Author : Angad Singh Brar

Published on Nov 27, 2023 Updated 0 Hours ago

अमेरिका और चीन के बीच मुकाबले ने गज़ा को मानवीय सहायता पहुंचाने पर बहुत बुरा असर डाला है. ये बहुपक्षीय सहायता पहुंचाने के सिस्टम में सुधार और इसमें UNSC की भूमिका पर फिर से विचार करने के लिए एक चेतावनी है.

अमेरिका-चीन मुकाबला: गज़ा को दिये जाने वाले बहुपक्षीय मदद पर असर!

गज़ा में इज़रायल के हमलों के बीच सुरक्षा परिषद की कूटनीतिक बैठक में कई बार वीटो का इस्तेमाल देखा गया जिनके ज़रिए एक के बाद एक प्रस्ताव को ठुकराया गया. इस तरह संयुक्त राष्ट्र की तरफ से थोपे जाने वाले ‘मानवीय युद्ध विराम’ की संभावना को नाकाम कर दिया गया. इसने संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों जैसे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व खाद्य कार्यक्रम, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (OHCHR) और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) को बेबस और आवश्यक मानवीय सहायता मुहैया कराने में असफल बना दिया है. पहला वीटो उस समय देखा गया जब अमेरिका ने प्रस्ताव S/2023/773 के ख़िलाफ़ वीटो का इस्तेमाल किया क्योंकि इसमें न तो इज़रायल के आत्मरक्षा के अधिकार का ज़िक्र किया गया था, न ही हमास का नाम लिया गया था. इस नकारात्मक वोट की उम्मीद की जा रही थी क्योंकि अमेरिका ने 1945 से 2023 के बीच इज़रायल और फिलिस्तीन से जुड़े प्रस्तावों पर 34 बार अपने वीटो का इस्तेमाल किया था. अमेरिका “सुरक्षा परिषद के द्वारा इज़रायल और फिलिस्तीन को बांटने वाले मूल मुद्दों के समाधान की कोशिश को नासमझी” बताता है. ये कदम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की मध्यस्थता में बातचीत के उलट अमेरिका को इज़रायल के आसपास अपना क्षेत्रीय दबदबा बरकरार रखने और अलग-अलग पक्षों के बीच सीधी बातचीत को बढ़ावा देने की अनुमति देता है. अमेरिका के द्वारा संघर्ष को रोकने या “युद्ध विराम” की तुलना में “विराम” का प्रस्ताव UNSC की ताकत को नियंत्रित करके रणनीतिक रूप से इज़रायल के हितों की रक्षा करने के बाद आया है. 

अमेरिका “सुरक्षा परिषद के द्वारा इज़रायल और फिलिस्तीन को बांटने वाले मूल मुद्दों के समाधान की कोशिश को नासमझी” बताता है. .

सुरक्षा परिषद में अमेरिका के वीटो की जहां उम्मीद की जा रही थी, वहीं ये उम्मीद से परे था कि अमेरिका अपने वीटो का उपयोग करने के बाद अपने मसौदा प्रस्ताव का प्रायोजक बनेगा और इसे UNSC के सामने पेश करेगा. अमेरिका प्रायोजित ऐसे प्रस्ताव बहुत कम आते हैं और इसके दो आयाम हैं. पहला, अमेरिका के लिए फिलिस्तीन के संघर्ष में UNSC को शामिल करना असामान्य है. ये अमेरिका के दशकों पुराने इस रुख के ख़िलाफ़ है कि सुरक्षा परिषद से इज़रायल-फिलिस्तीन झगड़े को दूर रखा जाए. दूसरा, इस प्रस्ताव ने पहली बार इज़रायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर एक के बाद एक रूस-चीन जुगलबंदी के द्वारा वीटो का इस्तेमाल देखा. उसमें भी रूस के द्वारा नकारात्मक वोट की उम्मीद तो की जा रही थी लेकिन चीन के द्वारा सामान्य तौर पर गैर-हाज़िर होने की तुलना में सीधे वीटो के उपयोग को एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तौर पर देखा जाना चाहिए. अगर पश्चिम एशिया में एक शांति समझौते के लिए मध्यस्थता में चीन के हितों के साथ देखा जाए तो चीन का वीटो संकेत देता है कि वो उसी तौर-तरीके का पालन कर रहा है जो अमेरिका अपना रहा है यानी UNSC में गतिरोध पैदा करना ताकि अलग-अलग पक्षों के बीच महाशक्तियों के दबदबे के तहत सीधे मध्यस्थता की जाए. इस समय चीन की तरफ से वीटो हमास को एक साफ संकेत भेजता है कि अरब गल्फ को संतुष्ट करने के लिए चीन के पास सिर्फ रुतबा ही नहीं है बल्कि बहुपक्षीय संस्थानों में साहसिक कदम उठाने की इच्छा भी है. ये इज़रायल-फिलिस्तीन विवाद में एक संभावित मध्यस्थ के तौर पर फिलिस्तीनी नेतृत्व के सामने चीन की साख को बढ़ाता है. चीन ने खुले तौर पर एलान किया है कि वो चीन में सीधी शांति वार्ता आयोजित करने के लिए फिलिस्तीन और इज़रायल के वार्ताकारों का स्वागत करेगा. इससे ये भी स्पष्ट होता है कि अमेरिका की तरह चीन भी संयुक्त राष्ट्र बहुपक्षीय नेटवर्क के बाहर शांति वार्ता का स्वागत करता है. 

अमेरिका की महत्वकांक्षा

एक अंतर्राष्ट्रीय शांति सम्मेलन के लिए चीन के प्रस्ताव को भू-राजनीतिक तर्कों के साथ भी पढ़ा जाना चाहिए. चीन के द्वारा इस तरह के शांति सम्मेलन की मांग को विश्लेषक संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी बहुपक्षीय रूप-रेखा के पालन की तरह समझ रहे हैं. ये संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव 42/66D से उपजा है जिसमें UNSC को इस तरह के शांति सम्मेलन का आयोजन करने को कहा गया है. UNSC के भीतर कड़े रुख़ वाले अमेरिका की मौजूदगी को देखते हुए इस तरह के सम्मेलन की उम्मीद बहुत कम है क्योंकि इज़रायल ने इस तरह के विचार का विरोध किया है. इसलिए चीन की तरफ से पिछले दिनों सम्मेलन की अपील चीन के द्वारा पश्चिम एशिया के संघर्ष में उसकी सीधी मध्यस्थता की छिपी हुई महत्वाकांक्षा को ढंकने का काम करता है. ये चीन को अलग-अलग पक्षों के बीच सीधे तौर पर मध्यस्थता करने की अपनी महत्वाकांक्षा को जारी रखने की अनुमति देता है और इससे चीन पर ये आरोप भी नहीं लगता कि वो अपने भू-राजनीतिक हितों के लिए संयुक्त राष्ट्र की बहुपक्षीय व्यवस्था को बंधक बना रहा है. 

अगर पश्चिम एशिया में एक शांति समझौते के लिए मध्यस्थता में चीन के हितों के साथ देखा जाए तो चीन का वीटो संकेत देता है कि वो उसी तौर-तरीके का पालन कर रहा है जो अमेरिका अपना रहा है यानी UNSC में गतिरोध पैदा करना ताकि अलग-अलग पक्षों के बीच महाशक्तियों के दबदबे के तहत सीधे मध्यस्थता की जाए.

वैसे तो UNSC को पंगु बनाना अमेरिका और चीन के हित को बढ़ाता है, लेकिन परिषद में वीटो के असर ने बहुपक्षीय प्रतिक्रिया की पूरी श्रृंखला को प्रभावित किया है. मानवीय प्रतिक्रिया पर तालमेल रखने वाली संयुक्त राष्ट्र की सबसे बड़ी संस्था इंटर-एजेंसी स्टैंडिग कमेटी (IASC) ने गज़ा संकट का जवाब एक साझा बयान के साथ दिया जिस पर UN के 18 संस्थानों (तस्वीर 1 देखिए) के मुख्य प्रतिनिधि के हस्ताक्षर थे. UNSC से मंज़ूरी के बिना अलग-अलग संस्थानों का जवाब इस तरह के बयान तक सीमित रहा है क्योंकि गज़ा तक जाने वाली सहायता का संचालन UN नहीं बल्कि मिस्र के संगठन कर रहे हैं जिनमें अन्य संगठनों के अलावा इजिप्शियन रेड क्रेसेंट और इजिप्शियन फूड बैंक शामिल हैं. इन संगठनों ने मिलकर एक कॉन्सॉर्टियम बनाया है जिसे नेशनल अलायंस फॉर सिविल डेवलपमेंट वर्क (NACDW) का नाम दिया गया है और जो ज़मीन पर काम कर रहा है. यहां तक कि UN ने भी मदद के पारंपरिक तौर-तरीकों से अलग राह अपनाई है और आख़िरकार मिस्र की सरकार से इस बात की मंज़ूरी हासिल कर ली है कि इजिप्शियन रेड क्रेसेंट के द्वारा पहुंचाई जा रही सहायता का मार्गदर्शन संयुक्त राष्ट्र की मानवीय टीम करे. अलग-अलग देश और गैर-सरकारी संगठन, जो गज़ा के लिए सहायता भेज रहे हैं, भी इजिप्शियन रेड क्रेसेंट और मिस्र के दूसरे संगठनों से संपर्क कर रहे हैं क्योंकि UN की एजेंसियां सुरक्षा परिषद में गतिरोध की वजह से कुछ कर नहीं पा रही हैं. ये स्थिति एक तरफ जहां सिविल सोसायटी के किरदारों के द्वारा अदा की जा रही भूमिका को उजागर करती है, वहीं ये संकट के समय में बहुपक्षीय प्रतिक्रिया के पूरी तरह ध्वस्त होने का उदाहरण भी है. UN के द्वारा संचालित मानवीय सहायता का ठप होना वास्तविक घटना है.

TUNSC के भीतर कड़े रुख़ वाले अमेरिका की मौजूदगी को देखते हुए इस तरह के सम्मेलन की उम्मीद बहुत कम है क्योंकि इज़रायल ने इस तरह के विचार का विरोध किया है. इसलिए चीन की तरफ से पिछले दिनों सम्मेलन की अपील चीन के द्वारा पश्चिम एशिया के संघर्ष में उसकी सीधी मध्यस्थता की छिपी हुई महत्वाकांक्षा को ढंकने का काम करता है.

 

तस्वीर 1: गज़ा को लेकर IASC के साझा बयान पर हस्ताक्षर करने वालों की सूची

मानवीय सहायता पर ये असर अमेरिका और चीन के द्वारा ख़ुद को पश्चिम एशिया में शांति के मध्यस्थ के तौर पर पेश करने की प्रतिस्पर्धा की वजह से पड़ा है. बहुपक्षीय सहायता पहुंचाने के तौर-तरीकों और इसमें UNSC की भूमिका में बदलाव के लिए इस हालात को एक चेतावनी के तौर पर काम करना चाहिए. मदद पहुंचाने में UNGA को ज़्यादा अधिकार मिलना चाहिए. जब हालात संकट से घिरे हों उस वक़्त सांगठनिक सुधार के लिए दबाव देना बेकार साबित होगा. इस हालात में UN की एजेंसियों और NACDW के बीच गहन तालमेल की ज़रूरत है. प्रारंभिक तालमेल की शुरुआत हो गई है क्योंकि अब UN की टीम मिस्र के अलग-अलग NGO के द्वारा मदद पहुंचाने की कोशिशों का मार्गदर्शन कर सकती है. आवश्यकता इस बात की है कि सहयोग में बढ़ोतरी की जाए ताकि सिविल सोसायटी के किरदार UN एजेंसियों के पास मौजूद सहायता के भंडार का आसानी से इस्तेमाल कर सकें और गज़ा तक मानवीय सहायता में बढ़ोतरी कर सकें. 


अंगद सिंह बराड़ ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं.

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