Author : Harsh V. Pant

Published on Jun 01, 2022 Updated 0 Hours ago

नए इकॉनमिक फ्रेमवर्क से चीन को कड़ी चुनौती देने के मूड में है क्वॉड

हिंद-प्रशांत में होगी अमेरिका, चीन की भिड़ंत

चीन ने जिस तरह से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जरिए कई छोटे देशों को अपने ऋण जाल में फंसाया है, क्वॉड के चारों सदस्य अब चाहते हैं कि उससे निजात पाने के लिए एक ऑल्टरनेटिव फ्रेमवर्क खड़ा किया जाए. हिंद-प्रशांत में मौजूद जिन छोटे देशों के पास उतने संसाधन नहीं हैं, लेकिन जो कनेक्टिविटी को लेकर सीरियस हैं, उनके लिए एक आर्थिक ढांचा बनाया जाए. पिछले दिनों क्वॉड की जो बैठकें हुईं, उनमें इस पर फोकस रहा है. अब देखना यह होगा कि इसको जमीन पर कैसे उतारा जाता है. लेकिन हाल की मीटिंग के बाद बड़ी बात यह है कि यूक्रेन युद्ध के बावजूद क्वॉड और सशक्त हुआ है.

हिंद-प्रशांत में मौजूद जिन छोटे देशों के पास उतने संसाधन नहीं हैं, लेकिन जो कनेक्टिविटी को लेकर सीरियस हैं, उनके लिए एक आर्थिक ढांचा बनाया जाए.

विदेश नीति का केंद्र बनता हिंद प्रशांत क्षेत्र

यूक्रेन संकट की शुरुआत में अटकलें थीं कि अब अमेरिका का फोकस यूरोप पर होगा तो हिंद-प्रशांत और क्वॉड पर वह थोड़ा सा ढीला पड़ जाएगा. लेकिन इस मीटिंग में बाइडन सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह अपना फोकस हिंद-प्रशांत से नहीं हटाएगा. भारत को लेकर भी अटकलें थीं कि यूक्रेन और रूस को लेकर उसका रुख अलग था. अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने तो खुले तौर पर रूस की आलोचना की थी, लेकिन भारत, रूस की खुली आलोचना से बचता रहा था. फिर भी इस हफ्ते की बैठकों से साफ है कि हिंद-प्रशांत इन सारे देशों की विदेश नीति के केंद्र में बना रहेगा. इस क्षेत्र को लेकर कोई ढिलाई नहीं दी जाएगी.

बैठकों से साफ है कि हिंद-प्रशांत इन सारे देशों की विदेश नीति के केंद्र में बना रहेगा. इस क्षेत्र को लेकर कोई ढिलाई नहीं दी जाएगी.

क्वॉड में जारी संयुक्त बयान में अगर यूक्रेन का जिक्र नहीं है, तो वह भारत की वजह से. भारत उसमें यूएन चार्टर, इंटरनेशनल लॉ और टेरिटरी की बात करता रहा है. एक तरह से भारत के लिए यह अच्छी बात है. अगर संयुक्त बयान में यूक्रेन का जिक्र आता तो यह दिखाता कि उसमें मतभेद हैं. दूसरे, क्वॉड का प्लैटफॉर्म गठबंधन का औपचारिक ढांचा नहीं है. जापान और ऑस्ट्रेलिया कोल्ड वॉर के बाद से ही अमेरिका के साझेदार हैं, लेकिन भारत का संबंध अलग है. भारत का रुख मुद्दों पर आधारित गठबंधन बनाने का रहा है, जिसमें समान मत वाले देश साथ आकर एक क्षेत्रीय अजेंडा दे सकें.

ताइवान के मसले पर पूरे हिंद-प्रशांत में चिंता

ताइवान के मसले पर भी पूरे बैठकों से साफ है कि हिंद-प्रशांत इन सारे देशों की विदेश नीति के केंद्र में बना रहेगा. इस क्षेत्र को लेकर कोई ढिलाई नहीं दी जाएगी.हिंद-प्रशांत में बड़ी चिंता है कि जैसा रूस ने यूक्रेन पर किया, वैसा ही चीन अगर ताइवान के साथ करता है तो फिर कैसी संभावनाएं बनती हैं. वहीं अमेरिका की रणनीति शार्प होती जा रही है. अमेरिका अपने तरीके से हिंद-प्रशांत में अपनी पकड़ बना रहा है. इससे तो इनकार नहीं किया जा सकता कि जिस तरह से दुनिया और हिंद-प्रशांत में डिविजन होता जा रहा है, जिसमें एक तरफ क्वॉड है और दूसरी तरफ रूस और चीन हैं, उसमें रूस और चीन की चुनौतियां एक जैसी होती जा रही हैं. उनके बीच जिस तरह का अलायंस बन रहा है, उससे होड़ की भावना और प्रबल होगी. सबसे महत्वपूर्ण भूमिका बीच के उन छोटे देशों की होगी, जो यहां किसी तरह का विवाद नहीं चाहते.

पहले अमेरिका के सामने दिक्कत यह थी कि ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन ने खुद को हिंद-प्रशांत से पीछे कर लिया था. इससे वहां पर अमेरिका के साझेदार देश काफी चिंतित थे कि चीन की पकड़ बढ़ती जा रही है. इससे निपटने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर कोआर्डिनेशन ग्रुप की पहल हुई है. यह कोई व्यापार समझौता नहीं है, बल्कि एक व्यापक दृष्टिकोण है जिसमें ऊर्जा, सुरक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ ट्रेड इन्वेस्टमेंट भी है, डी-कार्बनाइजेशन और सप्लाई चेन्स भी हैं. इसे पूरी तरह से देखेंगे तो इसमें स्टैंडर्ड सेटिंग की बात है, हिंद-प्रशांत में जिसका प्रभाव बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ेगा.

बैठकों से साफ है कि हिंद-प्रशांत इन सारे देशों की विदेश नीति के केंद्र में बना रहेगा. इस क्षेत्र को लेकर कोई ढिलाई नहीं दी जाएगी.इससे तो इनकार नहीं किया जा सकता कि जिस तरह से दुनिया और हिंद-प्रशांत में डिविजन होता जा रहा है, जिसमें एक तरफ क्वॉड है और दूसरी तरफ रूस और चीन हैं, उसमें रूस और चीन की चुनौतियां एक जैसी होती जा रही हैं.

भारत इसमें बड़ी भूमिका निभा सकता है. भारत जैसे देशों के लिए यह बड़ा जरूरी है कि वह स्टैंडर्ड सेटिंग पर आगे बढ़ें. अगर हिंद-प्रशांत का आर्थिक ढांचा चीन के बरक्स एक वैकल्पिक मॉडल दे पाता है, तो वहां के क्षेत्रीय देशों को सिर्फ चीन को ही फॉलो नहीं करना होगा. हमने देखा है कि चीन को फॉलो करके काफी देश उसके ऋण जाल में फंस जाते हैं. लेकिन अभी इस बारे में बहुत कम डीटेल्स हैं. डीटेल्स जब आएंगे, तब पता चलेगा कि क्वॉड के फाउंडिंग मेंबर्स और जो तेरह देश इसमें शामिल हैं, हिंद-प्रशांत में वे कैसे क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को बैलेंस करते हैं, कैसे स्टैंडर्ड सेट करते हैं और कैसे चीन के खिलाफ एक काउंटर नैरेटिव खड़ा करते हैं.

भारत के लिए यह बैठक कई मायनों में खास

भारत के लिए यह बैठक कई मायनों में खास रही. भारत ने यह रेखांकित कर दिया कि यूक्रेन मसले पर उपजे मतभेद उसकी हिंद-प्रशांत की रणनीति के आड़े नहीं आ रहे. दूसरे, हिंद-प्रशांत इकॉनमिक फ्रेमवर्क में भारत ने हिस्सा लेने की बात साफ कर दी है. वह उसका फाउंडिंग मेंबर है. तीसरे, भारत के अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ जो द्विपक्षीय संबंध हैं, उसमें भारत ने साफ किया है वह एक ट्रस्ट बेस्ड रिलेशनशिप की तरफ बढ़ रहा है. प्रधानमंत्री ने अपनी यात्रा में भी यह बात दो-तीन बार की. प्रेसिडेंट बाइडन के साथ हुई मीटिंग में भी उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ भारत के भरोसे पर टिके संबंध बन बन रहे हैं, भारत उसके बहुत अहमियत देता है. एक तरह से भारत अपने रिश्तों और साझेदारी को अलग तरह आंक रहा है, जिसमें भरोसा हो, आश्वस्ति हो और दूसरे देशों और भारत के बीच आम सहमति हो. ऐसे रिश्तों में भारत और ज्यादा निवेश करने को तैयार है.


यह लेख मूल रूप से नवभारत टाइम्स में प्रकाशित हो चुका है.

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