Author : Harsh V. Pant

Published on Apr 09, 2020 Updated 0 Hours ago

दुनिया को पता है कि अमेरिका पहले से ही बाक़ी दुनिया से अलग-थलग चलने की नीति पर अमल कर रहा है. और कोरोना वायरस के संकट के समय अमेरिका का ये अलग-थलग होने का प्रयास और भी स्पष्ट होकर दुनिया के सामने आ गया है. ऐसे में विश्व व्यवस्था के साथ अमेरिका का संबंध भी आज दोराहे पर खड़ा है.

कोविड-19 वैश्विक नेतृत्व के दोराहे पर खड़ा है अमेरिका

इस वक़्त दुनिया कोरोना वायरस की भयंकर महामारी के बेहद बुरे दौर से गुज़र रही है. हर दिन ये महामारी एक नया बुरा पड़ाव पार करती है. इस दौरान पूरी दुनिया की परिचर्चा और बहस के केंद्र में इस महामारी से निपटने में चीन का रवैया रहा है. इस महामारी का प्रकोप शुरू होने के शुरुआती दिनों में चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने जिस तरह बेहद अपारदर्शी तरीक़े से इस संकट से निपटने का प्रयास किया. इस महामारी को लेकर चेतावनी जारी करने वालों का मुंह बंद करने में सख़्ती की. इस महामारी के बारे में जानकारी को कूटनीतिक अस्त्र के तौर पर इस्तेमाल किया. और फिर वायरस के प्रकोप से उबरने के बाद चीन जिस तरह मुश्किल में फंसे तमाम देशों को मदद पहुंचा कर अपनी दुनिया के मसीहा वाली छवि गढ़ने का प्रयास कर रहा है. उसे लेकर पूरी दुनिया में ज़बरदस्त बहस छिड़ी हुई है. इसकी वजह तो साफ़ ही है. इस वक़्त दुनिया जिस संकट के दौर से गुज़र रही है, उसमें विश्व व्यवस्था के अस्तित्व का भविष्य दांव पर लगा हुआ है. और हम साफ़ तौर पर देख पा रहे हैं कि इस क़यामत के वक़्त एक देश दुनिया पर अपना प्रभुत्व बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, ताकि भविष्य में ख़ुद को एक महाशक्ति के तौर पर पेश कर सके.

लेकिन, ये परिचर्चाएं उस वक़्त हो रही हैं, जब दूसरी तरफ़ दुनिया की इकलौती महाशक्ति और इसका राजनीतिक नेतृत्व, इस वायरस की महामारी से पैदा हुए अपने घरेलू संकट तक से निपटने में बुरी तरह से निष्फल रहा है. साथ ही साथ एक सुपरपावर के तौर पर अमेरिका, दुनिया को इस संकट से उबरने में कोई मदद करने में भी असफल साबित हुआ है. अमेरिका को अबतक एक ऐसे देश के तौर पर देखा जाता था, जिसके पास दुनिया के हर संकट के समाधान के लिए कोई न कोई नुस्खा होता था. लेकिन, दूसरे विश्व युद्ध के बाद इस वायरस की महामारी के तौर पर दुनिया के सामने अबतक का सबसे बड़ा संकट खड़ा है और अमेरिका इसका कोई समाधान उपलब्ध कराने में बुरी तरह से नाकाम साबित हो रहा है. इस महासंकट के दौरान अमेरिका एक ऐसे देश के तौर पर सामने आया है, जिसकी क्षमता भले ही कम न हुई है, मगर जिसकी विश्वसनीयता को भारी आघात पहुंचा है. क्योंकि वो इस अथाह संकट के समय दुनिया को नेतृत्व देने में नाकाम रहा. इसके उलट, अमेरिका इस वक़्त, चीन और इटली को बहुत पीछे छोड़ कर दुनिया भर में कोरोना वायरस के प्रकोप का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है. जबकि अभी भी अमेरिका इस महामारी के शीर्ष तक पहुंचने से शायद कई महीने दूर है

ट्रंप प्रशासन की लापरवाही कोरोना वायरस का प्रकोप शुरू होने के साथ ही उजागर होने लगी थी. जब अमेरिका में वायरस के संक्रमण के कुछ मामले सामने आए थे, तब भी अमेरिकी सरकार ने इस संकट से निपटने में कोई सजगता नहीं दिखाई

अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व को उनकी उपस्थिति के बजाय अनुपस्थिति से अधिक परिभाषित किया जा सकता है. कई हफ़्तों तक उन्होंने इस महामारी को उतनी गंभीरता से नहीं लिया, जितनी शिद्दत से लेना चाहिए था. सच तो ये है कि कुछ दिनों पहले तक ट्रंप ये कह रहे थे कि अमेरिका में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या फ्लू या सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाने वाले लोगों की संख्या से भी कम हैं. ट्रंप ने कहा था कि, ‘हम हर साल फ्लू के चलते हज़ारों लोगों की जान गंवाते हैं.’ ऐसा तर्क देते हुए असल में ट्रंप अपने देशवासियों को ये समझाने की कोशिश कर रहे थे कि अमेरिका को लॉकडाउन लगाने की ज़रूरत नहीं है. ट्रंप ने कहा कि, ‘हम अपने देश को कभी नहीं बंद करते.’ हक़ीक़त में तो ट्रंप को ये उम्मीद थी कि इस हफ़्ते ईस्टर की छुट्टियों तक उनके देश में कारोबार सामान्य रूप से शुरू हो जाएगा.

ट्रंप प्रशासन की लापरवाही कोरोना वायरस का प्रकोप शुरू होने के साथ ही उजागर होने लगी थी. जब अमेरिका में वायरस के संक्रमण के कुछ मामले सामने आए थे, तब भी अमेरिकी सरकार ने इस संकट से निपटने में कोई सजगता नहीं दिखाई. बल्कि ट्रंप सरकार के कई अधिकारियों ने ये कहा कि हालात पूरी तरह से नियंत्रण में हैं और गर्मियों में ये वायरस किसी चमत्कार की तरह छू मंतर हो जाएगा. जब दुनिया में इस महामारी का प्रकोप बढ़ रहा था, तब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ट्विटर पर डेमोक्रेटिक पार्टी के शासन वाले राज्यों के गवर्नरों के साथ तुच्छ क़िस्म के झगड़ों में व्यस्त थे. क्योंकि डेमोक्रेटिक पार्टी के गवर्नर, राष्ट्रपति से मांग कर रहे थे कि संघीय सरकार इस महामारी को गंभीरता से ले और अधिक सख़्त प्रतिबंध लगाए. और जब वायरस के प्रकोप से अमेरिका के हालात बिगड़ने लगे, तब अमेरिका की घरेलू क्षमताओं की कमियां साफ़ तौर पर परिलक्षित होने लगीं. अस्पतालों के पास पर्याप्त स्वास्थ्य संसाधन नहीं थे. वायरस के संक्रमण की टेस्टिंग के लिए पर्याप्त किट उपलब्ध नहीं थीं.

अमेरिकी संसद के निचले सदन यानी हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ने घोषणा की है कि वो एक नई कमेटी बनाने जा रही हैं, जो इस महामारी से निपटने में संघीय सरकार के तमाम क़दमों की समीक्षा करेंगी

अब अमेरिका के सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े अधिकारी ये आशंका जता रहे हैं कि नए कोरोना वायरस के कारण अमेरिका में एक लाख से दो लाख लोगों की जान जा सकती है. ये भयंकर सच्चाई ट्रंप को पिछले हफ़्ते जा कर समझ में आई. जब उन्होंने अमेरिका में अपनी सरकार की सबसे बुरी स्थिति का आकलन बताते हुए कहा कि, ‘मैं चाहता हूं कि हर अमेरिकी नागरिक आने वाले मुश्किल दिनों के लिए तैयार रहे. हमारे लिए आने वाले दो हफ़्ते बेहद दर्दनाक होने जा रहे हैं.’

अमेरिकी संसद कोरोना वायरस से हुई आर्थिक क्षति की भरपाई के लिए 2 ख़रब डॉलर के पैकेज को मंज़ूरी दे दी है. ये अमेरिका के इतिहास का सबसे बड़ा आर्थिक राहत पैकेज है. जिसकी मदद से इस महामारी से तबाह हुई अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने का प्रयास होगा. इस आर्थिक पैकेज को पास करने में अमेरिकी संसद में जिस तरह से दोनों दलों, रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच तालमेल देखने को मिला, वैसा सहयोग शायद हम मूलभूत ढांचे के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने वाले विधेयक और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में जनता को और मदद देने के मोर्चे पर भी दिखे. लेकिन, दोनों ही पार्टियों के बीच तनाव बिल्कुल स्पष्ट है. अमेरिकी संसद के निचले सदन यानी हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ने घोषणा की है कि वो एक नई कमेटी बनाने जा रही हैं, जो इस महामारी से निपटने में संघीय सरकार के तमाम क़दमों की समीक्षा करेंगी. नैंसी पेलोसी ने इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया है कि जिसतरह 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमले के बाद जांच आयोग बना था, वैसा आयोग इस महामारी से निपटने के सरकार के प्रयासों की जांच के लिए भी बने. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नैंसी पेलोसी के इस एलान को राजनीतिक प्रतिशोध से भरी हुई घोषणा बताया और सदन की स्पीकर विभाजनकारी राजनीति कर रही हैं.

इस संकट से निपटने की अमेरिका की नीतियों में राजनीतिक विद्वेष का भी योगदान होगा, इसकी उम्मीद तो पहले से ही थी. इसकी वजह भी साफ़ है. अमेरिका में इसी साल राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. डेमोक्रेटिक पार्टी और डोनाल्ड ट्रंप, दोनों ने इस चुनाव में बड़े दांव लगाए हुए हैं. हाल के ओपिनियन पोल ये इशारा कर रहे हैं रिपब्लिकन पार्टी के 94 प्रतिशत समर्थक, इस महामारी से निपटने के राष्ट्रपति ट्रंप के तौर तरीक़ों का समर्थन करते हैं. जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी के केवल 27 प्रतिशत समर्थक, ट्रंप के साथ खड़े हैं. इस संकट के समय डोनाल्ड ट्रंप की लोकप्रियता की रेटिंग 49 प्रतिशत है. जो उनके अपने पैमानों के हिसाब से तो बहुत ही अच्छी है. ख़ास तौर से तब और जब अमेरिका का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह से ध्रुवीकरण का शिकार हो. ऐसे में अगले कुछ महीनों में जैसे जैसे कोरोना वायरस का संकट बढ़ेगा, तब ट्रंप का इस संकट से निपटने के तौर तरीक़ों का नवंबर में होने जा रहे राष्ट्रपति चुनावों पर व्यापक असर होगा.

अपनी तमाम कमज़ोरियों के बावजूद चीन ने वैश्विक नेतृत्व का एक ऐसा वैकल्पिक मॉडल दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है, जो विश्व के बहुत से देशों के लिए आकर्षक हो सकता है. ख़ासतौर से तब और जब ख़ुद को दुनिया के अगुवा के तौर पर प्रस्तुत करने का अमेरिका का दावा लगातार कमज़ोर होता जा रहा है

और जहां तक बाक़ी दुनिया की बात है, तो अमेरिका के वैश्विक नेतृत्व पर उठने वाले सवाल दिनों दिन गंभीर होते जा रहे हैं. अपनी तमाम कमज़ोरियों के बावजूद चीन ने वैश्विक नेतृत्व का एक ऐसा वैकल्पिक मॉडल दुनिया के सामने प्रस्तुत किया है, जो विश्व के बहुत से देशों के लिए आकर्षक हो सकता है. ख़ासतौर से तब और जब ख़ुद को दुनिया के अगुवा के तौर पर प्रस्तुत करने का अमेरिका का दावा लगातार कमज़ोर होता जा रहा है. इस संकट के समय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने क़रीबी सहयोगी देशों जैसे कि जर्मनी और फ्रांस को जाने वाली मेडिकल आपूर्ति को ज़्यादा क़ीमत देकर उन देशों में जाने से रोक रहे हैं और संघर्ष को बढ़ावा दे रहे हैं. इसी तरह, ट्रंप ने कनाडा और लैटिन अमेरिका को अस्पतालों में इस्तेमाल होने वाले N-95 मास्क की आपूर्ति करने वाली कंपनियों पर दबाव बना कर उनका निर्यात रुकवा दिया. इससे अमेरिका और उसके पुराने सहयोगी देशों के बीच तनाव बढ़ा है. इस मुश्किल वक़्त में दुनिया में बहुत कम देश ऐसे हैं जो अमेरिका से ये अपील कर रहे हैं कि वो इस संकट के समय विश्व को एक नेतृत्व दे और इस महामारी के संकट से उबारे. ये हालात अमेरिका के नीति नियंताओं के लिए चिंता पैदा करने वाले होने चाहिए. आज अमेरिका से दुनिया को इतनी कम उम्मीद है कि अमेरिका के पुराने नज़दीकी सहयोगी देश भी इस संकट के समाधान के लिए उसके साथ तालमेल बनाकर काम नहीं कर रहे हैं. दुनिया को पता है कि अमेरिका पहले से ही बाक़ी दुनिया से अलग-थलग चलने की नीति पर अमल कर रहा है. और कोरोना वायरस के संकट के समय अमेरिका का ये अलग-थलग होने का प्रयास और भी स्पष्ट होकर दुनिया के सामने आ गया है. ऐसे में विश्व व्यवस्था के साथ अमेरिका का संबंध भी आज दोराहे पर खड़ा है. ऐसे में दुनिया के बाक़ी देश इस सच्चाई का सामना करने के लिए तैयार हैं कि अब अमेरिका दुनिया को नेतृत्व दे पाने में सक्षम नहीं है. इसका आने वाले समय में हम सब पर व्यापक असर होगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.