Author : Seema Sirohi

Published on May 11, 2021 Updated 0 Hours ago

जो लोग ये कहते हैं कि बौद्धिक संपदा संरक्षण पर डब्ल्यूटीओ के समझौते में पहले से पर्याप्त लचीलेपन का प्रावधान है उन्होंने बारीकी से इसको नहीं पढ़ा है क्योंकि ये प्रावधान ज़्यादा समय लेने वाले, थकाऊ और प्रत्येक देश के आधार पर हैं.

अमेरिका वैक्सीन पेटेंट पर दावा छोड़ने के लिए तैयार, अब गेंद यूरोपियन यूनियन के पाले में

बिना किसी ग़लती के इस महामारी ने जिस तरह से लोगों को जकड़ रखा है, उस पर विजय पाने के लिए पूरी दुनिया को सर्वसम्मति और सच्चे तौर पर एक साथ आने की ज़रूरत है. 

महीनों के अनिर्णय के बाद आख़िरकार अमेरिका ने कोविड-19 वैक्सीन के पेटेंट पर दावे को छोड़ने के लिए समर्थन का एलान किया. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूटीओ) में भारत, दक्षिण अफ्रीका और क़रीब 100 और देशों ने इसका अनुरोध किया था. 

ये हर मायने में एक महत्वपूर्ण घोषणा है. इसका श्रेय निश्चित रूप से डेमोक्रेटिक पार्टी के सुधारवादी लोगों और मरीज़ों के अधिकार की वक़ालत करने वालों की तरफ़ से लगातार समर्थन को दिया जाना चाहिए. साथ ही भारतीय और दक्षिण अफ्रीकी राजनयिकों को भी श्रेय मिलना चाहिए जिन्होंने लगातार इस मुद्दे को उठाया. हाउस ऑफ रिप्रेज़ेंटेटिव के दो भारतीय अमेरिकी सदस्यों- रो खन्ना और प्रमिला जयपाल का विशेष तौर पर ज़िक्र होना चाहिए जिन्होंने पेटेंट पर दावा छोड़ने के पक्ष में सार्वजनिक बयान दिया था. 

बाइडेन की तरफ़ से दवा कंपनियों के ख़िलाफ़ रुख़ अपनाने से उनको राजनीतिक और वित्तीय क़ीमत चुकानी पड़ सकती है.

दवा कंपनियों के ख़िलाफ़ रुख़ अपनाना कोई छोटी बात नहीं

राष्ट्रपति जो बाइडेन के लिए दवा कंपनियों के ख़िलाफ़ रुख़ अपनाना कोई छोटी बात नहीं है. 2020 में राष्ट्रपति पद के लिए बाइडेन का अभियान दवा कंपनियों की दरियादिली का इकलौता फायदेमंद था. डोनाल्ड ट्रंप को दवा कंपनियों का साथ नहीं मिला था. ऐसे में बाइडेन की तरफ़ से दवा कंपनियों के ख़िलाफ़ रुख़ अपनाने से उनको राजनीतिक और वित्तीय क़ीमत चुकानी पड़ सकती है. लेकिन आख़िर में मौजूदा अभूतपूर्व हालात के दौरान विकासशील देशों की मदद करने की नैतिक ज़रूरत इस दलील के आगे जीत गई कि दावे छोड़ने से प्राइवेट सेक्टर में भविष्य में इनोवेशन, रिसर्च और डेवलपमेंट में दिक़्क़त आ सकती है. 

अमेरिका की व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन टाई ने अपने बयान में कहा, “कोविड-19 महामारी की वजह से असाधारण परिस्थिति असाधारण क़दम की मांग करते हैं.” वाकई ऐसा ही है. बीते समय के नियम और दलीलें लागू नहीं होती हैं. बाक़ी आप निश्चिंत रहें, फ़ाइज़र, मॉडर्ना और दूसरी कंपनियों का लाभ अब भी सुरक्षित और पर्याप्त रहेगा. आप सवाल कर सकते हैं कि “पर्याप्त” क्या है- 7 अरब अमेरिकी डॉलर का मुनाफ़ा जिसकी भविष्यवाणी फ़ाइज़र ने 2021 के 26 अरब अमेरिकी डॉलर के राजस्व के आधार पर की थी, उससे कम या उससे ज़्यादा? 

अमेरिका के फ़ैसले के बाद अब गेंद यूरोपियन यूनियन (ईयू), ब्रिटेन और जापान के पाले में है. ये ऐसे देश हैं जो बेशक डब्ल्यूटीओ में डटे रहेंगे. 

दवा उद्योग दलील देगा कि मुनाफ़े की कोई अधिकतम सीमा नहीं होनी चाहिए क्योंकि ये उसकी सोच के मुताबिक़ सबसे अच्छी मिसाल है और लोग मुनाफ़े के बाद ही आते हैं. लेकिन सरकारों को लोगों के बारे में सोचना है और डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थकों का एक बड़ा हिस्सा लोगों के साथ संपर्क की इस सबसे मूलभूत बात का समर्थन करता है. 

अमेरिका के फ़ैसले के बाद अब गेंद यूरोपियन यूनियन (ईयू), ब्रिटेन और जापान के पाले में है. ये ऐसे देश हैं जो बेशक डब्ल्यूटीओ में डटे रहेंगे. इस मुद्दे पर चांसलर एंगेला मर्केल की वास्तविक भावना को देखते हुए जर्मनी टालमटोल करेगा. मर्केल की वास्तविक भावना पिछले दिनों सामने भी आई थी. लगा कि वो ऐसा महसूस कर रही हैं कि यूरोप ने “भारत को इतना बड़ा दवा उत्पादक बनने दिया” कि नीतियों पर “फिर से विचार” होना चाहिए. मर्केल का बयान उनकी प्रतिष्ठा के ख़िलाफ़ जाता है. 

उन देशों में गेंद को आगे ले जाना एनजीओ, संगठनों और सिविल सोसायटी के नेताओं पर निर्भर करेगा. यूरोप के देश जेनेवा में लालच दिखाएंगे, प्रावधानों को संकुचित करेंगे और इस प्रक्रिया में रुकावट खड़ी करेंगे. उन्हें एक बेहद सामान्य सिद्धांत का दबाव महसूस कराया जाना चाहिए कि जब तक हर किसी का टीकाकरण नहीं होगा, तब तक कोई सुरक्षित नहीं है. 

बिना किसी ग़लती के इस महामारी ने जिस तरह से लोगों को जकड़ रखा है, उस पर विजय पाने के लिए पूरी दुनिया को सर्वसम्मति और सच्चे तौर पर एक साथ आने की ज़रूरत है. जिस एक देश की ग़लती है वो आगे बढ़ रहा है जबकि दूसरे देश घुटने के बल चल रहे हैं. यहां एक भूराजनीतिक दलील भी है- अगर पश्चिमी दुनिया चीन के संबंध में अपना मौजूदा दर्जा बरकरार रखने को लेकर गंभीर है तो उसे वो हर चीज़ करनी चाहिए जिससे कि वो जल्दी-से-जल्दी सामान्य हालात की तरफ़ लौट सके और अर्थव्यवस्था फिर से चलने लगे. 

इस वजह से महामारी को तेज़ी से फैलने और देशों को बर्बाद करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती कि जटिल एक पक्षीय डब्ल्यूटीओ के नियमों को जल्दी से बदला नहीं जा सकता. वैक्सीन के उत्पादन और डिलीवरी को बड़े पैमाने पर बढ़ाने की ज़रूरत है. अभी तक दुनिया भर में 1.21 अरब वैक्सीन लोगों को लगाई जा चुकी है लेकिन इनमें से 83 प्रतिशत वैक्सीन उच्च और मध्यम आमदनी वाले देशों के लोगों की बांहों पर लगी है. दूसरे शब्दों में, वैक्सीन ने ज़्यादातर पश्चिमी देशों को फ़ायदा पहुंचाया है. अफ्रीका में वैक्सीनेशन की दर सभी महादेशों में सबसे धीमी है. ताज्जुब की बात नहीं कि अफ्रीका के लोगों ने इसे “वैक्सीन रंगभेद” का नाम दिया है. 

दुनिया के फिर से काम-काज शुरू करने के लिए इसका अंत होना चाहिए. “सबसे पहले मुझे” की नीति का समर्थन नहीं किया जा सकता और अमेरिका के लोगों को इसका एहसास होने लगा है. विकासशील देशों की जो कंपनियां वैक्सीन का उत्पादन शुरू करना चाहती हैं, उनके लिए सामग्री की उपलब्धता नहीं होने देना और उन सामग्रियों को जमा करने के ख़िलाफ़ अभियान अगला क़दम है. 

बड़ी दवा कंपनियां की दलील

बड़ी दवा कंपनियां दलील देती हैं कि विकासशील देशों के पास जटिल वैक्सीन उत्पादन करने का साधन नहीं है क्योंकि उनके पास तकनीकी जानकारी की भी कमी है जो कि पेटेंट से संरक्षित नहीं है. इसके अलावा उन्हें वैक्सीन उत्पादन के लिए रेगुलेटरी मंज़ूरी और फंडिंग की भी ज़रूरत है. ये सभी बातें सही हैं और कोई ये उम्मीद नहीं कर रहा है कि वैक्सीन का उत्पादन एक दिन में दोगुना हो जाएगा लेकिन मौजूदा स्थिति से भी बहुत ज़्यादा उम्मीद नहीं है. 

डब्ल्यूटीओ की तरफ़ से दावे पर छूट उत्पादकों और सरकारों के लिए एक निश्चितता का क़दम होगा कि वो नई सुविधाओं में निवेश की शुरुआत करें और कोल्ड स्टोरेज चेन विकसित करें.

डब्ल्यूटीओ की तरफ़ से दावे पर छूट उत्पादकों और सरकारों के लिए एक निश्चितता का क़दम होगा कि वो नई सुविधाओं में निवेश की शुरुआत करें और कोल्ड स्टोरेज चेन विकसित करें. ऐसा करने में अगर एक साल या उससे कुछ ज़्यादा समय भी लगता है तो ये मौजूदा कमी से बेहतर है क्योंकि फिलहाल वैक्सीन की उपलब्धता ग़रीबों के लिए आशाजनक नहीं है. इसके लिए अतिरिक्त क्षमता को जोड़ना पड़ेगा. ये महामारी बर्बादी और फैलने के मामले में अभूतपूर्व है. इस पर किसी को शक नहीं है. अगर क्षमता विकसित करने और वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने में एक साल या उससे भी ज़्यादा समय लगता है तो लगने दीजिए. बड़ी दवा कंपनियां अमीर देशों को भी ज़रूरत के मुताबिक़ वैक्सीन देने में नाकाम रही हैं. 

क्या पेटेंट पर दावा छोड़ने से रिसर्च और इनोवेशन प्रभावित होगा? 

ये दलील फ़र्ज़ी है कि पेटेंट पर दावा छोड़ने से भविष्य में प्राइवेट कंपनियां द्वारा इनोवेशन और रिसर्च-डेवलपमेंट में निवेश नहीं होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका में ज़्यादातर रिसर्च-डेवलपमेंट का काम सरकारी पैसे से चलने वाले संस्थान करते हैं. उनके रिसर्च-डेवलपमेंट का प्राइवेट सेक्टर बाद में फ़ायदा उठाता है. दूसरी बात ये है कि अमेरिका के सरकारी वैज्ञानिकों ने मॉडर्ना के साथ स्पाइक प्रोटीन टेक्नोलॉजी को साझा किया जिसका व्यवसायीकरण करके मॉडर्ना ने अपनी कोविड-19 वैक्सीन के ज़रिए ज़बरदस्त मुनाफ़ा कमाने में इस्तेमाल किया. 

बाइडेन प्रशासन यूरोप के साझेदारों और जापान के साथ पेटेंट पर दावा छोड़ने को लेकर तो चर्चा कर रहा है लेकिन उसे स्पाइक प्रोटीन टेक्नोलॉजी की बौद्धिक संपदा पर अमेरिकी सरकार के वास्तविक दावे को भी दृढ़तापूर्वक कहना चाहिए. 

ये दलील फ़र्ज़ी है कि पेटेंट पर दावा छोड़ने से भविष्य में प्राइवेट कंपनियां द्वारा इनोवेशन और रिसर्च-डेवलपमेंट में निवेश नहीं होगा. ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका में ज़्यादातर रिसर्च-डेवलपमेंट का काम सरकारी पैसे से चलने वाले संस्थान करते हैं. 

जो लोग ये कहते हैं कि बौद्धिक संपदा संरक्षण पर डब्ल्यूटीओ के समझौते में पहले से पर्याप्त लचीलेपन का प्रावधान है उन्होंने बारीकी से इसको नहीं पढ़ा है क्योंकि ये प्रावधान ज़्यादा समय लेने वाले, थकाऊ और प्रत्येक देश के आधार पर हैं. किसी ग़रीब और कोविड से बर्बाद देश के पास इतनी ऊर्जा बची है कि वो बड़ी दवा कंपनियों के महंगे वक़ीलों की फ़ौज के ख़िलाफ लंबी, जटिल सौदेबाज़ी में शामिल हो?

जैसा कि अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा, “मौजूदा हालात में अगर हम ज़्यादा कोशिश नहीं करते हैं, अगर पूरी दुनिया ज़्यादा कोशिश नहीं करती है तो 2024 से पहले सभी लोगों को वैक्सीन नहीं मिल सकेगी.” ब्लिंकन का कहना सही है. पूरी दुनिया के लोगों को जल्दी-से-जल्दी वैक्सीन लगाने की ज़रूरत है. 

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