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म्यांमार में आसियान के विशेष दूत प्राक सोखोन को अपनी तीन दिन की म्यांमार यात्रा के दौरान पिछले साल अप्रैल में आसियान द्वारा निर्धारित पांच सूत्रीय सर्वसम्मति के सम्मान और उसके लागू होने की उम्मीद है. आसियान के महासचिव दातो लिम जॉक होई, कंबोडिया के उद्योग, विज्ञान, तकनीक और इनोवेशन मंत्री किट्टी सेट्ठा पंडिता चाम प्रसिद्ध, म्यांमार में कंबोडिया के राजदूत छाऊक बन्ना, कंबोडिया के उप मंत्रियों और संबंधित अधिकारियों के साथ विशेष दूत प्राक सोखोन आसियान की एकजुटता पर केंद्रित म्यांमार के विकास के इर्द-गिर्द बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए म्यांमार पहुंचे. जिस दौरे का सबसे ज़्यादा इंतज़ार था, 23 मार्च को उसके ख़त्म होने के बाद अब समय है इस बात पर विचार करने का कि क्या इस यात्रा की वजह से आगे की बातचीत का रास्ता खुलेगा या म्यांमार दूसरे साल भी अपनी भेदभावपूर्ण रणनीति को लागू करना जारी रखेगा.
पिछले साल फरवरी में सैन्य विद्रोह के बाद निर्वाचित नेता आंग सान सू की के शासन के तख्त़ापलट और नेताओं की गिरफ़्तारी के बाद म्यांमार में जो अफरातफरी शुरू हुई थी, उसको सीमित करने के लिए आसियान ने कूटनीतिक पहल शुरू की है.
पिछले साल फरवरी में सैन्य विद्रोह के बाद निर्वाचित नेता आंग सान सू की के शासन के तख्त़ापलट और नेताओं की गिरफ़्तारी के बाद म्यांमार में जो अफरातफरी शुरू हुई थी, उसको सीमित करने के लिए आसियान ने कूटनीतिक पहल शुरू की है. पिछले साल के सैन्य विद्रोह के बाद बड़े पैमाने पर प्रदर्शन शुरू हो गए, साथ ही जातीय हथियारबंद समूहों और नागरिकों के साथ संघर्ष होने लगा. इसका नतीजा ये निकला कि बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई, उनको गिरफ़्तार किया गया और उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा.
पांच सूत्रीय सर्वसम्मति आसियान के द्वारा तैयार एक साधन है ताकि म्यांमार के भीतर संघर्ष की जो स्थिति है उसे दूर किया जा सके क्योंकि अगर म्यांमार में यही हालात बने रहे तो ये पूरे क्षेत्र को अपनी चपेट में ले सकता है. आसियान की इस पांच सूत्रीय सर्वसम्मति को लागू करने की दिशा में पहला क़दम एक विशेष दूत का चुनाव था जो हर महीने या तीन महीने में एक बार म्यांमार की राजधानी नैपीडॉ जाकर वहां की मौजूदा स्थिति के बारे में जान सके और समय पर आसियान को अपनी रिपोर्ट सौंपने के साथ-साथ जल्दी-से-जल्दी सैन्य शासन और दूसरे पक्षों के साथ बातचीत को आगे बढ़ा सके.
प्राक सोखोन पर नज़र
विशेष दूत को चुनने में पूरा एक साल लग गया क्योंकि आसियान के सदस्यों ने जिन विशेष दूतों की पेशकश की थी, उससे सैन्य सरकार ख़ुश नहीं थी. आसियान के सदस्य देश सैन्य सरकार के परोक्ष असहयोग से बेसब्र और नाराज़ हो गए. शांति की योजना का सम्मान नहीं करने का नतीजा ये निकला कि आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान म्यांमार की सैन्य सरकार को न्योता नहीं दिया गया. आसियान के मंच पर म्यांमार की मौजूदगी नहीं होने की वजह से आसियान के भीतर म्यांमार के होने पर सवाल उठने लगे. 2022 में कंबोडिया के प्रधानमंत्री के आसियान का अध्यक्ष बनने और म्यांमार की सरकार के साथ फिर से बातचीत शुरू करने के उनके इरादे के बाद ही धीरे-धीरे हालात बदलने की शुरुआत हुई. ये बाचतीत सकारात्मक दिशा में बढ़ रही है या नहीं, ये कहना अभी जल्दबाज़ी होगी.
आसियान के सदस्य देश सैन्य सरकार के परोक्ष असहयोग से बेसब्र और नाराज़ हो गए. शांति की योजना का सम्मान नहीं करने का नतीजा ये निकला कि आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान म्यांमार की सैन्य सरकार को न्योता नहीं दिया गया.
हर किसी की निगाहें इस वक़्त विशेष दूत प्राक सोखोन पर है. लोगों को उम्मीद है कि प्राक सोखोन बातचीत में “संतोषजनक बढ़त” हासिल करने में सफल होंगे. प्राक सोखोन की तीन दिन की यात्रा से उम्मीद लगाई जा रही है कि म्यांमार के सभी राजनीतिक दलों के साथ चर्चा की शुरुआत होगी, हिंसा का दौर ख़त्म होगा और मानवीय राहत सामग्री का वितरण होगा. यात्रा ख़त्म होने के बाद प्राक सोखोन ने माना कि म्यांमार के मुद्दे का समाधान करने में काफ़ी समय लगेगा. विशेष दूत की तरफ़ से किए गए कुछ अनुरोधों को जहां म्यांमार की सैन्य सरकार ने मान लिया वहीं बड़ी मांगों को अभी भी पूरा नहीं किया गया है.
21 मार्च को म्यांमार की सैनिक सरकार के प्रमुख जनरल मिन आंग लाइंग, विदेश मंत्री यू वुन्ना मॉन्ग ल्विन, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मंत्री यू को को लाइंग और पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष यू को को गी के साथ बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने 2020 के चुनाव में धांधली से लेकर विरोध प्रदर्शनों, सरकारी संपत्तियों को नुक़सान और लोगों की जान बचाने के लिए सैनिक सरकार की प्रशासनिक परिषद (एसएसी) के द्वारा कथित रूप से उठाए गए क़दमों समेत कई मुद्दों पर चर्चा की. दोनों पक्षों ने पांच सूत्रीय सर्वसम्मति को लागू करने, अप्रैल में संभावित रूप से शुरू होने वाली मानवीय सहायता के वितरण, आसियान सहयोग को बढ़ावा देने के तरीक़ों और मौजूदा बैठक के साथ-साथ दूसरी बैठकों के नतीजों को लेकर भी चर्चा की.
आसियान के विशेष दूत सोखोन के मुताबिक़ उन्होंने जनरल मिन आंग लाइंग को सलाह दी कि वो तनाव कम करने के लिए बल प्रयोग में बेहद संयम बरतें.
आसियान के विशेष दूत सोखोन के मुताबिक़ उन्होंने जनरल मिन आंग लाइंग को सलाह दी कि वो तनाव कम करने के लिए बल प्रयोग में बेहद संयम बरतें. 24 मार्च तक 1,704 प्रदर्शनकारियों की मौत हो चुकी है जिनमें 44 बच्चे भी शामिल हैं. 7 साल की एक बच्ची को उसके घर में गोली मार दी गई और ऐसी ख़बरें भी हैं कि सैकड़ों बच्चों और युवाओं को जेल में डाल दिया गया है. पिछले साल कम-से-कम 1,50,000 बच्चों को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर किया गया. म्यांमार के हालात बेहद ख़राब हैं.
बातचीत की ख़ामियाँ
आसियान के विशेष दूत के म्यांमार दौरे की एक बड़ी ख़ामी ये थी कि वो सभी पार्टियों के नेताओं से मिलने में नाकाम रहे. प्राक सोखोन ने पहले इच्छा जताई थी कि उन्हें राष्ट्रीय एकता सरकार (एनयूजी) के सदस्यों से मिलने की इजाज़त दी जाए. राष्ट्रीय एकता सरकार लोकतंत्र समर्थक पार्टियों की परछाई (शैडो) सरकार है और जिसमें आंग सान सू की के दल एनएलडी (नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी) के नेताओं के अलावा कुछ जातीय दलों के सदस्य भी शामिल हैं. इसकी स्थापना प्रमुख एनएलडी नेताओं की गिरफ़्तारी के फ़ौरन बाद हुई थी. चूंकि सेना ने राष्ट्रीय एकता सरकार को “आतंकवादी” घोषित कर रखा है, इसलिए उनसे मिलने के सोखोन के अनुरोध को ठुकरा दिया गया. सोखोन ने कहा है कि उन्होंने आंग सान सू की से मिलने की सीधी अपील नहीं की थी क्योंकि इसी वजह से उनसे पहले के विशेष दूत एरीवान यूसुफ म्यांमार का दौरा करने में नाकाम रहे थे. लेकिन उन्हें जनरल मिन आंग लाइंग की तरफ़ से संकेत मिला है कि भविष्य में आंग सान सू की से उनकी मुलाक़ात संभव हो सकती है.
सोखोन ने कहा है कि उन्होंने आंग सान सू की से मिलने की सीधी अपील नहीं की थी क्योंकि इसी वजह से उनसे पहले के विशेष दूत एरीवान यूसुफ म्यांमार का दौरा करने में नाकाम रहे थे.
वैसे तो शांति प्रक्रिया को संभालने वाली टीम (पीपीएसटी), जिसमें कुछ जातीय हथियारबंद संगठनों (ईएओ) के लोग शामिल हैं, से मुलाक़ात पहले से तय थी लेकिन सैन्य प्रशासन द्वारा बताए गए ‘व्यस्त कार्यक्रम’ की वजह से इस बैठक को रद्द कर दिया गया. साथ ही विशेष दूत सोखोने ने म्यांमार के पूर्व राष्ट्रपति तिन क्यो की पत्नी सु सु ल्विन की ख़राब सेहत के कारण उनसे मुलाक़ात नहीं होने पर खेद जताया. इन बातों से पता चलता है कि सैनिक सरकार आसियान शांति प्रक्रिया को लेकर ऐसे क़दम उठा रही है जो उसके हितों के मुताबिक हो.
ये पूरी तरह साफ़ है कि सोखोन के द्वारा पांच सूत्रीय सर्वसम्मति में बताए गए म्यांमार के सभी पक्षों के साथ तथाकथित व्यापक बातचीत शुरू करने में थोड़ा समय लगेगा. इस मामले को लेकर सोखोन का नज़रिया है कि एक समय पर एक क़दम उठाया जाए. वो इस बात को मानते हैं कि जो छूट दी जा रही है उसके सहारे संवाद और बातचीत की प्रक्रिया शुरू की जाए. वैसे तो मौजूदा हालात को देखते हुए ये संतोषजनक है लेकिन आख़िर में बहुत कुछ करने की ज़रूरत है.
म्यांमार में जापान के विशेष दूत योही सासाकावा, जो आसियान के विशेष दूत के सलाहकार भी हैं, ने 10 मार्च को थाईलैंड में कुछ जातीय हथियारबंद संगठनों के साथ-साथ शांति प्रक्रिया को संभालने वाली टीम के साथ भी मुलाक़ात की. इस बैठक के दौरान जापान की सरकार ने भरोसा दिया कि जिन क्षेत्रों में जातीय हथियारबंद संगठनों का कब्ज़ा है, वहां विस्थापित लोगों को 50,000 बोरी चावल की आपूर्ति की जाएगी. शांति प्रक्रिया को संभालने वाली टीम थाईलैंड में दो दिनों की बैठक करेगी जिसमें आसियान के विशेष दूत की यात्रा के नतीजों पर चर्चा की जाएगी.
म्यांमार की सैनिक सरकार की तरफ़ आसियान के कुछ सदस्य देशों जैसे कि मलेशिया, सिंगापुर जिस तरह की सहनशीलता दिखाते हैं, उसकी वजह से वक़्त आने पर ही पता चलेगा कि हिंसा को कम करने और उचित समाधान की दिशा में भविष्य की कोशिशों को आगे बढ़ाने के लिए किस तरह की पहल ठीक है.
इस संबंध में आसियान के विशेष दूत को अपने सलाहकारों के साथ बातचीत करने और अलग-अलग पक्षों के साथ भविष्य की बातचीत के तौर-तरीक़ों को लेकर एक व्यापक योजना बनाने की ज़रूरत है. दूसरे दलों ख़ास तौर पर जातीय हथियारबंद संगठनों और राष्ट्रीय एकता सरकार के साथ बैठक ज़रूरी है ताकि एक साफ़ तस्वीर का पता चल सके और इसकी मदद से म्यांमार की समस्या का एक उचित समाधान निकाला जा सके. जातीय हथियारबंद संगठनों ने इच्छा जताई है कि अगर संभव हो तो म्यांमार के बाहर विशेष दूत के साथ बैठक हो और ये बातचीत सैनिक सरकार के द्वारा तय की गई शर्तों के तहत नहीं हो.
वैसे तो ये सही है लेकिन बहुत कुछ म्यांमार की सैनिक सरकार की प्रशासनिक परिषद की रणनीतिक पैंतरेबाज़ी पर निर्भर करता है. मगर म्यांमार की सैनिक सरकार की तरफ़ आसियान के कुछ सदस्य देशों जैसे कि मलेशिया, सिंगापुर जिस तरह की सहनशीलता दिखाते हैं, उसकी वजह से वक़्त आने पर ही पता चलेगा कि हिंसा को कम करने और उचित समाधान की दिशा में भविष्य की कोशिशों को आगे बढ़ाने के लिए किस तरह की पहल ठीक है. ये समझने की ज़रूरत है कि सभी मुश्किलों का समाधान किसी एक के नेतृत्व में नहीं हो सकता है. ये एक सतत प्रक्रिया बनी रहेगी जिस पर आसियान को सामूहिक रूप से लगे रहने की ज़रूरत है.
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