाज़ा पर आसियान के विदेश मंत्रियों का बयान उसी समय जारी किया जब आसियान खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) ने बयान जारी किया था. आसियान ने GCC के साथ अपना पहला शिखर सम्मेलन तभी आयोजित किया था. आसियान का मानना है कि इस साझेदारी में आगे बढ़ने की बहुत क्षमता है, इसलिए ग़ाज़ा संकट के बावजूद बातचीत को स्थगित नहीं किया गया. GCC का ये पांच पैराग्राफ वाला बयान आसियान के जैसा ही था. इसमें भी टिकाऊ युद्धविराम, नागरिक बंधकों की सुरक्षा और रिहाई, दो देश वाले समाधान की बात कही गई थी. सऊदी अरब और यूरोपीयन यूनियन (EU) की पहल के लिए समर्थन की मांग की गई थी. इसके साथ ही अरब लीग, मिस्र और जॉर्डन से मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया को फिर से जीवित करने की अपील की गई थी. ये पैराग्राफ जीसीसी के लिए एक छूट था, क्योंकि आसियान की इसमें कोई भूमिका नहीं थी.

मार्च 2024 में ऑस्ट्रेलिया के साथ एक शिखर सम्मेलन में आसियान के नेताओं ने ग़ाज़ा में पैदा हुए मानवीय संकट और नागरिकों पर हमले को देखते हुए तुरंत युद्धविराम की अपील की. अपने संबंधों की स्वर्ण जयंती ऑस्ट्रेलिया-आसियान मेलबर्न घोषणापत्र में शरणार्थियों, मानवीय पुनर्निमाण, मानवीय सहायता और नागरिकों की सुरक्षा को लेकर चिंताएं दोहराई गईं.

हालांकि, 27 अक्टूबर 2023 को जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में ग़ाज़ा में मानवीय सहायता के लिए तुरंत और लागातर युद्धविराम का प्रस्ताव लाया गया, तब आसियान के 11 में से 9 देशों ने ही प्रस्ताव के समर्थन में वोट दिया. कंबोडिया बैठक से अनुपस्थित था, जबकि फिलीपींस प्रस्ताव पर वोटिंग से गैरहाजिर रहा. ग़ाज़ा पर साझा रुख़ होने के बावजूद आसियान के देश अपने या अपने साझेदारों का स्टैंड अपनाते रहे. सभी 11 देशों ने संयुक्त राष्ट्र में एक साथ वोट नहीं करते. ना ही उनके वोटिंग का पैटर्न उनके बातचीत के साझेदारों, खासकर ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड जापान, दक्षिण कोरिया, के रुख़ के मुताबिक था. कुल मिलाकर कहें तो इस मुद्दे पर आसियान देशों का रुख़ ग्लोबल साउथ की नीति की तरह ही रहा. 

जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था तो ग्लोबल साउथ के कई देशों ने तुरंत इसकी निंदा की थी. लेकिन बात जब इज़रायल की आई तो इस मामले में पश्चिमी देशों आसियान का स्टैंड एक नहीं है. इसने भी आसियान के रुख़ में अनिश्चितता पैदा की है.

जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था तो ग्लोबल साउथ के कई देशों ने तुरंत इसकी निंदा की थी. लेकिन बात जब इज़रायल की आई तो इस मामले में पश्चिमी देशों आसियान का स्टैंड एक नहीं है. इसने भी आसियान के रुख़ में अनिश्चितता पैदा की है.

अरब लीग, इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) और BRICS के हालिया बयान उनके नज़रिए में बदलाव को दिखाते हैं. उदाहरण के लिए मार्च 2024 में जब संयुक्त राष्ट्र में फ़िलीस्तीन को अतिरिक्त अधिकार देने के प्रस्ताव पर वोटिंग हुई तो इज़रायल का समर्थक माने जाने वाले सिंगापुर ने इसके पक्ष में वोट किया. बाद में उसने स्पष्टीकरण देते हुए एक बयान भी जारी किया.

आसियान में सर्वसम्मति का अभाव

स्वभाविक रूप से ग़ाज़ा संकट पर आसियान देशों की स्थिति एक जैसी नहीं है. इज़रायल के साथ म्यांमार के सबसे पुराने संबंध है. 1953 में ही दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्ते स्थापित हो गए थे. कंबोडिया, लाओस, वियतनाम, सिंगापुर, थाईलैंड और फिलीपींस के भी इज़रायल के साथ राजनयिक संबंधन हैं. आसियान में इंडोनेशिया, मलेशिया और ब्रुनेई जैसे जो मुस्लिम प्रभुत्व वाले देश हैं, सिर्फ़ वही इज़रायल को मान्यता नहीं देते और फ़िलीस्तीन का मुखर समर्थन करते हैं. फ़िलिस्तीन समस्या का न्यायपूर्ण समाधान की मांग आसियान के हर दस्तावेज़ में नियमित रूप से की जाती है. आसियान में 11वें सदस्य के रूप में शामिल तिमोर लेस्ते के भी 2002 से ही इज़रायल के साथ राजनयिक संबंध हैं.

पिछले 2 दशक में इज़रायल का आसियान देशों के साथ व्यापार बढ़ा है. इज़रायल के कृषि और चिकित्सा उपकरणों और आईटी के सामान की काफी मांग है. 2022 में इज़रायल के साथ वियतनाम का व्यापार 10 प्रतिशत बढ़कर 2.23 अरब डॉलर पहुंच गया. दोनों देशों ने जुलाई 2023 में मुक्त व्यापार समझौता किया. सिंगापुर के साथ ये व्यापार 3.14 अरब डॉलर, थाईलैंड के साथ 1.3 अरब डॉलर, फिलीपींस के साथ 0.59 अरब डॉलर, मलेशिया के साथ 85 मिलियन डॉलर और इंडोनेशिया के साथ 260 मिलियन डॉलर है.

इज़रायल के कब्ज़े पर कानूनी सवाल

मार्च 2024 में इंडोनेशिया और मलेशिया ने अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) से फ़िलीस्तीन ज़मीन पर इज़रायल के कब्ज़े को अवैध घोषित करने, इज़रायली सेना की वापसी और फ़िलीस्तीन को मुआवज़े के भुगतान के लिए दख़ल देने की मांग की. ICJ की ये कार्यवाही दक्षिण अफ्रीका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में दाख़िल केस से अलग है. दक्षिण अफ्रीका वाला केस 7 अक्टूबर को हमास की तरफ से किए गए हमले और इज़रायल पर नरसहांर कन्वेंशन के उल्लंघन का आरोप लगाता है. इंडोनेशिया और मलेशिया के विदेश मंत्रियों ने ICJ से 1967 के बाद से ही फ़िलीस्तीन पर इज़रायल के कब्ज़े की कानूनी वैधता को लेकर सवाल पूछा है. वो चाहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय फ़िलीस्तीन पर इज़रायल के कब्ज़े को अवैध घोषित करे और फिर इसके बाद इसे ख़त्म किया जाना चाहिए. अब ICJ पहली बार 1967 से पहले इज़रायल द्वारा बड़े क्षेत्र पर कब्ज़े के कानूनी नतीजों की जांच करेगा.

आसियान का असमंजस

फ़िलीस्तीन का ज़ख्म लंबे वक्त से रिस रहा है. ये मुद्दा एक बार फिर उभर कर सामने आ गया है. ऐसे में आसियान देशों के सामने अपने राष्ट्रीय हितों के हिसाब से अपना रुख़ स्पष्ट करने की चुनौती पैदा हो गई है. यही वजह है कि इस मुद्दे पर आसियान देशों में सर्वसम्मति नहीं बन पा रही है. घरेलू मोर्चे पर देखें तो मलेशिया और इंडोनेशिया ये नहीं चाहते हैं कि फ़िलीस्तीन संकट की वजह से उनके यहां मुस्लिम समाज कट्टरपंथी बनें, लेकिन अपनी जनता को संतुष्ट रखने के लिए इन देशों की सरकारों को कुछ ना कुछ करते हुए दिखना होगा. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो ग़ाज़ा संकट आसियान के लिए अपनी केंद्रीयता और अहमियत बनाए रखने की चुनौती है क्योंकि यूक्रेन युद्ध की तरह ये संकट ना तो उनका बनाया हुआ है, ना वो उनकी पसंद का है. वो पहले से ही दक्षिणी चीन सागर और म्यांमार के संकट  से जूझ रहे हैं. ग़ाज़ा जैसे संकट के सामने आने से उस मुद्दे से ध्यान हट जाता है.

आसियान को इस संक्रमणकाल और नई वैश्विक व्यवस्था में अपनी स्थिति को स्वीकार करना होगा क्योंकि जिन परिस्थितियों में इसे स्थापित किया गया था, ये ज़रूरी नहीं कि आज भी वही स्थितियां लागू हों.

आसियान को अलग-अलग देशों और संगठन की शक्ति और क्षेत्रीय संघर्ष को प्रभावित करने की अपनी सीमाओं का अहसास है. इसीलिए आसियान असमंजस का सामना कर रहा है. आसियान को इस संक्रमणकाल और नई वैश्विक व्यवस्था में अपनी स्थिति को स्वीकार करना होगा क्योंकि जिन परिस्थितियों में इसे स्थापित किया गया था, ये ज़रूरी नहीं कि आज भी वही स्थितियां लागू हों. ऐसे में आसियान देशों को एक ऐसे क्षेत्रीय संघर्ष, जिसके अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव हैं, का सामना करने के लिए अपने विचारों में एकजुटता लाने की कोशिश करनी होगी.


(गुरजीत सिंह जर्मनी, इंडोनेशिया, इथोपिया, आसियान और अफ्रीकी यूनियन में भारत के राजदूत रह चुके हैं. वो सीआईआई के एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर (AAGC) के मुखिया भी हैं).

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