Author : Raj Shukla

Published on Jul 04, 2022 Updated 0 Hours ago

अग्निपथ स्कीम से जुड़े सुधारों से भारतीय रक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव लाने में मदद मिलेगी.

अग्निवीर योजना: अग्निपरीक्षा से ही हासिल होंगे फ़ौलादी नतीजे!

ये लेख निबंध श्रृंखला द अग्निपथ स्कीम: रैडिकल ऑर इर्रैशनल? का हिस्सा है.


अग्निपथ स्कीम भारतीय सेना के मानव संसाधन प्रबंधन में निश्चित रूप से एक साहसी और परिवर्तनकारी सुधार है. इसकी ख़ूबी को भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की तस्वीर बदलने के व्यापक नज़रिए से देखा जाना चाहिए. इस क़वायद के अनेक संचालक हैं: इन्हें ख़ासतौर से राष्ट्रीय सुरक्षा के बदलते परिदृश्य और युद्धों के स्वरूप के हिसाब से देखने की ज़रूरत है. क्षमता निर्माण और जंग- दोनों ही ज़्यादा जटिल और प्रतिस्पर्धी होते जा रहे हैं. यही वजह है कि दुनिया भर की फ़ौजों में भारी-भरकम सुधारों का दौर जारी है. विचार और योजनाओं के स्तर पर और ऑपरेशनों से जुड़े दायरे में रणनीतियां बनाने को लेकर नित नए सुधार हो रहे हैं. इसके अलावा नई-नई प्रतिभाएं तैयार करने के लिए मानव संसाधन के दायरों में भी बदलाव हो रहे हैं. यहां ये बात भी रेखांकित करना ज़रूरी है कि भारत में रक्षा से जुड़ा क्षेत्र अब विदेश नीति (प्राथमिक बदलाव के तौर पर) के साए से बाहर निकलने लगा है. ऐसे में प्रस्तावित सुधार बदलाव की योजना बनाने, उनकी संरचना करने और उनको अमल में लाने को लेकर भारत की सशस्त्र सेनाओं की क्षमताओं का इम्तिहान है. CDS/DMA की व्यवस्था शुरू करने के पीछे भी यही सोच काम कर रही थी. राष्ट्रीय सुरक्षा की व्यापक व्यवस्था के ज़रिए बदलावों को हवा देने के मक़सद से ये क़दम उठाए गए थे. अधिकार प्राप्त चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ और सैन्य मामलों के विभाग को इसकी कमान सौंपना एक बड़ा ढांचागत सुधार था. लिहाज़ा अग्निपथ के विचार के पीछे एक व्यापक उद्देश्य दिखाई देता है.  

दुनिया भर की फ़ौजों में भारी-भरकम सुधारों का दौर जारी है. विचार और योजनाओं के स्तर पर और ऑपरेशनों से जुड़े दायरे में रणनीतियां बनाने को लेकर नित नए सुधार हो रहे हैं. इसके अलावा नई-नई प्रतिभाएं तैयार करने के लिए मानव संसाधन के दायरों में भी बदलाव हो रहे हैं.

अग्निपथ योजना का व्यापक विस्तार 

मुख्य तत्वों के रूप में इस परियोजना के तीन खंड हैं: भर्ती से जुड़ा हिस्सा, इन-सर्विस प्रशिक्षण और दोबारा निबंधन/निकासी का मॉड्यूल. ये तीनों ही अपने आप में सुधार की बड़ी पहल हैं. इनका लक्ष्य सैन्य सेवाओं में प्रतिभाओं को उच्चतम स्तर पर लाना और जंगी मोर्चे पर बेहतरीन नतीजे हासिल करना है. एक हद तक भारतीय सेना में भर्ती के मौजूदा तौर-तरीक़े पुराने पड़ चुके हैं. दरअसल ये शारीरिक जांच, लिखित परीक्षा और मेडिकल फ़िटनेस की तिहरी क़वायद पर आधारित हैं. इस बीच बाक़ी दुनिया में भर्ती के लिए चयन से जुड़े बेहतर मॉडल्स उभर कर सामने आए हैं. इनमें ऑनलाइन स्क्रीनिंग की प्रक्रिया शामिल हैं. इसके साथ ही आकांक्षाओं और आवश्यकताओं के बेहतर तालमेल पर ज़ोर दिया जाता है. सशस्त्र सेनाओं की ज़रूरतों के हिसाब से और भर्ती चाह रहे उम्मीदवारों और सर्विस की आवश्यकताओं के बीच बेहतरीन विकल्प चुनने पर बल दिया जाता है. अग्निपथ के ढांचे में अब हम भी और ज़्यादा बारीक़ मॉडल अपनाने की ओर आगे बढ़े हैं. इसी कड़ी में आधुनिक मानदंडों के हिसाब से इन-सर्विस ट्रेनिंग को भी शुमार किया जा रहा है. अतीत के ढीले-ढाले, लंबे तौर-तरीक़ों पर पुनर्विचार हो रहा है. उनकी मियाद आदर्श रूप से तय की जा रही है. इन क़वायदों के ज़रिए बचाई गई रकम को मूल्य वर्धन करने वाले कामों में लगाया जाएगा. इनमें सिमुलेटर्स, AR/VR विज्ञापन, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस प्रयोगशालाएं, डिजिटल पाठ्यसामग्रियां आदि शामिल हैं. इनका मक़सद अत्याधुनिक प्रशिक्षण ढांचा तैयार करना है. इस प्रक्रिया में हमारे ITIs में मौजूद स्थापित क्षमताओं का इस्तेमाल किया जाएगा. प्रशिक्षण की मियादों और उनके परिणामों को अधिकतम स्तर पर लाने के लिए ‘स्किल इंडिया’ से तैयार कौशल को भी प्रयोग में लाया जाएगा. कुल मिलाकर भर्ती के तौर-तरीक़ों में सुधार लाए जाने से गुणवत्ता के रूप में बेहतर मानव संसाधन का प्रवेश हो सकेगा. साथ ही प्रशिक्षण से जुड़े संशोधित खंडों से ये सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि अग्निवीर एक बेहतर उत्पाद के तौर पर सामने आएं. जंगी तैनातियों में बिताए चार सालों से उनमें ख़ास मिज़ाज विकसित होंगे. इसके अलावा बेहतर रूप से तैयार किए गए दोबारा निबंधन के कार्यक्रम से ये सुनिश्चित होगा कि केवल सर्वश्रेष्ठ और बेहतरीन प्रतिभा ही फ़ौज में बरक़रार रहे. हाल ही में घोषित एक के बाद एक तमाम उपायों से ये सुनिश्चित होगा कि 4 साल में फ़ौज से रिटायर होकर जाने वाले अग्निवीर की पूरी सुरक्षा (सेवानिधि) हो. वो शैक्षणिक और पेशेवराना कौशल (ब्रिजिंग कोर्सेज़, सर्टिफ़िकेट्स ऑफ़ प्रोफ़िसिएंसी एंड कंपिटेंसी के साथ साथ NIOS, IGNOU, RRU और दूसरी तमाम यूनिवर्सिटियों से मान्यताएं) से लैस हों. इस तरह वो सरकारी, अर्द्धसैनिक बलों, भारतीय कोस्ट गार्ड, असम रायफ़ल्स, DPSUs, और निजी क्षेत्रों में आसानी से नौकरियां हासिल कर सकें. ऑल इंडिया काउंसिल फ़ॉर टेक्निकल एजुकेशन (AICTE), राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) और नेशनल काउंसिल फ़ॉर वोकेशनल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (NCVET) द्वारा फ़ौजी गुणों और कार्यकुशलताओं की पहचान से उनकी प्रतिभा में और मूल्य वर्धन होगा. उद्यमी झुकावों वाले इन अग्निवीरों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा उपयुक्त ऋण दिए जाएंगे. उनके सपनों को पंख लगाने में बीमा कंपनियां और दूसरे वित्तीय संस्थान भी मददगार साबित होंगे. पिछले 70 सालों से लगातार तमाम ज़रूरतें बताए जाने के बावजूद भारतीय फ़ौज में जो परिणाम नहीं मिल पाए थे वो महज़ कुछ हफ़्तों में हक़ीक़त बनकर हमारे सामने खड़े हो गए हैं. 

अग्निपथ के ढांचे में अब हम भी और ज़्यादा बारीक़ मॉडल अपनाने की ओर आगे बढ़े हैं. इसी कड़ी में आधुनिक मानदंडों के हिसाब से इन-सर्विस ट्रेनिंग को भी शुमार किया जा रहा है. अतीत के ढीले-ढाले, लंबे तौर-तरीक़ों पर पुनर्विचार हो रहा है. उनकी मियाद आदर्श रूप से तय की जा रही है.

अग्निपथ योजना के उद्देश्य

बुद्धिमानी और निष्ठा के साथ अग्निपथ को एक ऐसे सांचे के रूप में तैयार किया जा सकता है जो बेहतरीन फ़ौलाद तैयार करे. दरअसल इस परियोजना का ऊंचा मक़सद भी यही है. लिहाज़ा अग्निवीरों को इस तरह से सशक्त बनाया जाना चाहिए कि वो न सिर्फ़ रोज़गार हासिल करने लायक बनें बल्कि रोज़गार बाज़ार में फलने-फूलने के लिए उनके पास पर्याप्त प्रतिस्पर्धी क्षमता भी मौजूद हो. ब्रांड अग्निवीर को रोज़मर्रा की हक़ीक़त में बदलने की ये क़वायद महज़ रक्षा मंत्रालय से आगे निकलनी चाहिए. व्यापक रूप से मंत्रालयों, निगम निकायों, स्टार्ट अप इकोसिस्टम, शिक्षा जगत और नीति आयोग जैसे संस्थानों के एक बड़े समूह द्वारा इस दिशा में प्रयास किया जाना चाहिए. अगर हम पूरी प्रतिबद्धता के साथ इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाएंगे तो भविष्य की किसी तारीख़ में किसी ज़िले का SP अपने पुलिस बल में एक बड़ी तादाद में अग्निवीरों को ही शामिल करना चाहेगा. उसी तरह उस ज़िले के DM की भी अपने कार्यबल को लेकर यही ख़्वाहिश रहेगी. शहरों और महानगरों में भी छोटे और बड़े कारोबारों के लिए अग्निवीर योजना ही पसंदीदा विकल्प बन जाएगी. 

प्रतिभाओं से जुड़ी ये क़वायद ऐसे काम करेगी कि आकांक्षी युवाओं को सेना के दायरे में आकर्षित कर लिया जाएगा. फ़ौज उन्हें तराश कर हुनरमंद बना देगी. साथ ही बरक़रारी या निबंधन के लिए अग्निवीरों के बीच की आपसी प्रतिस्पर्धा उन्हें आगे और ज़्यादा ऊंचाइयां हासिल करने लायक बना देगी. जो लोग अग्निवीर बनकर बाहर निकलेंगे वो बेसहारा होकर नौकरी की गुहार नहीं लगाएंगे बल्कि उन्हें पसंदीदा विकल्प के रूप में ख़ुद ढूंढा जाएगा. 

इस योजना के नेक इरादे साफ़ तौर पर हमारे सामने हैं. इसके बावजूद ये सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हमारे यूनिट्स का जंगी रसूख़ और उनकी बनावट में किसी भी तरह की कमज़ोरी न आए, बल्कि वो और मज़बूत हों. इनमें से कुछ आशंकाओं का पहले ही निपटारा हो चुका है, बाक़ी आशंकाओं के समाधान के लिए क़दम उठाए जा रहे हैं. नेतृत्व करने वाले और उनके दल के सदस्यों के बीच एक बेहतर संतुलन क़ायम करना और अनुभव और युवाशक्ति का सही मिश्रण तैयार करने की क़वायद इसी कड़ी का एक हिस्सा है. बहरहाल इतने साहसी और परिवर्तनकारी सुधार के सामने निश्चित रूप से कुछ चुनौतियां होंगी. हालांकि ये चुनौतियां ऐसी नहीं हैं जिनसे निपटा न जा सके. 

अगर अग्निवीर योजना कामयाब होती है तो फ़ौज से और गहरी प्रतिभाएं उभरकर सामने आएंगी. अमेरिका, इज़राइल, चीन और यहां तक कि तुर्की की तरह फ़ौजी पेशेवर कारोबार, तकनीकी उद्यम, वित्त, प्रशासन, शिक्षा जगत और विज्ञान के केंद्रों आदि में अपनी क़ाबिलियत साबित करेंगे. 

दरअसल इस परियोजना के पीछे हमारी तीनों सेनाओं के ताक़तवर प्रमुखों, रक्षा सचिव, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, माननीय रक्षा मंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, राज्यों के मुख्यमंत्री, गृह मंत्रालय समेत रोज़गार निर्माण करने वाले और सशक्त बनाने वाले दूसरे मंत्रालयों ने ज़ोर लगा रखा है. इसी तरह कारोबार जगत के कुछ शक्तिशाली किरदारों ने भी इसका पुरज़ोर समर्थन किया है. इनमें आनंद महिंद्रा, हर्ष गोयनका, किरण शॉ, संगीता रेड्डी, L&T,  अशोक लेलैंड, भारत फ़ॉर्ज, एमिटी ग्रुप शामिल हैं. ऐसे में अग्निवीर परियोजना के सामने आने वाली किसी भी चुनौती से निपटना कतई नामुमकिन नहीं है. 

अग्निपथ योजना के लाभ 

अग्निपथ संभावित रूप से गेम-चेंजर स्कीम है. दरअसल इसके ज़रिए हमारी राजसत्ता के 2 प्रमुख तत्वों- सैनिक और असैनिक सत्ता के बीच खड़ी हो चुकी पक्की दीवार को तोड़ने में भी मदद मिलेगी. इससे अधिकार-क्षेत्रों में बंटी मौजूदा व्यवस्था से पार पाने और टुकड़ों में बंटकर काम करने की प्रणाली को ख़त्म करने में मदद मिलेगी. साथ ही प्रतिभा के प्रवाह में भी नई जान आएगी. इस तरह के प्रवाह से सैन्य प्रणाली के कई अंदरुनी पहलू उभर कर सामने आएंगे. व्यापक रूप से राज्यसत्ता और रोज़गार से जुड़ी व्यवस्था को ये पता चलेगा कि फ़ौज महज़ सुरक्षा गार्डों के जमावड़े से कहीं बड़ी क़वायद है. हमारी सैन्य शक्ति का एक बड़ा तबक़ा सांगठनिक कौशल, कॉरपोरेट ऑपरेशंस, प्रशासन, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन, संचार, उपकरण प्रबंधन, कम्प्यूटर ऑपरेशंस, दफ़्तरी प्रक्रियाओं, इवेंट मैनेजमेंट आदि में माहिर है. उनकी अनूठी ख़ूबियों में वफ़ादारी, लगन, निष्ठा, फ़र्ज़ का जज़्बा, ऊंची प्रतिबद्धता और एकजुटता के साथ-साथ संकट प्रबंधन की बेहतरीन क्षमता शामिल हैं. ये तमाम गुण बड़ी मुश्किल से आते हैं. अलग-अलग तरीक़े के इन कौशलों का पूरी तरह से उपयोग होना बाक़ी है. 

यहां इस बात पर ज़ोर देना ज़रूरी है कि पेशे के तौर पर फ़ौज किसी भी दूसरे पेशे (जैसे कारोबार, वक़ालत या स्वास्थ्य सेवा) की ही तरह गहरा और व्यापक है. इसके उत्पाद भी दिमाग़, बाहुबल, बुद्धि-विवेक और ज्ञान के मिले-जुले परिणाम ही होते हैं. अगर अग्निवीर योजना कामयाब होती है तो फ़ौज से और गहरी प्रतिभाएं उभरकर सामने आएंगी. अमेरिका, इज़राइल, चीन और यहां तक कि तुर्की की तरह फ़ौजी पेशेवर (तमाम रैंकों और दर्जे वाले) कारोबार, तकनीकी उद्यम, वित्त, प्रशासन, शिक्षा जगत और विज्ञान के केंद्रों आदि में अपनी क़ाबिलियत साबित करेंगे. सरस्वती (हमारे ज्ञान केंद्र), लक्ष्मी (दौलत पैदा करने वाले केंद्र और कारोबार) और दुर्गा (शक्ति के साधन) का मेल भारतीय राज्य को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा. प्रतिभा और क़ाबिलियत को आगे बढ़ाने की संस्कृति मज़बूत होगी. इससे हम अपने सामरिक वज़न के हिसाब से वार कर पाने में कामयाब होंगे.

अग्निपथ को आत्मनिर्भरता (व्यापक प्रयोग वाला और रक्षा में आत्मनिर्भरता, दोनों) के साथ मिला देने से और भी ज़्यादा अच्छे परिणाम सामने आएंगे. इससे मानवीय और आर्थिक गतिविधियों के एक व्यापक दायरे में नवाचार, ऊर्जा और उद्यम की भावना का संचार होगा. ये हमें अतीत की आफ़त से आज़ाद करने में मददगार साबित होंगे. ये आफ़त है- शुरू से आख़िर तक तनख़्वाह, पेंशन और निर्भरताओं का तौर-तरीक़ा. ये सरकार की भूमिका को सिकोड़ने की बजाए (जैसा मक़सद होना चाहिए) उसे और आगे बढ़ाने पर मजबूर करती है.

आज बेंगलुरु के CMP सेंटर से ग्रेजुएट होने वाली महिला रंगरुटों और OTA में लेडी कैडेट्स का प्रदर्शन सबकी उम्मीदों से आगे निकल गया है. राष्ट्रीय रायफ़ल्स की ज़बरदस्त कामयाबियों से पहले इसको लेकर भी भारी आशंकाओं का दौर था. आज कोई भी इस बात से इनकार नहीं करता कि भारतीय सेना का जंगी संतुलन मज़बूत करने में इसने अहम योगदान दिया है.

दरअसल, कई बार सशस्त्र बल बदलाव लागू करने और उभार रेखा से आगे रहने की अपनी ख़ुद की क्षमता को ही कम करके आंकते हैं. अफ़सरों के लिए टेक्निकल एंट्री स्कीम (TES) की शुरुआत के वक़्त भी इसी तरह की चिंताएं सामने थीं. आज TES के छात्र NDA के छात्रों को ज़ोरदार टक्कर दे रहे हैं. दरअसल ये प्रतिस्पर्धी संतुलन में मौजूद होते हैं. महिला अफ़सरों के संदर्भ में भी इसी तरह की आशंकाएं ज़ाहिर की गई थीं. आज बेंगलुरु के CMP सेंटर से ग्रेजुएट होने वाली महिला रंगरुटों और OTA में लेडी कैडेट्स का प्रदर्शन सबकी उम्मीदों से आगे निकल गया है. राष्ट्रीय रायफ़ल्स की ज़बरदस्त कामयाबियों से पहले इसको लेकर भी भारी आशंकाओं का दौर था. आज कोई भी इस बात से इनकार नहीं करता कि भारतीय सेना का जंगी संतुलन मज़बूत करने में इसने अहम योगदान दिया है.

अगर अग्निपथ योजना रफ़्तार पकड़ते हुए अपनी पूरी क्षमता हासिल कर लेती है तो एक समय के बाद व्यापक भारतीय समाज में मूल्यों के एक बेजोड़ समूह का संचार हो सकता है. ये गुण हैं- अनुशासन, हौसला, लक्ष्य हासिल करने का जज़्बा, बचाव, नवाचार और उद्यमिता का अधिकतम इस्तेमाल. इससे हमारा दैनिक अस्तित्व और ज़्यादा उत्पादक हो सकेगा. भविष्य में किसी संकट के वक़्त जब भारतीय समाज को हरकत में आने के लिए बाध्य होना पड़ेगा, उस वक़्त ये जज़्बा हमारे लिए और भी ज़्यादा मददगार साबित होगा.

लिहाज़ा अग्निपथ परियोजना की ताक़त और मक़सद को ठंडे दिमाग़ से समझने और स्वीकार करने के बाद इसे अटल इरादों से अमल में लाने की दरकार है. 

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