Author : Theresa Fallon

Published on Jul 06, 2021 Updated 0 Hours ago

चीन की कंपनियों को पहले से ही यूरोपीय बाज़ारों में बड़े पैमाने पर रियायतें हासिल हैं. ट्रंप प्रशासन के आख़िरी दिनों के दौरान यूरोपीय संघ ने चीन के साथ ये समझौता करने में काफ़ी हड़बड़ी दिखाई थी

अमेरिका-‘यूरोपीय संघ’ संबंध:चीन ने अपने ही पैर पर मारी कुल्हाड़ी

19 मई को यूरोपीय संसद ने एक ऐसे प्रस्ताव को मंज़ूरी दी, जिससे यूरोपीय संघ- चीन के बीच ‘निवेश संबंधी व्यापक समझौते (CAI) को न सिर्फ़ ठंडे बस्ते में डाल दिया गया, बल्कि इस पर मुहर लगाने की चर्चा को भी टाल दिया गया’. इसके साथ-साथ यूरोपीय संसद ने यूरोपीय संघ की विदेशी निवेश की पड़ताल करने वाले नियमों और विदेशी सब्सिडी की पड़ताल के नियमों को सख़्त करने जैसे कुछ और क़दमों का भी सुझाव दिया, जो सीधे-सीधे चीन को निशाने पर लेने वाली बात है. यही नहीं, संसद ने यूरोपीय संघ से ये भी कहा कि वो ‘ट्रांस-अटलांटिक डायलॉग ऑन चाइना के दायरे में अमेरिका के साथ सहयोग और तालमेल को और बढ़ाए.’ ऐसे में ये सवाल उठता है कि आख़िर ये कैसे हो गया?

अभी पिछले साल दिसंबर की ही बात है जब यूरोपीय संघ और चीन के बीच निवेश संबंधी एक नए व्यापक समझौते (CAI) पर राजनीतिक सहमति बनी थी, जिससे यूरोपीय कंपनियों की चीन के बाज़ार में पहुंच बेहतर होती. चीन की कंपनियों को पहले से ही यूरोपीय बाज़ारों में बड़े पैमाने पर रियायतें हासिल हैं. ट्रंप प्रशासन के आख़िरी दिनों के दौरान यूरोपीय संघ ने चीन के साथ ये समझौता करने में काफ़ी हड़बड़ी दिखाई थी. इसके लिए उसने अमेरिका की नई सरकार के साथ तालमेल से काम करने का इंतज़ार तक नहीं किया था. चीन के राष्ट्रपति शीजिनपिंग ने इसमें सीधे दख़ल देते हुए यूरोपीय संघ को रियायतों का आख़िरी प्रस्ताव दिया था, जिससे यूरोपीय संघ और चीन के बीच ये द्विपक्षीय समझौता हो जाए, और यूरोप व अमेरिका के बीच दरार पैदा की जा सके.

कई नीतिगत मसलों पर यूरोपीय संघ, चीन के ख़िलाफ़ खुलकर अमेरिका के साथ खड़ा होने से हिचकिचाता रहा है. चीन की स्थायी विकास दर को देखते हुए, यूरोपीय संघ चीन के साथ व्यापार और निवेश से लाभ उठाने को उत्सुक है.

चीन के बारे में अपने 2019 के सामरिक दृष्टिकोण में यूरोपीय संघ ने चीन की तीन अलग अलग पहचानें बताई थीं: एक साझीदार (मिसाल के लिए जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर), एक प्रतिद्वंदी (उदाहरण के लिए व्यापार में) और एक संस्थागत दुश्मन (मूल्यों और प्रशासन के मोर्चे पर. यूरोपीय संघ अभी भी इसी नीति पर अमल करता है. हालांकि, 19 मई को पारित यूरोपीय संसद के प्रस्ताव में कहा गया है कि,‘यूरोपीय संघ और चीन के बीच मौजूदा रणनीति की सीमाएं उजागर हो गई हैं’. कई नीतिगत मसलों पर यूरोपीय संघ, चीन के ख़िलाफ़ खुलकर अमेरिका के साथ खड़ा होने से हिचकिचाता रहा है. चीन की स्थायी विकास दर को देखते हुए, यूरोपीय संघ चीन के साथ व्यापार और निवेश से लाभ उठाने को उत्सुक है. निवेश संबंधी व्यापक समझौता इसी नज़रिए का नतीजा था.

इस बहुआयामी नज़रिए के हिसाब से यूरोपीय संघ को उस वक़्त कोई विरोधाभास नहीं नज़र आया, जब 22 मार्च 2021 को उसने अमेरिका और अन्य साझेदारों के साथ मिलकर, चीन को ‘संस्थागत दुश्मन’ के नज़रिए से देखते हुए चीन के चार नागरिकों और एक कंपनी पर प्रतिबंध लगाया. इन सब पर शिंजियांग सूबे में वीगरों पर ज़ुल्म ढाने के आरोप हैं. हालांकि, चीन ने इस क़दम का बहुत बुरा माना. चीन ने भी उसी दिन कई गुना बड़ा पलटवार करते हुए यूरोपीय संघ के 10 नागरिकों और चार संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिए. इनमें राजनयिक, सभी राजनीतिक पक्षों से ताल्लुक़ रखने वाले संसद सदस्य, थिंकटैंक और रिसर्चर शामिल थे. जैसा कि यूरोपीय संसद ने कहा भी कि चीन के प्रतिबंधन अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार क़ानूनों पर आधारित नहीं हैं, बल्कि ये विशुद्ध रूप से राजनीतिक पलटवार है. चीन के इन जवाबी प्रतिबंधों के चलते ही यूरोपीय संसद ने ये प्रस्ताव पारित किया.

यूरोप को लेकर चीन ने बदला पैंतरा

22 मार्च के बाद चीन की सरकार ने यूरोपीय संघ पर हमले करने में कोई क़सर बाक़ी नहीं रखी. चीन के आधिकारिक बयानों और सरकारी मीडिया ने जर्मनी को ‘नाज़ीवादी’ और ‘नामीबिया का नरसंहार करने वाले हत्यारे’ कहकर अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर किया. इसके बाद चीन ने पूरे यूरोप पर नस्लवादी होने का आरोप लगाया. चीन ने बरसों से यूरोप के साथ बहुत सावधानी भरा बर्ताव करने वाला चोला उतार फेंका, और अपना ऐसा रूप दिखाया जो यूरोप ने पहले नहीं देखा था.

दो थिंक टैंक पर पाबंदी लगाकर चीन ने ज़ाहिर कर दिया कि अगर अपने मन की बात सुनने को नहीं मिलती, तो चीन बोलने और विचार की आज़ादी को सज़ा देता है. यूरोप को इस बात की झलक मिल गई कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के राज में भविष्य कैसा होने वाला है. अगर लोग जान-बूझकर लोकतंत्र, मूल्यों और यूरोपीय संघ के बुनियादी ढांचों पर हमले की ओर से आंखें मूंदे रहे, तो आज जो हॉन्गकॉन्ग में हो रहा है, वो कल को धीरेधीरे यूरोप में भी हो सकता है

दो थिंक टैंक पर पाबंदी लगाकर चीन ने ज़ाहिर कर दिया कि अगर अपने मन की बात सुनने को नहीं मिलती, तो चीन बोलने और विचार की आज़ादी को सज़ा देता है. यूरोप को इस बात की झलक मिल गई कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के राज में भविष्य कैसा होने वाला है

निवेश संबंधी व्यापक समझौते के एक पहलू ने यूरोपीय संसद के सदस्यों को ख़ासतौर से भड़का दिया था. पता ये चला कि समझौते के एक उपबंध के मुताबिक़ चीन में काम करने वाली यूरोप की ग़ैर सरकारी संस्थाओं की अगुवाई चीन के नागरिकों के हाथ में होगी. इनमें जर्मनी के राजनीतिक फ़ाउंडेशन जैसे कि कोनराड एडेनॉर फ़ाउंडेशन या फ्रेडरिक एबर्ट फ़ाउंडेशन शामिल होंगे. यूरोपीय आयोग ने यूरोपीय संसद को इस शर्त की जानकारी नहीं दी थी. इससे दोनों संस्थाओं के बीच अविश्वास पैदा हुआ.

यूरोप भर में हो रहे ओपिनियन पोल भी ये इशारा करते हैं कि चीन को लेकर लोगों की राय बिगड़ रही है. फिर भी आर्थिक हितों को मानव अधिकारों पर तरज़ीह देते हुए, फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों और जर्मनी की चांसलर मर्केल ख़ामोश रहे थे.

इसी दौरान जर्मनी की संसद एक ऐसे विधेयक पर विचार कर रही है, जिससे जर्मनी की कंपनियों के चीन के शिंजियांग जैसे उन इलाक़ों में निवेश करने पर रोक लग जाएगी, जहां मानव और श्रमिक अधिकारों का सम्मान नहीं होता. जर्मनी की संसद ये विधेयक सितंबर में अपना कार्यकाल ख़त्म होने से पहले पारित कर सकती है. अन्य यूरोपीय देश भी या तो ऐसे क़ानून बनाने पर काम कर रहे हैं या तो उन्होंने ऐसे क़ानून बना लिए हैं.

19 मई को यूरोपीय संसद द्वारा पारित प्रस्ताव में यूरोपीय आयोग से मांग की गई कि वो पूरे यूरोपीय संघ से जुड़े आपूर्ति श्रृंखला का विधेयक तैयार करे जिसमें ऐसे आयात की पड़ताल करने और उन पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान हो, जिन्हें ज़बरदस्ती मज़दूरी के ज़रिए तैयार किया गया हो. इससे पहले चीन अपने यहां कारोबार करने की इच्छुक यूरोपीय कंपनियों के सामने शर्त रखी थी कि वो शिंजियांग में निवेश करें. उदाहरण के लिए फ़ॉक्सवैगन ने शिंजियांग के उरुमची में एक कारख़ाना खोला था. जब कड़ी निगरानी वाले नियम लागू हो जाएंगे, तो यूरोपीय कंपनियां ऐसी चीन की ऐसी शर्तें या गुज़ारिशें मानने को बाध्य नहीं रह जाएंगी.

जर्मनी में राजनीतिक बदलाव

सितंबर में होने वाले जर्मनी के चुनाव एक बड़ा राजनीतिक बदलाव ला सकते हैं. 16 साल सत्ता में रहने के बाद एंजेला मर्केल रिटायर होंगी. हो सकता है कि उनकी जगह विपक्षी ग्रीन पार्टी की एनालेना बेयरबॉक लें, जो चीन के बारे में सख़्त नज़रिया रखती हैं. इसका असर यूरोपीय संघ के स्तर पर भी होगा. फिर चीन को लेकर बहुआयामी नज़रिया अपनाने, अलग अलग मुद्दों को अलग नज़र से देखने और कारोबार को तरज़ीह देने की नीति की जगह मूल्य और हितों पर आधारित संबंध ले सकते हैं. चीन को लेकर यूरोप और अमेरिका की नीतियों में तालमेल बढ़ सकता है.

16 साल सत्ता में रहने के बाद एंजेला मर्केल रिटायर होंगी. हो सकता है कि उनकी जगह विपक्षी ग्रीन पार्टी की एनालेना बेयरबॉक लें, जो चीन के बारे में सख़्त नज़रिया रखती हैं.

20 मई को चीन के आधिकारी पार्टी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक दिन पहले पारित यूरोपीय संसद के प्रस्ताव के ख़िलाफ़ कड़े तेवर दिखाते हुए लिखा कि, ‘ये यूरोपीय संघ की बड़ी कमज़ोरी है; वो नियमों का पूरी तरह पालन करने के क़ाबिल ही नहीं है.’ ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि यूरोपीय संघ एक भरोसेमंद आर्थिक साझीदार नहीं है. क्योंकि, वो किसी भी मसले को ‘राजनीतिक चश्मे’ से देख सकता है. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि, ‘अमेरिका के इशारों पर नाचकर यूरोपीय संघ चीन के साथ आर्थिक सहयोग के सबसे अहम समझौते को नष्ट कर रहा है. वो अमेरिका के मक़सद के लिए अपने फ़ायदों की क़ुर्बानी दे रहा है.’

सच तो ये है कि अपनी हरकतों और ख़ासतौर से 22 मार्च को लगाए गए जवाबी प्रतिबंधों से ख़ुद चीन ने यूरोपीय संघ को अमेरिका के पाले में धकेला है. अभी ये साफ़ नहीं है कि आख़िर चीन ने यूरोपीय संघ पर क्यों कई गुना ज़्यादा सख़्त प्रतिबंध लगाया, और यूरोपीय संघ के सभी राजनीति पक्षों को अपने निशाने पर लिया. हो सकता है कि इसमें घरेलू राजनीति की भी कुछ भूमिका हो. लेकिन, सब बातों पर ग़ौर करके ऐसा लगता है कि चीन ने ये ग़लत दांव चला.

यूरोपीय संसद निवेश संबंधी व्यापक समझौते (CAI) पर तबतक विचार नहीं करेगी, जब तक चीन अपनी पाबंदियां हटा नहीं लेता और ये इस बात पर निर्भर करेगा कि यूरोपीय संघ, चीन पर लगाए प्रतिबंध हटाए. हालांकि, यूरोपीय संघ प्रतिबंध हटाने को तब तक जायज़ नहीं ठहरा सकता, जब तक शिंजियांग में मानव अधिकारों की स्थिति बेहतर न हो. इसकी संभावना कम ही है. यानी इस समय समझौता पूरी तरह से अधर में लटक गया है.

वहीं दूसरी तरफ़, चीन के मसले पर यूरोपीय संघ और अमेरिका के अधिकारियों ने अपने बीच तालमेल बढ़ाना शुरू कर दिया है; जैसे कि 5 मई को यूरोपीय संघ के उच्च प्रतिनिधि जोसेफ़ बॉरेल और अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन के बीच बैठक हुई. 26 मई को यूरोपीय संघ और अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारी चीन पर दोनों पक्षों के पहले संवाद के तहत मिले. चीन पर अमेरिका-यूरोपीय संघ के इस संवाद के तहत दोनों पक्षों ने चीन के बारे में अपनी तमाम नीतियों पर विस्तार से चर्चा की. आख़िर में जहां तक यूरोप के साथ व्यापक निवेश समझौते की बात है, तो चीन ने ख़ुद से ही अपने आपको नुक़सान पहुंचाया है. अगर हम माओ की ज़ुबान में कहें तो, ये ‘एक भारी चट्टान उठाकर अपने पैरों पर ही दे मारने’ जैसा था.

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