Author : Varya Srivastava

Expert Speak Digital Frontiers
Published on Feb 08, 2024 Updated 0 Hours ago

आज जब जेनेरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तक लोगों की पहुंच बढ़ रही है, तो इसका इस्तेमाल एकाकीपन को बढ़ाने और इसके साथ साथ मानवीय देख-बाल और रिश्तों को बनावटी तरीक़े से रचे गए कृत्रिम रिश्तों को निभाने में भी किया जा रहा है.

एकाकीपन का इलाज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस?

ये लेख हमारी सीरीज़ AI F4: फैक्ट्स, फिक्शन, फियर्स ऐंड फैंटेसीज़ का एक भाग है


16 नवंबर 2023 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एकाकीपन को ‘वैश्विक स्वास्थ्य की चिंता का विषय’ घोषित किया था. WHO ने ये घोषणा ऐसे वक़्त में की थी, जब वैश्विक संगठन ख़ुद को कोविड-19 के बाद की हक़ीक़तों के मुताबिक़ ढाल रहे हैं और अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार कर रहे हैं. ऐसे में ये घोषणा हम सबके लिए डिजिटल एकाकीपन के अनुभवों और लोगों के जीवन की सियासी व्यवहारिकताओं पर विचार करने के लिए एक अहम अवसर है. आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) का विकास, तन्हाई की मानवीय स्थिति में कल्पना और भय का एक नया आयाम जोड़ रहा है. हम एल्गोरिद्म के ब्लैक बॉक्स के ज़रिए अपनी वर्चुअल सच्चाइयों में बदलाव करके, अपने सूचना के प्रवाह के ‘क्या’, ‘कब’, और ‘कैसे’ वाले हिस्से को नियंत्रित कर रहे हैं. ऐसे में तन्हाई के साथ हमारे रिश्ते को तय करने में AI एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला पहलू बन गया.

 

जर्मन मनोवैज्ञानिक और इतिहासकार हाना ऑरंट ने राजनीतिक व्यावहारिकता की थीम पर अपनी किताब दि ओरिजिन्स ऑफ टोटैलिटैरियनिज़्म में सामाजिक अलगाव और एकाकीपन के बीच एक मार्मिक रिश्ते को उकेरा है, जिसकी वजह से तानाशाही और एकाधिकारवाद बढ़ने की आशंका पैदा हो जाती है. विशेष रूप से वो रेखांकित करती हैं कि एकाकीपन किस तरह- अलग थलग पड़ने और सामान्य सामाजिक रिश्तों के अभाव- की वजह से लोगों को राष्ट्रवाद के हिंसक स्वरूपों के सामने कमज़ोर बना देता है. वो लिखती हैं कि आम तौर पर, ‘जहां अलग थलग पड़ना जीवन के केवल राजनीतिक पहलू को प्रभावित करता है. वहीं एकाकीपन पूरे जीवन पर असर डालता है.’ सभी तरह के उत्पीड़नों में एकाधिकारवादी सरकार निश्चित रूप से जीवन के सार्वजनिक पहलू को नष्ट किए बग़ैर अस्तित्व में नहीं रह सकती है. मतलब ‘वो लोगों को, उनकी राजनीतिक क्षमताओं को नष्ट और अलग थलग किए बिना कारगर नहीं हो सकती. लेकिन, शासन के एक स्वरूप के तौर पर एक दलीय व्यवस्था का दबदबा केवल लोगों को अलग थलग करने से संतुष्ट नहीं होता, वो लोगों के निजी जीवन को भी नष्ट कर देता है. ऐसी हुकूमत स्वयं को एकाकीपन पर आधारित करती है, जिसमें किसी को ये लगता है कि वो इस दुनिया से कोई वास्ता ही नहीं रखता. ये किसी भी इंसान का सबसे क्रांतिकारी और हताशा भरा अनुभव होता है.’

ये लेख, हमारी ज़िंदगियों की काल्पनिक और वास्तविक दूरी के बीच जोड़ बिठाने और इसके राजनीतिक प्रभावों को समझने का प्रयास है.

अगर हम विरोध या प्रतिकार के राजनीतिक इतिहास पर नज़र डालें, तो हम देखेंगे कि एकजुटता और सामूहिक रूप से क़दम उठाने की भूमिका केंद्रीय होती है. अगर हम अलग थलग होने के हालिया अनुभवों को देखें, तो पाएंगे कि डिजिटल तकनीकें (विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) एक विभाजनकारी भूमिका निभाती हैं. ये लेख, हमारी ज़िंदगियों की काल्पनिक और वास्तविक दूरी के बीच जोड़ बिठाने और इसके राजनीतिक प्रभावों को समझने का प्रयास है. जेनेरेटिव AI से संचालित ‘ग्रीफबॉट्स’ से जुड़ी चीन की विशेष केस स्टडी को लेते हुए, ये लेख AI की मध्यस्थता वाली दुनिया में हाना ऑरंट के एकाकीपन के राजनीतिकरण को स्थापित करता है.

 

मृतकों से (और उनके बारे) में बात करना

 

अप्रैल 2023 में पहली बार ये ख़बर आई थी कि चीन के हज़ारों लोग जेनेरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GenAI) का इस्तेमाल करके उन लोगों के गुज़र जाने का शोक मना रहे थे, जिनकी मौत कोविड-19 महामारी के दौरान हो गई थी. पुरानी तस्वीरों, टेक्स्ट मैसेज, ई-मेल और दूसरे तरह के लिखी हुई बातचीत और उनकी तस्वीरों के ज़रिए, चीन के ये लोग, अपने गुज़र चुके परिजनों को दोबारा अपनी ज़िंदगी में वापस लाए थे.

 

AI और GenAI तकनीकों के इस डिजिटल संकलन की शुरुआत सबसे पहले 2020 में शुरू हुई थी. इसकी अगुवाई युवा चीनी पेशेवर यू जिआलिन ने की थी. इसकी शुरुआत जिआलिन द्वारा अपने दादा की मौत का शोक मनाने की निजी परियोजना के रूप में हुई थी. जुआलिन, अपने दादा से वो सारी बातचीत करने की कोशिश कर रहे थे, जो वो उनके जीवित रहने पर करना चाहते थे. 2022-23 के आते आते उन्होंने तकनीक को इस हद तक परिष्कृत कर दिया था कि जिससे हज़ारों चीनी नागरिक, कोविड-19 के बाद अपनी निजी क्षतियों का शोक मना सकें. पूछे जाने पर ज़्यादातर लोगों ने दावा किया कि वो अपने गुज़र चुके परिजनों के इन AI से बने अवतारों से मिलने वाली ‘मनोवैज्ञानिक राहत’ को बहुत मूल्यवान समझते हैं. इन लोगों ने अक्सर ये पाया कि वास्तविक लोगों की तुलना में ‘डिजिटल मानवों’ से बात करना उनके लिए अधिक आसान था. इसका एक लोकप्रिय उपयोग हम चीन के मशहूर ब्लॉग वू वुलियान के तौर पर देख सकते हैं. वुलियान ने पिछले साल मार्च में एक वीडियो बनाया जिसका नाम- ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के औज़ारों से मेरी दादी का वर्चुअल डिजिटल स्वरूप तैयार करना’ था. इस वीडियो में उन्होंने देखने वालों को चैट GPT, AI पेंटिंग और स्पीच सिंथेसिस की प्रक्रियाओं की सहायता से अपनी दादी के जवाब देने वाले डिजिटल अवतार के निर्माण का तरीक़ा बताया था. उन्होंने दि स्ट्रेट टाइम्स में प्रकाशित एक ब्लॉग में कहा था कि, ‘मैंने ये जो वीडियो बनाया, उसका मुख्य मक़सद AI तकनीक के इस्तेमाल से मेरे अफ़सोस को कम करना और गुज़रे हुए कल के बारे में बहुत अधिक न सोचने में अपनी मदद करना था.’

‘हम जीवित लोगों को ये समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं है. लोग, मृतकों को दोबारा जीवित करने के लिए AI का इस्तेमाल करना चाहते हैं, क्योंकि वो अपनी भावनाओं का इज़हार करना चाहते हैं.’

व्यक्तिगत उपयोग के इन मामलों से आगे बढ़कर श्मशान घरों और शंघाई फुशुन जैसे कारोबारों ने भी इस तकनीक का इस्तेमाल, अंतिम संस्कार में शामिल होने वालों की सहायता के लिए करना शुरू कर दिया, ताकि वो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इन्हीं औज़ारों की मदद से मृतकों को अंतिम विदाई दे सकें. फुशुन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी यु हाओ ने गुआंगझू डेली से कहा था कि, ‘हम जीवित लोगों को ये समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं है. लोग, मृतकों को दोबारा जीवित करने के लिए AI का इस्तेमाल करना चाहते हैं, क्योंकि वो अपनी भावनाओं का इज़हार करना चाहते हैं.’

 

अगर हम शोक मनाने और अंतिम संस्कार की दुनिया से बाहर निकलकर देखें, तो पाएंगे कि AI थेरेपी औऱ डिजिटल गर्लफ्रेंड के उभार के पीछे भी यही तकनीक इस्तेमाल की जा रही है. एकाकीपन और अलग-थलग पड़ जाने की बुनियादी चिंताएं वैसी की वैसी हैं.

 

डिजिटल दुनिया की हाना ऑरंट

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तन्हाई को ‘वैश्विक स्वास्थ्य की चिंता’ का विषय घोषित करने से हाना ऑरंट की वो दूरदर्शी भविष्यवाणी सच साबित हो गई है, जो उन्होंने एकाकीपन के राजनीतिक प्रभावों के बारे में कही थी. हम देख रहे हैं कि आज दुनिया में लोग जितने बड़े स्तर पर एकाकीपन के शिकार हैं, वैसा मानव इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ. हालांकि, चुनौती सिर्फ़ तन्हाई की व्यापकता की नहीं है.

 

जैसे जैसे जेनेरेटिव AI कारोबारी तौर पर अधिक उपलब्ध होता जाएगा, हम देखेंगे कि AI का नए नए तरीक़ों से इस्तेमाल होगा, जिससे एकाकीपन की समस्या और बढ़ेगी और मानवीय देख-रेख और रिश्तों की जगह कृत्रिम रूप से बनाए गए बनावटी रिश्ते ले लेंगे. AI की मदद से खड़ी की गई तन्हाई की पहुंच या इसका व्यापक दायरा नहीं, असल में ये हक़ीक़त ज़्यादा बड़ी चुनौती है कि तकनीक अपने आप में एकाकीपन के स्वरूप को बदल देती है. ये असली इंसानों के बीच दूरियां पैदा करती है और फिर इस दूरी को ख़ास तौर से तैयार की गई तकनीक से भरती है, जो इसके इस्तेमाल के दौरान तो हमें ये एहसास कराती है कि हमें प्यार किया जा रहा है और हमें समझा जा रहा है. लेकिन, कुछ पलों के बाद हमें ये तकनीक ये एहसास भी कराती है कि हम कितने तनहा हैं. प्यार और एकाकीपन का ये चक्र एक ऐसा दुष्चक्र तैयार करता है, जिसे वस्तु बनाकर बेचा जाता है और इसका राजनीतिकरण किया जाता है.

आज जिस तरह डिजिटल तकनीकें विकसित हो रही हैं, तो हम पाएंगे कि युद्ध के आधुनिक मोर्चे लोगों के ज़हन में तैयार हो रहे हैं. अपने मज़बूत डिजिटल भविष्य के निर्माण के लिए एकाकीपन से निपटना एक महत्वपूर्ण तरीक़ा है.

इस संदर्भ में एकाधिकारवाद पर हाना ऑरंट के अध्ययन से हमें राह दिखाने वाले कुछ ऐसे बिंदु प्राप्त होते हैं, जिससे हम डिजिटल तन्हाई की पड़ताल कर सकें. वाजिब तवज्जो देने और आवश्यक संसाधन जुटाने के लिए ये एक ज़रूरी क़दम है. आज जिस तरह डिजिटल तकनीकें विकसित हो रही हैं, तो हम पाएंगे कि युद्ध के आधुनिक मोर्चे लोगों के ज़हन में तैयार हो रहे हैं. अपने मज़बूत डिजिटल भविष्य के निर्माण के लिए एकाकीपन से निपटना एक महत्वपूर्ण तरीक़ा है.

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