Author : Nivedita Kapoor

Published on Apr 24, 2024 Updated 0 Hours ago

दोनों ही देशों की अग्निपरीक्षा अब शुरू होगी. आने वाले महीनों में पता चलेगा कि शिखर वार्ता में जो प्रगति हुई, क्या अमेरिका और रूस उसे आगे ले जा पाए 

अमेरिका-रूस सम्मेलनः डिप्लोमेसी का लौटता दौर

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 16 जून को  जिनेवा में द्विपक्षीय वार्ता खत्म हुई. दोनों पक्षों के बीच साढ़े तीन घंटे लंबी बातचीत हुई. इसके बाद बाइडेन और पुतिन ने अलगअलग प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इसमें दोनों ने सधे हुए जवाब दिए. एक संतुलित अप्रोच दिखाई दी. बाइडेन ने तो यहां तक कहां कि ‘दोनों देशों के रिश्तों में खासे सुधार की गुंजाइश दिख रही है.’

इस बयान का मतलब यह नहीं है कि अमेरिका और रूस के रिश्तों में अचानक रहस्यमयी तरीके से बदलाव होने जा रहा है. ऐसा भी नहीं है कि दोनों के बीच सारे विवाद तुरंत खत्म हो जाएंगे. हां, इतना ज़रूर है कि इस शिखर सम्मेलन से रूस और अमेरिका के बीच अर्थपूर्ण, खुली और ज़मीनी सचाइयों को ध्यान में रखते हुए बातचीत शुरू होने के संकेत मिले हैं. यह बात इस लिहाज़ से काफ़ी मायने रखती है कि 2014 के बाद से अमेरिका और रूस के बीच कई मुद्दों को लेकर तल्ख़ी बनी हुई थी और कुछ महीने के अंतराल पर दोनों के रिश्ते एक नए ‘निचले स्तर’ तक पहुंच जाते थे. इसलिए बाइडेन और पुतिन के बीच हालिया वार्ता से जो हासिल हुआ है, वह अपने आप में बड़ी बात है. दोनों नेताओं के बीच ‘सकारात्मक बातचीत हो पाई. अमेरिका और रूस दोनों ही ओर से एक दूसरे के सामने स्पष्ट किया गया कि क्या मंजूर नहीं किया जाएगा. एक दूसरे की राजधानियों में राजनयिकों की वापसी के साथ फिर से कूटनीति संपर्क बहाल करने का फैसला लिया गया. ये सारी बातें भविष्य में बातचीत का आधार बनाने के लिहाज़ से महत्वपूर्ण हैं.

बाइडेन और पुतिन के बीच रणनीतिक स्थिरता, साइबर सुरक्षा, राजदूतों के दर्जे और आर्कटिक क्षेत्र सहित कई मुद्दों पर चर्चा हुई. इस शिखर सम्मेलन में किसी समझौते पर दस्तख़त नहीं हुए, लेकिन दोनों नेताओं ने एक साझा बयान जारी किया

बाइडेन और पुतिन के बीच रणनीतिक स्थिरता, साइबर सुरक्षा, राजदूतों के दर्जे और आर्कटिक क्षेत्र सहित कई मुद्दों पर चर्चा हुई. इस शिखर सम्मेलन में किसी समझौते पर दस्तख़त नहीं हुए, लेकिन दोनों नेताओं ने एक साझा बयान जारी किया, जिसमें रणनीतिक स्थिरता का जिक्र था. बाइडेन और पुतिन ने काफी ज़ोर ‘आपसी रिश्ते को मैनेज’ करने की दिशा में शुरुआती कदम पर दिया. रूस और अमेरिका के बीच कई मुद्दों पर भारी मतभेद के बावजूद यह पहल अच्छी मानी जा सकती है. दोनों ही देशों ने ग्रोबाचेवरीगन घोषणा की यह बात दोहराई कि ‘परमाणु युद्ध नहीं जीता जा सकता और इसकी नौबत भी कभी नहीं आनी चाहिए.’ इसके साथ दोनों ही देशों के अधिकारियों को द्विपक्षीय रणनीतिक स्थिरता संवाद शुरू करने का निर्देश दिया गया.

साइबर सुरक्षा को लेकर पहल

इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि न्यू स्ट्रैटिजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी (स्टार्ट) यानी नई रणनीतिक निरस्त्रीकरण संधि इन दोनों परमाणु शक्तियों के बीच हथियार नियंत्रण के लिए एकमात्र बचा हुआ समझौता है. इसलिए आगे की संभावित संधियों के लिए अमेरिका और रूस के बीच तुरंत बातचीत शुरू होनी चाहिए. इतना ही महत्वपूर्ण मामला साइबर सुरक्षा का है. इसके लिए जानकारों को साफ़साफ़ निर्देश दिए गए हैं कि किन संस्थानों को इसका निशाना नहीं बनाया जा सकता. बाइडेन ने 16 अहम इंफ्रास्ट्रक्चर की लिस्ट दी, जिन्हें किसी भी साइबर हमले में निशाना  बनाया जाए. इसे लेकर अमेरिका और रूस के बीच आरोपप्रत्यारोप का दौर लंबे वक्त से चल रहा है. ऐसे में साइबर सुरक्षा को लेकर यह पहल तारीफ़ के काबिल है ताकि किसी गलतफ़हमी के कारण दोनों देशों के बीच टकराव  बढ़े.

इससे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में जो स्थिरता आएगी, उसी में इस सवाल का जवाब छिपा है. ये दोनों दुनिया की अगुआ परमाणु ताकतें हैं. इसलिए वे जो फैसले करते हैं, उनका क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर असर होता है. 

आर्कटिक में सहयोग की बात फिर से अमेरिका और रूस ने दोहराई है. इसके साथ बंदियों की अदला-बदली की संभावना, ईरानअफगानिस्तानसीरिया पर भी चर्चा हुई. इससे लगता है कि दोनों ही देश आपसी हितों वाले मुद्दों पर ध्यान दे रहे हैं ताकि अमेरिका और रूस के बीच बातचीत को लेकर स्थिरता आए.

पिछले कुछ सालों से दोनों देशों के बीच जो तल्ख़ी बनी हुई है, उससे हटकर अमेरिका और रूस के बीच अधिक स्थिर और भरोसेमंद रिश्ता स्थापित करना क्यों ज़रूरी हैअसल में, इससे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में जो स्थिरता आएगी, उसी में इस सवाल का जवाब छिपा है. ये दोनों दुनिया की अगुआ परमाणु ताकतें हैं. इसलिए वे जो फैसले करते हैं, उनका क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर असर होता है. इसकी अहमियत का पता अमेरिका में रहने वाले सौ से अधिक रूसी जानकारों के रुख से भी लगता है. उन्होंने 2020 में एक खुला पत्र लिखकर चेतावनी दी थी कि ‘अमेरिकारूस के रिश्ते एक खतरनाक मोड़ पर पहुंच गए हैं.’ ‘किसी भी भयानक तबाही’ से बचने के लिए इसके मौजूदा रुख़ में बदलाव ज़रूरी है. इसी चिट्ठी में यह भी लिखा था कि अमेरिका को लेकर चीन ने जो नीति अपनाई है, उसके सबसे कम सकारात्मक पहलुओं को लेकर रूस की सोच बदलने की जरूरत है और अमेरिका को इसकी कोशिश करनी चाहिए.

अभी रूस और चीन के रिश्ते जितने गहरे हैं, उसे देखते हुए नहीं लगता कि अमेरिका को छोटी अवधि में इस मामले में बहुत सफ़लता मिलेगी. लेकिन यह भी स्पष्ट है कि रूस के साथ रिश्तों में स्थिरता आने से अमेरिका अपना ध्यान चीन से निपटने पर लगा सकेगा. इस दिशा में कोशिशें शुरू हो गई हैं और बाइडेन के यूरोप दौरे में जिस तरह से चीन पर फोकस रहा, उससे यह बात साबित हो जाती है. उधर, रूस के लिए एक हद तक ‘लागत और जोख़िम में कमी’ घरेलू और अंतरराष्ट्रीय लिहाज़ से फायदेमंद होगी.

रूस, पश्चिमी देशों के बीच तनाव

अमेरिका और रूस ने सहयोग के लिए जिन क्षेत्रों की पहचान की है, वह मध्यम दर्जे के देशों के लिए भी अच्छी ख़बर है. इससे उन्हें अस्थिर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था से पैदा होने वाली चुनौतियों का सामना करने में मदद मिलेगी. इसका फायदा भारत जैसे देशों को होगा, जो बहुरेखीय विदेश नीति पर चल रहे हैं और जो अमेरिका और रूस दोनों के ही साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ते रखना चाहते हैं. जिनेवा सम्मेलन में जिन मुद्दों का ज़िक्र हुआ, अगर पुतिन और बाइडेन उन पर समझौते कर पाते हैं तो इसका असर कई क्षेत्रों में दिखेगा. इनसे भविष्य में निरस्त्रीकरण मज़बूत होगा और जोख़िम में कमी आएगी. साइबर सुरक्षा, यूरोप की सुरक्षा, आर्कटिक और यहां तक कि ईरान, अफ़गानिस्तान, सीरिया और यूक्रेन जैसे क्षेत्रीय मसलों को भी सुलझाने में मदद मिलेगी.

जिनेवासम्मेलन में ताकतवर मुल्क के रूप में अमेरिका और रूस ने एक दूसरे की खूबियों को माना है. दोनों को यह बात भी समझ आई है कि कुछ क्षेत्रों में सहयोग से अमेरिका और रूस दोनों को ही फायदा होगा.

इसका मतलब यह नहीं है कि रूस और पश्चिमी देशों के बीच जो तनाव चल रहा था, उसमें बदलाव आएगा या भविष्य में अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को लेकर दोनों के बीच मतभेद दूर हो गए हैं. हालांकि, जानेमाने विश्लेषक फ्योदोर लुकयानोव के शब्दों में ‘बेतुके रिश्ते’ से ‘तार्किक टकराव,’ की ओर बढ़ना भी विश्वास जगाने वाला घटनाक्रम है. जिनेवा सम्मेलन में ताकतवर मुल्क के रूप में अमेरिका और रूस ने एक दूसरे की खूबियों को माना है. दोनों को यह बात भी समझ आई है कि कुछ क्षेत्रों में सहयोग से अमेरिका और रूस दोनों को ही फायदा होगा. आपसी सहयोग को लेकर भी प्रैक्टिकल अप्रोच रही है. कोई शोरशराबा या दिखावे की कोशिश नहीं हुई. यानी अमेरिका और रूस के बीच गुपचुप डिप्लोमैसी का दौर लौट आया है, भले ही उसका दायरा व्यापक नहीं है, लेकिन यह खबर अच्छी है.

दोनों ही देशों की अग्निपरीक्षा अब शुरू होगी. आने वाले महीनों में पता चलेगा कि शिखर वार्ता में जो प्रगति हुई, क्या अमेरिका और रूस उसे आगे ले जा पाएऔर आखिरकार क्या उन्होंने एक दूसरे साथ जीना सीख लिया हैअगर वे ऐसा कर पाते हैं तो इससे अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में स्थिरता आएगी. वक्त के साथ उस पर भरोसा भी बढ़ेगा. इससे कई मध्यम दर्जे के देशों को भी मदद मिलेगी. मौजूदा वैश्विक व्यवस्था में जो उथलपुथल चल रही है, उसके बीच इन देशों के लिए ऐसी सूरत में सांस लेना आसान हो जाएगा.

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