Author : Nilanjan Ghosh

Expert Speak India Matters
Published on Feb 16, 2024 Updated 0 Hours ago

अंतरिम बजट संकेत देता है कि आर्थिक सोच सही दिशा में है, आने वाले समय में भारत में पूंजी से प्रेरित विकास होने की उम्मीद है.

अर्थव्यवस्था के कायापलट के लिए अंतरिम बजट

चुनावी साल में किसी भी सरकार के लिए अंतरिम बजट पेश करना विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों के द्वारा इसके विश्लेषण से संभवत: आसान है. ये बात इसलिए भी सही है क्योंकि अंतरिम बजट किसी भी सूरत में पूरे साल के लिए अर्थव्यवस्था की राह तय नहीं करता है बल्कि इसको “अस्थायी” इंतज़ाम की तरह समझना चाहिए जो सरकार बनी रहने पर या तो अतीत की नीतियों के जारी रहने या योजनाओं की व्यापक रूप-रेखा के बारे में बताता है. चुनावी साल में “लोक-लुभावने वादे” अक्सर किसी अंतरिम बजट की पहचान बन जाते हैं जिसकी व्याख्या आसानी से की जा सकती है. इस तरह किसी मौजूदा सरकार के लिए चुनावी साल में एक अंतरिम बजट की कसौटी अच्छी तरह से तैयार रहती है. 

भारत अगले तीन वर्षों में सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने वाला है. कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले कुछ वर्षों के दौरान बहुत बड़े बदलाव के दौर से गुज़री है और ये अभी भी बदल रही है. 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऊपर बताई गई सभी कसौटियों से सीख ली है. इस प्रक्रिया में बजट में ऐसी कोई भी चीज़ नहीं है जो नाटकीय हो या अतीत के रुझानों से कोई बड़ा बदलाव हो. वैसे भी मौजूदा भू-राजनीतिक और वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए इसकी ज़रूरत भी नहीं है. बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे अच्छा प्रदर्शन कर रही है. स्टैंडर्ड एंड पुअर के ग्लोबल क्रेडिट आउटलुक 2024 के अनुसार 2030 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने के लिए तैयार है. भारतीय अर्थव्यवस्था की अनुमानित GDP 2023 के 6.4 प्रतिशत की तुलना में 2026 तक 7 प्रतिशत होने की उम्मीद है. अगर ये सही है तो भारत अगले तीन वर्षों में सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने वाला है. कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले कुछ वर्षों के दौरान बहुत बड़े बदलाव के दौर से गुज़री है और ये अभी भी बदल रही है. 

इस तरह मौजूदा समय में वित्त मंत्री को बस इतना करना है कि विकास के पैरामीटर के साथ हस्तक्षेप नहीं करें जो नीति बनाने या व्यवस्थित रूप से उभर कर सामने आया है और अर्थव्यवस्था को सामूहिक समृद्धि के घोषित लक्ष्य की तरफ ले जा रहा है. सामूहिक समृद्धि का दृष्टिकोण इस सरकार का प्रमुख मंत्र रहा है और ये “सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास” के नारे में सही ढंग से बताया गया है. इस नारे की गूंज अंतरिम बजट में भी सुनाई दी है. 

पिछले कुछ बजट के दौरान सरकार ने एक चीज़ पूरी तरह से साफ की है: विकास के दृष्टिकोण में भले ही “वृद्धि” केंद्र में बनी हुई है लेकिन ये हर किसी के लिए न्याय और स्थिरता की कीमत पर नहीं है. बल्कि कुछ मामलों में पिछले कुछ बजट ये एहसास दिलाते हैं कि सरकार लगातार मानवीय पूंजी और प्राकृतिक पूंजी से प्रेरित विकास के बारे में सोच रही है और इसे बनाए रखा जाना चाहिए. बजट भाषण में वित्त मंत्री ने ज़ोर देकर कहा: “हमारे विकास के दर्शन में समावेशिता के सभी तत्व शामिल हैं जैसे कि समाज के सभी वर्गों को शामिल करके सामाजिक समावेशिता और देश के सभी क्षेत्रों के विकास के माध्यम से भौगोलिक समावेशिता.” ये इस सरकार का एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है जो क्षेत्रीय विकास और सामाजिक गतिशीलता के ज़रिए सामाजिक पूंजी के विकास पर ज़ोर देता है.  

इस तरह अंतरिम बजट “समावेशी धन” वाले नज़रिए की बुनियाद बातों पर कायम है यानी अपने सभी चार पैरामीटर- भौतिक पूंजी, प्राकृतिक पूंजी, सामाजिक पूंजी और मानवीय पूंजी- पर ध्यान केंद्रित करना. भौतिक पूंजी के मोर्चे पर भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले चार वर्षों से तेज़ी से आगे बढ़ रही है. इस दौरान कनेक्टिविटी और परिसंपत्ति के निर्माण (एसेट क्रिएशन) के लिए भौतिक पूंजी के विकास पर पूंजीगत खर्च (कैपेक्स) को तीन गुना किया गया है. अंतरिम बजट में अगले साल के लिए खर्च में 11.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जा रही है जो GDP के 3.4 प्रतिशत के बराबर है. ये ध्यान देने की बात है कि अलग-अलग परिदृश्यों के तहत कैपेक्स का गुणक प्रभाव (मल्टीप्लायर इफेक्ट) राजस्व खर्च के गुणक प्रभाव की तुलना में 1.5-3 गुना अधिक होने का अनुमान लगाया गया है. रेलवे, मेट्रो, इत्यादि के मामले में कनेक्टिविटी की पहल के संकेतों के अलावा ये महत्वपूर्ण है कि कैपेक्स आम तौर पर कारोबार की लेन-देन की लागत को कम करता है और व्यापार के लिए अच्छे माहौल को बढ़ाता है. दूसरी तरफ सामाजिक पूंजी को “सबका साथ” के व्यापक दृष्टिकोण में शामिल किया गया है. इस तरह विकास की प्रक्रिया में ग़रीबों को सशक्त साझेदार के तौर पर जोड़ा गया है. ये सामाजिक न्याय और बराबरी की चिंताओं को सामने लाता है जो कि पीएम जन धन खातों का उपयोग करके डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की योजनाओं में व्यक्त किया गया है. वहीं लगता है कि मानवीय पूंजी के महत्वपूर्ण तत्व युवाओं एवं महिलाओं को हुनरमंद बनाने, उनके सशक्तिकरण और उद्यमशीलता में जुड़े हुए हैं. प्राकृतिक पूंजी के पेचीदा हिस्से का समाधान हरित विकास की चिंताओं यानी EV (इलेक्ट्रिक व्हीकल) इकोसिस्टम को प्रोत्साहन, बायो-मैन्युफैक्चरिंग एवं बायो-फाउंड्री और सबसे महत्वपूर्ण ब्लू इकोनॉमी के माध्यम से किया गया है. 

ज़्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि प्रचुर एवं सस्ती मानवीय पूंजी और प्राकृतिक पूंजी उत्पादन की लागत कम कर सकती है, कार्यकुशलता बढ़ा सकती है और अपेक्षाकृत रूप से भारत के समृद्ध पश्चिमी एवं दक्षिणी हिस्से की बढ़ती ख़पत की मांग को पूरा कर सकती है.

समानता और कार्यक्षमता के कारक के तौर पर क्षेत्रीय विकास

बजट भाषण में कहा गया है: “हमारे विकास के दर्शन में समावेशिता के सभी तत्व शामिल हैं जैसे कि 

  • समाज के सभी वर्गों को शामिल करके सामाजिक समावेशिता और 

  • देश के सभी क्षेत्रों के विकास के माध्यम से भौगोलिक समावेशिता.”

पहला हिस्सा यानी ‘सामाजिक समावेशिता’ पूरी तरह से हर वर्ग के लिए न्याय की चिंता है. दूसरा हिस्सा यानी ‘भौगोलिक समावेशिता’ बराबरी और कार्यकुशलता- दोनों चिंताओं का समाधान करता है. कार्यकुशलता की चिंता इस तथ्य से पैदा होती है कि बजट भाषण देश के पूर्वी भाग के विकास की बात करता है- क्षेत्रीय विकास समानता के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है लेकिन यहां ये और ज़्यादा अहम है क्योंकि पूर्वी क्षेत्र समृद्ध प्राकृतिक पूंजी से भरपूर है और वहां सस्ती मानवीय पूंजी का एक बड़ा भंडार है. इन कारणों से पूर्वी क्षेत्र अर्थव्यवस्था के विकास का समर्थन करने के लिए एक आदर्श आंतरिक इलाका है. इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण बात ये है कि प्रचुर एवं सस्ती मानवीय पूंजी और प्राकृतिक पूंजी उत्पादन की लागत कम कर सकती है, कार्यकुशलता बढ़ा सकती है और अपेक्षाकृत रूप से भारत के समृद्ध पश्चिमी एवं दक्षिणी हिस्से की बढ़ती ख़पत की मांग को पूरा कर सकती है. इसके अलावा ये भारत को दुनिया के कारोबार की चीन+1 रणनीति के परिदृश्य में अपने प्रतिस्पर्धी लाभ का अधिक प्रमुखता से इस्तेमाल करने में भी मदद कर सकती है. 

खपत, बचत और निवेश

अंतरिम बजट में कर संरचना (टैक्स स्ट्रक्चर) में कोई बदलाव नहीं किया गया है जो कि तार्किक तौर पर सही है. मार्च 2024 के अंत तक खत्म होने वाले कर लाभ (टैक्स बेनिफिट) को मार्च 2025 तक बढ़ा दिया गया है. इनमें स्टार्ट-अप्स को मिलने वाले लाभ, सॉवरेन वेल्थ या पेंशन फंड के निवेश और कुछ IFSC (इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विसेज़ सेंटर) इकाइयों की विशेष आय पर मिलने वाली छूट शामिल हैं. इसके अलावा वित्तीय वर्ष 2009-10 तक की अवधि के लिए 25,000 रुपये तक और वित्तीय वर्ष 2010-11 से 2014-15 के बीच 10,000 रुपये तक की विवादित प्रत्यक्ष कर मांग को वापस ले लिया गया है. ये कदम ईमानदार करदाताओं की अनावश्यक परेशानियों को कम करने और अनुपालन (कम्प्लायन्स) की लागत को घटाने में मदद करेंगे. 

हालांकि लंबे समय में ये ध्यान में रखना चाहिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने अभी तक अधिकतर खपत से प्रेरित विकास का सामना किया है, लेकिन निवेश को बढ़ावा देने के लिए निजी बचत को इकट्ठा करने की सख़्त ज़रूरत है. अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के समय से केवल ख़पत ही विकास को बढ़ावा देती रही है जो अर्थव्यवस्था के लिए ठीक संकेत नहीं है. ख़पत के साथ-साथ घरेलू निजी निवेश और FDI को भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की बहुत ज़रूरत है. इसलिए कर को युक्तिसंगत बनाने (टैक्स रेशनलाइज़ेशन) और GST को लागू करने, उन्हें मज़बूत बनाने और उनका व्यापक आधार तैयार करने के काम ने जहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वहीं बचत के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता है. इसलिए पीएम जन धन योजना ग़रीबों की बचत के मक़सद में मदद तो कर रही है लेकिन ये याद रखने की भी आवश्यकता है कि बचत की प्रवृत्ति खर्च करने योग्य आमदनी और बचत की दर में वृद्धि से बढ़ती है. भविष्य के भारत को एक बहुआयामी विकास की रणनीति की आवश्यकता होगी.

आने वाले समय में भारत में पूंजी से प्रेरित विकास होने की उम्मीद है. पूंजी का मतलब चार तरह की पूंजी है: मानवीय, प्राकृतिक, सामाजिक और भौतिक और इनमें से किसी भी पूंजी की जगह कोई दूसरी पूंजी नहीं ले सकती है.

आखिर में

इस अंतरिम बजट को दो बिंदुओं के माध्यम से संक्षेप में बताया जा सकता है. पहला, ये पिछले कई वर्षों से जो चल रहा है उसको जारी रखना है लेकिन वित्तीय मज़बूती की दिशा में एक प्रयास के साथ. कोविड-19 के झटके की वजह से वित्तीय घाटे में अचानक बढ़ोतरी को देखते हुए समय के साथ राजकोषीय मज़बूती एक ज़रूरी कदम है. इस बजट में 2024-25 के दौरान 5.1 प्रतिशत के वित्तीय घाटे का अनुमान किया गया है. इस तरह ये संकेत दिया गया है कि अर्थव्यवस्था वित्तीय घाटे को 4.5 प्रतिशत से कम करने की राह पर अच्छी तरह चल रही है. दूसरा, अंतरिम बजट इस बात का इशारा है कि अगर मौजूदा सरकार फिर से सत्ता में आती है तो भविष्य में क्या होने वाला है. अमृत काल में हासिल करने के लिए उसके कुछ दीर्घकालीन लक्ष्य हैं और इसलिए छोटी सफलताओं को प्राप्त करने की आवश्यकता है. उसे विकसित भारत के लिए अलग-अलग क्षेत्रों के विकास की अहमियत का पता है.

बाकी आप निश्चिंत रहिए कि इस बजट के पीछे आर्थिक सोच सही दिशा में है. आने वाले समय में भारत में पूंजी से प्रेरित विकास होने की उम्मीद है. पूंजी का मतलब चार तरह की पूंजी है: मानवीय, प्राकृतिक, सामाजिक और भौतिक और इनमें से किसी भी पूंजी की जगह कोई दूसरी पूंजी नहीं ले सकती है.

नीलांजन घोष ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डायरेक्टर हैं.

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