Published on Jan 06, 2024 Updated 0 Hours ago

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इससे जुड़ी तकनीकों को हथियार की तरह इस्तेमाल न किया जा सके, इसके लिए ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GPAI) और G20 सर्वोच्च भूमिका निभा सकते हैं, और ये दोनों मिलकर ये भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि विकासशील देशों को भी तकनीक बराबरी से हासिल हो

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) के प्रशासन का भविष्य: ग्लोबल साउथ का नज़रिया

जेनरेटिव AI के एप्लीकेशन, बड़े लैंग्वेज मॉडलों (LLM) के विस्तार और आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (AGI) को लागू करने के प्रयासों के कारण, आज इन प्रयासों और तकनीकों का प्रशासन लागू करने की होड़ पूरी दुनिया में चल रही है. तमाम लोकतांत्रिक देशों के नीति निर्माता, उन आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित बनाने की सोच रहे हैं, जो इन तकनीकों के लिए ज़रूरी है. ख़ास तौर से सेमीकंडक्टर और ग्राफिक्स प्रोसेसिंग इकाइयां (GPUs). इस वैश्विक हलचल के बीच भारत ने ग्लोबल पार्टनरशिप फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GPAI) का नेतृत्व अपने हाथ में लेते हुए दिसंबर में इसका शिखर सम्मेलन आयोजित किया. सितंबर 2023 में भारत ने G20 के शीर्ष नेताओं की मेज़बानी भी की थी. एक समूह के तौर पर G20 आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इससे जुड़ी दूसरी तकनीकों के समतावादी मानक लागू करने और इनके नियमन के मोर्चे पर सबसे आगे है. G20 और GPAI के शिखर सम्मेलनों का समापन इस घोषणा के साथ हुआ कि सुरक्षित, मज़बूत और भरोसेमंद AI के नज़रिए को आगे बढ़ाया जाए और ये सभी सदस्यों की सामूहिक ज़िम्मेदारी होगी कि वो AI की टिकाऊ तकनीकें विकसित करें और उनको उपयोग में लाएं, ताकि उनका प्रभाव लंबे समय तक बना रहे. हालांकि, सदस्य देशों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े नैतिक मसलों का सामना भी करना पड़ेगा. फौरी तौर पर AI से जुड़ा एक अहम मामला चौड़ी होती डिजिटल खाई का है.

अगर हम लोगों की सामाजिक और आर्थिक ज़िंदगी में बहुत बड़े बदलाव लाने वाली औद्योगिक क्रांति के संदर्भों से मिलाकर देखें और नैतिक चिंताओं को प्राथमिकता दें, तो GPAI और G20 के सदस्य देश उन नकारात्मक बातों को रोक सकते हैं, जो सही दिशा और नियमन नहीं होने से पैदा हो सकती हैं.

AI और दूसरी उभरती तकनीकों का कम विनियमन वाले रास्ते पर चलने के कई नकारात्मक नतीजे देखने को मिल सकते हैं. ये नतीजे असमानता, निजता के हनन और नैतिकता संबंधी अपराधों को जन्म दे सकते हैं. इसको अगर हम लोगों की सामाजिक और आर्थिक ज़िंदगी में बहुत बड़े बदलाव लाने वाली औद्योगिक क्रांति के संदर्भों से मिलाकर देखें और नैतिक चिंताओं को प्राथमिकता दें, तो GPAI और G20 के सदस्य देश उन नकारात्मक बातों को रोक सकते हैं, जो सही दिशा और नियमन नहीं होने से पैदा हो सकती हैं.

G20 के काफ़ी असरदार और GPAI के सदस्य देशों की तकनीकी विशेषज्ञता के बावजूद, बहुत से देश डिजिटल अंतर की वजह से चुनौतियों का सामना करते हैं. ख़ास तौर से उन्नत तकनीकों और उनके फ़ायदों के असमान वितरण के मामले में. आज AI का विकास चूंकि विकसित बाज़ारों में ज़्यादा हो रहा है, तो ये डिजिटल खाई और भी चौड़ी होती जा रही है. इससे AI के रिसर्च और विकास (R & D) के क्षेत्र में विकसित और विकासशील देशों के बीच तकनीकी फ़ासला बढ़ता जा रहा है. AI इंडेक्स फंड 2023 के मुताबिक़, अमेरिका में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में निजी निवेश (250 अरब डॉलर) ने अन्य सभी अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ दिया है, जिसमें भारत, जापान, ब्रिटेन और G20 के अन्य ज़्यादातर देश शामिल हैं. AI के रिसर्च और विकास में असमान पहुंच के कम विकसित देशों के लिए, आर्थिक ख़तरों, राजनीतिक स्थिरता और संप्रभुता से समझौता करने की मजबूरी और अन्य भयानक परिणाम निकल सकते हैं.

इस वजह से विकसित देश, सैन्य और वित्तीय मक़सदों से AI का इस्तेमाल करने के मामले में काफ़ी बढ़त हासिल कर सकते हैं, जिससे वैश्विक स्तर पर सत्ता का संतुलन भी बिगड़ सकता है. AI की वजह से पैदा होने वाली वित्तीय असमानता से विकसित देशों के तेज़ आर्थिक उभार पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है, जिससे निश्चित रूप से अस्थिरता और राजनीतिक संघर्ष पैदा होंगे. सैन्य क्षेत्र में AI के बढ़ते इस्तेमाल को देखते हुए, ये तकनीकी असमानता, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सीमित क्षमताओं वाले देशों की सुरक्षा और संप्रभुता को ख़तरे में डाल सकती है. भू-राजनीतिक दबदबा बनाने के बजाय, AI का इस्तेमाल समाज की बेहतरी के लिए करने की ज़रूरत बहुत अधिक हो गई है.

अपनी विविधता भरी सदस्यता और आर्थिक दबदबे के कारण, GPAI और G20 के समूहों के पास एक अनूठा नज़रिया है, जिससे वो AI और उभरती हुई तकनीकों की चुनौतियों से निपट सकते हैं. AI तक निष्पक्ष और समान पहुंच और उत्तरदायी तकनीकी तरक़्क़ी की वकालत करके हर सदस्य देश डिजिटल खाई को पाटने में मदद कर सकते हैं और ये सुनिश्चि कर सकते हैं कि AI से सभी देशों का फ़ायदा हो, कि इनका इस्तेमाल भू-राजनीतिक लाभ के लिए या हथियार बनाकर हो.

G20 का डेटा गैप्स इनिशिएटिव 3 (DGI-3) विकासशील देशों को अपने AI के मॉडलों को बनाने में मददगार साबित होगा, ताकि जलवायु परिवर्तन; परिवारों के वितरण की जानकारी; वित्तीय तकनीक और वित्तीय समावेश; और डेटा के निजी स्रोत और प्रशासनिक आंकड़ों के डेटा तक पहुंच और डेटा साझा करना आसान हो सकेगा.

आज की दुनिया में जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और संबंधित तकनीकें, विकास को आगे बढ़ाने के नए तरीक़े बन गए हैं, तो ये सुनिश्चित करना ज़रूरी हो जाता है कि कम और मध्यम आमदनी वाले देशों (LMIC) को भी ऐसी तकनीकें बराबरी से मिल सकें और इस तरह उनको भी बराबरी से मुक़ाबला करने का अवसर प्राप्त हो सके. G20, विकासशील देशों की स्थिरता, सुरक्षा और संप्रभुता को सुनिश्चित करते हुए AI की वकालत मानवता के हितों को आगे बढ़ाने के लिए कर सकता है. G20 नेताओं की नई दिल्ली घोषणा और GPAI की नई दिल्ली घोषणा, फ्रेमवर्क फ़र सिस्टम्स ऑफ डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर, ग्लोबल डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर रिपॉज़िटरी (GDPIR) ने और स्वैच्छिक वन फ्यूचर एलायंस (OFA) जो सामरिक दिशा दिखाई है, वो उभरती तकनीकों और AI को साझा हित में इस्तेमाल करने की दिशा में उठे अहम क़दम हैं. इन पहलों सेष ख़ास तौर से निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में उभरती तकनीकों के साथ डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को बढ़ावा दिया जा सकेगा. G20 का डेटा गैप्स इनिशिएटिव 3 (DGI-3) विकासशील देशों को अपने AI के मॉडलों को बनाने में मददगार साबित होगा, ताकि जलवायु परिवर्तन; परिवारों के वितरण की जानकारी; वित्तीय तकनीक और वित्तीय समावेश; और डेटा के निजी स्रोत और प्रशासनिक आंकड़ों के डेटा तक पहुंच और डेटा साझा करना आसान हो सकेगा.

विकास के लिए डेटा: निजता, पहुंच और समावेशन

AI के डेटासेट और मॉडलों के लिए बहुत बड़ी तादाद में डेटा की ज़रूरत होती है. AI से तैयार मॉडलों के क्षेत्र में डेटा की निजता और सुरक्षा के पहलू बेहद अहम हैं, जिन पर विचार किया जाना चाहिए. नए दौर के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और लार्ज लर्निंग मॉड्यूल (LLM) के विकास के लिए डेटासेट की खुले तौर पर उपलब्धता पहली शर्त है. ये G20 देशों द्वारा अपनाए गए DGI-3 के मॉडल की तरह ही है. भारत में डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) की रणनीति का मक़सद खुले डेटासेट तैयार करने और उनका इस्तेमाल करके जन सेवाओं में सुधार लाना और सरकारी अभियानों को अधिक कुशल और प्रभावी बनाना है. भारत की अगुवाई वाला DPI का आयाम, इस मक़सद के लिए एक शानदार रूप-रेखा प्रस्तुत करता है.

भारत की रणनीति में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की साझेदारियों और मिली-जुली पहलों के ज़रिए खुले एप्लिकेशन प्रोग्रामेबल इंटरफेसेज़ (APIs) या स्टैक के ज़रिए DPI को लागू करना है, जिसमें अलाभकारी संगठन, निजी क्षेत्र और सरकार एक साथ मिलकर काम करते हैं. जानकारी और संसाधनों को इकट्ठा करके ये आपसी सहयोग वाली रणनीति डिटिजटल फासले से प्रभावी ढंग से निपटती है और इनोवेशन के इकोसिस्टम को मज़बूत बनाती है, क्योंकि उद्योग के भागीदारों द्वारा खुले इनोवेशन से नए ग्राहकों को जोड़ने की लागत काफ़ी कम हो जाती है. G20 नेताओं की घोषणा में इस बात को स्वीकार करके तमाम क्षेत्रों में प्रगति और आविष्कारों को बढ़ावा देने में डेटा की महत्ता पर ज़ोर दिया गया है. परिवर्तनकारी तरक़्क़ियों के इस दौर में सदस्य देशों को चाहिए कि वो डेटा की निजता और सुरक्षा संबंधी नियमों को प्राथमिकता दें. यूज़र्स का डेटा इन तरक़्क़ियों की बुनियादी ज़रूरत है. इस बात को स्वीकार करने पर मज़बूत क़दम उठाने ज़रूरी हो जाते हैं.

निजता को लेकर फ़िक्र के साथ साथ DPI रणनीति का एक अहम तत्व समावेश और पहुंच का भी है. आज के डिजिटल युग में पहुंच होना बेहद महत्वपूर्ण है. DPI रणनीति में डेटा जुटाने की प्रक्रिया में विविधता है, जिसमें डिज़ाइन बनाने के दौरान शुरुआत से ही पहुंच को ध्यान में रखा जाता है. इससे इनको लागू करना आसान और सस्ता हो जाता है. पहुंच को प्राथमिकता देने वाली सरकारों और कंपनियों को टैक्स में छूट और आर्थिक मदद देकर हम समावेश को प्रोत्साहन दे सकते हैं और ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि पहुंच, डिज़ाइन प्रक्रिया का एक बुनियादी पहलू हो. इसके लिए वॉयस और चैट पर आधारित डिजिटल सेवाएं दी जा सकती हैं, जिससे बाधाएं दूर करके यूज़र्स को और सशक्त बनाया जा सके. पहुंच सिर्फ़ बदलाव अपनाने के औज़ारों के दायरे से आगे की बात है. इसमें ऐसी नई डिजिटल सेवाओं का निर्माण शामिल है, जो स्वदेशी भाषाओं में वॉयस और चैट की तकनीक का इस्तेमाल करती हों; इस तरह तकनीक से लोगों के संवाद का तरीक़ा हमेशा के लिए बदल जाएगा.

हर इंसान अपनी निजता सुरक्षित रखते हुए डेटा से लाभ ले सके, ये सुनिश्चित करने के लिए ये तत्व अहम हो जाते हैं. भारत में DPI की रणनीति को नए युग की AI तकनीकों से जोड़ने के प्रयास किए जा रहे हैं. नेशनल डेटा एंड एनालिटिक्स प्लेटफार्म (NDAP), इंडिया डेटासेट प्रोग्राम, नेशनल डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क पॉलिसी और डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट को विकसित करके, इसके लिए एक मुफ़ीद माहौल बनाया जा रहा है, ताकि कम लागत के डेटा सेट और APIs को मुहैया कराके जनहित के डिजिटल संसाधन निर्मित किए जा सकें और कम क़ीमत पर पूरी सुरक्षा के साथ छोटे कारोबारियों, स्टार्टअप और आम लोगों के संगठनों को इन संसाधनों तक पहुंच दी जा सके, ताकि वो अपने ख़ुद के AI इंजन और औज़ार निर्मित करके अपने ग्राहकों की ज़रूरतें पूरी कर सकें.

 नेशनल डेटा एंड एनालिटिक्स प्लेटफार्म (NDAP), इंडिया डेटासेट प्रोग्राम, नेशनल डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क पॉलिसी और डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट को विकसित करके, इसके लिए एक मुफ़ीद माहौल बनाया जा रहा है.

लोगों के डेटा में सेंध लगने और साइबर ख़तरों, ख़ास तौर से बड़े सर्च इंजनों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सुरक्षित रखने के लिए नियमन बहुत ज़रूरी हैं. कई बार AI को हथियार बनाकर हमले करने की सूरत में सुरक्षा के अतिरिक्त उपायों की ज़रूरत पड़ती है, ख़ास तौर से तब और जब बात आबादी के कमज़ोर तबक़ों को महफ़ूज़ रखने की आती है, क्योंकि समाज का ये वर्ग पहले से ही हाशिए पर धकेला हुआ रहता है.

कुल मिलाकर, AI और अन्य तकनीकों को हथियार की तरह इस्तेमाल किए जाने से रोकने और तकनीक तक समान पहुंच सुनिश्चि करने के लिए GPAI और G20 सबसे अहम हैं. जैसे जैसे तकनीक बदल रही है, तो DPI की रणनीति, डेटा की निजता, वैश्विक सहयोग और आपस में मिलकर काम करना और भी ज़रूरी होता जा रहा है, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल साझा हित में हो. ऐसे नैतिक सिद्धांत ,जो वैश्विक सुरक्षा को महफ़ूज़ रखें और पारदर्शिता, जवाबदेही और निर्णय प्रक्रिया को उत्तरदायी बनाएं, उन पर ज़ोर देकर सदस्य देश ऐसा भविष्य बना सकते हैं, जिसमें AI लोगों के जीवन को समृद्ध करता हो.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.