21 जुलाई को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एडमिरल लिसा फ्रैंचेटी को US चीफ ऑफ नेवल स्टाफ के तौर पर काम करने के लिए नियुक्त किया. नियुक्ति के समय नेवल ऑपरेशंस की उप प्रमुख के तौर पर काम करने वाली एडमिरल फ्रैंचेटी का करियर 38 वर्षों का है और अमेरिकी सशस्त्र बलों में महिलाओं की मौजूदगी को दिखाता है. 1985 में कमीशन हासिल करके एडमिरल फ्रैंचेटी ने उस वक्त नौसेना को ज्वाइन किया जब महिलाओं को कुछ नॉन-कॉम्बैट (गैर-युद्ध) भूमिकाओं में शामिल होने की इजाजत थी. जल्द ही अमेरिकी कांग्रेस ने नौसेना में सतही लड़ाकू जहाज़ों और युद्धक विमानों में महिलाओं के काम करने के बारे में विरोध को छोड़ दिया. एडमिरल फ्रैंचेटी ने कई डेस्ट्रॉयर पर भी काम किया, फिर USS रॉस और बाद में एक स्क्वॉड्रन का नेतृत्व किया. एडमिरल के तौर पर उन्होंने दो अलग-अलग एयरक्राफ्ट करियर स्ट्राइक ग्रुप, भूमध्य सागर में अमेरिका के छठे बेड़े (फ्लीट) की कमान संभाली. नौसेना की उप प्रमुख बनने से पहले उन्होंने ज्वाइंट स्टाफ में रणनीति, योजना और नीति की निदेशक के तौर पर काम किया था. राष्ट्रपति बाइडेन की तरफ से नौसेना प्रमुख के तौर पर उनके नाम का एलान करने से पहले इस कामयाब करियर पर नज़र डाली गई जो ऑपरेशन और पॉलिसी- दोनों ही क्षेत्रों में उनके अनुभव को उजागर करता है.
नियुक्ति के समय नेवल ऑपरेशंस की उप प्रमुख के तौर पर काम करने वाली एडमिरल फ्रैंचेटी का करियर 38 वर्षों का है और अमेरिकी सशस्त्र बलों में महिलाओं की मौजूदगी को दिखाता है.
सीनेट की मंज़ूरी मिलने के बाद वो अमेरिकी नौसेना का नेतृत्व करने वाली पहली महिला होने के साथ-साथ ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ में स्थायी सदस्य के तौर पर काम करने वाली पहली महिला बना जाएंगी. हालांकि, एडमिरल फ्रैंचेटी अमेरिकी सशस्त्र बलों की किसी ब्रांच का नेतृत्व करने वाली पहली महिला नहीं हैं. ये रिकॉर्ड एडमिरल लिंडा एल. फागन के नाम है जो कोस्ट गार्ड (अमेरिकी कोस्ट गार्ड ज्वाइंट चीफ नहीं बल्कि होमलैंड सुरक्षा के तहत आती है) की कमांडेंट हैं. वैसे तो महिलाओं ने राजनीतिक नियुक्तियों के ज़रिये मिलिट्री सर्विस सेक्रेटरी के तौर पर काम किया है लेकिन एडमिरल फागन से पहले किसी भी महिला ने यूनिफॉर्म में टॉप ऑफिसर के तौर पर और एडमिरल फ्रैंचेटी से पहले ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ की स्थायी सदस्य के रूप में काम नहीं किया था.
पुरुष प्रधान रोड़ा
लेकिन एडमिरल फ्रैंचेटी और सेना के इतिहास के बीच निस्संदेह एक पुरुष प्रधान रोड़ा है. सीनेट और विशेष रूप से अलाबामा के एक रिपबल्किन सीनेटर टॉमी ट्यूबरविले ने अमेरिकी रक्षा विभाग की तरफ से पिछले दिनों जारी अबॉर्शन (गर्भपात) नीति को लेकर 270 से ज़्यादा सैन्य प्रमोशन को रोक रखा है. अबॉर्शन नीति में सेना के सदस्यों और उन पर निर्भर महिलाओं को अबॉर्शन के लिए प्रांत से बाहर जाने पर अतिरिक्त सहायता का प्रावधान किया गया है. अमेरिकी सीनेट- जो कि सर्वसम्मत सहमति की धारणा पर आधारित है और जो ज़्यादातर मामलों में पार्टी के नेताओं के द्वारा तय किये गये समझौतों पर भरोसा करती है- में सीनेटर ट्यूबरविले का अकेला ‘ना’ बाकी सीनेटर की ‘हां’ पर भारी पड़ गया है. इस कार्यवाही की वजह से 260 सीनियर अधिकारियों की मंज़ूरी (कन्फर्मेशन) रुक गई है और इस बात का डर बना हुआ है कि साल के अंत तक ये संख्या बढ़कर 650 तक जा सकती है. एडमिरल फ्रैंचेटी उन अधिकारियों की सूची में शामिल हो गई हैं जो कन्फर्मेशन का इंतज़ार कर रहे हैं. इनमें ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के चेयरमैन और US मरीन कॉर्प्स के कमांडेंट (पिछली बार 100 साल से भी पहले कॉर्प्स बिना कमांडेंट के थी) शामिल हैं. अमेरिकी आर्मी के मौजूदा चीफ के रिटायर होने पर नये चीफ ऑफ स्टाफ भी एडमिरल फ्रैंचेटी के बाद इस लिस्ट में शामिल हो जाएंगे.
सेना में महिलाएं
वैश्विक स्तर पर महिलाओं के लिए आम तौर पर सेना और विशेष रूप से नौसेना में काम करने का अवसर धीरे-धीरे बढ़ रहा है. कुछ देशों की सेनाओं में महिलाएं निर्णय लेने वाले सर्वोच्च पदों तक पहुंच चुकी हैं जबकि अतीत में वो सहायता पहुंचाने वाली, मेडिकल और प्रशासनिक भूमिकाओं तक ही सीमित थीं. अमेरिकी सेना के सबसे बड़े पद तक एक महिला का पहुंचना बेशक सेना में महिलाओं की बढ़ती नुमाइंदगी को दिखाता है. अमेरिकी रक्षा विभाग के 2022 के एक आंकड़े में इस बात को उजागर किया गया है कि कुल मिलाकर हर छह एक्टिव-ड्यूटी सर्विस मेंबर में से एक महिला है.
स्रोत: अमेरिका का रक्षा विभाग
इसी तरह का रुझान भारत में देखा जा सकता है, ख़ास तौर पर पिछले कुछ वर्षों के दौरान जब देश ने इस दिशा में काफ़ी तरक्की देखी है. भारत के सुप्रीम कोर्ट के फरवरी 2020 के फैसले, जिसने भारतीय सशस्त्र बलों में लैंगिक तौर पर तटस्थ (जेंडर न्यूट्रल) सेवा के नियमों और शर्तों को लागू किया, को एक निर्णायक घटना के तौर पर देखा जाता है जिसने आर्म्ड फोर्सेज़ में लैंगिक समावेशी (जेंडर इन्क्लूज़िव) विमर्श (नैरेटिव) को बदल दिया. ये फैसला महिलाओं को स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद सेना में शामिल होने की अनुमति देता है, उनके लिए बड़े पदों एवं परमानेंट कमीशन की राह खोलता है और लड़ाई के मैदान में समान अवसर मुहैया कराता है. इस वक्त भारतीय थलसेना की अलग-अलग रैंक और पोज़िशन में 7,093 महिलाएं हैं, भारतीय नौसेना में मेडिकल एवं डेंटल ऑफिसर समेत 748 महिलाएं हैं और भारतीय वायु सेना में 1,636 महिला अधिकारी (मेडिकल एवं डेंटल ब्रांच को छोड़कर) हैं.
भारतीय सशस्त्र बलों को समानता के साथ जेंडर न्यूट्रल बनाने की प्रक्रिया अभी भी चल रही है लेकिन ये बिना किसी संदेह के स्वागतयोग्य कदम है.
महिला अधिकारियों की संख्या और उनके द्वारा अपनाई जाने वाली भूमिका- दोनों ही मामलों में सुधार हुआ है. उदाहरण के लिए, कुछ साल पहले तक ये असंभव माना जाता था कि महिला अधिकारी नेशनल डिफेंस एकेडमी (भारत की प्रमुख सैन्य एकेडमी जिसने 27 चीफ ऑफ स्टाफ और कई बहादुरी पुरस्कार विजेता दिये हैं) में पढ़ाई कर सकती हैं. इस साल जनवरी में महिला अधिकारियों ने भारतीय थलसेना में कमान संभालने की भूमिकाएं हासिल कीं. इस तरह वो यूनिट एवं टुकड़ी की कमान संभालने के योग्य बन गई हैं और ये अधिक बड़ी भूमिका के रास्ते में अगला कदम बन गया है. भारतीय सशस्त्र बलों को समानता के साथ जेंडर न्यूट्रल बनाने की प्रक्रिया अभी भी चल रही है लेकिन ये बिना किसी संदेह के स्वागतयोग्य कदम है.
निष्कर्ष
एडमिरल फ्रैंचेटी को यूएस नेवी के सर्वोच्च पद पर नियुक्त करके बाइडेन प्रशासन ने अधिक विविधतापूर्ण और सामाजिक रूप से प्रतिनिधित्व करने वाली अमेरिकी सेना को बढ़ावा देना जारी रखा है. लेकिन सीनेट की रोक हमें एक चीज़ के बारे में महत्वपूर्ण रूप से याद दिलाती है कि एक वास्तविक तौर पर समावेशी सेना बनाने के लिए केवल बड़े पदों पर महिलाओं का होना अहम नहीं है बल्कि मददगार नीतियों एवं उपायों के माध्यम से उन व्यवस्थाओं का समर्थन करना ज़रूरी है जो सेना में महिलाओं के प्रवेश, उन्हें बनाये रखने और महत्वपूर्ण पदों तक उनके पहुंचने की अनुमति देती हैं. ऐसा किए बिना लीडरशिप की भूमिका सेना में महज़ सांकेतिक खोखला पैमाना बनकर रह जाएगी.
सितारा श्रीनिवास ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में जूनियर फेलो हैं.
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