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ASEAN ने चीन और गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (GCC) के साथ अलग-अलग शिखर सम्मेलनों के ज़रिए अपनी रणनीति को नई धार देने का काम किया है. इससे ज़ाहिर होता है कि आसियान की इच्छा बहुध्रुवीय के साथ ही टिकाऊ साझेदारियों की ओर क़दम बढ़ाने की है.
Image Source: Getty
मलेशिया के कुआलालंपुर में मई 2025 में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन यानी ASEAN का 46वां शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया था. इसके बाद कुआलालंपुर में ही ASEAN, गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल यानी खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) और चीन के बीच त्रिपक्षीय समिट का भी आयोजन किया गया. देखा जाए को आसियान को फिर से संगठित करने और उसमें जान फूंकने के लिए लिहाज़ ये शिखर सम्मेलन बेहद अहम हैं. वैश्विक स्तर पर आर्थिक अस्थिरता का माहौल है और इसमें ज़बरदस्त उतार-चढ़ाव का दौर जारी है. विशेष रूप से अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों की वजह से आर्थिक परिस्थितियां चिंताजनक बनी हुई हैं. इन सब हालातों के बीच ASEAN अलग-अलग सेक्टरों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाहता है, सदस्य देशों के बीच आपसी तालमेल को सशक्त करना चाहता है और एक ऐसे विकास मॉडल को प्रोत्साहन देना चाहता है, जो टिकाऊ और समावेशी हो. कुआलालंपुर में आयोजित इन शिखर सम्मेलनों ने बताया कि आसियान रणनीतिक होड़ के बीच संतुलन स्थापित करने और क्षेत्रीय एकजुटता को मज़बूत करने के लिए कितना गंभीर है. ज़ाहिर है कि वर्ष 2015 में पेश किए गए ASEAN सामुदायिक विज़न 2025 का भी एक दशक पूरा होने वाला है और ऐसे में आसियान की तरफ की गई ये कोशिशें काफ़ी मायने रखती हैं.
कुआलालंपुर में आयोजित इन शिखर सम्मेलनों ने बताया कि आसियान रणनीतिक होड़ के बीच संतुलन स्थापित करने और क्षेत्रीय एकजुटता को मज़बूत करने के लिए कितना गंभीर है. ज़ाहिर है कि वर्ष 2015 में पेश किए गए ASEAN सामुदायिक विज़न 2025 का भी एक दशक पूरा होने वाला है और ऐसे में आसियान की तरफ की गई ये कोशिशें काफ़ी मायने रखती हैं.
मलेशिया की अध्यक्षता में आयोजित 46वीं ASEAN समिट की थीम "समावेशिता और स्थिरता" थी. सम्मेलन के दौरान सदस्य देशों ने एक सुर में बढ़ती भू-राजनीतिक मुश्किलें के बीच क्षेत्रीय शांति, समृद्धि और स्थिरता की वक़ालत करते हुए इस दिशा में एकजुट होकर काम करने की बात कही. समिट में अध्यक्षीय वक्तव्य में न सिर्फ़ पूरे क्षेत्र के समावेशी विकास पर बल दिया गया, बल्कि यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया कि आसियान के आर्थिक विकास में न तो सामाजिक ताने-बाने को कोई चोट पहुंचे और न ही पर्यावरण के मुद्दे को दरकिनार किया जाए.
औपचारिक तौर पर ASEAN समुदायिक विज़न की स्थापना वर्ष 2015 में की गई थी और तब से इसने एक दशक का सफर तय कर लिया है. शिखर सम्मेलन के दौरान आसियान के सदस्य देशों ने इस कम्युनिटी विज़न की उपलब्धियों और सामने आ रही चुनौतियों पर गहन विचार-विमर्श भी किया. ASEAN समुदाय की 10वीं वर्षगांठ पर जारी किए गए कुआलालंपुर डिक्लेरेशन में इन दुविधाओं और चुनौतियों को शामिल किया गया और कहा गया कि आसियान की एकजुटता और उपलब्धियों की खुशी मनाने के साथ ही सामुदायिक विजन 2045 को भी ध्यान में रखना है और इसके मद्देनज़र ASEAN के विकास के अगले चरण के लिए एक मज़बूत आधारशिला रखनी है.
ASEAN समुदायिक विज़न 2025 के बाद के विज़न को लेकर गठित उच्च स्तरीय टास्क फोर्स (HLTF-ACV) ने आसियान सामुदायिक विज़न 2045 यानी 'हमारा साझा भविष्य' विकसित करने के अपने कार्य को पूरा कर लिया है. अब इस विज़न 2045 को ASEAN राजनीतिक-सुरक्षा समुदाय (APSC), आसियान इकोनॉमिक कम्युनिटी (AEC) और ASEAN सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय (ASCC) यानी रणनीतिक योजनाओं 2026-2030 के साथ मिलकर कार्यान्वित किया जाएगा.
इसके अलावा ASEAN समिट में आसियान भू-अर्थनीति टास्क फोर्स का भी गठन किया गया. यह टास्क फोर्स तेज़ी से धड़ों में बंट रही दुनिया के बीच रणनीतिक पॉलिसी मार्गदर्शन के लिए एक सलाहकार परिषद के रूप में काम करेगा. इस टास्क फोर्स का गठन साफ दिखाता है कि ASEAN भविष्य में पैदा होने वाली मुश्किलों से पार पाने के लिए और खुद को तैयार करने के लिए कितना ज़्यादा सजग है. ज़ाहिर है कि इस क़दम से आसियान को बढ़ते भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक दबावों के सामने सभी सेक्टरों में नीतिगत तालमेल स्थापित करने में मदद मिलेगी.
अगर एनर्जी सेक्टर की बात की जाए, तो आसियान समिट के दौरान ऊर्जा एकीकरण पर भी विचार किया गया और विकसित आसियान पावर ग्रिड (APG) के लिए योजनाओं को गति दी गई, साथ ही एक सबसी पावर केबल यानी समुद्र के नीचे पावर केबल बिछाने से जुड़े बुनियादी ढांचे के विकास पर सहमति जताई गई. इस तरह के प्रयास सदस्य देशों के बीच कनेक्टिविटी और डीकार्बोनाइजेशन के लिए ASEAN की प्रतिबद्धता को सामने लाते हैं. इसके अलावा, ये मुद्दे आसियान के दीर्घकालिक स्थिरता एजेंडे के लिहाज़ से भी बेहद अहम हैं.
इतना ही नहीं, ASEAN की हालिया समिट के दौरान म्यांमार के राजनीतिक और मानवीय संकट पर चिंता जताते हुए इसका समाधान तलाशने पर बल दिया गया. सम्मेलन के दौरान कहा गया कि शुरुआती आवश्यकताओं के आकलन के आधार पर प्रत्यावर्तन के लिए और मानवीय संकट को दूर करने में आसियान की भागीदारी बेहद अहम है, साथ ही इसको लेकर सदस्य देशों ने प्रतिबद्धता भी जताई. हालांकि, इस दिशा में फिलहाल कोई ख़ास प्रगति नहीं हुई है, लेकिन जिस प्रकार से ASEAN की तरफ से इसे लेकर प्रतिबद्धता ज़ाहिर की गई है, उसे क्षेत्रीय उत्तरदायित्व और मानवीय कूटनीति की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है. कुल मिलाकर देखा जाए तो आसियान के लिए म्यांमार फिलहाल एक बेहद पेचीदा मुद्दा बना हुआ है.
अमेरिका ने हाल के दिनों में जिस प्रकार के दूसरे देशों के साथ व्यापार को लेकर फैसले लिए हैं, वो उसकी संरक्षणवादी नीतियों को दिखाते हैं. विशेष रूप से राष्ट्रपति ट्रंप की सरकार ने जिस तरह से एकतरफा ट्रेड टैरिफ का ऐलान किया है, उसने दुनिया भर के देशों को परेशानी में डाल दिया है. आसियान समिट के दौरान भी अमेरिकी टैरिप का मुद्दा छाया रहा. ज़ाहिर है कि कई ASEAN देशों, जैसे कि कंबोडिया, लाओस और वियतनाम पर ट्रंप प्रशासन ने 46 प्रतिशत से 49 प्रतिशत तक आयात शुल्क थोपा है. इसको लेकर शिखर सम्मेलन के दौरान काफ़ी चिंता जताई गई और चर्चाओं के दौरान यह मुद्दा हावी रहा.
आसियान समिट के दौरान भी अमेरिकी टैरिप का मुद्दा छाया रहा. ज़ाहिर है कि कई ASEAN देशों, जैसे कि कंबोडिया, लाओस और वियतनाम पर ट्रंप प्रशासन ने 46 प्रतिशत से 49 प्रतिशत तक आयात शुल्क थोपा है. इसको लेकर शिखर सम्मेलन के दौरान काफ़ी चिंता जताई गई और चर्चाओं के दौरान यह मुद्दा हावी रहा.
आसियान समिट में क्षेत्रीय राष्ट्रों पर अमेरिकी टैरिफ के संभावित असर को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की गई और इस संबंध में एक वक्तव्य भी जारी किया गया. लेकिन आसियान देशों ने अमेरिकी टैरिफ के जवाब में ऐसे ही जवाबी क़दमों को उठाने पर रज़ामंदी नहीं जताई और कहा कि इस मसले का समाधान बातचीत के ज़रिए ही निकाला जाना चाहिए. ASEAN की यह सोच दिखाती है कि वह विवादों में उलझने की जगह बाततीच के ज़रिए समस्याओं को हल करने का पक्षधर है, साथ ही इससे यह भी पता चलता है कि आसियान देश आर्थिक मसलों का समाधान द्विपक्षीय वार्ताओं से नहीं, बल्कि नियम-आधारित बहुपक्षवाद के ज़रिए निकालने को प्राथमिकता देते हैं. इसके अलावा, आसियान समिट के दौरान 'न केवल पारंपरिक बाज़ारों पर निर्भरता कम करके व्यापार में विविधता लाने की तत्काल ज़रूरत पर बल दिया गया, बल्कि ASEAN-अमेरिका ट्रेड एंड इन्वेस्टमेंट फ्रेमवर्क एग्रीमेंट (ASEAN-US TIFA) के माध्यम से आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण सेक्टरों में आसियान और अमेरिका के बीच आर्थिक संबंधों को और मज़बूत करने' की मांग भी उठाई गई.
आसियान समिट के बाद कुआलालंपुर में आसियान-जीसीसी-चीन त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया. अपनी तरह का पहला और ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन बताता है कि ASEAN देश गल्फ और पूर्वी एशिया में उभरती आर्थिक ताक़तों के साथ अपने घनिष्ट सहयोग को लेकर कितने गंभीर हैं और इसके लिए कितनी शिद्दत से कोशिशें कर रहे हैं. अमेरिका की व्यापार नीतियों के कारण पैदा हुई आर्थिक अनिश्चितता के बीच हुए इस त्रिपक्षीय सम्मेलन से ज़ाहिर हुआ कि इस क्षेत्र में लचीलेपन, कनेक्टिविटी और टिकाऊ विकास पर आधारित रणनीतिक व्यापार का एक नया केंद्र उभर रहा है.
ज़ाहिर है कि दक्षिण-पूर्व एशिया के देश तेज़ी से निर्यात पर निर्भर हो रहे हैं, खासकर उन क्षेत्रों में निर्यात पर ज़्यादा निर्भर हो रहे हैं, जो टैरिफ में उतार-चढ़ाव से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. ऐसे में इन देशों के लिए आर्थिक संबंधों में विविधिता लाना बेहद़ ज़रूरी हो गया है.
दरअसल, 18 देशों की यह त्रिपक्षीय समिट साझा ख़तरों से बचने की रणनीतिक कोशिश है. आसियान की त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन की यह क़वायद कहीं न कहीं अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझीदार चीन के साथ रिश्तों को मज़बूत करने की कोशिश है, साथ ही प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के राष्ट्रों के साथ संबंधों को सशक्त करने का प्रयास है. साल 2024 के आंकड़ों पर नज़र डालें तो ASEAN-जीसीसी-चीन का ट्रेड 900 बिलियन अमेरिकी डॉलर के पार पहुंच गया था, जो कि अमेरिका के साथ इनके कुल व्यापार का क़रीब दोगुना है. इन आंकड़ों से साफ हो जाता है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में रणनीतिक तौर पर एक बड़ा बदलाव हो रहा है. ज़ाहिर है कि जीसीसी ASEAN का सातवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. साल 2023 में GCC और आसियान देशों के बीच 130.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार हुआ था. वर्ष 2023 में आसियान के कुल व्यापार में छह खाड़ी देशों की हिस्सेदारी लगभग 3.5 प्रतिशत थी, जबकि चीन की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत थी.
आसियान और खाड़ी सहयोग परिषद के बीच पहला शिखर सम्मेलन अक्टूबर 2023 में आयोजित किया गया था, जबकि दोनों के बीच दूसरी समिट चीन के साथ त्रिपक्षीय मीटिंग से ठीक पहले हुई थी. बीते दो वर्ष के दौरान ASEAN और GCC के रिश्ते तेज़ी से परवान चढ़े हैं. आसियान और जीसीसी के बीच आर्थिक सहयोग पर एक संयुक्त घोषणा को स्वीकार किया गया है. इसके साथ ही आसियान, खाड़ी देशों की सहयोग परिषद (GCC) और चीन के बीच हुए त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन के संयुक्त वक्तव्य को भी औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया है.
ASEAN-जीसीसी-चीन की बैठक के बाद जो साझा वक्तव्य जारी किया गया है उसमें प्रस्तावना और उसके बाद नौ शुरुआती पैराग्राफ शामिल हैं और इन सभी में मध्य पूर्व में हुए हाल के घटनाक्रमों का विस्तार से जिक्र किया गया है. इस साझा वक्तव्य में जहां गाज़ा का पुरज़ोर समर्थन किया गया है, वहीं इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय क़ानून और समझौतों को मानने पर बल दिया गया है. इसमें ख़ास तौर पर जुलाई 2024 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) की सलाह का उल्लेख किया गया है, जिसमें उसने दो राष्ट्र समाधान की बात कही थी. इसके अलावा इस स्टेटमेंट में गाज़ा मसले के समाधान को लेकर सऊदी अरब, नॉर्वे और यूरोपीय संघ (EU) की ओर से की गई पहल का भी स्वागत किया गया है, साथ ही क़तर की ओर से की गईं मध्यस्थता की कोशिशों को भी सराहा गया है. इसके अतिरिक्त, वक्तव्य में फिलिस्तीन में अलग-अलग गुटों के बीच सुलह में चीन के योगदान की भी प्रशंसा की गई है. सबसे अहम बात है कि इस साझा वक्तव्य में न तो दक्षिण चीन सागर (SCS) का उल्लेख किया गया है और न ही रूस-यूक्रेन संकट के बारे में कुछ भी कहा गया है.
ASEAN-जीसीसी-चीन की बैठक के बाद जो साझा वक्तव्य जारी किया गया है उसमें प्रस्तावना और उसके बाद नौ शुरुआती पैराग्राफ शामिल हैं और इन सभी में मध्य पूर्व में हुए हाल के घटनाक्रमों का विस्तार से जिक्र किया गया है. इस साझा वक्तव्य में जहां गाज़ा का पुरज़ोर समर्थन किया गया है, वहीं इस मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय क़ानून और समझौतों को मानने पर बल दिया गया है.
त्रिपक्षीय समिट के बाद जारी किए साझा बयान में आगे आर्थिक एकीकरण, क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, ऊर्जा सुरक्षा और स्थिरता, डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन और नवाचार, खाद्य एवं कृषि सहयोग और देशों के नागरिकों के बीच बेहतर रिश्तों यानी सांस्कृति और सामाजिक संबंधों पर बल दिया गया है. इस वक्तव्य में जहां विश्व व्यापार संगठन (WTO) और बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था की वक़ालत की गई है, वहीं सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को मज़बूती देने की दिशा में चीन द्वारा चलाई जा रही वैश्विक विकास पहल को लेकर समर्थन जताया गया है.
इतना ही नहीं, इस संयुक्त वक्तव्य में क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग, विशेष रूप से पूंजी बाज़ार, स्थानीय मुद्रा के उपयोग और सीमा पार भुगतान प्रणाली पर भी फोकस किया गया है, साथ ही आपूर्ति श्रृंखलाओं के लचीलेपन पर भी ख़ास ज़ोर दिया गया है. साझा बयान में वैश्विक ऊर्जा बाजारों की स्थिरता के लिए गंभीरता के साथ क़दम उठाने की बात कही गई है और इसमें स्वच्छ व नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के बारे में काफ़ी कुछ बातें विस्तार के साथ दर्ज़ की गई हैं. इसके अलावा, साझा वक्तव्य में न केवल क्षेत्रीय ऊर्जा के आपूर्ति के लिए मज़बूत इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करने की बात मज़बूती से उठाई गई है, बल्कि डिजिटल अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एवं ब्लॉकचेन जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में सशक्त साझेदारी विकसित करने की ज़रूरत पर भी फोकस किया गया है.
इस ट्राइलेटरल समिट में जहां आसियान देशों के कुछ राष्ट्राध्यक्ष मौज़ूद थे, वहीं चीन की नुमाइंदगी वहां के प्रधानमंत्री ली कियांग ने की और जीसीसी राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व कुवैत के क्राउन प्रिंस शेख सबा अल-ख़ालिद अल-हमद अल-मुबारक़ अल-सबाह ने किया था.
इस त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन का सबसे महत्वपूर्ण फैसला देखा जाए तो एक क्षेत्रीय व्यापार परिषद का गठन करना था, जो कि व्यापार और क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं को बढ़ावा देने का काम करेगी. ज़ाहिर है कि ASEAN का लक्ष्य व्यापार के लिए किसी एक देश या सप्लाई चेन पर निर्भर रहने के बजाए अलग-अलग आपूर्ति नेटवर्कों के साथ जुड़ने का है और क्षेत्रीय व्यापार परिषद का गठन उसके इस मकसद को पूरा करता है.
इस साझा वक्तव्य में चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) के तहत बेहतर सहयोग और साझा प्रयासों को भी प्रोत्साहितक किया गया है. इसके अलावा, BRI के अंतर्गत लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर्स में सुधार करने और निर्बाध कनेक्टिविटी के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करने की योजनाओं का भी प्रमुखता से उल्लेख किया गया है. साझा वक्तव्य में इन सभी मुद्दों का जिक्र बताता है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर के ज़रिए चीन अपने आर्थिक दबदबे को सशक्त करना चाहता है, वहीं आसियान डिजिटल ट्रेड का केंद्र बनने की पुरज़ोर कोशिश में लगा हुआ है.
इस त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन में तमाम दूसरे अहम मुद्दों पर भी विस्तृत चर्चा की गई, जिनमें प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकी साझाकरण और विनियामक ढांचे के विकास और परमाणु सुरक्षा सहयोग शामिल हैं. यह दिखाता है कि आसियान अपनी ऊर्जा कूटनीति का विस्तार चीन और खाड़ी तक करना चाहता है. इसके अलावा, इससे यह भी पता चलता है कि ASEAN टिकाऊ और सुरक्षित ऊर्जा साझेदारी को नए-नए क्षेत्रों में बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.
इसी त्रिपक्षीय सम्मेलन के दौरान चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग और कुछ दूसरे नेताओं ने जीसीसी को रीजनल कंप्रहेंशिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप यानी क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में शामिल करने का भी प्रस्ताव पेश किया. ज़ाहिर है कि RCEP एक व्यापक व्यापार समझौता है, जिसमें आसियान और चीन समेत क्षेत्र के कई राष्ट्र शामिल हैं. ASEAN की ओर से इस प्रस्ताव की व्यवहारिकता और संभावनाओं के बारे में पता लगाने के लिए सहमति जताई गई. आसियान का यह रुख़ दिखाता है कि वो खाड़ी देशों के साथ आर्थिक रिश्तों को मज़बूती देने का हिमायती है. ज़ाहिर है कि ASEAN और खाड़ी देशों के बीच एक अलग व्यापार समझौते पर भी गहनता से विचार-विमर्श किया जा रहा है. इसके अलावा, आसियान-चीन फ्री ट्रेड एरिया (ACFTA) 3.0 को अपग्रेड करने के लिए बातचीत का दौर पूरा हो चुका है. इस साल के आख़िर में 28वीं ASEAN-चीन समिट प्रस्तावित है और इसी बैठक के दौरान ACFTA अपग्रेड प्रोटोकॉल पर दस्तख़त किए जाएंगे.
ASEAN और चीन के बीच अगर यह ACFTA अपग्रेड प्रोटोकॉल लागू हो जाता है, तो इसमें कोई शक नहीं है कि इससे RCEP का भौगोलिक और आर्थिक दायरा व्यापक हो सकता है. ऐसा होने पर ऊर्जा के मामले में समृद्ध पश्चिम एशिया को मैन्युफैक्चरिंग के बड़े केंद्र में शामिल दक्षिण-पूर्व एशिया और तकनीक़ के मामले में अव्वल नॉर्थ ईस्ट एशिया को आपस में जोड़ा जा सकता है.
ASEAN-जीसीसी-चीन की त्रिपक्षीय मीटिंग के दौरान मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम और चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग ने सिल्क रोड से लेकर आज के आधुनिक ट्रेड कॉरिडोर्स तक के ऐतिहासिक रिश्तों को मज़बूत करने पर बल दिया. ज़ाहिर है कि व्यापार कनेक्टिविटी सुगम बनाने वाले ये माध्यम भविष्य के सहयोग की मज़बूत बुनियाद हैं. समिट के दौरान भविष्य की ज़रूरतों के लिहाज़ से ऐसे कूटनीतिक विचारों से स्पष्ट होता है कि इसमें कहीं न कहीं अमेरिका की तरफ से थोपे जाने वाले टैरिफ का तोड़ निकालने के लिए भी कोशिश की गई है. इसके अलावा, इस महत्वपूर्ण त्रिपक्षीय समिट को कहीं न कहीं टिकाऊ विकास, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और व्यापार के क्षेत्र में साझा मूल्यों और पारस्परिक हितों को तवज्जो देते हुए एक दीर्घकालिक साझेदारी के रूप में प्रस्तुत किया गया है.
इस समिट के दौरान जिस प्रकार से सभी देशों के बीच 'गहरे और स्थायी संबंधों' को लेकर बार-बार बातें की गईं और इसके लिए प्रतिबद्धता जताई गई उससे जो संदेश बाहर निकला, वो बेहद महत्वपूर्ण है. ख़ास तौर पर जीसीसी राष्ट्रों और इंडोनेशिया, मलेशिया एवं ब्रुनेई जैसे मुस्लिम बहुल आसियान देशों के बीच सांस्कृतिक रिश्तों के मद्देनज़र गहरे और टिकाऊ संबंधों का यह संदेश बहुत मायने रखता है. ज़ाहिर है कि इससे इन देशों के बीच जो आर्थिक कूटनीतिक रिश्ते हैं, उनमें सॉफ्ट पावर भी जुड़ जाएगी, जिससे इनके आपसी संबंधों में और मज़बूती आना लाज़िमी है.
इन हालिया शिखर सम्मेलनों से यह भी सामने आता है कि वैश्विक स्तर पर महाशक्तियों के बीच चल रही होड़ के बीच ASEAN ने काफ़ी सोच-समझ कर और कुशलता के साथ अपने मंसूबों को पूरा करने की कोशिश की है. ज़ाहिर है कि आसियान के लिए निवेश, प्रौद्योगिकी और सुरक्षा सहयोग के लिहाज़ से अमेरिका बेहद अहम है, जबकि चीन और GCC व्यापक स्तर पर लिक्विडिटी और भविष्य में दीर्घकालिक निवेश एवं आर्थिक स्थिरता के लिहाज़ से बहुत महत्वपूर्ण हैं.
इन हालिया शिखर सम्मेलनों से यह भी सामने आता है कि वैश्विक स्तर पर महाशक्तियों के बीच चल रही होड़ के बीच ASEAN ने काफ़ी सोच-समझ कर और कुशलता के साथ अपने मंसूबों को पूरा करने की कोशिश की है. ज़ाहिर है कि आसियान के लिए निवेश, प्रौद्योगिकी और सुरक्षा सहयोग के लिहाज़ से अमेरिका बेहद अहम है, जबकि चीन और GCC व्यापक स्तर पर लिक्विडिटी और भविष्य में दीर्घकालिक निवेश एवं आर्थिक स्थिरता के लिहाज़ से बहुत महत्वपूर्ण हैं. आसियान का यह नज़रिया बताता है कि वो किसी दबाव में नहीं है और अपने हित में रणनीतिक रूप से जो भी उचित है, वो कर रहा है. यानी ASEAN ने सभी भागीदारों के साथ रिश्ते प्रगाढ़ करने को प्राथमिकता दी है और दूसरे देशों की आपसी होड़ से फंसने के बजाए खुद को इन सब विवादों से दूर रखने का पूरा प्रयास किया है.
ASEAN, जीसीसी और चीन के बीच हुई इस ट्राइलेटर समिट पर गौर किया जाए, तो सामने आता है सभी हितधारकों ने इसके ज़रिए अपने-अपने लक्ष्यों को पाने का प्रयास किया है. सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस शिखर सम्मेलन ने जता दिया है कि वैश्विक स्तर पर एक नया मोर्चा बन रहा है, जो बहुत व्यापक भी है और संभावनों से भरा हुआ है. इसके अलावा, इसके माध्यम से जहां चीन दुनिया में अपने आर्थिक प्रभुत्व को जमाने के लिए अपनी पहुंच का विस्तार कर रहा है, वहीं जीसीसी में शामिल खाड़ी देश एशिया में अपनी मज़बूत पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. अगर आसियान की बात की जाए, तो वह तेज़ी से बदल रहे घटनाक्रमों में अपने हित साध रहा है और बदली हुई परिस्थितियों के साथ सक्रियता से तालमेल स्थापित कर रहा है. जैसे कि ASEAN बदले हालातों का लाभ उठाने के लिए नीतिगत क़दम उठा रहा है, निवेश के रास्ते खोज रहा है, क्षेत्रीय देशों के साथ अपनी साझेदारियों को अलग-अलग सेक्टरों में स्थापित कर रहा है और अपने क्षेत्रीय फ्रेमवर्क को सशक्त करने में जुटा है.
46वीं ASEAN समिट और आसियान-जीसीसी-चीन त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन से साफ ज़ाहिर होता है कि ASEAN अब परिपक्व और विकसित हो चुका है. इन सम्मेलनों में आसियान की भूमिका से यह भी पता चलता है कि अब वैश्विक मामलों को वह सिर्फ़ चुपचाप रहकर दूर से नहीं देखाना चाहता है, बल्कि उनमें दख़ल देने के लिए पूरी तरह से तैयार है. दुनिया में संरक्षणवाद बढ़ रहा है, वैश्विक स्तर पर उथल-पुथल का माहौल है और शक्ति के केंद्रों में भी बार-बार बदलाव हो रहा है. ASEAN न केवल इन चुनौतियों का डटकर मुक़ाबला कर रहा है, बल्कि तेज़ी के साथ समावेशी, टिकाऊ और बहुध्रुवीय संबंध स्थापित करने की रणनीति पर चल रहा है. एक तरफ आसियान ने अमेरिका के साथ सकारात्मक, सहयोगी और पारस्परिक विकास पर आधारित रिश्तों को बरक़रार रखा है, वहीं दूसरी ओर वह चीन और जीसीसी के साथ भी अपनी साझेदारियों को सशक्त करने में जुटा है. ऐसा करके ASEAN कहीं न कहीं आर्थिक कूटनिति का एक ऐसा नया मॉडल तैयार कर रहा है, जो रिश्तों में संतुलन, लचीलेपन और भविष्य के सहयोग पर आधारित है. हालिया समिट में आसियान ने सामुदायिक विजन 2045 की रुपरेखा तैयार की है और इस दिशा में मज़बूती से अपने क़दम भी बढ़ाने शुरू कर दिए हैं. ऐसे में यह तय है कि जब भी आने वाले वर्षों में ASEAN की उपलब्धियों पर गौर किया जाएगा, तो उसकी रणनीतिक कोशिशों को धार देने और लक्ष्यों को हासिल करने में इन शिखर सम्मेलनों के योगदान को ज़रूर याद किया जाएगा.
गुरजीत सिंह जर्मनी, इंडोनेशिया, इथोपिया, ASEAN और अफ्रीकी संघ में भारतीय राजदूत के रूप में कार्य कर चुके हैं.
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Gurjit Singh has served as Indias ambassador to Germany Indonesia Ethiopia ASEAN and the African Union. He is the Chair of CII Task Force on ...
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