इक्वाडोर: हालिया प्रदर्शनों से कैसे बेपर्दा हुईं आर्थिक दुश्वारियां!
Published on Jul 18, 2022 Updated 0 Hours ago
ईंधन और खाद्य सामग्रियों की बढ़ती क़ीमतों के ख़िलाफ़ हाल ही में देश भर में हुए प्रदर्शनों से इक्वाडोर में आर्थिक संकट गहरा गया है.
कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष का अर्थव्यवस्थाओं, आपूर्ति श्रृंखलाओं और ईंधन की क़ीमतों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है. अब भी दुनियाभर में इसका ज़बरदस्त असर महसूस किया जा रहा है. इसी बीच लैटिन अमेरिका के छोटे से देश इक्वाडोर में भारी विरोध-प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया. देश भर में पांव पसार चुके आंदोलन से यहां की तमाम गतिविधियां ठप सी हो गईं. इन विरोध-प्रदर्शनों की शुरुआत 13 जून 2022 को हुई. आंदोलन का आग़ाज़ इक्वाडोर की मूल राष्ट्रीयताओं वाले महासंघ (CONAIE) की ओर से किया गया. 1997 से 2005 के बीच तीन राष्ट्रपतियों को पद से हटाने का श्रेय इसी संगठन को दिया जाता है. बहरहाल 18 दिनों तक चले विरोध-प्रदर्शनों के बाद सरकार के साथ हुए समझौते से इस आंदोलन का अंत हुआ.
आंदोलन का आग़ाज़ इक्वाडोर की मूल राष्ट्रीयताओं वाले महासंघ (CONAIE) की ओर से किया गया. 1997 से 2005 के बीच तीन राष्ट्रपतियों को पद से हटाने का श्रेय इसी संगठन को दिया जाता है. बहरहाल 18 दिनों तक चले विरोध-प्रदर्शनों के बाद सरकार के साथ हुए समझौते से इस आंदोलन का अंत हुआ.
ताज़ा प्रदर्शनों के पीछे की मुख्य वजह देश में ईंधन और भोजन सामग्रियों की क़ीमतों में हुई बढ़ोतरी और उनकी आपूर्ति में आई कमी थी. देश के आर्थिक हालात पहले से ही बदतर थे. ऐसे में बढ़ती क़ीमतों ने नागरिकों के ग़ुस्से को सातवें आसमान पर पहुंचा दिया. दरअसल इक्वाडोर लंबे अर्से से ग़रीबी और ज़बरदस्त असमानता से जूझ रहा है. वैश्विक महामारी ने देश की अर्थव्यवस्था की ढांचागत कमज़ोरियों को और गहरा कर दिया. यहां की 32 फ़ीसदी से भी ज़्यादा आबादी ग़रीबी में जी रही है. ये लोग रोज़ाना 3 अमेरिकी डॉलर से भी कम की आमदनी में गुज़र बसर करने को मजबूर हैं. महामारी के दौरान बेरोज़गारी आसमान पर पहुंच गई. अर्थव्यवस्था के दोबारा पटरी पर लौटने की रफ़्तार बेहद धीमी रही है. द स्टैटिस्टिक्स इंस्टीट्यूट ऑफ़ इक्वाडोर की मई 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में तक़रीबन महज़ 33.2 फ़ीसदी लोगों के पास ही औपचारिक रोज़गार है. यहां 22.1 प्रतिशत लोगों के पास ज़रूरत के मुताबिक काम-धंधे नहीं हैं.
CONAIE ने इन तमाम मसलों पर बेमियादी हड़ताल बुलाई थी. प्रदर्शनकारियों ने तमाम दूसरी मांगों के साथ-साथ ईंधन के दाम घटाने, कृषि उत्पादों की क़ीमतों पर नियंत्रण रखने, बैंक ऋणों की अदायगी को मुल्तवी करने और शिक्षा बजट में बढ़ोतरी की मांग रखी. दरअसल इक्वाडोर की सरकार ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 6.5 अरब अमेरिकी डॉलर का सौदा किया था. समझौते की शर्त के मुताबिक राष्ट्रपति गुयलेरमो लासो की अगुवाई वाली इक्वाडोर सरकार ने ख़र्च कम करने और आमदनी बढ़ाने के लिए कई क़दम उठाए. इनमें टैक्स में बढ़ोतरी और ईंधन सब्सिडियों में कमी लाने जैसे उपाय शामिल थे. इन क़दमों से पहले से ही कमज़ोर हालत में चल रही अर्थव्यवस्था की सेहत और बिगड़ गई. हालांकि यहां एक हल्की सी विडंबना ये है कि वैश्विक रूप से तेल की क़ीमतों में बढ़ोतरी से इक्वाडोर को फ़ायदा पहुंचा है. इसकी वजह ये है कि ईंधन (ख़ासतौर से पेट्रोलियम या कच्चा तेल) देश के निर्यातों का एक प्रमुख घटक है. हालांकि तेल की क़ीमतों में इस इज़ाफ़े का लाभ ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुंच सका है. इसने लोगों के बीच असंतोष की आग को और भड़का दिया.
समझौते की शर्त के मुताबिक राष्ट्रपति गुयलेरमो लासो की अगुवाई वाली इक्वाडोर सरकार ने ख़र्च कम करने और आमदनी बढ़ाने के लिए कई क़दम उठाए. इनमें टैक्स में बढ़ोतरी और ईंधन सब्सिडियों में कमी लाने जैसे उपाय शामिल थे.
10 करोड़ डॉलर का नुकसान
विरोध-प्रदर्शनों की ताज़ा किस्त पिछले तीन सालों की सबसे गंभीर घटना थी. मोटे तौर पर ताज़ा प्रदर्शन शांतिपूर्ण ही रहे. बदक़िस्मती से लूटपाट के भी वाक़ये देखने को मिले. कुछ प्रदर्शनकारियों ने सार्वजनिक बसों के टायर पंक्चर कर दिए. सुरक्षा जवानों और पुलिस अफ़सरों पर गोलियां चलाने की भी घटनाएं सामने आईं. हिंसक प्रदर्शनों में एक सैनिक समेत 8 लोगों को जान गंवानी पड़ी. ईंधन ले जा रहे काफ़िले पर हमले की वजह से जवान की जान चली गई. बहरहाल इन प्रदर्शनों से देश की अर्थव्यवस्था और कमज़ोर हो गई. प्रदर्शनों और रास्ता रोके जाने की घटनाओं के चलते उत्पादन और निर्यात गतिविधियों में 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर के नुक़सान का आकलन किया गया है. अकेले डेयरी उद्योग को 20 लाख अमेरिकी डॉलर का घाटा झेलना पड़ा है. देश में रोज़ क़रीब 4 हज़ार लीटर दूध की बर्बादी हुई. हालात इतने बिगड़ गए कि सरकार को क्विटो समेत 6 प्रांतों में कुछ समय के लिए इमरजेंसी लगानी पड़ी. बहरहाल, अब इमरजेंसी वापस ले ली गई है. 26 जून 2022 को देश के ऊर्जा मंत्रालय ने प्रदर्शनकारियों को चेतावनी देते हुए कह दिया कि इक्वाडोर में तेल का उत्पादन ‘नाज़ुक’ स्तर पर पहुंच गया है. मंत्रालय ने चेताया कि अगर प्रदर्शन और जाम के हालात नहीं सुधरे तो तेल का उत्पादन पूरी तरह से ठप हो सकता है. पर्यटन उद्योग को भी कम से कम 5 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक़सान झेलना पड़ा. देश के हालात के मद्देनज़र बुकिंग रद्द करवानेवालों की तादाद बढ़ गई.
सरकार ने प्रदर्शन पर क़ाबू पाने के कई उपाय किए. उपद्रव मचाने, सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने और सरकारी अधिकारियों पर हमले का ठीकरा प्रदर्शनकारियों पर फोड़ा गया. द इक्वाडोर अलायंस फ़ॉर ह्यूमन राइट्स के मुताबिक 14 जून के बाद से देश में 79 गिरफ़्तारियां, चोटिल होने की 55 घटनाएं और मानव अधिकारों के उल्लंघन के 39 मामले दर्ज किए गए. इनमें सुरक्षा बलों का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल, प्रदर्शनकारियों की बेवजह गिरफ़्तारियां, पत्रकारों पर हमले और सिविल सोसाइटी से जुड़े संगठनों को डराने-धमकाने के मामले शामिल हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ज़ोर देकर कहा है कि सरकार को प्रदर्शनों के पीछे की ढांचागत वजहों का निपटारा करना चाहिए. उसने सरकार को आर्थिक संकट और महामारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित समूहों के अधिकारों पर नीतियों से जुड़े प्रभाव पर ध्यान देने की नसीहत दी है. इनमें इक्वाडोर के मूल निवासी और ग़रीबी में गुज़ारा कर रहे लोग शामिल हैं. विपक्ष के मुताबिक प्रदर्शनों के चलते देश में ‘गंभीर राजनीतिक संकट और आंतरिक उथल-पुथल‘ के हालात पैदा हो गए. लिहाज़ा उसने सरकार पर विरोध-प्रदर्शनों से निपटने में नाकाम होने का आरोप लगाते हुए राष्ट्रपति लासो को पद से हटाने की मांग की है. राष्ट्रपति लासो अपने ख़िलाफ़ चले महाभियोग प्रस्ताव से किसी तरह बचने में कामयाब रहे. प्रस्ताव के लिए ज़रूरी 92 वोटों के मुक़ाबले 80 वोट ही मिल पाए.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ज़ोर देकर कहा है कि सरकार को प्रदर्शनों के पीछे की ढांचागत वजहों का निपटारा करना चाहिए. उसने सरकार को आर्थिक संकट और महामारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित समूहों के अधिकारों पर नीतियों से जुड़े प्रभाव पर ध्यान देने की नसीहत दी है. इनमें इक्वाडोर के मूल निवासी और ग़रीबी में गुज़ारा कर रहे लोग शामिल हैं.
26 जून 2022 को राष्ट्रपति लासो ने पेट्रोल की क़ीमतों में 10 सेंट प्रति गैलन की कमी का एलान किया. हालांकि ये कटौती CONAIE की मांग के मुताबिक नहीं थी. CONAIE ने पेट्रोल की क़ीमतों में 2.55 अमेरिकी डॉलर से 2.10 अमेरिकी डॉलर प्रति गैलन और डीज़ल के दाम में 1.90 अमेरिकी डॉलर से 1.50 अमेरिकी डॉलर की कटौती किए जाने की मांग की थी. महासंघ ने क़ीमतें कम करने की इस क़वायद को नाकाफ़ी बताते हुए इसे ख़ारिज कर दिया. हालांकि इसके बावजूद उसने हड़ताल के अंत करने और समस्या का संभावित हल ढूंढने के लिए सरकारी अधिकारियों से मिलने पर रज़ामंदी जताई. इस बीच महाभियोग से बच निकले राष्ट्रपति लासो ने मूल निवासियों के नेता लेनिडास इज़ा पर अपने समर्थकों की भलाई की परवाह न करते हुए सिर्फ़ अपने सियासी हितों का बचाव करने का आरोप लगाया.
पूर्व राष्ट्रपति पर आरोप
इक्वाडोर में इससे पहले इस पैमाने का विरोध-प्रदर्शन 2019 में देखने को मिला था. तब हज़ारों नागरिक मार्च करते हुए राजधानी क्विटो तक पहुंच गए थे. ये लोग तेल क़ीमतों पर लंबे समय से चली आ रही सब्सिडी को दोबारा बहाल करने की मांग कर रहे थे. तब सरकार का दावा था कि सब्सिडी के तौर पर उस पर हर साल 1.4 अरब डॉलर का बोझ पड़ता है. प्रदर्शनों के चलते तत्कालीन राष्ट्रपति लेनिन मोरेनो ने सब्सिडी को दोबारा बहाल कर दिया. आगे चलकर ऐसी मूल्य व्यवस्था लागू की गई जिसमें वैश्विक बाज़ारों के हिसाब से उतार-चढ़ाव आती है. 2021 में ईंधन क़ीमतों में बढ़ोतरी के साथ राष्ट्रपति लासो ने एक निश्चित दाम तय करने का आदेश दिया. इक्वाडोर के मूल निवासियों और दूसरे समूहों का कहना था कि तय की गई क़ीमत अब भी काफ़ी ज़्यादा थी. देश भर में पसरे ताज़ा विरोध-प्रदर्शनों को देखते हुए विश्लेषकों का आकलन है कि इक्वाडोर में लंबे समय तक अशांति और टकराव का माहौल देखने को मिल सकता है.
अमेरिकी विशेषज्ञों का दावा है कि पूर्व वामपंथी राष्ट्रपति राफेल कोरिया मौजूदा सरकार के धुर विरोधी हैं. 2017 में राष्ट्रपति का पद छोड़ चुके कोरिया आज भी देश में काफ़ी प्रभावशाली बने हुए हैं. वो किसी भी क़ीमत पर सत्ता में वापसी की जुगत में लगे हैं.
बहरहाल, इक्वाडोर में संकट और प्रदर्शनों के बीच अमेरिका की चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. उसे लग रहा है कि इक्वाडोर में अमेरिका समर्थक लासो की सरकार गिरने का ख़तरा पैदा हो गया है. अमेरिकी विशेषज्ञों का दावा है कि पूर्व वामपंथी राष्ट्रपति राफेल कोरिया मौजूदा सरकार के धुर विरोधी हैं. 2017 में राष्ट्रपति का पद छोड़ चुके कोरिया आज भी देश में काफ़ी प्रभावशाली बने हुए हैं. वो किसी भी क़ीमत पर सत्ता में वापसी की जुगत में लगे हैं. एक और दलील ये दी जा रही है कि दोबारा सत्ता हथियाने की उनकी रणनीति के तहत ही CONAIE को चरमपंथी स्वरूप दिया गया है. इक्वाडोर की सत्ता में इस संभावित बदलाव से अमेरिकी हितों पर करारी चोट पड़ सकती है. दरअसल अमेरिका के पिछवाड़े (लैटिन अमेरिका) वामपंथ समर्थक सरकारों की बयार तेज़ होती जा रही है. इस सूची में हाल ही में कोलंबिया का नाम भी जुड़ गया है जहां एक वामपंथी नेता को राष्ट्रपति चुना गया है. इन घटनाक्रमों के मद्देनज़र इक्वाडोर की सरकार को अर्थव्यवस्था को पहुंच रहे नुक़सान को न्यूनतम स्तर पर लाते हुए अपने सियासी हितों के बचाव की क़वायद में पूरी शिद्दत से जुटना होगा.
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Akanksha Singh has done her BA. LLB(Hons.) from Ram Manohar Lohiya National Law University. She is currently pursuing her Masters in Diplomacy Law and Business ...