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ये लेख "#Trump 2.0, "एजेंडे की बहाली: ट्रंप की वापसी और दुनिया पर इसका असर" सीरीज़ का हिस्सा है.
राष्ट्रपति के रूप में दूसरे कार्यकाल के लिए डोनाल्ड ट्रंप की हैरान करने वाली लेकिन निर्णायक जीत अमेरिका की रक्षा नीति में कुछ प्रमुख बदलावों की शुरुआत करेगी. ऐसा भी कह सकते हैं कि ये जीत राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप के पहले कार्यकाल की नीतियों को जारी रखेगी. ट्रंप 2.0 के तहत रक्षा नीति में जिन तीन प्रमुख क्षेत्रों की ओर बहुत ज़्यादा ध्यान दिया जाएगा, वो हैं अमेरिका का गठबंधन, "अमेरिका फर्स्ट" और युद्ध के मैदान में अमेरिकी सेना की नीतियों पर कम पाबंदियां. लेकिन इसके बावजूद दूसरे कार्यकाल के दौरान ट्रंप प्रशासन के सामने महत्वपूर्ण चुनौतियां होंगी.
ट्रंप 2.0 के तहत रक्षा नीति में जिन तीन प्रमुख क्षेत्रों की ओर बहुत ज़्यादा ध्यान दिया जाएगा, वो हैं अमेरिका का गठबंधन
अमेरिकी गठबंधन
ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिका के गठबंधन को लेकर रक्षा नीति में सदियों पुरानी मान्यताओं में फेरबदल की कोशिश की गई. जिन प्रमुख गठजोड़ों में बदलाव की कोशिश की गई, उनमें उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) के ज़रिए अपने यूरोपीय सहयोगियों के साथ अमेरिका का संबंध शामिल था. यूरोप के नेटो सदस्य इस बात को लेकर उत्तेजित रहे हैं कि ट्रंप रक्षा के लिए सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का ज़रूरी 2 प्रतिशत भुगतान नहीं कर रहे हैं जो कि गठबंधन की सदस्यता की शर्तों के तहत आवश्यक है. नेटो के साथ ये तनावपूर्ण संबंध ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के दौरान भी जारी रहेगा.
इंडो-पैसिफिक में अमेरिकी गठबंधन के सदस्यों को भी सैन्य खर्च के मामले में ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के दौरान बहुत अधिक दबाव का सामना करना पड़ सकता है. जापान और दक्षिण कोरिया को रक्षा और अमेरिकी सैनिकों की मेज़बानी पर अधिक खर्च करने की ज़रूरत पड़ेगी क्योंकि ट्रंप ने अपने चुनाव अभियान के दौरान ये मांग की थी. ये दक्षिण कोरिया में तैनात अमेरिकी सैनिकों पर खर्च साझा करने में बाइडेन प्रशासन के द्वारा दक्षिण कोरिया की तरफ से 8.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हासिल करने के अलावा है.
ट्रंप 2.0 के तहत रक्षा नीति में जिन तीन प्रमुख क्षेत्रों की ओर बहुत ज़्यादा ध्यान दिया जाएगा, वो हैं अमेरिका का गठबंधन, "अमेरिका फर्स्ट" और युद्ध के मैदान में अमेरिकी सेना की नीतियों पर कम पाबंदियां.
इस बात की संभावना है कि सैन्य खर्च बढ़ाने के लिए यूरोप और एशिया के सहयोगियों पर डाले गए इस दबाव के नतीजतन दूसरा ट्रंप प्रशासन ज़्यादा अमेरिकी हथियारों की बिक्री पर ज़ोर देगा. ट्रंप ने धमकी दी है कि अगर यूरोप और एशिया के सहयोगी देश सैन्य खर्च के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं करते हैं तो अमेरिका गठबंधन की किसी शर्त को मानने के लिए बाध्य नहीं होगा, विशेष रूप से नेटो के अनुच्छेद 5 के तहत. नेटो के लिए अमेरिका के कम होते समर्थन के प्रमुख पीड़ितों में से एक यूक्रेन होगा. वैसे तो यूक्रेन नेटो का औपचारिक सदस्य नहीं है लेकिन रूसी फेडरेशन के साथ जारी अपने युद्ध में वो अमेरिकी गठबंधन की सैन्य और आर्थिक सहायता का एक लाभार्थी है. राष्ट्रीय सुरक्षा के पदों के लिए ट्रंप की संभावित पसंद में ऐसे लोग शामिल हैं जो यूक्रेन को अमेरिका की असीमित मदद के घोर विरोधी हैं. पीट हेगसेठ, जो अगले रक्षा मंत्री बनने वाले हैं, नेटो के आलोचक होने के साथ-साथ चीन के कट्टर विरोधी हैं. सीनेटर मार्को रुबियो, जो अगले विदेश मंत्री बनने वाले हैं, भारत के साथ करीबी रक्षा संबंध बनाना चाहते हैं. रुबियो जुलाई 2024 में सीनेट में एक बिल लेकर आए थे जिसमें भारत का दर्जा बढ़ाकर नेटो, जापान, इज़रायल और दक्षिण कोरिया के बराबर सहयोगी बनाने की मांग की गई थी.
अमेरिका फर्स्ट
अमेरिका के सैन्य गठबंधन के भविष्य से ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” की रणनीति भी जुड़ी हुई है. “अमेरिका फर्स्ट”, जो ट्रंप के पहले कार्यकाल की एक ख़ासियत थी, की रणनीति निश्चित रूप से ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में फिर से ज़िंदा होगी. ये रणनीति रक्षा को लेकर ट्रंप के “ताकत के ज़रिए शांति” के दृष्टिकोण का एक अभिन्न हिस्सा बनी हुई है. “ताकत के ज़रिए शांति” के कुछ प्रमुख तत्व हैं. सबसे पहले तो इसका उद्देश्य दूसरे देशों के युद्ध में अमेरिका की सैन्य भागीदारी को कम-से-कम रखना है. “अमेरिका फर्स्ट” रणनीति का दूसरा तत्व है अमेरिका को मज़बूत करने और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) जैसे उसके दुश्मनों एवं लगभग बराबर के देशों से आगे रहने की ट्रंप की प्रतिबद्धता.
ट्रंप प्रशासन अमेरिका की सैन्य औद्योगिक प्रणाली को बढ़ावा देने की कोशिश के तहत भारत जैसे देशों को हथियार बेचने पर पाबंदी हटाकर विदेशी सैन्य बिक्री पर ज़ोर लगाएगा.
दूसरे ट्रंप प्रशासन की राष्ट्रीय सुरक्षा एवं रक्षा टीम में ऐसे प्रमुख लोगों के होने की संभावना है जो चीन को लेकर अपने कठोर रवैये के लिए जाने जाते हैं. सेना की व्यापक क्षमता और समुद्री, साइबर स्पेस, अंतरिक्ष, वायु और ज़मीनी क्षेत्रों में “वर्चस्व” के माध्यम से सैन्य क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी बढ़त बनाए रखना एक प्राथमिकता होगी. अमेरिका फर्स्ट की रणनीति का विस्तार अमेरिका की औद्योगिक रक्षा तक होगा जिसके तहत स्थानीय क्षमताओं में अधिक निवेश करना शामिल होगा. पारंपरिक तकनीकों से लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), साइबर, क्वॉन्टम टेक्नोलॉजी (QT), रोबोटिक्स इत्यादि जैसी अग्रणी तकनीकों में अमेरिका की औद्योगिक रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के अलावा दूसरा ट्रंप प्रशासन अमेरिका की सैन्य औद्योगिक प्रणाली को बढ़ावा देने की कोशिश के तहत भारत जैसे देशों को हथियार बेचने पर पाबंदी हटाकर विदेशी सैन्य बिक्री पर ज़ोर लगाएगा. फिर भी “ताकत के ज़रिए शांति” का ट्रंप का लक्ष्य उनके कई पूर्ववर्तियों की तरह युद्ध शुरू करने से प्रेरित नहीं है बल्कि ट्रंप का ये लक्ष्य अमेरिकी कूटनीति को मदद देने के लिए सैन्य क्षमताओं का इस्तेमाल करने से प्रेरित है.
युद्ध के मैदान की पाबंदियां हटीं
ट्रंप के पहले प्रशासन के दौरान रक्षा विभाग (DoD) और पेंटागन में कई अधिकारियों ने युद्ध के मैदान में अमेरिकी सेना की रणनीति पर पाबंदियों को कम करने का स्वागत किया था. इस रणनीति के तहत संयम के साथ ताकत का इस्तेमाल करना था लेकिन ट्रंप के पहले प्रशासन के तहत उन संयमों को हटा लिया गया था. युद्ध के मैदान में प्रतिबंधों पर रियायत का विस्तार इज़रायल जैसे अमेरिका के करीबी सहयोगियों तक भी किया जा सकता है. मौजूदा इज़रायल-हमास और रूस-यूक्रेन युद्ध में अमेरिकी प्रतिबद्धता और भागीदारी, जो ट्रंप को बाइडेन प्रशासन से विरासत में हासिल होगी, बदल सकती है और ये अधिक सेना केंद्रित प्रतिक्रिया हो सकती है.
ट्रंप 2.0 की रक्षा नीति के लिए चुनौतियां
बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के बीच ट्रंप 2.0 के लिए बड़ी चुनौती विदेश नीति के साथ मुकाबले में उनकी व्यक्तिगत पसंद होगी. ख़तरे की सोच के मामले में ट्रंप 2.0 2017 की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को जारी रखते हुए चीन को एक रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखेगा और उससे ख़तरे को लेकर अधिक सैन्य संसाधन और रणनीतिक ध्यान देगा. लेकिन चीन के अलावा ईरान और उत्तर कोरिया के साथ मिलकर असंतुष्ट किरदार के रूप में रूस का उदय सुरक्षा को लेकर ट्रंप के हिसाब और कई मोर्चों पर अमेरिका एवं उसके सहयोगियों के हितों पर ख़तरे को कम करने की उनकी रक्षा नीति के लक्ष्य को पूरा करने में समस्या पैदा करेगा.
अपने पहले कार्यकाल से हटकर ट्रंप के लिए ये सुनिश्चित करना एक चुनौती बनी रहेगी कि अमेरिका और उसके साझेदार यूरोप और पूर्वी एशिया में सहयोगियों की मांगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करें.
अपने पहले कार्यकाल से हटकर ट्रंप के लिए ये सुनिश्चित करना एक चुनौती बनी रहेगी कि अमेरिका और उसके साझेदार यूरोप और पूर्वी एशिया में सहयोगियों की मांगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करें. ये ट्रंप के पहले प्रशासन के दौरान उस लक्ष्य का पीछा करने की तरह होगा कि अपने सहयोगियों से पर्याप्त योगदान के बिना अमेरिका अपनी क्षमताओं और प्रतिबद्धताओं पर ज़रूरत से ज़्यादा बोझ डालने से रोके. सुरक्षा की देखभाल के लिए ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट रणनीति और इसके साथ-साथ युद्ध से जुड़े खर्च को पूरा करने में सहयोगियों के योगदान पर उनका ज़ोर एक और प्रमुख चुनौती बनी रहेगी.
कार्तिक बोम्माकांति ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में सीनियर फेलो हैं.
राहुल रावत ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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