Author : Passang Dorji

Expert Speak Raisina Debates
Published on Feb 17, 2024 Updated 0 Hours ago

दुनिया के ज़्यादातर हिस्सों से हटकर भूटान ने अपने ताज़ा चुनाव के दौरान बिना किसी परेशानी के सत्ता के हस्तांतरण का अनुभव किया.

भूटान के चौथे संसदीय चुनाव का विश्लेषण!

चीन और भूटान के बीच सुदूर दक्षिणी हिमालय में स्थित देश भूटान उन 78 देशों में शामिल है जहां के नागरिक 2024 में अपने राजनीतिक नेताओं का चुनाव कर रहे हैं. इन चुनावों के नतीजों का असर दुनिया की 60 प्रतिशत से ज़्यादा आबादी पर पड़ेगा. इतने बड़े पैमाने और इतने अधिक देशों में एक ही साल में चुनाव हमारी धरती के अभी तक के दर्ज इतिहास में नहीं देखे गए हैं और न ही 2050 तक इसकी उम्मीद है. 

एशिया के जिन 15 देशों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें से एक देश भूटान है जहां 9 जनवरी को चौथी लोकतांत्रिक नेशनल असेंबली के चुनाव के लिए वोट डाले गए. नेशनल असेंबली भूटान की 72 सदस्यों की संसद के दो सदनों में से एक है. नेशनल असेंबली वेस्टमिंस्टर संसदीय परंपरा के निचले सदन की तरह है जिसमें दो राजनीतिक पार्टियां हैं- सत्ताधारी और विपक्षी. 

भूटान की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टियों में से एक पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) ने इन चुनावों में शानदार जीत हासिल की. उसने 47 में से 30 सीटों पर विजय हासिल की जबकि बाकी सीट भूटान टेंड्रेल पार्टी (BTP) को मिली जो कि भूटान के राजनीतिक परिदृश्य में सबसे नया दल है.

भूटान की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टियों में से एक पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) ने इन चुनावों में शानदार जीत हासिल की. उसने 47 में से 30 सीटों पर विजय हासिल की जबकि बाकी सीट भूटान टेंड्रेल पार्टी (BTP) को मिली जो कि भूटान के राजनीतिक परिदृश्य में सबसे नया दल है. पांच राजनीतिक दलों ने इन चुनावों में हिस्सा लिया. उनमें से तीन पार्टियां पिछले साल 30 नवंबर को आयोजित प्राइमरी राउंड के मुकाबले से बाहर हो गईं. 

भूटान के मतदाताओं के बीच सत्ता विरोधी राजनीतिक जागरूकता के ऊंचे स्तर के संकेत के तौर पर नेशनल असेंबली के तीसरे कार्यकाल की सत्ताधारी (ड्रूक न्यामड्रप शोगपा) और विपक्षी (ड्रूक फुएनसम शोगपा) – दोनों पार्टियां प्राइमरी में मुकाबले से बाहर हो गईं. PDP को भी 2018 की प्राइमरी में इसी हालात का सामना करना पड़ा था और वो सत्ताधारी पार्टी होते हुए भी मुकाबले से बाहर हो गई थी. हालांकि, BTP ने इतिहास रच दिया. भूटान के 15 साल के लोकतांत्रिक अनुभव में BTP सबसे नई पार्टी है जिसने अपनी स्थापना के महज़ एक साल के भीतर संसद में अपनी नुमाइंदगी दर्ज की. वो भी अतीत में कोई चुनाव हारे बिना. भूटान में पिछले चार संसदीय चुनावों में सात रजिस्टर्ड राजनीतिक पार्टियां शामिल हुई हैं. लेकिन इनमें से सिर्फ चार पार्टियां सत्ताधारी या विपक्षी पार्टी के तौर पर संसद तक पहुंचने में कामयाब हुई हैं. इनमें से दो ने अपनी मर्ज़ी से भूटान चुनाव आयोग (ECB) से अपना रजिस्ट्रेशन ख़त्म करा दिया. 

PDP के द्वारा चुनाव का फाइनल राउंड जीतना कोई हैरानी की बात नहीं है. प्राइमरी राउंड के नतीजों ने संकेत दिया कि पूर्व प्रधानमंत्री शेरिंग टोबगे के नेतृत्व वाली पार्टी देश के चुनावी नक्शे पर छा गई. 1,33,217 (या 42.53 प्रतिशत) वोट के साथ PDP 39 निर्वाचन क्षेत्रों में आगे रही. इस तरह PDP को मिले वोट मुकाबले में शामिल बाकी चार पार्टियों को मिले कुल वोट (1,79,945 या 57.46 प्रतिशत) के लगभग बराबर थे. लेकिन फाइनल राउंड के नतीजों से पता चलता है कि मुकाबला उतना आसान नहीं था जितना ज़्यादातर लोगों को लग रहा था. वैसे तो PDP को 30 सीटों पर जीत मिली लेकिन उसको लगभग 55 प्रतिशत वोट ही मिले. ये बताता है कि फाइनल राउंड से बाहर होने वाली तीन अन्य पार्टियों के समर्थकों के एक बड़े हिस्से ने BTP का समर्थन किया. BTP ने 17 सीटें जीती और उसे कुल वोट का 45 प्रतिशत मिला. कुल मिलाकर 3,26,775 लोगों ने मतदान किया.  

आंकड़े क्या कहते हैं? 

दोनों पार्टियों के द्वारा जीती गई सीटों पर नज़र डालें तो नतीजे 2018 के चुनाव की तरह ही थे जब ड्रूक न्यामड्रप शोगपा को 30 सीटों पर जीत मिली और ड्रूक फुएनसम शोगपा को 17 सीट मिली थी. लेकिन इस बार का वोटिंग पैटर्न ज़्यादा बंटवारे वाला है. छह पूर्वी ज़िलों के एक निर्वाचन क्षेत्र को छोड़कर बाकी 16 ने BTP को जिताया जो कि अब विपक्षी पार्टी है. वहीं सेंट्रल रीजन (मध्य क्षेत्र) के ट्रोंगसा ज़िले की एक सीट को छोड़कर पश्चिमी, दक्षिणी और मध्य क्षेत्र के मतदाताओं ने PDP का साथ दिया. अभी तक PDP इकलौती पार्टी है जिसने सरकार बनाने के लिए दूसरी बार जनादेश हासिल किया है. 

नेशनल असेंबली की संरचना का विश्लेषण करें तो भविष्य में राजनीतिक दलों को ये सुनिश्चित करने के लिए बहुत ज़्यादा काम करना होगा कि देश राजनीतिक आधार पर नहीं बंटे. किसी राष्ट्रीय मामले में क्षेत्रीय कार्ड खेलना असंवैधानिक है. हालांकि पिछले दो चुनावों के नतीजे को देखते हुए क्षेत्रीय आधार पर वोटिंग जारी रह सकती है. पश्चिम, पूर्व और दक्षिण के तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से दक्षिण ने पिछले चार चुनावों में किंगमेकर की भूमिका अदा की है क्योंकि हर बार इस क्षेत्र की 12 सीटों पर सत्ताधारी पार्टी ने जीत हासिल की है. भविष्य के चुनावों में भी दक्षिणी क्षेत्र चुनावी नतीजों को तय करेगा.  

इस चुनाव में BTP के पक्ष में जिस शक्तिशाली नैरेटिव का अनौपचारिक तौर पर प्रसार हुआ वो ये कि उसके अध्यक्ष, जो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे, देश के पूर्वी हिस्से से हैं. वो ट्राशिगंग जिले की कांगलुंग-उदज़ोरोंग-समखर सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. वोटिंग पैटर्न साफ तौर पर बताता है कि पूर्वी क्षेत्र के लोगों की इच्छा थी कि उनका कोई अपना सरकार का प्रमुख बने. लोगों की इच्छा इस दलील पर आधारित है कि पूर्वी क्षेत्र आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत पिछड़ा है. लोकतांत्रिक तौर पर निर्वाचित चार प्रधानमंत्रियों में से केवल पहले प्रधानमंत्री पूर्वी क्षेत्र से थे. बाकी प्रधानमंत्री पश्चिमी क्षेत्र से हैं. ऐसा लगता है कि भविष्य के चुनावों में भी पूर्वी क्षेत्र के लोगों के वोटिंग पैटर्न को ये दलील प्रभावित करती रहेगी, विशेष रूप से आर्थिक दृष्टिकोण से. 

नई सरकार को अपनी 70 प्रतिशत कोशिशें भूटान की अर्थव्यवस्था में फिर से जान डालने और उसे अधिक लचीली एवं इनोवेटिव बनाने के लिए करनी होगी. इससे कम कुछ भी PDP को महंगा पड़ेगा और उसकी भविष्य की चुनावी संभावनाओं को चुनौती मिलेगी. 

नई सरकार ने 28 जनवरी को शपथ ली. चाहे कोई भी पार्टी सत्ता में आए, दृष्टिकोण अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन देश के लोग जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं वो वही रहेंगे. भूटान अभी भी आर्थिक और सामाजिक भंवर में फंसा हुआ है. अर्थव्यवस्था को कोविड-19 महामारी के झटकों से उबरना अभी भी बाकी है. 28.6 प्रतिशत के साथ युवा बेरोज़गारी की दर नई ऊंचाई पर पहुंच गई है. आर्थिक विकास की दर मामूली है और महंगाई बढ़ रही है. पढ़े-लिखे काम-काजी लोगों का बड़े पैमाने पर बाहर जाना और उससे जुड़ी जनसांख्यिकीय (डेमोग्राफिक) चुनौतियां देश के सामने खड़ी हैं. इन गंभीर आर्थिक और सामाजिक अनिश्चितताओं का निपटारा करने के लिए एक धैर्यवान अनुभवी सरकार की ज़रूरत थी. उम्मीद की जाती है कि PDP वो राजनीतिक ताकत होगी. नई सरकार को अपनी 70 प्रतिशत कोशिशें भूटान की अर्थव्यवस्था में फिर से जान डालने और उसे अधिक लचीली एवं इनोवेटिव बनाने के लिए करनी होगी. इससे कम कुछ भी PDP को महंगा पड़ेगा और उसकी भविष्य की चुनावी संभावनाओं को चुनौती मिलेगी. 

चुनाव सुधारों की मांग 

भूटान उन देशों में है जहां सबसे कम मतदाता हैं. इस चुनाव में 4,97,058 योग्य रजिस्टर्ड वोटर थे जिनमें से 63 प्रतिशत ने मतदान किया. मतदाताओं की उदासीनता के संकेत के तौर पर इस चुनाव में सबसे कम वोटर मतदान केंद्रों तक पहुंचे जबकि 2008 में पहले आम चुनाव के दौरान 79.38 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया था. 2008 के बाद के दो आम चुनावों में क्रमश: 66.1 प्रतिशत और 71.46 प्रतिशत मतदान हुआ. एक-के-बाद-एक चुनावों में मतदाताओं की गिरती हिस्सेदारी के दो मतलब हो सकते हैं: मतदाताओं के बीच थकान हावी हो गई है और वोट देना एक महंगी ज़िम्मेदारी हो गई है क्योंकि ज़्यादातर पात्र मतदाता अपने वोटर रजिस्ट्रेशन के निर्वाचन क्षेत्र से बाहर रहते हैं और पोस्टल बैलट की सुविधा का लाभ उठाने के लिए सख्त मानदंड हैं (अगर पोस्टल बैलट की सुविधा नहीं मिलती है तो एक मतदाता को उस निर्वाचन क्षेत्र में जाना होगा जहां एक नागरिक के तौर पर उसका रजिस्ट्रेशन हुआ है). 

पहले चुनाव के बाद हर चुनाव में मतदान प्रतिशत में लगातार कमी के बीच 2018 ने इस रुझान को तोड़ा. इसका कारण भूटान चुनाव आयोग के द्वारा पोस्टल बैलट की सुविधा वाले मतदान केंद्रों को शुरू करने की पहल हो सकती है. इस सुविधा से बड़ी संख्या में लोगों को उस जगह से अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने की अनुमति मिली जहां वो रहते थे. लेकिन 2023-24 के चुनाव में ये सुविधा वापस ले ली गई. इसके अलावा छात्र के तौर पर रजिस्टर्ड मतदाताओं को छोड़कर अन्य मतदाता और उनके परिजन वोट नहीं डाल सकते थे, ख़ास तौर पर विदेश में रहने वाले मतदाता. ये मुद्दा गंभीरता से अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भूटान के लोग लगातार दूसरे देशों में पलायन कर रहे हैं विशेष रूप से ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और कनाडा. चूंकि ज़्यादा से ज़्यादा भूटानी नागरिक अपनी राजनीतिक हिस्सेदारी को लेकर उदासीन होते जा रहे हैं, ऐसे में ये लंबे समय में देश के प्रति उनके अपनापन और राष्ट्रीयता की भावना को निर्धारित कर सकती है. 

ऐसा लगता है कि भूटान का भविष्य और उसके लोकतंत्र की स्थिति आपस में जुड़ी हुई हैं. भूटान के चुनाव आयोग को चुनाव में लोगों की हिस्सेदारी के दायरे का विस्तार करने पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है. इस मक़सद से उसे मतदाताओं के लिए वोट डालने के उनके अपरिहार्य और संवैधानिक अधिकार को सुविधाजनक और आसान बनाना होगा.  

जो वोटर अपने रजिस्ट्रेशन की जगह से दूर रह रहे हैं, उनके लिए अपने निर्वाचन क्षेत्र को लेकर महत्व कम होता जा रहा है. इसका भविष्य में देश की चुनावी संरचना पर असर पड़ेगा क्योंकि ज़्यादा से ज़्यादा ग्रामीण लोग शहरी केंद्रों और उसके बाद दूसरे देशों की तरफ जा रहे हैं. इस हालात का जवाब देने के उद्देश्य से पोस्टल बैलट के लिए योग्यता की कसौटी पर फिर से विचार करना और पोस्टल बैलट की सुविधा वाले मतदान केंद्रों को फिर से बहाल करना व्यावहारिक है. ऐसा नहीं होने पर चुनावी नज़रिए से कहें तो 50 प्रतिशत पात्र मतदाताओं से कम के वोट से चुनी गई (रुझानों को देखते हुए इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता) किसी भी सरकार को लोकतांत्रिक भरोसे और वैधता के सवाल का सामना करना पड़ सकता है. देश के भीतर डाक मतपत्र की सुविधा वाले मतदान केंद्र मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी करेंगे और मतदाताओं को उनके होने और उनके वोट की राजनीतिक कीमत के बारे में गहरी समझ देंगे. ऐसा लगता है कि भूटान का भविष्य और उसके लोकतंत्र की स्थिति आपस में जुड़ी हुई हैं. भूटान के चुनाव आयोग को चुनाव में लोगों की हिस्सेदारी के दायरे का विस्तार करने पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है. इस मक़सद से उसे मतदाताओं के लिए वोट डालने के उनके अपरिहार्य और संवैधानिक अधिकार को सुविधाजनक और आसान बनाना होगा.  

निष्कर्ष 

घटता मतदान प्रतिशत, बहुत ज़्यादा सत्ता विरोधी लहर, वोटिंग पैटर्न में क्षेत्रीय बंटवारा भूटान के चौथे संसदीय चुनाव की कुछ बड़ी विशेषताएं थीं. हालांकि दुनिया के कई हिस्सों के चुनाव से हटकर भूटान में सत्ता का हस्तांतरण आसानी से हुआ. ये भूटान के चुनावों की ख़ासियत रही है. भविष्य के लिए पिछले कुछ वर्षों में चुनाव में लोगों की कम होती भागीदारी पर गंभीरता से ध्यान देने की ज़रूरत है. भूटान के चुनाव आयोग को पोस्टल बैलट की सुविधा वाले मतदान केंद्रों को बंद करने के फैसले पर फिर से विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि इस सुविधा की बहुत ज़्यादा मांग रही है. मतदाताओं की उदासीनता और पोस्टल बैलट की सुविधा हासिल करने के कड़े मानदंड का मेल लोकतंत्र और चुनाव के प्रति लोगों की उपेक्षा का कारण बनेंगे. इस तरह का नतीजा महंगा होगा क्योंकि भूटान के भविष्य और लोकतंत्र की संस्था के बीच मज़बूत संबंध हैं. भूटान को अर्थव्यवस्था, तकनीक, लोकतंत्र और सरकार के मामले में तेज़ी से बदलती दुनिया के साथ कदमताल मिलाना होगा और इसमें चुनाव की प्रक्रियाओं और सफलता की प्रमुख भूमिका होगी.   

पसांग दोरजी चीन और भारत के साथ भूटान और नेपाल के संबंधों पर एक स्कॉलर है. साथ ही वो भूटान की संसद के एक पूर्व सदस्य हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके हैं. 



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