Expert Speak Digital Frontiers
Published on Nov 10, 2025 Updated 5 Days ago

2022 में केन्या ने दिखाया कि कैसे तकनीक सिर्फ चुनाव नहीं, लोकतंत्र की दिशा भी बदल सकती है. पहली बार किसी देश ने मतदाताओं को जोड़ने और नफरत से बचाने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का सहारा लिया. इस प्रयोग ने न सिर्फ शांतिपूर्ण चुनाव का रास्ता खोला बल्कि दुनिया को दिखाया कि जिम्मेदार तकनीक से लोकतंत्र और मज़बूत हो सकता है.

एआई ऑन चुनावी ड्यूटी- अब नफरत पर रोक, शांति को वोट!

2022 का केन्या आम चुनाव अफ्रीका में चुनावी बदलाव का एक नया दौर लेकर आया. यह पहला मौका था जब किसी देश ने चुनावों के दौरान लोगों को ध्रुवीकरण से बचाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल किया. इस अनोखी पहल की अगुवाई मेंटेनिंग पीस थ्रू अर्ली वॉर्निंग, मॉनिटरिंग एंड एनालिसिस (MAPEMA) नामक समूह ने की.

  • यह लेख केन्या की इस पहल के पीछे निहित प्रमुख विचारों को रेखांकित करता है, जिन्हें भविष्य में अन्य देशों की चुनावी व्यवस्थाओं में भी लागू किया जा सकता है.

  • पूरे चुनावी परिदृश्य में AI आधारित सोशल मीडिया पहलों का विस्तार, बड़ी संख्या में मतदाताओं के इस प्रक्रिया से वंचित रह जाने का जोखिम उत्पन्न कर सकता है.

MAPEMA ने पूरे चुनावी समय में AI तकनीक के ज़रिए यह देखा कि चुनावी प्रक्रिया ईमानदार और पारदर्शी बनी रहे और लोगों की भावनाओं को भड़काने के बजाय संवाद को स्वस्थ बनाया जाए. इस तकनीक की मदद से सोशल मीडिया पर फैलने वाली नफरत या गलत जानकारी पर नजर रखी गई ताकि मतदाता शांति और समझदारी से अपना फैसला ले सकें.

इस अनुभव ने यह भी साफ किया कि चुनावों की सुरक्षा और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए अभी कई क्षेत्रों में और काम करने की जरूरत है, खासकर जब राजनीति में AI टूल्स का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है.

केन्या में इस्तेमाल किए गए इस सिस्टम ने दिखाया कि कैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को राजनीतिक और चुनावी ढांचे में सफलतापूर्वक जोड़ा जा सकता है. हालांकि, इस अनुभव ने यह भी साफ किया कि चुनावों की सुरक्षा और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए अभी कई क्षेत्रों में और काम करने की जरूरत है, खासकर जब राजनीति में AI टूल्स का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है.

यह लेख केन्या की इस पहल से जुड़े उन बुनियादी सिद्धांतों को समझने की कोशिश करता है, जिन्हें भविष्य में अन्य देशों की चुनावी प्रक्रियाओं में भी अपनाया जा सकता है. साथ ही, यह भारत के लिए इस अनुभव के महत्व पर भी चर्चा करता है.

केन्या का चुनावी मॉडल

MAPEMA कंसोर्टियम केन्या में एक मिली-जुली पहल थी जिसने निगरानी और विश्लेषण के लिए आधुनिक तकनीकी टूल के माध्यम से चुनाव के दौरान नफरती भाषण, दुष्प्रचार और ध्रुवीकरण करने वाले ऑनलाइन कंटेंट का समाधान किया. 

2022 के आम चुनावों से पहले स्थापित MAPEMA कंसोर्टियम ने जल्द चेतावनी की प्रणाली को मज़बूत करके और लोगों के नेतृत्व में हस्तक्षेप के साथ डेटा संचालित पद्धतियों को जोड़कर शांति को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई. इस कंसोर्टियम में कोड फॉर अफ्रीका, शुजाज़ इनकॉरपोरेशन और आईफ्लुएंस (Aifluence) शामिल हैं. ये ऐसे गैर-सरकारी संगठन (NGO) हैं जो डिजिटल तकनीकों, युवाओं की भागीदारी और इन्फ्लूएंसर नेटवर्क में अपनी विशेषज्ञता के लिए जाने जाते हैं. इस कंसोर्टियम ने संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय (OHCHR) जैसी संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों समेत राष्ट्रीय सामंजस्य एवं एकीकरण आयोग (NCIC) और UWIANO प्लेटफॉर्म फॉर पीस के साथ मिलकर काम किया. इस व्यापक साझेदारी ने सुव्यवस्थित ढंग से ऑनलाइन ट्रेंड की निगरानी, जानकारी और सत्यापन को सक्षम बनाया. साथ ही शांतिपूर्ण चुनावों के लिए सक्रिय उपायों को लागू करने में सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों का समर्थन भी किया. 

केन्या की पहल का मक़सद मतदाताओं के बीच जागरूकता को बढ़ावा देकर और उन्हें सटीक एवं उपयुक्त जानकारी देने में सक्षम चैटबॉट का इस्तेमाल करके शांति को बढ़ावा देना था.

MAPEMA के ढांचे ने चुनावी प्रक्रियाओं में AI को जोड़ने के लिए एक कामकाजी गवर्नेंस की रूपरेखा का उदाहरण पेश किया. सरकारी एजेंसियों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और गैर-सरकारी संस्थाओं के नैतिक मानकों के मेल-जोल ने संतुलित और फायदेमंद नतीजे सुनिश्चित करने में मदद की. इसके उलट, अगर केवल सरकारी संस्थान होते तो इससे राजनीतिक प्रभाव का ख़तरा हो सकता था. वहीं सरकारी निगरानी के बिना अंतर्राष्ट्रीय या निजी संस्थान को स्थानीय स्तर पर मान्यता नहीं होती और वो आर्थिक पूर्वाग्रह को लेकर कमज़ोर होते. इस तरह का असंतुलन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी ख़तरा पैदा कर सकता था क्योंकि चुनावी आंकड़ों का संग्रह और विश्लेषण बेहद संवेदनशील होता है. 

हेटस्पीच का प्रहरी बना AI 

केन्या में इंटरनेट की पहुंच की दर काफी ज़्यादा है. केन्या के लगभग 85 प्रतिशत लोगों की पहुंच ऑनलाइन सेवाओं तक है. इसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से जुड़ाव का बड़ा योगदान है. इस माहौल ने चुनाव की अवधि के दौरान अलग-अलग आंकड़ों को इकट्ठा करने और उनके विश्लेषण के लिए अनुकूल संदर्भ दिया जिससे लोगों की सोच के बारे में जरूरी जानकारी मिली. 

MAPEMA कंसोर्टियम ने ख़ास AI मॉडल का इस्तेमाल किया जो राजनीतिक मामले में डिजिटल स्पेस के भीतर ज़हरीले कंटेंट और हेराफेरी का मुकाबला करने के लिए बड़ी मात्रा में सोशल मीडिया डेटा की सफाई, संग्रह और विश्लेषण करने के लिए तैयार किए गए थे. इस सिस्टम ने ऑनलाइन नफरती भाषण और मतदाताओं के बीच दुष्प्रचार के ट्रेंड की तुरंत पहचान करने में मदद की. उदाहरण के लिए, कंसोर्टियम के AI टूल ने फेसबुक पर हेट स्पीच के 800 से ज़्यादा मामलों का पता लगाया जिसके बाद उन्हें हटाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को कहा गया. इससे चुनाव के दौरान राजनीतिक ध्रुवीकरण करने और दुष्प्रचार फैलाने की कोशिश करने वाले ऑनलाइन भड़काऊ कंटेंट को रोकने में मदद मिली. 

केन्या की पहल का मक़सद मतदाताओं के बीच जागरूकता को बढ़ावा देकर और उन्हें सटीक एवं उपयुक्त जानकारी देने में सक्षम चैटबॉट का इस्तेमाल करके शांति को बढ़ावा देना था. इस पहल के तहत व्यापक प्रयासों को ऑनलाइन राजनीतिक चर्चा में उभरते रुझानों की पहचान, उनका विश्लेषण और उनके समाधान पर ध्यान देना था. इसका अंत “यूथ पल्स” लेख के प्रकाशन के रूप में हुआ जिसमें प्रमुख विश्लेषणात्मक परिणामों के बारे में बताया गया. 

चुनावी ईमानदारी की रक्षा करने के मक़सद से AI के नैतिक, प्रक्रियागत और सुरक्षा से जुड़े परिणामों का समाधान करने के लिए मौजूदा कानूनों में सुधार करना ज़रूरी है.

वैसे तो इस पहल के जरिए इकट्ठा आंकड़ों तक हर किसी की पहुंच थी (क्योंकि इसका ज़्यादातर हिस्सा सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म से आता है) लेकिन इससे मिले नतीजे और प्रशिक्षित मॉडल का उपयोग चुनावी प्रणाली को प्रभावित करने के लिए भी हो सकता है. उदाहरण के लिए, इस कवायद से इकट्ठा राजनीतिक निष्कर्षों का दुरुपयोग मतदाताओं के बारे में जानकारी जुटाने के लिए किया जा सकता है. इसके अलावा जिन मतदाताओं को ख़ास संदेशों के माध्यम से शांत करना है, उनकी पहचान करने से नैतिक और सुरक्षा से जुड़े ख़तरे और भी बढ़ जाते हैं क्योंकि दुर्भावना से भरे लोग चुनाव को प्रभावित करने के लिए कथित तौर पर ‘अस्थिर’ इन समुदायों का गलत फायदा उठा सकते हैं. 

कानून में सुधार

राजनीतिक किरदारों के द्वारा फैलाए जाने वाले भ्रामक या मनगढ़ंत वीडियो के प्रसार को रोकना AI के द्वारा राजनीतिक रूप से ऑनलाइन स्पेस के भीतर किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण काम है. जेनरेटिव AI के आने से मतदाताओं की भावनाओं को प्रभावित करने के मक़सद से बेहद विश्वसनीय कंटेंट बनाना काफी आसान हो गया है. ऐसे में चुनावी अभियान की शुचिता की रक्षा करने के लिए ऐसे कंटेंट का पता लगाना और उनका मुकाबला करने के लिए AI मॉडल का उपयोग करना सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है. 

केन्या में 2011 के संवैधानिक संशोधन (जिसके माध्यम से चुनावी प्रक्रिया में तकनीक को जोड़ने की सुविधा दी गई और उसका समर्थन किया गया) ने लोकतांत्रिक संदर्भ में AI के जवाबदेह और पारदर्शी प्रयोग को सुनिश्चित करने के लिए कानून में सुधार की दिशा में एक बहुमूल्य उदाहरण पेश किया. इंडिपेंडेंट इलेक्टोरल एंड बाउंड्रीज़ कमीशन (IEBC) के द्वारा तैयार केन्या इंटिग्रेटेड इलेक्टोरल मैनेजमेंट सिस्टम (KIEMS) ने चुनाव प्रबंधन की कार्यकुशला और जवाबदेही में सुधार के लिए तकनीकी और मैनुअल प्रक्रियाओं को जोड़ने की क्षमता का उदाहरण पेश किया. पहले से उपलब्ध इस कानूनी बुनियाद ने ही नफरती भाषण और ऑनलाइन स्पेस में राजनीतिक जोड़-तोड़ के ख़िलाफ़ इस पहल को लागू करना आसान बनाया.  

चुनाव के बाद इस मामले ने चुनावी प्रक्रियाओं की निगरानी के लिए AI मॉडल के उपयोग की पुष्टि करने में एक महत्वपूर्ण कानूनी मिसाल कायम की. 

चुनावी प्रक्रिया में प्रभावी ढंग से AI को जोड़ना ऐसे कानूनी ढांचे के लगातार विकसित होने पर निर्भर करता है जो जवाबदेही और इनोवेशन के बीच संतुलन बनाए रखता है. चुनावी ईमानदारी की रक्षा करने के मक़सद से AI के नैतिक, प्रक्रियागत और सुरक्षा से जुड़े परिणामों का समाधान करने के लिए मौजूदा कानूनों में सुधार करना ज़रूरी है. इस तरह के सुधार न केवल तकनीकी दुरुपयोग के ख़तरे को कम करते हैं बल्कि पारदर्शिता और लोगों के विश्वास को भी मज़बूत करते हैं जिससे ये सुनिश्चित होता है कि लोकतांत्रिक संस्थाएं तेज़ी से होते डिजिटल बदलाव के युग में सशक्त बनी रहें. 

तकनीक पर भरोसे की चुनौती का समाधान 

2022 के चुनाव के बाद MAPEMA कंसोर्टियम के नेतृत्व में IEBC के द्वारा इस्तेमाल की गई तकनीक को केन्या के सर्वोच्च न्यायालय के सामने औपचारिक रूप से चुनौती दी गई. आरोप लगाया गया कि IEBC निर्धारित संवैधानिक और कानूनी मानकों को पूरा करने में नाकाम रहा और उसने  एक विदेशी संस्था को KIEMS तैयार करने एवं लागू करने का काम सौंपकर अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा नहीं किया. ये आरोप भी लगा कि IEBC ने इस संस्था के काम-काज की पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करने वाले प्रयासों का विरोध किया. ये आरोप चुनावी प्रक्रिया में AI को जोड़ने के इर्द-गिर्द लोगों के व्यापक अविश्वास के बारे में बताते हैं. 

हालांकि केन्या के सुप्रीम कोर्ट ने पेश किए गए सबूतों के अपर्याप्त होने का हवाला देकर इन दलीलों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया. अपने बचाव में IEBC ने कहा कि डेटा सुरक्षित है और उन्हें केवल अधिकृत कर्मचारी ही देख सकते थे. IEBC ने ये भी कहा कि सूचना से जुड़ी हर गतिविधि पर नज़र बनाकर रखा गया जो इस दावे को ठोस बनाने में महत्वपूर्ण है. चुनाव के बाद इस मामले ने चुनावी प्रक्रियाओं की निगरानी के लिए AI मॉडल के उपयोग की पुष्टि करने में एक महत्वपूर्ण कानूनी मिसाल कायम की. 

MAPEMA कंसोर्टियम की तकनीक को लेकर चिंता एक व्यापक मुद्दे का भी संकेत है. दुनिया भर में AI को लेकर लोगों का अविश्वास बढ़ता जा रहा है और केवल 46 प्रतिशत लोगों ने AI में भरोसा जताया है. चुनावी प्रक्रिया में इसको शामिल करना इस मुद्दे का समाधान करने के लिए आवश्यक है क्योंकि ऐसा नहीं करने पर लोकतांत्रिक प्रणाली में लोगों का भरोसा काफी कम हो सकता है. इस तरह के अविश्वास को दूर करने के लिए एक महत्वपूर्ण शुरुआती उपाय एल्गोरिदम और संचालन से जुड़ी पारदर्शिता को सुनिश्चित करना है. वैसे तो मूल रूप से AI एक ब्लैक बॉक्स (आंतरिक कामकाज अस्पष्ट होना जिसे कोई आसानी से समझ नहीं सकता है) के रूप में काम करता है लेकिन डेटा जमा करने और विश्लेषण के लिए इस्तेमाल ख़ास एल्गोरिदम को प्रकाशित करने से इसके काम-काज के इर्द-गिर्द मौजूदा अनिश्चितता को कम करने में मदद मिल सकती है.  

भारत के सामाजिक-राजनीतिक माहौल में एक प्रमुख फायदा है भारत के सोशल मीडिया डेटा का इस्तेमाल करके प्रशिक्षित AI मॉडल पर मौजूदा काम-काज की उपलब्धता.

जैसा कि केन्या के मामले से पता चलता है, चुनावी तकनीकों के डिज़ाइन, इस्तेमाल और निगरानी को लेकर स्पष्ट संवाद और जवाबदेही लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में उनके उपयोग को लेकर विश्वास पैदा कर सकती है. इसलिए पारदर्शी तरीके से एल्गोरिदम, डेटा के उपयोग की प्रक्रियाओं और सिस्टम के गवर्नेंस के ढांचे का खुलासा चुनावी प्रक्रिया की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. संबंधित लोगों के लिए तकनीकी प्रक्रियाओं को निगरानी और समझ के योग्य बनाकर संस्थान भरोसे को बढ़ावा दे सकते हैं और पारदर्शी नहीं होने की सोच को कम कर सकते हैं जो अक्सर AI से प्रेरित सिस्टम को लेकर लोगों के संदेह को बढ़ावा देती हैं. 

भारत के लिए महत्व 

किसी दूसरे देश के संदर्भ में केन्या के मॉडल को अपनाने के अलग फायदे और चुनौतियां हैं. 

भारत के सामाजिक-राजनीतिक माहौल में एक प्रमुख फायदा है भारत के सोशल मीडिया डेटा का इस्तेमाल करके प्रशिक्षित AI मॉडल पर मौजूदा काम-काज की उपलब्धता. इसकी वजह से AI मॉडल को लागू करने की लागत कम हो जाएगी और विश्लेषण एवं संभावना की सटीकता में बढ़ोतरी होगी. इसके अलावा, इस तरह की पहल में 25-34 वर्ष के लोगों के बीच मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी की क्षमता भी है. इस आयु वर्ग के लोग भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाली आबादी का लगभग 65 प्रतिशत हैं. 

हालांकि जनसंख्या की भारी विविधता और इंटरनेट तक पहुंच में बहुत ज़्यादा असमानता (क्षेत्र और आयु वर्ग- दोनों के हिसाब से) से चुनौती काफी बढ़ जाती है क्योंकि इस बात की संभावना है कि सोशल मीडिया के डेटा से हासिल नतीजे व्यापक मतदाताओं की सोच के अनुसार नहीं हो सकते हैं. पूरे चुनावी परिदृश्य में AI से प्रेरित सोशल मीडिया पहल का विस्तार करने से बड़ी संख्या में मतदाताओं के इससे बाहर होने का ख़तरा है. इसलिए, इस तरह के अभियान के दायरे की व्यावहारिकता को परिभाषित करने और मौजूदा भागीदारी एवं पहुंच के बीच दूरी को पाटने के मक़सद से रणनीति का पता लगाने के लिए शुरुआती रिसर्च करना ज़रूरी है. 


The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Author

Pranoy Jainendran

Pranoy Jainendran

Pranoy Jainendran is a Research Assistant with ORF’s Centre for Security, Strategy & Technology. His work examines how technology shapes State institutions, national and international affairs, ...

Read More +