Author : Ayjaz Wani

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Published on Jan 10, 2025 Updated 0 Hours ago

कश्मीर के क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को अनुच्छेद 370 को लेकर बयानबाज़ी से आगे बढ़ना चाहिए और जम्मू-कश्मीर के युवाओं की आवश्यकताओं का समाधान करना चाहिए. 

अनुच्छेद 370 और कश्मीर: शांति के रास्ते पर नये कदम

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16 अक्टूबर 2024 को उमर अब्दुल्ला को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर (J&K) के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई. इससे पहले चुनाव के दौरान जम्मू-कश्मीर के अलग-अलग हिस्सों के लोगों की राजनीतिक प्राथमिकताओं में बहुत अधिक विभाजन देखा गया. सितंबर-अक्टूबर 2024 में हुए तीन चरणों के चुनाव के दौरान क्षेत्र के हिसाब से राजनीतिक दलों के प्रदर्शन में बहुत अधिक अंतर के साथ ये बंटवारा साफ तौर पर दिखा. नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) के नेतृत्व वाले गठबंधन ने कश्मीर घाटी की 47 में से 40 सीटों पर जीत हासिल की, उसे यहां 41.08 प्रतिशत मत मिले. इसके विपरीत जम्मू क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का वर्चस्व रहा. यहां उसे 29 सीट और 45.23 प्रतिशत वोट मिले.

कई धर्मों और कई जातीय समूहों वाले इस केंद्र शासित प्रदेश में स्पष्ट रूप से इस विभाजन के बीच चुनाव के दौरान राजनीतिक चर्चा केंद्र के द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने पर केंद्रित रही. इससे पता चलता है कि कश्मीर की सामाजिक-राजनीतिक मानसिकता के भीतर अभी भी अलगाववाद मौजूद है. 4 नवंबर को विधानसभा के सत्र के पहले चरण के ठीक बाद पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) अनुच्छेद 370 और पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा रद्द करने का विरोध करते हुए एक प्रस्ताव लेकर आई. दो दिन बाद NC के उप मुख्यमंत्री ने 5 अगस्त 2019 को केंद्र के द्वारा रद्द किए गए जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को बहाल करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया. BJP की तरफ से शोर-शराबे के बीच प्रस्ताव में भारतीय संसद के द्वारा बिना किसी चर्चा के एकतरफा विशेष दर्जा वापस लेने को पारित करने पर चिंता जताई गई. NC के नेतृत्व में सरकार और PDP के द्वारा स्वायत्तता को हटाने से पहले की राजनीति को तूल देने की वजह से न केवल भारत के बाकी हिस्सों के साथ कश्मीर को जोड़ने की केंद्र सरकार की नीति के लिए मुश्किल बढ़ गई है बल्कि एक झूठी राजनीतिक बयानबाजी को भी मज़बूती मिली है.

 

अनुच्छेद 370 और अलगाववाद 

अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान में 1949 में शामिल किया गया था और ये केंद्रीय एवं क्षेत्रीय- दोनों ही स्तरों के राजनीतिक नेताओं के द्वारा शोषण का ज़रिया बन गया. क्षेत्रीय नेताओं ने इस अनुच्छेद के द्वारा प्रदान की गई स्वायत्तता का दुरुपयोग कुशासन, भ्रष्टाचार और निरंकुश शासन के लिए किया जबकि केंद्र सरकार ने अक्सर इन गलत कामों को लेकर अपनी आंखें बंद कर ली. इस दुरुपयोग की वजह से पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद को बढ़ावा मिला जिसने दशकों तक घाटी को अशांति की चपेट में फंसाए रखा. 1978 के सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पब्लिक सेफ्टी एक्ट) जैसे कठोर कानूनों, जिन्होंने आम कश्मीरियों को बुनियादी अधिकारों से वंचित किया, ने राज्य के निरंकुश नेतृत्व के तहत कुशासन और भ्रष्टाचार में और बढ़ोतरी की. सत्ताधारी वर्ग ने व्यक्तिगत लाभ के लिए खुले रूप से केंद्र के फंड को हड़प लिया. सरकारी पैसों के खुले तौर पर दुरुपयोग और पक्षपात एवं भाई-भतीजावाद की संस्कृति ने पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर को 2005 में देश का दूसरा सबसे भ्रष्ट राज्य बना दिया. 2012-2016 के दौरान फर्ज़ी हथियार लाइसेंस घोटाला, जिसने भारत में छह अन्य राज्यों पर असर डाला, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा बन गया. इस घोटाले ने राज्य की पुलिस, नौकरशाही और यहां के अपराधियों के बीच गहरे और नुकसानदेह मेलजोल का खुलासा किया. ख़राब व्यवस्था, निरंकुश शासन और व्यापक भ्रष्टाचार ने लोकतंत्र को लेकर सामान्य कश्मीरियों के भरोसे को ख़त्म कर दिया. इसके अलावा राजनीतिक दलों ने लोगों की भावनाओं को भड़काने और केंद्र की सरकार के ख़िलाफ़ लोगों को एकजुट करने के लिए अनुच्छेद 370 का इस्तेमाल किया. 

कई धर्मों और कई जातीय समूहों वाले इस केंद्र शासित प्रदेश में स्पष्ट रूप से इस विभाजन के बीच चुनाव के दौरान राजनीतिक चर्चा केंद्र के द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने पर केंद्रित रही. इससे पता चलता है कि कश्मीर की सामाजिक-राजनीतिक मानसिकता के भीतर अभी भी अलगाववाद मौजूद है.

अगस्त 2019 में केंद्र सरकार ने स्थिरता, सामाजिक-आर्थिक प्रगति और राष्ट्रीय एकता के लिए जम्मू-कश्मीर के लोगों की भविष्य की आकांक्षाओं के अनुरूप राज्य की संस्थागत और संवैधानिक व्यवस्थाओं को बदलने का निर्णय लिया. उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 370 रद्द करने के केंद्र सरकार के फैसले को सही ठहराया और निर्देश दिया कि जितनी जल्दी संभव हो जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्ज बहाल किया जाए. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था ताकि संविधान सभा की स्थापना को सुविधाजनक बनाया जा सके और 1947 में नए बने देश पाकिस्तान के आक्रमण के बाद भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के एकीकरण को आसान बनाया जा सके. 

इस पृष्ठभूमि में PDP और सत्ताधारी NC के द्वारा जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पहले सत्र में पेश प्रस्ताव स्थायी क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को लेकर चिंता उत्पन्न करते हैं. ये कदम छोटे-मोटे फायदे के लिए क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की संकीर्णता को उजागर करते हैं और इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले को जान-बूझकर नहीं मान रहे हैं. 

लोगों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व 

विधानसभा चुनाव के ठीक बाद पाकिस्तान और उसकी एजेंसियों ने एक के बाद एक आतंकी घटनाओं के ज़रिए कश्मीर घाटी में समस्या पैदा करना शुरू कर दिया. 20 अक्टूबर को द रेज़िस्टेंस फोर्स (TRF), जो कि पाकिस्तान से काम करने वाला एक आतंकी संगठन है, उसके द्वारा किये गये एक हमले में गांदरबल ज़िले में सात लोग मारे गए और पांच घायल हो गए. 2 नवंबर को सुरक्षा एजेंसियों ने श्रीनगर के केंद्र में लंबे समय से फरार एक विदेशी आतंकवादी को ढेर कर दिया. 3 नवंबर को ये हालात और बिगड़े जब श्रीनगर में एक ग्रेनेड हमले के दौरान एक महिला की मौत हो गई और 10 लोग घायल हो गए. ज़्यादातर आम कश्मीरी, विशेष रूप से युवा, आतंकवाद से हताश हैं और उन्होंने पाकिस्तान और उसके आतंकी संगठनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करते हुए आतंकी घटनाओं की निंदा की है. अधिकतर पढ़े-लिखे युवा स्थायी शांति और सामान्य हालात चाहते हैं जिसकी तरफ ये केंद्र शासित प्रदेश 2019 से धीरे-धीरे आगे बढ़ा है. जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान के छद्म युद्ध में तेज़ी को देखते हुए क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को अलगाववाद और मुख्यधारा से दूर ले जाने वाली प्रवृत्तियों को जिंदा रखने के लिए अनुच्छेद 370 जैसी ऐतिहासिक गलतियों का समर्थन करने के बदले आतंकवाद और हिंसा की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित करना चाहिए. NC की अगुवाई वाली सरकार को राजनीतिक नौटंकियों और बयानबाज़ी का सहारा लेने के बदले शांतिपूर्ण और समृद्ध जम्मू-कश्मीर के लिए नौजवानों की आकांक्षाओं का समर्थन करना चाहिए. 

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था ताकि संविधान सभा की स्थापना को सुविधाजनक बनाया जा सके और 1947 में नए बने देश पाकिस्तान के आक्रमण के बाद भारत के साथ जम्मू-कश्मीर के एकीकरण को आसान बनाया जा सके. 

ख़बरों के मुताबिक इस केंद्र शासित प्रदेश में 9,00,000 से ज़्यादा लोग नशीले पदार्थों के आदी हैं. यहां तक कि धार्मिक नेताओं ने भी इस क्षेत्र में नशीले पदार्थों के बढ़ते दुरुपयोग की निंदा करते हुए उपदेश देना शुरू कर दिया है जो तुरंत कदम उठाने की आवश्यकता को उजागर करता है. क्षेत्रीय दलों को युवाओं के बीच नशे की लत में ख़तरनाक बढ़ोतरी से निपटने को प्राथमिकता देनी चाहिए. ये नशीले पदार्थ सीमा पार से लाए जाते हैं और इस केंद्र शासित प्रदेश के सामाजिक ढांचे को ख़राब करने के पाकिस्तान के इरादे को उजागर करता है. साथ ही ये आतंकवाद और उग्रवाद को पाकिस्तान के गुप्त समर्थन के बारे में भी बताता है. और अधिक सामाजिक विघटन को रोकने और क्षेत्र के युवाओं के भविष्य की रक्षा करने के लिए इसके ख़िलाफ़ तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए. 

क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को ऐतिहासिक शिकायतों और अलगाववादी राजनीति की पकड़ से दूर रहना चाहिए जो पाकिस्तान की नापाक साज़िशों में मदद करती हैं. इसके बदले उन्हें जम्मू-कश्मीर के लोगों, विशेष रूप से युवाओं, की वास्तविक आकांक्षाओं पर ध्यान देना चाहिए जो उज्ज्वल भविष्य के हकदार है. खुली योग्यता श्रेणी (ओपन मेरिट कैटेगरी) के हज़ारों बेरोज़गार नौजवानओं ने आरक्षण नीति की कड़ी आलोचना की है जिसके तहत 2019 के बाद नौकरियों में समाज के कमज़ोर वर्गों के लिए 60 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है. 

क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को जम्मू-कश्मीर के लोगों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं पर ध्यान देकर एकीकरण को अपनाना चाहिए और इस तरह सामाजिक सद्भावना और समावेशिता को बढ़ावा देना चाहिए. ये नज़रिया इस क्षेत्र के लिए उज्ज्वल भविष्य को बढ़ावा देगा जिसकी विशेषता शांति, समृद्धि और समावेशी विकास है. अगर वो ऐसा करने में नाकाम रहते हैं तो जम्मू-कश्मीर एक बार फिर उथल-पुथल और आतंक के दौर में चला जाएगा.


एजाज़ वानी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं. 

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