यह लेख “द चाइना क्रॉनिकल्स” शृंखला का 148वां भाग है
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी विशेष अवस्थिति के कारण दक्षिण-पूर्व एशिया अमेरिका (यूएस) और चीन के बीच बढ़ती शक्ति प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा बन गया है. कुछ विद्वानों का मानना है कि “चीन जैसे शक्तिशाली देश के लिए दक्षिण-पूर्व एशिया एक प्रयोगशाला की तरह है, जिसे वह अपनी वैश्विक विस्तार योजना के प्रवेश द्वार के रूप में देख रहा है.”
जहां एक तरफ़, चीन अभी भी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत आर्थिक सहायता प्रदान कर रहा है और दक्षिण चीन सागर में एक “कोड ऑफ कंडक्ट” (COC) लागू करने के लिए दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है ताकि क्षेत्र में स्थिरता लाई जा सके. वहीं दूसरी ओर, वह अभी भी दक्षिण चीन सागर के विवादित क्षेत्र में सक्रियता दिखा रहा है, जहां सबसे हालिया मामले में फिलीपींस का आरोप है कि एक चीनी तटरक्षक जहाज़ ने वॉटर कैनन से उसके जहाज़ पर हमला कर दिया जो अपने सैन्य कर्मियों के लिए भोजन, पानी, ईंधन और अन्य आपूर्ति लेकर सेकंड थॉमस शोल की ओर जा रहा था.
इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अमेरिका क्षेत्र में फिलीपींस जैसे अपने सहयोगी देशों के साथ संबंधों को फिर से पुनर्गठित करने की कोशिश कर रहा है ताकि वह अपने प्रभाव का विस्तार कर सके.
इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अमेरिका क्षेत्र में फिलीपींस जैसे अपने सहयोगी देशों के साथ संबंधों को फिर से पुनर्गठित करने की कोशिश कर रहा है ताकि वह अपने प्रभाव का विस्तार कर सके. सिंगापुर में लोई इंस्टीट्यूट और आईएसईएएस यूसोफ इशाक इंस्टीट्यूट जैसे थिंक टैंकों द्वारा हाल ही में किए गए सर्वेक्षणों के मुताबिक, “चीन के बढ़ते प्रभाव के पीछे काफ़ी हद तक अमेरिकी प्रभाव में आई गिरावट ज़िम्मेदार है, जो वॉशिंगटन और बीजिंग के बीच प्रतिस्पर्धा वाले कुछ महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में तेज़ी से अपना प्रभाव खोता जा रहा है.” दो महाशक्तियों के बीच इस शक्ति प्रतिस्पर्धा ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों को बेहद मुश्किल में डाल दिया है. जबकि इन देशों की संयुक्त प्रतिक्रिया तो यही है कि वे ऐसी स्थिति में नहीं फंसना चाहते जहां उन्हें किसी एक पक्ष को चुनना पड़े. और इस संबंध में हर एक देश की प्रतिक्रिया एक समान नहीं है और यह राष्ट्रीय हितों, ख़तरे को लेकर धारणाओं, भौगोलिक निकटता और अन्य कारकों पर निर्भर है. इस लेख में कुछ हालिया मामलों के बारे में बात की जाएगी, जो स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच प्रतिस्पर्धा तीव्र होती जा रही है और इसी क्रम में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की प्रतिक्रियाएं और एक क्षेत्रीय संगठन के रूप में आसियान की चिंताएं भी बढ़ती जा रही है.
क्षेत्र में शक्ति प्रतिस्पर्धा अपने चरम पर
हालांकि इस क्षेत्र में लंबे समय से शक्ति प्रतिस्पर्धा रही है, लेकिन अब यह चिंता का विषय बनती जा रही है क्योंकि इसके कारण क्षेत्र का तेजी से सैन्यीकरण हो रहा है. लंबे समय से अमेरिकी मीडिया यह ख़बर देता रह है कि चीन संभवतः कंबोडिया में सैन्य अड्डे का निर्माण कर रहा है. लेकिन अब मैक्सार टेक्नोलॉजीज की सैटेलाइट तस्वीरें कंबोडियाई नौसैनिक अड्डे यानी कि थाईलैंड की खाड़ी में सिहानोकविले के पास रीम सैन्य अड्डे के नाटकीय परिवर्तन को दिखाती हैं. ऐसी ख़बरें आई हैं कि “2017 में पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में एक सैन्य अड्डे के निर्माण के बाद यह सैन्य अड्डा चीन का दूसरा विदेशी सैन्य अड्डा हो सकता है.” जून 2023 में जो सैटलाइट तस्वीरें सामने आईं, उनसे पता चलता है कि सैन्य अड्डे पर कई नई इमारतों, सड़कों और एक नए तटबंध का निर्माण किया है, जो सैन्य अड्डे के पुराने तटबंध से कहीं ज्यादा बड़ा है. चैटम हाउस की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कंबोडिया की पूर्व सरकार ने चीन को वायु रक्षा संरचनाओं, सामान्य कमांड सुविधाओं के निर्माण और सैन्य अड्डे के नज़दीक एक नौसैनिक रडार की स्थापना के लिए 157 हेक्टेयर भूमि क्षेत्र दिया था. कथित रूप से कंबोडिया की मीडिया के हवाले से बताया गया है कि भविष्य में रीम सैन्य अड्डे पर नई भंडारण सुविधाओं, एक अस्पताल, ड्राईडॉक्स और स्लिपवे के निर्माण की योजना है. वहीं दूसरी तरफ़, कंबोडिया की सरकार लगातार इस बात पर ज़ोर देती रही है कि देश का संविधान किसी भी विदेशी देश द्वारा सैन्य अड्डे के निर्माण की अनुमति नहीं देता है और यह देश में बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी उन कई परियोजनाओं में से एक है जिसमें चीन निवेश कर रहा है. चीन ने सिमरिप-अंगकोर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के विकास में भी निवेश किया है, और यह बताया गया है कि 86 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. योजना के तहत हवाई संचालन को इस साल जून में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर और अक्टूबर 2023 में आधिकारिक रूप से शुरू किया जाना था.
चैटम हाउस की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कंबोडिया की पूर्व सरकार ने चीन को वायु रक्षा संरचनाओं, सामान्य कमांड सुविधाओं के निर्माण और सैन्य अड्डे के नज़दीक एक नौसैनिक रडार की स्थापना के लिए 157 हेक्टेयर भूमि क्षेत्र दिया था.
वहीं अमेरिका, दूसरी ओर, क्षेत्र में अपने सहयोगी फिलीपींस के साथ सुरक्षा संबंधों को मज़बूत बनाने की कोशिश कर रहा है. फ़रवरी 2023 में, फिलीपींस और अमेरिका ने एनहैंस्ड डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट (EDCA) को पुनर्जीवित किया. EDCA के तहत, अमेरिका फिलीपींस के कुल नौ सैन्य अड्डों का इस्तेमाल कर सकता है, इनमें अप्रैल 2023 में समझौते के तहत शामिल किए गए चार अतिरिक्त सैन्य अड्डे भी शामिल हैं. ये सैन्य अड्डे ताइवान और दक्षिण चीन सागर के बेहद नज़दीक हैं. अमेरिका दक्षिण चीन सागर में चीन और फिलीपींस और वियतनाम जैसे अन्य दावेदार देशों के बीच हुई झड़पों के लिए भी चीन की आलोचना करता रहा है.
क्षेत्र में मौजूद देशों की प्रतिक्रियाएं अलग-अलग हैं
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की प्रतिक्रियाएं अलग-अलग हैं. जबकि वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देश चीन की आक्रामकता से चिंतित हैं, लेकिन वे चीन और अमेरिका दोनों से ही लाभ ले रहे हैं. अगर इंडोनेशिया की बात करें, तो अभी भी घरेलू स्तर पर बुनियादी अवसंरचना विकास परियोजनाओं में चीनी निवेश की ज़रूरत और उसके लिए मांग बरकरार है. जुलाई 2023 में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोकोवी ने चीन के अपने हालिया दौरे में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ “इंडोनेशिया और चीन की कई रणनीतिक परियोजनाओं या निवेश से जुड़े महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों के अलावा स्वास्थ्य और व्यापार क्षेत्र, क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों” को लेकर बैठक की. इसके अलावा, उन्होंने इंडोनेशिया में चीनी निवेश की संभावनाओं पर चर्चा करने के लिए चीनी व्यापारियों और उद्यमियों से भी मुलाकात की थी.
पिछले महीने आसियान के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद, इंडोनेशिया की विदेश मंत्री रेटनो मार्सुडी का कहना था, “क्षेत्रीय स्तर पर खुले और समावेशी ढांचे के निर्माण के लिए चीन को आसियान का विश्वसनीय साझेदार होना चाहिए. केवल तभी हम हिंद-प्रशांत में सभी के लिए शांति, स्थिरता और साझा समृद्धि की स्थापना कर पाएंगे.” उन्होंने आगे कहा कि “आसियान आउटलुक ऑन द इंडो-पैसिफिक” और सितंबर 2023 में आयोजित होने वाले आसियान इंडो-पैसिफिक फोरम के कार्यान्वयन के लिए चीन के समर्थन की आवश्यकता होगी.
भले ही अमेरिका इस क्षेत्र में अपना खोया प्रभाव वापस पाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहा है, लेकिन यह एक मुश्किल चुनौती है क्योंकि चीन और आसियान एक दूसरे के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं.
भले ही अमेरिका इस क्षेत्र में अपना खोया प्रभाव वापस पाने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहा है, लेकिन यह एक मुश्किल चुनौती है क्योंकि चीन और आसियान एक दूसरे के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार हैं. दोनों के बीच का व्यापार 975 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है. आसियान में होने वाले कुछ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में चीन चौथा सबसे बड़ा साझेदार है. ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (TTP) जैसे महत्वपूर्ण व्यापार समझौतों से अमेरिका के पीछे हटने की यादें अभी भी ताजा हैं. हालांकि इस कमी को दूर करने के लिए बिडेन प्रशासन ने इंडो-पैसिफिक इकोनॉमिक फ्रेमवर्क (IPEF) की घोषणा की है, लेकिन इस बात को लेकर स्पष्टता की कमी है कि एशियाई देशों की बाज़ार तक पहुंच किस तरह की होगी और इससे आसियान देशों को कितना फ़ायदा होगा. अगर अमेरिका को इस क्षेत्र में अपने खोए प्रभुत्व को वापिस पाना है, तो उसे नीतियों को लागू करने की ज़रूरत है, जो इस क्षेत्र को वास्तव में लाभान्वित करे, न कि महज़ चीन के प्रभाव को रोकने तक सीमित रहे.
आसियान की चिंताएं
जैसा कि कईयों का कहना है कि कोड ऑफ कंडक्ट पर सहमति बनाने की प्रक्रिया जटिल और धीमी है, लेकिन पिछले महीने जकार्ता में हुई आसियान के विदेश मंत्रियों की बैठक में, आसियान और चीन ने दक्षिण चीन सागर में कोड ऑफ कंडक्ट पर वार्ताओं को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए कुछ दिशानिर्देशों को लेकर सहमति जताई. इन दिशानिर्देशों का लक्ष्य वार्ता प्रक्रियाओं में तेजी लाना है. वांग यी (जो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के विदेशी मामलों की समिति के निदेशक हैं) और आसियान के विदेश मंत्रियों के बीच बैठक के दौरान इन दिशानिर्देशों को स्वीकृत किया गया. हालांकि इन दिशानिर्देशों से जुड़ी बारीकियां अभी भी सार्वजनिक नहीं की गई हैं, लेकिन इतना कहा जा सकता है कि इस दौरान COC के दूसरे मसौदे पर हुई चर्चा सफ़ल रही. लेकिन इन घटनाओं को लेकर कुछ चिंताएं भी जताई गई हैं कि इनके कारण COC पर किसी ठोस नतीजे तक पहुंचने की प्रक्रिया और धीमी हो सकती है, जबकि आसियान के सदस्य देशों के अनुसार, COC ही वह इकलौता रास्ता है जो संभवतः भविष्य में इस समस्या का समाधान हो सकता है.
अगर संघर्ष की स्थिति पैदा होती है, तो इससे न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा होगा बल्कि समुद्री सीमा कानूनों को लागू करना मुश्किल हो जाएगा
यहां यह गौर किया जाना चाहिए कि रीम सैन्य अड्डा और EDCA के तहत अमेरिका की निगरानी में सैन्य अड्डे दोनों ही दक्षिण चीन सागर की विवादित सीमा के बेहद क़रीब हैं. इसके कारण दक्षिण-पूर्व एशिया के दूसरे देशों के मन में यह सवाल उठ खड़े हुए हैं कि क्या ये घटनाएं निकट भविष्य में दक्षिण चीन सागर में होने वाले संघर्ष की ओर इशारा करती हैं. अगर संघर्ष की स्थिति पैदा होती है, तो इससे न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा को खतरा होगा बल्कि समुद्री सीमा कानूनों को लागू करना मुश्किल हो जाएगा. विशेष रूप से यह देखते हुए कि अमेरिका ने UNCLOS पर हस्ताक्षर नहीं किया है और चीन ने हमेशा ही अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया है और मनमाने ढंग से इसकी व्याख्या की है. वर्तमान में यह आसियान देशों के लिए चिंता का एक प्रमुख कारण है. चीन और अमेरिका के बीच शक्ति प्रतिस्पर्धा जैसे मुद्दों पर आसियान द्वारा कड़ा रुख़ नहीं अपनाने पर कभी-कभी ऐसा लगता है कि इस संगठन में एकजुटता नहीं है, लेकिन तथ्य यही है कि ऐसी परिस्थितियों में बीच का रास्ता चुनने से क्षेत्रीय शांति को बनाए रखने और दोनों तरफ़ से लाभ कमाने में मदद मिलती है.
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