Author : Avni Arora

Published on Oct 13, 2022 Updated 0 Hours ago

डिजिटल सार्थक कार्यक्रम से जुड़ना अर्चना और उनके ग्रामीण समुदाय के लिए बदलावों भरा अनुभव रहा. इस कार्यक्रम का लक्ष्य पिछड़े इलाक़ों की महिलाओं में डिजिटल कौशल को बढ़ावा देना और उन्हें सामुदायिक स्तर पर आसान तरीक़े से डिजिटल समाधान से जुड़ने के लिए प्रशिक्षित करना है.

अर्चना सेन: जो क़दम दर क़दम बदल रही हैं मध्यप्रदेश के कांढया खेड़ी की तस्वीर!

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अर्चना सेन- मध्य प्रदेश के गुना ज़िले के कांढया खेड़ी गांव का जाना-पहचाना नाम है. घर-घर जाकर सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार और उनको लागू कराने वाली समर्पित सामुदायिक कार्यकर्ता. अर्चना के मुताबिक गुना में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरत एक प्रमुख प्राथमिकता है. 2017 में उनके मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा)[1] बनने के पीछे यही अहम विचार प्रेरक रहा था. दो साल बाद उन्होंने स्थानीय गैस एजेंसी के ख़िलाफ़ छोटे स्तर पर ही सही, मगर नेक-इरादों से भरपूर, संघर्ष छेड़ दिया. दरअसल, वो एजेंसी प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना[2] पर अमल में ढिलाई बरत रही थी और अर्चना को ये गवारा नहीं था. इस संघर्ष ने सामुदायिक कार्यकर्ता के तौर पर उनकी पहचान को और पुख़्ता बना दिया. इन्हीं कामयाबियों के बूते अर्चना को डिजिटल सार्थक कार्यक्रम के तहत उनके गांव का डिजिटल सार्थक (सहयोगी) चुना गया. USAID और DAI के सहयोग से डिजिटल एम्पावरमेंट फ़ाउंडेशन, राष्ट्रीय डिजिटल उद्यमिता और सशक्तिकरण से जुड़े पहल के रूप में ये कार्यक्रम चला रहा है.

अर्चना के पिता महाराष्ट्र के वर्धा ज़िले के धनोरा गांव में छोटा सा सैलून चलाते थे. अर्चना दो बहनों में छोटी हैं. अपनी ज़िंदगी के शुरुआती दौर को बेहद सामान्य बताते हुए वो कहती हैं, “हमारे परिवार के आर्थिक हालात डांवाडोल थे, लेकिन हमने थोड़े में ही गुज़र-बसर करना सीख लिया था.” अर्चना के पिता पर अपनी बेटियों को शिक्षित बनाने का धुन सवार था. दोनों बहनों को पिता से यही मिज़ाज विरासत में मिला है. बीते दिनों की याद ताज़ा करते हुए अर्चना कहती हैं, “पढ़ाई-लिखाई के आख़िरी सालों में मुझे लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी. परिवार की साधारण सी कमाई में बस का किराया चुकाना मुश्किल था. लिहाज़ा मैंने साइकिल से आना-जाना तय किया ताकि शादी से पहले मैं हायर सेकेंडरी पास कर सकूं.” 2006 में अपनी शादी के बाद अर्चना ने ह्यूमैनिटिज़ में अंडरग्रैजुएट डिग्री पूरी की.

अर्चना कहती हैं, “पढ़ाई-लिखाई के आख़िरी सालों में मुझे लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी. परिवार की साधारण सी कमाई में बस का किराया चुकाना मुश्किल था. लिहाज़ा मैंने साइकिल से आना-जाना तय किया ताकि शादी से पहले मैं हायर सेकेंडरी पास कर सकूं.” 2006 में अपनी शादी के बाद अर्चना ने ह्यूमैनिटिज़ में अंडरग्रैजुएट डिग्री पूरी की.

अर्चना के मुताबिक, “कांढया खेड़ी का माहौल धनोरा से बिल्कुल अलग है. मैंने यहां पिछड़ी जातियों के लोगों के प्रति भारी अलगाव का भाव महसूस किया है. साथ ही यहां लिंग के आधार पर भी ज़ाहिर तौर पर भेदभाव बरता जाता है. यहां की महिलाएं उतनी शिक्षित नहीं हैं जितनी मैंने अपने गांव की महिलाओं को देखा है. यहां अगर महिलाएं शिक्षित भी हैं तो भी उनका अपनी ख़ुद की ज़िंदगी में दख़ल काफ़ी कम है. कांढया खेड़ी में परिवारों के लिए स्वास्थ्य प्राथमिकता ही नहीं थी.” अर्चना गर्व से कहती हैं कि आशा कार्यकर्ता के तौर पर अपने कार्यकाल में उन्होंने ऐसे हालात बदलने में मदद की है.

मध्य प्रदेश में महिलाओं (15-49 साल की उम्र वाली) का प्रौद्योगिकीय सशक्तिकरण
महिलाएं जिनके पास ख़ुद के इस्तेमाल के लिए मोबाइल फ़ोन है 38.5%
मोबाइल फ़ोन रखने वाली महिलाओं में वो महिलाएं जो SMS संदेश पढ़ सकती हैं 74.3%
वित्तीय लेन-देन के लिए मोबाइल का प्रयोग करने वाली महिलाएं 23.3%
इंटरनेट का इस्तेमाल कर चुकी महिलाएं 26.9%

 स्रोतराष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2019-21[i]

डिजिटल सार्थक कार्यक्रम से जुड़ना अर्चना और उनके ग्रामीण समुदाय के लिए बदलावों भरा अनुभव रहा. इस कार्यक्रम का लक्ष्य पिछड़े इलाक़ों की महिलाओं में डिजिटल कौशल को बढ़ावा देना और उन्हें सामुदायिक स्तर पर आसान तरीक़े से डिजिटल समाधान से जुड़ने के लिए प्रशिक्षित करना है. फ़िलहाल ये कार्यक्रम भारत के 13 राज्यों के 25 ज़िलों में चलाया जा रहा है. इसके तहत महिला उद्यमियों के लिए डिजिटल वॉलेट्स, OTT मैसेजिंग प्लेटफ़ॉर्मों और डिजिटल बाज़ारों का अधिकतम इस्तेमाल सुनिश्चित किया जा रहा है.

       

डिजिटल सार्थक के रूप में अपनी अब तक की यात्रा का ब्योरा देते हुए अर्चना बताती हैं कि शुरुआत में उन्हें सिर्फ़ कीपैड फ़ोन का इस्तेमाल करना आता था, और वो कॉलिंग के लिए केवल उसी का इस्तेमाल करती थीं. बहरहाल इस सफ़र में अब वो काफ़ी आगे बढ़ चुकी हैं. अर्चना के मुताबिक, “डिजिटल सार्थक के तौर पर चुने जाने के बाद ही मेरे पास मोबाइल फ़ोन आया और मुझे इंटरनेट कनेक्शन होने के फ़ायदों की पहचान हुई.” डिजिटल एम्पावरमेंट फ़ाउंडेशन (DEF) के सलाहकार अभिनव पांडेय ने उन्हें फ़ीचर फ़ोन से आगे स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल करना सिखाया. डिजिटल सार्थक के तौर पर अपने प्रशिक्षण सत्रों में अर्चना ने स्मार्टफ़ोन का प्रयोग शुरू कर दिया. अभिनव पांडेय DEF के ज़िला को-ऑर्डिनेटर हैं. वो सभी डिजिटल सार्थकों का प्रशिक्षण और मार्गदर्शन करते हैं ताकि वो अपने समुदायों की बेहतर तरीक़े से सेवा कर सकें. पांडेय के मार्गदर्शन में धीरे-धीरे अर्चना ने स्थानीय स्वयं सहायता समूहों की प्रबंधन क्षमता से जुड़े गुर सीख लिए हैं. स्मार्टफ़ोन के प्रयोग और व्हाट्सऐप ग्रुपों के ज़रिए संचार से स्वयं-सहायता समूहों की गतिविधियों के भौगोलिक दायरे का विस्तार हो गया है. इन गतिविधियों में छोटे ऋण मुहैया कराने से लेकर आजीविका के नए तौर-तरीक़ों की शुरुआत शामिल हैं. आज अर्चना बड़े चाव से धनोरा को अपनी ‘जन्मभूमि’ और कांढया खेड़ी को अपना ‘कर्म भूमि’ बताती हैं.

मार्च 2020 में कोविड-19 के उभार के बाद लगे लॉकडाउन के चलते गांव में आवाजाही पूरी तरह से ठप हो गई. स्थानीय दुकानों तक सप्लाई रुक जाने से लोगों के पास राशन के सामान की किल्लत हो गई. उस दौरान अर्चना ने किराने का सामान ऑनलाइन ऑर्डर कर गांववालों की बहुत मदद की. आशा कार्यकर्ता के तौर पर अर्चना ने क्वॉरंटीन में रह रहे लोगों की भी भरपूर मदद की. उन्होंने अपने फ़ोन के ज़रिए ऐसे लोगों के घरवालों से वीडियो कॉल से बात करवाई. अर्चना ने हाथ धोने और सामाजिक दूरी बनाने की अहमियत को लेकर मोबाइल अभियान भी चलाया और अपने गांव में घर-घर टीकाकरण अभियान की भी अगुवाई की. इसके लिए उन्होंने स्मार्टफ़ोन के इस्तेमाल से साथी आशा कार्यकर्ताओं को एकजुट करने का बीड़ा उठाया. महामारी से पैदा हुई तमाम चुनौतियों से संघर्ष में आशा कार्यकर्ता के तौर पर अर्चना डटकर खड़ी रहीं. स्थानीय प्रशासन और सिविल सोसाइटी संगठनों से तालमेल कर हैंड सैनिटाइज़र्स, पीपीई किट्स और मास्क जुटाने के काम को उन्होंने अपने स्मार्टफ़ोन के ज़रिए बख़ूबी अंजाम दिया. महामारी के दौरान स्पेशल ड्यूटी में लगी आशा कार्यकर्ताओं को 1000 रु की आर्थिक सहायता दी गई.[ii] हालांकि कई बार अर्चना को अपने काम में मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने जीतोड़ मेहनत की. यही वजह है कि उनके वार्ड ने सामुदायिक सेवा के प्रति उनकी लगन और परिश्रम का सम्मान करते हुए उन्हें ‘कोरोना योद्धा’ का दर्जा दिया. अर्चना को इस दर्जे से काफ़ी लगाव है.

स्मार्टफ़ोन के प्रयोग और व्हाट्सऐप ग्रुपों के ज़रिए संचार से स्वयं-सहायता समूहों की गतिविधियों के भौगोलिक दायरे का विस्तार हो गया है. इन गतिविधियों में छोटे ऋण मुहैया कराने से लेकर आजीविका के नए तौर-तरीक़ों की शुरुआत शामिल हैं. आज अर्चना बड़े चाव से धनोरा को अपनी ‘जन्मभूमि’ और कांढया खेड़ी को अपना ‘कर्म भूमि’ बताती हैं.

डिजिटल सार्थक के तौर पर अर्चना ने कांढया खेड़ी और आसपास के गांवों में 100 महिला उद्यमियों की पहचान कर उन्हें प्रशिक्षित किया है. इन महिलाओं को डिजिटल साधनों के ज़रिए अपना कारोबार आगे बढ़ाने के गुर सिखाए गए हैं. अर्चना उद्यमियों को डिजिटल और वित्तीय साक्षरता के अलावा मीडिया साक्षरता का प्रशिक्षण देती हैं. साथ ही कारोबार के लिए स्मार्ट फ़ोन और मार्केटिंग के लिए सोशल मीडिया के प्रयोग के गुर सिखाती हैं. अर्चना ने समुदाय को प्रधानमंत्री की वाई-फ़ाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफ़ेस स्कीम के बारे में भी जानकारी दी है. इस योजना का लक्ष्य देश भर में वाई-फ़ाई एक्सेस को बढ़ावा देना है.[iii] अर्चना कहती हैं, “मेरी कोशिशों के चलते लोगों ने अपने कारोबार के अलावा बाक़ी कामों के लिए भी ऑनलाइन तौर-तरीक़ों में सक्रिय रूप से दिलचस्पी लेना शुरू कर दिया है. वो ई-सेवाओं के बारे में सीखना चाहते हैं, सरकारी योजनाओं और उनके फ़ायदे जानना चाहते हैं और कई लोगों ने तो मेरी मदद से इन सेवाओं का लाभ उठाना भी शुरू कर दिया है.”

अर्चना ने कोविड-19 महामारी के दौरान एक और बड़ी ज़िम्मेदारी निभाई. उन्होंने गांववालों को बिना संपर्क में आए लेन-देन करने के लिए डिजिटल वॉलेट्स का इस्तेमाल सिखाने के लिए कार्यशालाओं का भी आयोजन किया. वो बताती हैं कि “ऑनलाइन लेन-देन धीरे-धीरे लोकप्रिय होते जा रहे हैं. अतीत के मुक़ाबले अब समुदाय के ज़्यादा से ज़्यादा लोग इसे अपनाने लगे हैं.” ये बदलाव कुल मिलाकर देशभर में देखे जा रहे रुझान के मुताबिक है. 2021 में भारत में रियल टाइम 48 अरब डिजिटल लेन-देन हुए[iv] जो दुनिया में सबसे ज़्यादा है.

अर्चना बताती हैं कि महिलाओं द्वारा मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल को अक्सर नीची नज़रों से देखा जाता है. “भोली-भाली जवान लड़कियों के हाथों में स्मार्टफ़ोन और इंटरनेट को उनके दिमाग़ में प्रदूषण भरने वाले औज़ार के तौर पर देखा जाता है.” इस सोच और स्मार्टफ़ोन तक लचर पहुंच के चलते मध्य प्रदेश के गांवों में रहने वाली महज़ 20 फ़ीसदी महिलाओं को ही इंटरनेट का इस्तेमाल करना नसीब हो पाया है (चित्र 1 देखिए).[v] फिर भी अर्चना जैसी महिलाएं अपने समुदाय, ख़ासकर दूसरी महिलाओं के लिए रोल मॉडल हैं. डिजिटल सार्थक बनने के बाद अर्चना ने ऐसी धारणाओं को बदलने की पुरज़ोर कोशिश की है. वो बताती हैं कि “इंटरनेट तो छोड़िए महिलाओं द्वारा अकेले फ़ोन पर बात किए जाने को भी आम तौर पर शक़ की नज़रों से देखा जाता था. इस मानसिकता से उबरने में बिरादरी वालों की मदद करना मेरे शुरुआती क़दमों में से एक है.”

अर्चना कहती हैं कि महिलाओं को फ़ोन का इस्तेमाल शुरू करने के लिए रज़ामंद करना एक बड़ी चुनौती है. अर्चना ज़ोर देकर कहती हैं कि “टेक्नोलॉजी को लेकर भले ही कई लोगों की समझ बदलने लगी हो लेकिन लॉकडाउन ही वो मौक़ा था जब लोगों ने सही मायने में मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट की अहमियत समझी. अगर आपके पास फ़ोन हो तो आप कुछ भी कर सकते हैं. फ़ोन के ज़रिए कारोबार में ऊंचाई छूने की कोई सीमा नहीं रह जाती है.” वो इस सिलसिले में दर्ज़ी के कारोबार की मिसाल देती हैं. अर्चना के मुताबिक इस क्षेत्र से जु़ड़ी कई महिलाओं की अब एक बड़े उपभोक्ता आधार तक पहुंच हो गई है. अर्चना ने इन महिलाओं को डिज़ाइन और स्टाइल से जुड़े नए-नए विचारों के लिए यूट्यूब का इस्तेमाल करना सिखाया है.

अर्चना ज़ोर देकर कहती हैं कि “टेक्नोलॉजी को लेकर भले ही कई लोगों की समझ बदलने लगी हो लेकिन लॉकडाउन ही वो मौक़ा था जब लोगों ने सही मायने में मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट की अहमियत समझी. अगर आपके पास फ़ोन हो तो आप कुछ भी कर सकते हैं. फ़ोन के ज़रिए कारोबार में ऊंचाई छूने की कोई सीमा नहीं रह जाती है.”

प्रशिक्षण और प्रचार-प्रसार से जुड़े कामों के अलावा अर्चना गांव में सामुदायिक परियोजना केंद्र भी चलाती हैं. अर्चना ने USAID और DEF की सहायता से इस केंद्र की स्थापना की है. ये उनके गांव और आसपास के इलाक़ों में इस तरह का इकलौता केंद्र है. वो गर्व से भरकर कहती हैं “हमारे केंद्र पर एक स्मार्टफ़ोन, एक लैपटॉप और एक प्रिंटर है, और मैं समुदाय के सदस्यों को इंटरनेट के इस्तेमाल के ज़रिए सार्वजनिक सेवाओं और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेने में मदद कर रही हूं.” ये केंद्र कांढया खेड़ी के निवासियों के लिए स्थानीय तौर पर सेवाएं हासिल करने का ठिकाना बन गया है. डिजिटल सार्थक के रूप में अर्चना की अगुवाई में गुना ज़िले का ये गांव सधी चाल से डिजिटल युग में अपना मुक़ाम बना रहा है.

चित्र1: 2021 तक भारत और मध्य प्रदेश में इंटरनेट का इस्तेमाल कर चुके लोगों (शहरी-ग्रामीण) का प्रतिशत

स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2019-21[vi]

मुख्य सबक़

  • डिजिटल वॉलेट्स, ऑनलाइन भुगतानों और मैसेजिंग प्लेटफ़ॉर्मों के उपयोग को अधिकतम स्तर पर लाने; और वीडियो आधारित डिजिटल प्लेटफ़ॉमों के ज़रिए बेहतरीन तौर-तरीक़े और जानकारियां साझा करने की क़वायद छोटे पैमाने के कारोबारों और स्थानीय महिला उद्यमियों को महामारी के बाद दोबारा पटरी पर लौटाने में मददगार हो सकती है.
  • प्रशिक्षित कर्मियों की अगुवाई और आधुनिक डिजिटल साज़ोसामानों से लैस सामुदायिक केंद्र, समुदाय के सदस्यों को प्रेरित करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. इनके ज़रिए वो डिजिटल साक्षरता हासिल कर सकते हैं, ऑनलाइन सार्वजनिक सेवाओं की समझ विकसित कर सकते हैं और आगे चलकर स्वतंत्र रूप से इनका प्रयोग शुरू कर सकते हैं.

NOTES


[1] ASHAs are trained female community health activists assigned to every village across India. They act as intermediaries between the public health system and the community.

[2]A flagship government scheme that aims to make clean cooking fuel such as LPG available to rural and deprived households which were otherwise using traditional cooking fuels such as firewood, coal, and cow-dung cakes.

[i] National Family Health Survey 5 (2019-21), State Fact Sheet – Madhya pradesh, http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5_FCTS/Madhya_Pradesh.pdf

[ii] Shinzani Jain, “With Job and Wage Loss Workers in MP in Severe Distress Due to Pandemic,” NewsClick, July 26, 2021, https://www.newsclick.in/with-job-wage-loss-workers-MP-severe-distress-pandemic

[iii] “The PM-WANI Scheme: An Explainer”, Internet Freedom Foundation, https://internetfreedom.in/pm-wani-explainer/

[iv] Sunainaa Chadha, “At 48 Billion, India accounts for largest number of Real time transactions in the world”, Times of India, April 25, 2022, https://timesofindia.indiatimes.com/business/india-business/exclusive-at-48-billion-india-accounts-for-largest-number-of-real-time-transactions-in-the-world/articleshow/91070124.cms

[v] Basu Chandola, “Exploring India’s Digital Divide,” ORF, May 20, 2022, https://www.orfonline.org/expert-speak/exploring-indias-digital-divide/

[vi] National Family Health Survey 5 (2019-21), India Fact Sheet, http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5_FCTS/India.pdf

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