Author : Shivam Shekhawat

Published on Apr 07, 2023 Updated 0 Hours ago

पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है कि कैसे बिना तालिबान की ताक़त बढ़ाए अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों को मदद पहुंचाई जाए.

अफ़ग़ानिस्तान में मदद और सहायता: चुनौतियां और आगे की राह

एक विवादास्पद लेख (ऑप-एड) में, अफ़ग़ानिस्तान के इस्लामिक अमीरात (आईईए) के अंतरिम विदेश मंत्री, मौलवी अमीर खान मुत्तकी ने तालिबान के तहत अफ़ग़ानिस्तान के परिवर्तन के बारे में काफी बातें बढ़ा चढ़ा कर लिखीं. अफ़ग़ानिस्तान अब एक "स्वतंत्र, शक्तिशाली, एकजुट, केंद्रीय और ज़िम्मेदार सरकार" द्वारा शासित है, जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ सकारात्मक रूप से जुड़ने के लिए इच्छुक है और दुनिया से अपने प्रति दृष्टिकोण में बदलाव करने की आग्रह कर रहा है जिससे भविष्य की ओर उम्मीद से देखा जा सके. देश में नया अमीरात अब देश के अफ़ग़ानीकरण के माध्यम से विदेशी सहायता पर अपनी अत्यधिक निर्भरता से अफ़ग़ानिस्तान को बाहर निकालने पर ध्यान केंद्रित करने वाला है. देश में महिलाओं की स्थिति और अधिकारों का किसी भी तरह का विवरण दिए बिना अफ़ग़ानिस्तान की सरकार काबुल की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए विदेशी देशों से अपने देश को अपने पैरों पर खड़े होने में सहायता करने की अपील कर रहा है.

जैसे-जैसे अधिक महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित किया जाता है वैसे-वैसे दूसरे कमज़ोर समूहों के लिए कम संसाधन उपलब्ध होते जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अन्य क्षेत्रों जैसे ड्ब्लूयएएसएच आदि में कमी आई है.

अफ़ग़ानिस्तान में स्थिति तेजी से कैसे बदल गई है, इस हास्यास्पद अवधारणा से परे, ज़मीन पर परिस्थितियां लगातार बदतर होती जा रही हैं. जनवरी 2020 में ज़रूरतमंद लोगों की संख्या 9.4 मिलियन से बढ़कर 2023 में 28.3 मिलियन हो गई है. शहरी क्षेत्रों में अधिक से अधिक लोग अब जीवन यापन के लिए सहायता और मानवीय मदद पर निर्भर हैं. हालांकि आर्थिक संकेतकों में स्थिरता देखी जा रही है लेकिन साल-दर-साल मुद्रास्फीति की दर 3.5 प्रतिशत तक गिर गई है, खाद्य और गैर-खाद्य वस्तुओं की उपलब्धता में बढ़ोतरी हुई है और विदेशी मुद्राओं के मुक़ाबले अफ़ग़ानी करेंसी में बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है लेकिन इससे लोगों को अभी तक राहत नहीं मिल पाई है. कृषि और कंस्ट्रक्शन गतिविधियों में गिरावट ने कुशल और अकुशल दोनों तरह के मज़दूरों की मांग को बाज़ार में कम कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप घरेलू आय और कुल मांग पर असर पड़ा है. पाकिस्तान और ईरान में बिगड़ते हालात की वज़ह है बढ़ती जनसंख्या, सीमा पार से आने वाले लोगों और बार-बार सूखा और अकाल. इनकी वज़ह से भी अफ़ग़ानिस्तान में कठिनाइयां और बढ़ गई हैं.

सभी किरदारों – जिसमें अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, मदद करने वाली संस्थाएं और तालिबान भी शामिल हैं – अफ़ग़ानिस्तान के अस्तित्व के लिए मानवीय सहायता और मदद राशि की अहमियत को समझते हैं और इस संकट से निपटने के लिए एकीकृत और सामान्य दृष्टिकोण के महत्व को पहचानते हैं लेकिन तालिबान सरकार की कुछ गोपनीय नीतियों के चलते पूरा मामला आगे काफी पेचीदा हो जाता है. इसलिए मदद और सहायता को लेकर जो उलझन है उसे ठीक करने के लिए उसकी व्याख्या और दृष्टिकोण के विषयगत अंतर को समझना ज़रूरी है, वो भी इस बात का भरोसा दिलाते हुए कि तालिबान विदेशी सहायता और मदद राशि का इस्तेमाल अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए नहीं करेगा.

फंड की कमी: डोनरों का उपेक्षापूर्ण रवैया?

संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (यूएनडब्ल्यूएफपी) ने हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान में सहायता राशि देने की तत्काल अपील की है. यूएनडब्ल्यूएफपी ने अप्रैल में चेतावनी जारी की है कि 9 मिलियन से ज़्यादा लोग खाद्य सहायता तक अपनी पहुंच खो सकते हैं और धन की कमी के कारण मार्च में लगभग 4 मिलियन लोगों के राशन को आधा कर दिया गया था. यूएनडब्ल्यूएफपी ने अप्रैल के लिए 93 मिलियन अमेरिकी डॉलर और उसके बाद के छह महीनों के लिए 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी की पहचान की और डोनर देशों से हालात और ना बिगड़े इसके लिए ह्यूमैनिटैरियन रिस्पॉन्स प्लान, 2023 के तहत की गई फंडिंग अपील का जवाब देने का आग्रह किया. विदेशी फंडिंग में आई इस गिरावट के लिए एक ही कारण ज़िम्मेदार है यह कहना ग़लत होगा, क्योंकि तालिबान के नीतिगत फैसले और अपने राजस्व को वो कैसे ख़र्च करना चाहते हैं, इसे लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में हिचकिचाहट है लेकिन भविष्य में फंडिंग इस बात पर निर्भर करेगा कि तालिबान और उसकी नीतियों और कार्यों का रुझान कैसा होता है. 

पाकिस्तान और ईरान में बिगड़ते हालात की वज़ह है बढ़ती जनसंख्या, सीमा पार से आने वाले लोगों और बार-बार सूखा और अकाल. इनकी वज़ह से भी अफ़ग़ानिस्तान में कठिनाइयां और बढ़ गई हैं.

सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की भागीदारी पर तालिबान के नीतिगत फैसलों का स्वयंसेवी संगठनों के कार्यों और अंतिम लोगों तक पहुंचने की उनकी क्षमता पर सीधा असर पड़ता है. स्वयंसेवी संगठनों के कुल वर्कफोर्स में 30-40 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी यह सुनिश्चित करने के लिए बेहद ज़रूरी है कि सबसे कमज़ोर समूहों को सहायता और मदद का हिस्सा प्राप्त हो सके. इसलिए, जब तालिबान ने महिलाओं को स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ में काम करने से प्रतिबंधित कर दिया, तो सहायता कार्यक्रम गंभीर रूप से प्रभावित हुआ और लगभग 150 संगठनों ने अपने काम को रोक दिया. संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी हालांकि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए तालिबान सरकार से रियायत पाने में सफल रहे जिसने यह दिखाया कि कैसे तालिबान की समाज को पीछे ले जाने वाली नीतियों का सामना किया जा सकता और इसका वितरण और सहायता के आवंटन पर असर पड़ता है. जैसे-जैसे अधिक महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित किया जाता है वैसे-वैसे दूसरे कमज़ोर समूहों के लिए कम संसाधन उपलब्ध होते जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अन्य क्षेत्रों जैसे ड्ब्लूयएएसएच आदि में कमी आई है.

अपेक्षित लोगों तक सहायता पहुंचने की आशंकाओं ने भी डोनर के निर्णयों को प्रभावित किया है. हाल ही में जिनेवा में अफ़ग़ानिस्तान मिशन के कानूनी सलाहकार ने तालिबान सरकार पर एनजीओ को पंजीकृत करने और संगठन से संबंधित जानकारी देने को बाध्य कर सहायता वितरण में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया था. तालिबान के समर्थकों या समूह द्वारा औपचारिक बैंकिंग चैनलों की अनुपस्थिति में हवाला के रास्ते धन के दुरुपयोग को लेकर भी कई तरह की रिपोर्टें सामने आई हैं. गणतंत्र दिवस के मौक़े के दौरान भी राजनीतिक छवि को चमकाने के लिए विदेशी मदद को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया गया था, जिसमें जातीयता जैसे राजनीतिक कारकों के आधार पर वितरण को अंजाम दिया गया. जो औपचारिक टिकाऊ भुगतान चैनल की कमी, द अफ़ग़ानिस्तान बैंक के अधर में लटकने, पूंजी नियंत्रण और प्रतिबंधों के तहत भ्रमात्मक स्थिति की वज़ह से सहायता संगठनों की फंडिंग जारी रखने की क्षमता को कम कर देता है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान में अभी भी कोई मदद राशि के वितरण का कोई स्थायी चैनल नहीं है.

भले ही तालिबान सरकार के दौरान राजस्व संग्रह में वृद्धि हुई है और आईईए ने पिछले वित्तीय वर्ष (22 मार्च, 2022-21 फरवरी, 2023) में 173.9 बिलियन एएफएन (1.95 बिलियन अमेरिकी डॉलर) एकत्र किए हैं लेकिन तालिबान के व्यय पैटर्न सकारात्मक नहीं हैं और उनके बज़ट का एक बड़ा हिस्सा सुरक्षा और इससे संबंधित क्षेत्रों को सौंपा गया है और विकासात्मक पहलों पर केवल 8 प्रतिशत ही ख़र्च किया गया है. इस तरह से काबुल तक निंरतर मदद के पहुंचने से तालिबान को मानव विकास और सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में निवेश को नज़रअंदाज़ कर सुरक्षा से संबंधित क्षेत्रों पर अपने राजस्व का इस्तेमाल करने का मौक़ा देगा.

सहायता राशि की उलझनों को ठीक करना

एक देश जो मदद या सहायता राशि हासिल करता है, वह या तो मानवीय या फिर विकासात्मक होती है - मानवीय सहायता अधिक महत्वपूर्ण, अल्पकालिक संकटों से संबंधित होती है जबकि विकासात्मक सहायता भविष्य के संकट से निपटने में मददगार होती है और सरकार के दीर्घकालिक परियोजनाओं पर इसका ध्यान केंद्रित रहने के साथ यह शासन में सुधार या क्षमता निर्माण को बढ़ावा देती है. अफ़ग़ानिस्तान में अगस्त 2021 से, विकासात्मक क्षेत्रों पर ख़र्च की जाने वाली सहायता राशि का अनुपात कम हो गया है, क्योंकि डोनर्स अब समाज के सबसे कमज़ोर लोगों को बचाने की ओर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं. जबकि कम समय में यह सहायता महत्वपूर्ण है और यह ज़रूरी नहीं कि देश की अंतर्निहित कमज़ोरियों को यह संबोधित कर रही हो. पिछले कई वर्षों में काबुल को जो सहायता मिली है उसका अनुपात उसकी अर्थव्यवस्था और संस्थानों को आकार देने में सहायक रहा है. अपनी सामरिक स्थिति के कारण, अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसियों के साथ-साथ इस क्षेत्र के बाहर के देशों ने दूसरे देशों की तुलना में अपने सामरिक हितों को सुरक्षित करने के लिए विदेशी सहायता के प्रावधान का इस्तेमाल किया है. मौज़ूदा समय में भी ऐसा ही हो रहा है, 'वैश्विक भू-राजनीतिक फ्लैशप्वाइंट' में तेज़ी से बदलाव होने के साथ तालिबान को अपना शासन स्थापित करने के लिए और अधिक मौक़ा मिल रहा है. अपने एकतरफा बयान को समाप्त करते हुए, मुत्तकी ने चेतावनी दी है कि एक कमज़ोर तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के लिए नई और अप्रत्याशित सुरक्षा, शरणार्थी और आर्थिक चुनौतियों का कारण बनेगा.

एक सामान्य दृष्टिकोण अपनाने के लिए, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के सदस्यों ने 16 मार्च 2023 को अफ़ग़ानिस्तान पर सर्वसम्मति से दो प्रस्ताव पारित किए हैं. पहले ने यूएनएएमए के शासनादेश को एक और वर्ष के लिए बढ़ा दिया है. यानी 17 मार्च, 2024 तक, जबकि दूसरे प्रस्ताव में अफ़ग़ानिस्तान के प्रति एक एकीकृत दृष्टिकोण विकसित करने के लिए यूएन महासचिव से एक आकलन करने और 'भविष्य की सिफारिशों' के साथ सामने आने का आग्रह किया गया है. सदस्यों की आम सहमति पर पहुंचने की सफलता अपने आप में जश्न मनाने की वज़ह है लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में स्थितियों को सुधारने में उनकी भूमिका और उपयोगिता के बारे में संदेह अभी भी कायम है. पश्चिम के साथ रूस और चीन के संबंधों के संदर्भ में सदस्य राज्यों की व्याख्या कि वे किस तरह से इसे वर्णित करते हैं और कि वह क्या है जिसका 'मूल्यांकन' किया जाएगा या किन फैक्टर्स को अधिक महत्व दिया जाना चाहिए. अमेरिका शुरू में मूल्यांकन को मंज़ूरी देने के लिए अनिच्छुक था क्योंकि यह यूएनएएमए के जनादेश को कम करने का संकेत दे सकता था जबकि चीन और रूस चाहते थे कि वह तालिबान के साथ जुड़ाव के व्यापक सवालों को शामिल करे लेकिन यह तर्क देते हुए कि उसे 'सही' मुद्दों का सामना करना चाहिए जैसे संपत्ति पर पाबंदी और एकतरफा प्रतिबंध.

एक सही दृष्टिकोण बनाने में सबसे बड़ी बाधा यह है कि अफ़ग़ानिस्तान में 'प्रासंगिक हितधारक' कौन हैं और क्या वे तालिबान को देश में एक वैध राजनीतिक किरदार के रूप में देखते हैं. यह सवाल अहम हो जाता है. तालिबान को मज़बूत किए बिना अफ़ग़ान लोगों का समर्थन कैसे किया जाए, यह पता लगाना सबसे मुश्किल काम है.

एक सही दृष्टिकोण बनाने में सबसे बड़ी बाधा यह है कि अफ़ग़ानिस्तान में 'प्रासंगिक हितधारक' कौन हैं और क्या वे तालिबान को देश में एक वैध राजनीतिक किरदार के रूप में देखते हैं. यह सवाल अहम हो जाता है. तालिबान को मज़बूत किए बिना अफ़ग़ान लोगों का समर्थन कैसे किया जाए, यह पता लगाना सबसे मुश्किल काम है. हर राष्ट्र अपने दृष्टिकोणों में अलग-अलग है और तालिबान द्वारा अपने क्रूर शासन को मज़बूत करने के लिए ऐसे विभाजन का फायदा उठाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. हालांकि आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या देश एक सफल मूल्यांकन करने में सक्षम है और राष्ट्र की समस्याओं को दूर करने के लिए यह किन संभावित सिफारिशों को आगे बढ़ाता है. सहायता वितरण की ट्राजेक्टरी शासन के भविष्य के नीति निर्देशों और देश में जीवन के अन्य पहलुओं पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी निर्भर करेगा. नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल ने इसे 'पसंद की तबाही' कहते हुए चेतावनी दी थी कि इस साल की फंडिंग आवश्यकताओं को पूरा करने में विफलता अगले साल की मांगों को लगभग 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ा देगी. ऐसी स्थिति से बचने के लिए, डोनर देशों को मानवीय अपील को लेकर एनजीओ के साथ जोख़िम साझा करने का नया दृष्टिकोण तैयार करने की आवश्यकता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.