Published on Mar 07, 2024 Updated 0 Hours ago

क्रिएटिव फील्ड में जेनरेटिव एआई का इस्तेमाल और इसके असर को अब कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. रोजगार और कलाकार के मौलिक काम पर इसके प्रभाव पर भी बहस हो रही है.

जेनरेटिव एआई : तकनीकी खोज और कॉपीराइट उल्लंघन के बीच कैसे बनाएं संतुलन?

नवंबर 2022 में चैट जीपीटी की शुरुआत और उसके बाद जेनरेटिव एआई के दूसरे टूल्स के प्रसार ने दुनिया में तहलका मचा दिया. पिछले कुछ साल में इनके असर को लेकर कई रिपोर्ट प्रकाशित हुई हैं. इनमें बताया गया है कि एआई से किस तरह दुनिया में रोज़गार, शिक्षा और सृजनात्मक का क्षेत्र प्रभावित होगा. विकसित और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था के बीच संपत्ति का विभाजन किस तरह बढ़ेगा.

एआई से किस तरह दुनिया में रोज़गार, शिक्षा और सृजनात्मक का क्षेत्र प्रभावित होगा. विकसित और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था के बीच संपत्ति का विभाजन किस तरह बढ़ेगा.

हालांकि बहस इस बात पर भी हो रही है कि एआई के असर को लेकर जो बातें की जा रही हैं वो सही हैं या फिर इन्हें बेचने के लिए बढ़ा-चढ़ाकर दावे किए जा रहे हैं, लेकिन सृजन के क्षेत्र (क्रिएटिव सेक्टर) में इस बात पर माथापच्ची शुरू हो गई है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ये टूल्स कहीं इंसानों की जगह तो नहीं ले लेंगे. अमेरिका में स्क्रीन एक्टर्स गिल्ड अमेरिकन फेडरेशन ऑफ टेलीविजन एंड रेडियो आर्टिस्ट (SAG-AFTRA) और राइटर्स गिल्ड ऑफ अमेरिका (WGA) ने 2023 के शुरुआत में एआई के विरोध में हड़ताल भी की. हड़ताल की वजह से कई बड़ी फिल्मों का काम रुक गया. इन संगठनों का कहना था कि बड़े फिल्म स्टूडियो स्क्रिप्ट लिखने में चैट जीपीटी की मदद ले रहे हैं. इमेज और ऑडियो के लिए मिडजर्नी एआई टूल का इस्तेमाल हो रहा है. DALL-E की मदद से डिजिटल वॉयस और कलाकारों के काम में डिजिटल समानता लाई जा रही है. फिल्म निर्माण में एआई के इस्तेमाल का विरोध सिर्फ अमेरिका में ही नहीं हो रहा है. बॉलीवुड में भी इसे लेकर चिंता जताई जा रही है. क्रिएटिव फील्ड इसे लेकर अतिरिक्त संवेदनशील इसलिए भी है क्योंकि इससे कई कानूनी जटिलताएं पैदा हो सकती हैं. खासकर कॉपीराइट और बौद्धिक सम्पदा से जुड़े कानूनों का एआई के विकास पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा.

यूनियनों की तरफ से विरोध और जेनरेटिव एआई के खिलाफ कानूनी याचिका

2022
से ही ये बात कही जाने लगी थी कि एआई की मदद से जो डीपफेक बनाए जाते हैं, उसका सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है. 2023 में हॉलीवुड में हुई हड़ताल भी क्रिएटिव फील्ड में एआई के घुसपैठ के विरोध में थी. जेनरेटिव एआई के खिलाफ इन संस्थाओं की मुख्य शिकायतें निम्नलिखित थीं.

चैट जीपीटी जैसे एआई टूल्स इंसानों के दिए आंकड़ों के आधार पर ही जानकारियां देते हैं, इसलिए उसे मूल लेखन यानी ओरिजिनल कंटेंट नहीं माना जा सकता.

जेनरेटिव एआई ओरिजिनल कंटेंट नहीं दे सकते, इसलिए उनके द्वारा दी गई जानकारी को स्रोत सामग्री के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. ऐसा करने पर कॉपीराइट उल्लंघन का खतरा बना रहेगा

SAG-AFTRA
और WGA जैसे संगठनों ने जिन ऑडियो और वीडियो को कॉपीराइट कानून के तहत संरक्षित कर रखा है, उसे एआई में ट्रेनिंग डेटा के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.

अमेरिका में ओपन एआई, मेटा, माइक्रोसॉफ्ट और दूसरी एआई कंपनियों के खिलाफ कलाकारों ने पहले ही याचिका दायर कर रखी हैं. हालांकि अभी तक इसमें खास सफलता नहीं मिली है. 2023 में एआई कंपनियों के खिलाफ कॉपीराइट उल्लंघन के दो केस खारिज़ कर दिए गए. याचिकाकर्ता ये साबित करने में नाकाम रहे कि एआई भी ठीक वैसा ही काम कर रहे हैं, जैसा उन्होंने किया था. ओपन एआई के खिलाफ दिसंबर 2023 में न्यूयॉर्क टाइम्स ने भी याचिका दाखिल की है. ब्रिटेन में भी एआई को लेकर सवाल उठ रहे हैं.

चैट जीपीटी के खिलाफ भी लेखकों की स्टाइल की नकल करने का आरोप लगा लेकिन ओपन एआई ने इसका जवाब देते हुए कहा कि ऐसा होने की संभावना बहुत कम है.

ब्रिटेन में 4,700 लोगों के नामों की एक लिस्ट लीक हुई थी. इस लिस्ट में उन कलाकारों के नाम भी थे, जिनके काम को मिडजर्नी एआई को प्रशिक्षित करने में इस्तेमाल किया गया. अब ये ब्रिटिश कलाकार भी अमेरिकी वकीलों के साथ मिलकर मिडजर्नी, स्टेबिलिटी एआई, रनवे एआई और डेवियांट आर्ट जैसी एआई कंपनियों के खिलाफ केस करने की तैयारी कर रहे हैं. इन कंपनियों के खिलाफ याचिका और चैट जीपीटी के खिलाफ दायर याचिका में एक बड़ा फर्क है. चैट जीपीटी सिर्फ शब्दों में जानकारी देता है. मिडजर्नी एआई को लेकर ये शिकायत है कि वो किसी कलाकार की खास स्टाइल की नकल करने के लिए प्रेरित करता है. हालांकि चैट जीपीटी के खिलाफ भी लेखकों की स्टाइल की नकल करने का आरोप लगा लेकिन ओपन एआई ने इसका जवाब देते हुए कहा कि ऐसा होने की संभावना बहुत कम है. लेकिन मिडजर्नी को लेकर ये आरोप लगाया जा रहा है कि कलाकारों की स्टाइल की नकल करने की अपनी विशेषता को वो विज्ञापन के रूप में प्रचारित करता है. जेनरेटिव एआई के खिलाफ दायर ज्यादातर याचिका कॉपीराइट उल्लंघन और बौद्धिक संपदा के अधिकार से जुड़ी हैं.

जेनरेटिव एआई और कॉपीराइट कानून

एआई की ट्रेनिंग में इंटरनेट पर पहले से मौजूद डेटा का इस्तेमाल होता है. इससे कॉपीराइट उल्लंघन का खतरा हमेशा बना रहता है. एआई के खिलाफ हॉलीवुड संगठनों की आपत्तियों और कानूनी याचिकाओं का आधार आम तौर कॉपीराइट उल्लंघन ही होता है. इन मामलों में कोर्ट के फैसलों से ही ये तय होगा कि एआई का भविष्य कैसा होगा. हालांकि आजकल एआई से जुड़ा एक और मुद्दा सुर्खियों में है. ये सवाल पूछा जा रहा है कि क्या एआई की मदद से बनाने गए कंटेंट का कॉपीराइट हो सकता है. 2022 में एक अमेरिकी कलाकार क्रिस काश्तानोवा ने मिडजर्नी एआई की मदद से ग्राफिक नॉवेल बनाया. अमेरिकी कॉपीराइट ऑफिस ने इसे कॉपीराइट करने की मांग इस आधार पर खारिज़ कर दी कि ये पूरी तरह इंसान की बनाई रचना नहीं है. अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि जब आप एक बार जेनरेटिव एआई का इस्तेमाल करते हैं तो फिर उस पर इंसान का नियंत्रण नहीं रहता. ये अनुमान लगा पाना मुश्किल होता है कि मिडजर्नी एआई अब आगे क्या बनाएगा. कोर्ट ने ये भी कहा कि हो सकता है एआई का इस्तेमाल करने वाले के पास मौजूद जानकारी इमेज बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित करे लेकिन जो टेक्स्ट दिया जाता है, उससे ये ज़रूरी नहीं है कि एक खास नतीजा आए. काश्तानोवा की ही तरह कोर्ट ने एक अमेरिकी कंप्यूटर साइंटिस्ट स्टीफन थालेर की पेटेंट की याचिका को भी खारिज़ किया. स्टीफन ने अपने काम के लिए डिवाइस फॉर ऑटोनोमस बूटस्ट्रैपिंग ऑफ यूनिफाइड सेंटिएंस (DABUS) की मदद ली थी. स्टीफन की पेटेंट की मांग को रद्द करते हुए कोर्ट ने वही बातें कहीं, जो काश्तानोवा के केस में कहीं थीं.

 अगर जेनरेटिव एआई के क्षेत्र की क्षमताएं बहुत बढ़ रही हैं तो इसके साथ ही उस ट्रेनिंग डेटा की अहमियत भी बढ़ रही है जो इनमें इस्तेमाल किया जाता है. इस ट्रेनिंग डेटा को लेकर एआई कंपनियों पर जो केस हो रहे हैं, उन पर कोर्ट के फैसलों से ही एआई का भविष्य तय होगा.


एआई के खिलाफ सबसे बड़ा मुद्दा इसके द्वारा इस्तेमाल सामग्री के कानूनन मालिकाना हक को लेकर ही है. एआई जिस ट्रेनिंग डेटा का इस्तेमाल करता है, उसके बारे में ये कहा जाता है कि वो सब जानकारियां इंसानों की दी हुई होती है. कॉपीराइट कानून के तहत संरक्षित होती हैं. हालांकि इस आरोप के खिलाफ एक मजबूत तर्क ये दिया जाता है कि कॉपीराइट डेटा के इस्तेमाल को गलत नहीं मानना चाहिए क्योंकि एआई इस डेटा से अपने हिसाब से जानकारी लेकर उपयोगकर्ता को मुहैया कराता है. वो इस डेटा को अपना नहीं कहता. वैसे कॉपीराइट से बचने के लिए एआई कंपनियों को वास्तविक आंकड़ों की बजाए सिंथेटिक डेटा के इस्तेमाल पर विचार करना चाहिए. सिंथेटिक डेटा कृत्रिम तौर पर बनाए गए ऐसे डेटा को कहते हैं जो असली डेटा जैसे ही होते हैं लेकिन वास्तविक आंकड़ों की हूबहू नकल नहीं होते. यानी सिंथेटिक डेटा के इस्तेमाल से कॉपीराइट उल्लंघन का खतरा कम होता है. लेकिन सिंथेटिक डेटा की सबसे बड़ी कमी ये है कि अगर आंकड़ों का स्रोत पक्षपातपूर्ण या अशुद्ध होगा तो फिर इसके नतीजे भी गलत आएंगे. अगर इससे मिली जानकारी गलत और पक्षपातपूर्ण होगी तो फिर एआई को बनाने और इसके इस्तेमाल का मकसद ही बेकार साबित हो जाएगा. इसलिए ये कहा जा सकता है कि अगर जेनरेटिव एआई के क्षेत्र की क्षमताएं बहुत बढ़ रही हैं तो इसके साथ ही उस ट्रेनिंग डेटा की अहमियत भी बढ़ रही है जो इनमें इस्तेमाल किया जाता है. इस ट्रेनिंग डेटा को लेकर एआई कंपनियों पर जो केस हो रहे हैं, उन पर कोर्ट के फैसलों से ही एआई का भविष्य तय होगा.

आगे बढ़ने के उपाय क्या?

जेनरेटिव एआई से जुड़े ज़ोखिमों को कम करने लिए ये ज़रूरी है कि एआई कंपनियां ट्रेनिंग डेटा का इस्तेमाल जिम्मेदारी से करें. एआई जो जानकारी देता है उस पर नज़र रखें. एआई कंपनियां को चाहिए कि वो लेखकों और कलाकारों कोऑप्ट आउटका विकल्प दें. उन्हें ये भरोसा दें कि जो काम उन्होंने किया है उसे एआई ने अपने पास नहीं रखा है. ओपन एआई ने इसे लागू किया है लेकिन इसके साथ ये दिक्कत है कि इसे इस्तेमाल करना बहुत मुश्किल है. इस विकल्प को इस्तेमाल करने का सारा बोझ कंपनी ने उपयोगकर्ता के ऊपर डाल दी है. फिर भी सभी एआई कंपनियों को ये नीति लागू करने की कोशिश करनी चाहिए. कॉपीराइट उल्लंघन के केसों से बचने का दूसरा तरीका ये है कि नियामक संस्थाएं एआई कंपनियों के लिए प्रमाणन की व्यवस्था बनाएं. एआई कंपनी उसे ट्रेनिंग डेटा का इस्तेमाल करें, जिसे नियामक संस्था की तरफ से प्रमाणपत्र मिला हो कि इससे कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं होगा. स्टेबिलिटी एआई ऑडियो के पूर्व अध्यक्ष एड न्यूटन ने इस तरीके का इस्तेमाल किया है. एआई की मदद से बनाई गई डिजिटल कलाकृति की चोरी के खतरे को कम करने के लिए एक सुझाव ये भी है कि इनमें डिजिटल वाटरमार्क का इस्तेमाल भी किया जाना चाहिए.

जेनरेटिव एआई की शुरुआत के बाद से ही इसे इस दशक की सबसे शानदार तकनीकी खोज माना जा रहा है. इसके आने से अर्थव्यवस्था और उत्पादन में सुधार की उम्मीदें लगाईं गईं थीं. ये उम्मीदें अब निराशा में बदलती दिख रही हैं. एआई की वजह से रोज़गार छिनने और अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव का खतरा पैदा हो गया है. लेकिन जेनरेटिव एआई से सबसे ज्यादा डर मानव श्रम के बेकार होने को लेकर है. यही वजह है कि पश्चिमी देशों के बाद अब भारतीय कलाकार भी इसके ख़तरों से बचाव के कानूनी तरीके अपना रहे हैं. हालांकि एआई को लेकर स्थिति अभी इतनी निराशाजनक भी नहीं है. जनवरी 2024 में SAG-AFTRA ने रेप्लिका स्टूडियो के साथ एक एआई वॉयस एग्रीमेंट किया. इस समझौते के तहत एक्टर्स ने अपनी आवाज़ की डिजिटल नकल की मंजूरी दी. कई दूसरे कलाकार भी अब अपनी सृजन प्रक्रिया में एआई का इस्तेमाल कर रहे हैं. स्टोरी बोर्ड बनाने और पटकथा का पहला मसौदा तैयार करने में जेनरेटिव एआई की मदद ली जा रही है. फिलहाल हम एआई की विकास यात्रा के अहम पड़ाव पर हैं. अगर अभी हम जिम्मेदारी से काम करेंगे. नैतिक पहलुओं का ध्यान रखेंगे तो ना सिर्फ जेनरेटिव एआई तकनीकी का विकास होगा बल्कि लोगों को इसका फायदा भी मिलेगा.

 

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