Published on Jun 23, 2022 Updated 29 Days ago

नई योजना की सफलता का अंदाज़ा तभी लगाया जा सकता है जब इसे लागू कर दिया जाए और समय के साथ इसमें बदलाव हो.

अग्निपथ पर चलने वाले ‘अग्निवीर’

ये लेख निबंध श्रृंखला अग्निपथ योजना: बड़ा सुधार या तर्कहीन? का भाग है. 


जब भी कोई बड़ा बदलाव होता है तो उसका विरोध होता है और जब बात किसी देश के रक्षकों से जुड़े बदलाव की हो तो ये विरोध अवश्यम्भावी है क्योंकि इस बदलाव का असर राष्ट्रीय सुरक्षा पर होता है. लेकिन विरोध के बावजूद भू-राजनीतिक गतिशीलता, बदले हुए सुरक्षा हालात, और बजट की वास्तविकताओं के कारण दुनिया भर की सेनाओं में बदलाव हुआ है. अग्निवीर की धारणा को लेकर सेना के पुराने योद्धाओं का कठोर विचार इस पेशे को लेकर उनकी गहरी चिंता के बारे में बताता है जिसमें उन्होंने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा दिया है. सेना के हर अंग की अपनी एक मूलभूत योग्यता और क्षमता है और ये रणनीति तैयार करती है. इसलिए भर्ती का नया मॉडल हर सेना पर अलग-अलग ढंग से प्रभाव डालेगा. 

योजना के असर का है बड़ा महत्व

हवाई ताक़त के तकनीक आधारित चरित्र और शांति एवं युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना (आईएएफ) की तकनीक पर निर्भरता के स्तर को देखते हुए इस योजना का असर बेहद महत्वपूर्ण है. वास्तविक और कथित चुनौतियों के बावजूद भारतीय वायु सेना के नेतृत्व के द्वारा मीडिया में जिस तरह ख़ुद को पेश किया गया है, वो साफ़ तौर पर नपा-तुला, संतुलित और साहसी है. ये दिखाता है कि वायु सेना ने अग्निपथ योजना को रणनीतिक अवसर के झरोखे के तौर पर लिया है. इसकी वजह ये है कि अगर वायु सेना तेज़ी से बदलती तकनीक के साथ नहीं चलेगी तो वो युद्ध के मैदान में अपनी प्रासंगिकता गंवा देगी. आधुनिक वायु सेनाओं के लिए तकनीक में बदलाव अब कुछ वर्षों के बाद ही हो जाता है जबकि एक समय ऐसा था जब इसमें एक दशक से ज़्यादा समय के बाद बदलाव होता था. चार दशकों से ज़्यादा के पेशेवर जीवन काल में इस लेखक ने लड़ाई के प्लैटफॉर्म, हथियारों, प्रणालियों और वैमानिकी में नाटकीय बदलाव का अनुभव किया है. नई तकनीक को अपनाने के साथ लड़ाई के निर्देशों, अभियान एवं रणनीति की धारणा में बदलाव प्रशिक्षण की विषय सूची और ज़रूरतों में तेज़ बदलाव के साथ-साथ हुआ है ताकि हवाई युद्ध के मामले में प्रासंगिक रहा जा सके. इसलिए भारतीय वायु सेना में बदलाव की रफ़्तार कार्यक्षेत्र और आकार- दोनों ही मामले में काफ़ी तेज़ रही है, ये रफ़्तार इसे बदलाव के लिए अत्यंत अनुकूल और लचीला बनाती है. साथ ही अलग-अलग तरह के एयरक्राफ्ट, सिस्टम, हथियार और उपकरण- पश्चिमी देशों के साथ-साथ रूस के भी- ये ज़रूरी बनाते हैं कि हवाई योद्धाओं को तकनीक में पारंगत होना चाहिए. आज के युवा तेज़ी से बदलती तकनीक के मुताबिक़ ख़ुद को ढालने में सक्षम होते हैं. इसलिए वायु सेना में ज़्यादा युवाओं का होना ज़रूरी है. वायु सेना ने नई योजना को अपना तो लिया है जिसकी मदद से वो सैनिकों की उम्र कम कर सकती है लेकिन ये चुनौतियों के बिना नहीं है. 

चार दशकों से ज़्यादा के पेशेवर जीवन काल में इस लेखक ने लड़ाई के प्लैटफॉर्म, हथियारों, प्रणालियों और वैमानिकी में नाटकीय बदलाव का अनुभव किया है. नई तकनीक को अपनाने के साथ लड़ाई के निर्देशों, अभियान एवं रणनीति की धारणा में बदलाव प्रशिक्षण की विषय सूची और ज़रूरतों में तेज़ बदलाव के साथ-साथ हुआ है ताकि हवाई युद्ध के मामले में प्रासंगिक रहा जा सके.

वायु सेना के नेतृत्व ने मीडिया के सामने और संगठन के भीतर ये समझाने की कोशिश की है कि उसने युवा पीढ़ी को शामिल करने के लिए व्यापक क़दम उठाने की शुरुआत की है और इस काम में उसने युद्ध करने की क्षमता से कोई समझौता नहीं किया है. भारतीय वायु सेना एक ऐसे मॉडल पर काम करती है जो कि फॉर्मूला वन रेसिंग कम्यूनिटी से मिलता-जुलता है. फॉर्मूला वन रेसिंग में बेहद प्रशिक्षित चालक दल के युवा सदस्य पांच सेकेंड से भी कम के अविश्वसनीय समय में तकनीक और उम्दा प्रशिक्षण की मदद से ईंधन भरने, टायर बदलने, तालमेल और मरम्मत का काम करते हैं जबकि पर्दे के पीछे काम करने वाले रखरखाव दल के सदस्यों में ज़्यादा अनुभवी और पुराने लोग होते हैं. फ्लाइट लाइन वो जगह है जहां एयरक्राफ्ट को तैयार किया जाता है, संचालित किया जाता है और घुमाया जाता है. यहां कार्यक्षमता और गति बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका नतीजा दो मिशन के बीच कम-से-कम समय के रूप में सामने आता है. इसका मतलब है युद्ध के लिए ज़्यादा एयरक्राफ्ट की उपलब्धता और युद्ध में ज़्यादा सहारा मिलना. यही वो गतिविधि है जहां युवा, तकनीकी रूप से पारंगत और अच्छी तरह प्रशिक्षित अग्निवीरों को अनुभवी हवाई योद्धाओं की क़रीबी निगरानी में इस्तेमाल करने की योजना है. पीछे की गतिविधियों यानी मरम्मत और समय-समय पर देखभाल की गतिविधियों का ज़िम्मा अनुभवी चालक दल को दिया जाएगा. रडार, मिसाइल, कम्युनिकेशन सिस्टम, इत्यादि जैसे युद्ध के सभी मूल तत्व भी इसी मॉडल का पालन करेंगे और इस तरह से कम अनुभवी युवाओं का प्रभावी इस्तेमाल कम कौशल वाले काम के लिए किया जा सकेगा. भारतीय वायु सेना के तीन सांगठनिक खंभे- ऑपरेशन, रखरखाव और प्रशासन- एक-दूसरे से गहरे तौर पर जुड़े हुए हैं क्योंकि एयरक्राफ्ट उड़ाना और हवाई रक्षा चौबीसों घंटे की गतिविधि है. हवाई क्षेत्र में मदद करने वाले अभियान, आस-पास के क्षेत्र में सुरक्षा गतिविधियां, सैन्य अड्डे की सुरक्षा, आईटी एवं ऑपरेशन नेटवर्क, तकनीकी साजो-सामान, प्रशासनिक काम-काज इत्यादि भी नियमित गतिविधियों के वो क्षेत्र हैं जहां अग्निवीरों को तैनात किया जाएगा. 

वायु सेना अग्निवीरों के पहले बैच को इस साल के आख़िर में शामिल करेगी जिससे कि वो अगले साल के मध्य तक सेवा में शामिल होने के लिए तैयार हो सकें. पहले वर्ष में अग्निवीर भारतीय वायु सेना के कुल कर्मियों का 2 प्रतिशत हिस्सा होंगे, चार साल के बाद वो 10 प्रतिशत हो जाएंगे और 10 वर्ष के समय में 25-30 प्रतिशत होंगे.

वायु सेना में मौका

सैन्य उड़ान के जोखिम भरे क्षेत्र में भारतीय वायु सेना को अच्छी तरह से ये पता है कि उसके सैनिकों का जीवन उनके पेशेवर रवैये पर निर्भर करता है. ऐसे में ये सवाल खड़ा होता है कि किस तरह इन युवाओं को ऐसी गतिविधि में शामिल किया जाएगा जहां ग़लती की गुंजाइश बिल्कुल भी नहीं है? इसका आधार सभी तरह के प्रशिक्षण में परिवर्तन वाला दृष्टिकोण है. भारतीय वायु सेना में पहले से दी जा रही तकनीक की बुनियादी ट्रेनिंग को और मज़बूत किया जा रहा है. इसमें तकनीक और सिम्युलेशन पर और ज़्यादा ज़ोर दिया जा रहा है ताकि कौशल वाले काम में कड़ी तैयारी की जा सके. इसके बाद श्रेणीबद्ध ढंग से कौशल का प्रशिक्षण दिया जाएगा. ये प्रशिक्षण शांतिपूर्ण और अभियान वाले माहौल- दोनों ही स्थिति में किसी व्यक्ति के रुझान और उसके प्रदर्शन पर क़रीबी निगरानी के आधार पर दिया जाएगा. शुरुआती स्तर, ट्रेनिंग के चरण और तीसरे एवं चौथे साल के बीच प्रदर्शन की समीक्षा चुने हुए एक-चौथाई अग्निवीरों को सेवा में आगे की निरंतरता के लिए मूल्यांकन के तीन मानक प्रदान करते हैं. उस चरण में चुने हुए अग्निवीर योजनाबद्ध विशेष प्रशिक्षण के लिए तैयार होंगे ताकि उन्हें सेवा में शामिल किया जा सके. वायु सेना अग्निवीरों के पहले बैच को इस साल के आख़िर में शामिल करेगी जिससे कि वो अगले साल के मध्य तक सेवा में शामिल होने के लिए तैयार हो सकें. पहले वर्ष में अग्निवीर भारतीय वायु सेना के कुल कर्मियों का 2 प्रतिशत हिस्सा होंगे, चार साल के बाद वो 10 प्रतिशत हो जाएंगे और 10 वर्ष के समय में 25-30 प्रतिशत होंगे. ये थल सेना और नौसेना की तरफ़ से बनाई गई 50 प्रतिशत की योजना से अलग है क्योंकि उनका आरक्षित उत्तरदायित्व 15 वर्ष है जबकि ज़्यादा विशेषज्ञता वाली वायु सेना में ये 20 वर्ष है. इस तरह वायु सेना की रणनीति से उम्मीद है कि युवा और अनुभवी हवाई योद्धाओं की एक संतुलित फ़ौज बनेगी जिससे कि युद्ध के मैदान में क्षमता बढ़ेगी. 

युवाओं के कौशल के मुताबिक़ रोज़गार के अवसरों को नये ढंग से तैयार करना होगा. मिसाल के तौर पर, चार साल के बाद भारतीय वायु सेना को छोड़ने वालों के लिए नागरिक उड्डयन जैसे बड़े उद्योग में शामिल होने का मौक़ा होगा जहां वायु सेना में उनका अनुभव उनके काफ़ी काम आएगा.

नई योजना का विरोध

नई योजना के कुछ विरोधियों ने कठोर शब्दों का इस्तेमाल करते हुए नये मॉडल को स्वीकार करने के लिए सेना के नेतृत्व पर आरोप लगाए हैं. सेना एक अनुशासित और ज़िम्मेदार बल है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा में युद्ध के लिए अपनी मुस्तैदी की भूमिका से पूरी तरह वाकिफ़ है. ये समझ लेना अनुचित और ग़लत है कि सेना ऐसी किसी चीज़ को स्वीकार कर लेगी जो किसी भी तरह से उसकी भूमिका से समझौता करती है. अग्निपथ योजना की सफलता के लिए निश्चित रूप से काफ़ी विचार और प्रयास किया गया होगा और आगे भी किया जाएगा. भारतीय सेना एक स्वयंसेवी बल बनी हुई है और इसकी कोशिश है कि युद्ध के अपने कौशल को बरकरार रखते हुए वो युवा बल भी बने. युवा अग्निवीरों के चार साल के कार्यकाल के बाद उनके भविष्य का मुद्दा वास्तव में सेना के कार्यक्षेत्र से बाहर का है क्योंकि सेना के पास अपनी तैयारी बनाकर रखते हुए बदलाव के मुताबिक़ ख़ुद को ढालने की चुनौती पहले से ही है. ये काम नीति बनाने वालों का है कि वो युवाओं के भविष्य की चिंताओं को दूर करें और उनकी आकांक्षाओं का समाधान करें. युवाओं के कौशल के मुताबिक़ रोज़गार के अवसरों को नये ढंग से तैयार करना होगा. मिसाल के तौर पर, चार साल के बाद भारतीय वायु सेना को छोड़ने वालों के लिए नागरिक उड्डयन जैसे बड़े उद्योग में शामिल होने का मौक़ा होगा जहां वायु सेना में उनका अनुभव उनके काफ़ी काम आएगा. वायु सेना में स्थायी रूप से शामिल होने वालों का प्रतिशत भविष्य में बदला जा सकता है. इसका आधार अग्निपथ योजना के लागू होने, उसके स्थिर होने और कुछ समय तक चलने के बाद हासिल होने वाला नतीजा हो सकता है. लेकिन आधी-अधूरी जानकारी पर आधारित आश्चर्यजनक ढंग से क़ानून के विरुद्ध और हिंसक प्रतिक्रिया बेहद अफ़सोसनाक है. इस असंतोष के मूल में किसी सरकारी नौकरी में मिलने वाला भरोसा और आराम ज़्यादा है जबकि देश सेवा की भावना कम है. इस योजना को लेकर रणनीतिक संवाद अपर्याप्त हो सकता है लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि गुमराह युवाओं की तरफ़ से की गई हिंसा और ज़रूरत से ज़्यादा प्रतिक्रिया ये संकेत देती है कि वो सैन्य पेशे जैसे गंभीर काम में शामिल होने के लिए उपयुक्त नहीं हैं. किसी भी परिवर्तनकारी नीति की सफलता का अनुमान उसके नतीजों से लगाया जाता है, इस मामले में भी ऐसा ही है. इस नीति का नतीजा क्या होता है ये तो वक़्त ही बताएगा. 

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