Author : Pulkit Mohan

Published on Aug 27, 2020 Updated 0 Hours ago

अंतर्राष्ट्रीय संधियों का अंत होने के बाद हथियारों का बड़ा भंडार बनाने की तरफ़ बढ़ते रुझान को काबू करना महत्वपूर्ण है.

अमेरिका, रूस और न्यू START ‘संधि’ का भविष्य

9 जून को रूस नई स्ट्रैटजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी (न्यू START) के विस्तार के लिए शर्तों पर अमेरिका के साथ बातचीत के लिए तैयार हुआ. संधि के भविष्य को लेकर बातचीत के लिए 22 जून को रूस के उप विदेश मंत्री सर्जेइ रयाबकोव और अमेरिकी दूत मार्शल बिलिंगस्ली वियना में मिले. न्यू START फरवरी 2021 में समाप्त हो जाएगा और अमेरिका-रूस के बीच हथियार नियंत्रण को योजनाबद्ध करने की कोशिश के भविष्य को लेकर सिर्फ़ सात महीने बचे हैं. ऐसे में दो परमाणु हथियार संपन्न शक्तियों के बीच बातचीत महत्वपूर्ण है. बातचीत के पहले दिन अमेरिका और रूस के दूतों ने नतीजों को लेकर “संभलकर टिप्पणी” की. दोनों देशों के वार्ताकारों ने परमाणु संधि पर विचार करने के लिए जुलाई या अगस्त में दूसरे दौर की बातचीत की संभावना की तरफ़ इशारा किया जिसमें 2020 के “बिल्कुल अलग सामरिक माहौल” का ध्यान रखा जाएगा.

फरवरी 2011 से लागू न्यू START अमेरिका और रूस के बीच बची हुई परमाणु हथियार संधियों में से आख़िरी है जो दोनों देशों के परमाणु हथियारों को घटाने पर ध्यान देता है. न्यू START के मुताबिक़ दोनों देश “5 फरवरी 2018 तक सामरिक हथियारों पर संधि की केंद्रीय पाबंदियों को ज़रूर पूरा करें जो संधि शुरू होने के सात साल के बाद है. हर पक्ष के पास इस बात की आज़ादी है कि वो अपने लिए संधि के दायरे के भीतर सामरिक बल की संरचना तय करे.”

अमेरिका इस बात को लेकर अड़ा हुआ है कि रूस के साथ किसी भी तरह की बातचीत में चीन को भी शामिल किया जाए. अमेरिका का ये रुख़ कई हथियार नियंत्रण संधियों से ख़ुद को अलग करने के बाद दिखा है.

पिछले कुछ वर्षों के दौरान हथियार नियंत्रण को बढ़ावा देने को लेकर अंतर्राष्ट्रीय कोशिशों और समझौतों को गहरा झटका लगा है क्योंकि अमेरिका कई हथियार नियंत्रण संधियों से अलग हो चुका है जैसे इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज़ (INF) संधि और हाल के दिनों में ओपन स्काइज़ ट्रीटी. ट्रंप प्रशासन ने इन संधियों और समझौतों से अलग होकर अपना रवैया बिल्कुल साफ़ कर दिया है. अमेरिका लगातार ये दलील दे रहा है कि उसका रवैया दूसरे भागीदारों और हस्ताक्षर करने वालों की अक्षमता पर आधारित है, उन्होंने हथियार घटाने को उसी स्तर का महत्व नहीं दिया है (मतलब ये कि अमेरिका ने रूस के उल्लंघन को INF संधि से ख़ुद के हटने में इस्तेमाल किया लेकिन उसने चीन के द्वारा भारी मात्रा में मिसाइल तैयार करने की तरफ़ इशारा देने में कोई संकोच नहीं किया और इसलिए भविष्य के किसी क़दम में चीन को शामिल करने की ज़रूरत बताई). हालांकि, रूस ने स्पष्ट रूप से न्यू START को आगे बढ़ाने में अपनी दिलचस्पी दिखाई लेकिन अमेरिका इसको लेकर कम उत्साही है. तब भी अमेरिकी नीति निर्माताओं ने परमाणु हथियार संधि को लेकर अपने रूसी समकक्षों के साथ बातचीत में दिलचस्पी दिखाई.

हालांकि, अमेरिका इस बात को लेकर अड़ा हुआ है कि रूस के साथ किसी भी तरह की बातचीत में चीन को भी शामिल किया जाए. अमेरिका का ये रुख़ कई हथियार नियंत्रण संधियों से ख़ुद को अलग करने के बाद दिखा है. नई संधि के लिए भविष्य की बातचीत में चीन को शामिल करने पर अमेरिका के ज़ोर ने रूस और अमेरिका के बीच बातचीत के नतीजों को कमज़ोर किया है और इसकी वजह से हथियार नियंत्रण पर असर पड़ा है. इस दौरान चीन इस बात पर कायम रहा कि वो किसी बातचीत में शामिल नहीं होगा और इसके बदले चीन ने दलील दी कि हथियारों को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका और रूस पूरी तरह से ज़िम्मेदार हैं, उनके पास दुनिया के हथियारों का 90%  भंडार है. इसी तरह न्यू START के मामले में चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने पुष्टि की कि चीन अमेरिका और रूस के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण बातचीत में शामिल होने में दिलचस्पी नहीं रखता.

परमाणु हथियारों की संख्या में भारी अंतर और हथियार नियंत्रण वार्ता में शामिल होने को लेकर चीन की अनिच्छा से संकेत मिलता है कि चीन दोनों देशों के साथ निकट भविष्य में किसी बातचीत में शामिल नहीं होगा.

रूस ने सुझाव दिया कि वो बातचीत में चीन को शामिल करने के ख़िलाफ़ नहीं है लेकिन इस बात को लेकर आगाह किया कि चीन को लेकर रूस की ज़िद हथियार नियंत्रण के भविष्य पर नकारात्मक असर डाल सकती है और ये “वास्तविकता से दूर” लगती है. उप विदेश मंत्री रयाबकोव ने ये सुझाव भी दिया कि अगर चीन (रूस का सहयोगी) को शामिल करना बातचीत की शर्त है तो अमेरिकी सहयोगी जो छोटी परमाणु शक्ति भी हैं, उनको भी बातचीत में शामिल करना चाहिए. अमेरिका और रूस- दोनों के पास 6,000 से ज़्यादा परमाणु हथियार हैं जबकि अनुमान के मुताबिक़ चीन के पास क़रीब 290 परमाणु हथियार हैं. परमाणु हथियारों की संख्या में भारी अंतर और हथियार नियंत्रण वार्ता में शामिल होने को लेकर चीन की अनिच्छा से संकेत मिलता है कि चीन दोनों देशों के साथ निकट भविष्य में किसी बातचीत में शामिल नहीं होगा.

न्यूयॉर्क टाइम्स के डेविड सैंगर न्यू START वार्ता में शामिल होने को लेकर चीन की एक महत्वपूर्ण चिंता पर प्रकाश डालते हैं. सैंगर का तर्क है कि संधि में चीन का शामिल होना भ्रामक है क्योंकि संधि अमेरिका और रूस के परमाणु हथियारों को 1,550 तक सीमित करती है लेकिन जैसा कि ऊपर बताया गया है चीन के पास 300 से कम परमाणु हथियार हैं और ये दलील दी जा सकती है कि “अमेरिका और रूस कभी इस बात के लिए तैयार नहीं होंगे कि वो अपने परमाणु हथियारों को घटाकर चीन के स्तर यानी 300 तक ले जाएं. और चीन को अमेरिका और रूस के स्तर तक हथियार बनाने की इजाज़त देना हथियार नियंत्रण के मक़सद को नाकाम करता है.”

अंतर्राष्ट्रीय शस्त्र नियंत्रण व्यवस्था से अमेरिका के अलग होने और बड़े परमाणु समझौतों जैसे INF संधि से हटने के साथ शस्त्र नियंत्रण का भविष्य अनिश्चित हालत में है.

न्यू START को लेकर अनिश्चितता के बादल को देखते हुए समीक्षक अंतर्राष्ट्रीय निरस्त्रीकरण उपायों के महत्व पर ज़ोर देना जारी रखे हुए हैं. अंतर्राष्ट्रीय शस्त्र नियंत्रण व्यवस्था से अमेरिका के अलग होने और बड़े परमाणु समझौतों जैसे INF संधि से हटने के साथ शस्त्र नियंत्रण का भविष्य अनिश्चित हालत में है. चीन के शामिल होने को लेकर अमेरिका की ज़िद, अमेरिका और रूस के बीच बढ़ता अविश्वास और कई संधियों का अचानक टूट जाना दूसरे दौर की बातचीत के लिए शुभ संकेत नहीं है. लेकिन इसके बावजूद इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस तरह की बातचीत जारी रखना महत्वपूर्ण है. अंतर्राष्ट्रीय संधियों का अंत होने के बाद हथियारों का बड़ा भंडार बनाने की तरफ़ बढ़ते रुझान को काबू करना महत्वपूर्ण है. दुनिया एक नये और ज़्यादा आक्रामक परमाणु हथियार निर्माण की तरफ़ बढ़ रही है जिसका ज़्यादा ख़तरनाक नतीजा हो सकता है. परमाणु हथियारों को लेकर भागीदारों के बीच बढ़ती दुश्मनी इस बात की मांग करती है कि दोनों बड़ी परमाणु शक्तियां व्यावहारिक हल के लिए सच्ची कोशिश करें जिसमें न्यू START का विस्तार और धीरे-धीरे ज़्यादा वैश्विक हथियार नियंत्रण उपाय शामिल हैं.

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