Published on May 03, 2019 Updated 0 Hours ago

ब्रिटिश सरकार ने आखिर स्वंय के द्वारा अतीत में की गईं ज़्यादतियों के लिए खुलकर और पूर्ण रूप से क्षमा क्यों नहीं माँगी इसका कारण तो अज्ञात है। इसकी वजह शायद बढ़ते राष्ट्रवाद और ब्रेक्सिट के माध्यम से जरूरतों को प्राप्त करने के अनुरूप हो सकती है। इस तरह की माफी माँगने से हो सकता है कि वित्तीय लागत बढ़ जाए।

औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ़ आवाज़: जलियांवाला बाग नरसंहार के 100 साल

इतिहास के पन्नों पर अगर सरसरी तौर पर निगाह डालें तो साम्राज्य की ताकत क्या होती है और वो किस हद तक जा सकती है इसके सबूत हमें आज भी मिल जाएंगे। दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में अतीत में लोगों के द्वारा भोगे गए दुखों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में बेहद आश्चर्यजनक रूप में समानताएं नज़र आती हैं। परिणामस्वरूप, समकालीन वैश्विक संदर्भ में इन चीजों का विश्लेषण करना और कुछ ज्वलंत प्रश्नों की जांच करना बहुत आवश्यक हो जाता है।

अप्रेल 1919 में बैसाखी के उस पावन दिन अमृतसर में जो कुछ भी हुआ उसमें और अंग्रेजों द्वारा मऊ मऊ आपातकाल के दौरान केन्याई लोगों पर की गयी क्रूर यातनाओं में काफी समानता दिखाई देती है। जिस तरह पुर्तगालियों द्वारा कैरिबियन और ब्राजील के लोगों का क्रॉस-अटलांटिक दास व्यापार और दमन किया गया था, ठीक उसी तरह मैक्सिको के स्वदेशी लोगों पर स्पेन द्वारा की गई क्रूरता और उत्पीड़न को देखा जा सकता है। और आखिर में, जापान की शाही सेना के हाथों कोरिया की महिलाओं का शोषण और दुरुपयोग किया जाना और comfort women के रूप में उनका इस्तेमाल किया जाना अन्याय और भेदभाव की पराकाष्ठा को उजागर करता है, जिसकी जितनी भर्त्सना की जाए वो कम है।

लेकिन इसके पहले कि हम ये जानने और समझने की कोशिश करें कि किस तरह कुछ राष्ट्रों ने पूर्व में हुई ज़्यादतियों को सुधारा और दूर किया है और किस तरह कुछ राष्ट्र जो अब तक पूर्व में हुई गलतियों को सही नहीं कर पाए हैं वे भी उन्हें सही करने की कोशिशों में लगे हुए हैं, वहीं पर हमारे लिए कुछ ऐसी ताकतों को देखना और समझना बड़ा दुरूह कार्य है जो इन सुधार कार्यों को करने और पूर्व में खुद के द्वारा की हुई भूलों को सुधारने के लिए आज भी तय्यार नहीं हुए हैं।

बहरहाल, उन तरीकों पर ध्यान देने से पहले, जिनमें कुछ राष्ट्रों ने अतीत की ज्यादतियों को सुधारने के लिए फिर से सुधार कार्य किया है और उन राष्ट्रों के पास अतीत में की हुई भूलों को सुधारने के लिए संभावनाएं अभी भी मौजूद हैं जिन्होंने अभी तक ऐसा नहीं किया है, ऐसे में उन ताकतों का निरीक्षण करना महत्वपूर्ण है, जो ऐसा करने की उपेक्षा करते हैं। मिसाल के तौर पर, यूनाइटेड किंगडम के कनिष्ठ विदेश मंत्री मार्क फील्ड के इस बयान को ही लीजिये जिसमें वो कहते हैं कि,“की गयी गलती के लिए हर बार माफ़ी मांगने से हम माँगी हुई माफ़ी की कीमत घटा देते हैं।” इसी बात के मद्देनज़र एक तर्क यह भी है कि पूर्ण क्षमा याचना करना और किये हुए कृत्य की भूल सुधार करना एक ऐसी मिसाल कायम करेगा जिसके तहत पुर्तगाल से उम्मीद की जा सकती है कि वे औपनिवेशिक समय में स्वयं के द्वारा शोषण किए गए राष्ट्रों की भरपाई करें। लेकिन अगर ऐसा हुआ तो वो पूर्व औपनिवेशिक साम्राज्यों के दुराचार के छत्ते को छेड़ने जैसा होगा।

उपरोक्त बातों और घटनाओं के मद्देनज़र, निकोलस लियोड, एक ब्रिटिश इतिहासकार, अपनी किताब, The Amritsar Massacre: The Untold Story of One Fateful Day, में ये राय रखते हैं कि अमृतसर में हुए प्रदर्शनकारियों के नरसंहार के लिए गांधी ज़िम्मेदार थे। उसके मुताबिक़ इस आतंकवादी गतिविधी के जड़ में गांधी जी का सत्याग्रह था जिससे प्रभावित होकर जनता ने 1919 के अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम का पालन करने से इंकार कर दिया था, जिसे लोकप्रिय रूप से रोलेट एक्ट के रूप में जाना जाता है। यह तर्क शायद, उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश कानूनी सिद्धांतकार, जॉन ऑस्टिन के न्यायशास्त्र के जैसा है, जिन्होंने मूल्य-मुक्त तरीके से कानून का अध्ययन किया। ऑस्टिन के अनिवार्य सिद्धांत के मुताबिक़ कानून राजनीतिक संप्रभुता की कमान है, जिसे मंजूरी दी गई है। इसके विपरीत किया गया कोई भी कृत्य, भले ही वो कितना ही उचित और तर्कसंगत क्यों ना हो, उसे आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त कानून से मंज़ूरी प्राप्त करना ज़रुरी होगा। इसलिए, यह न्यायशास्त्रीय अक्षमता उपनिवेशवाद के नैतिक दिवालियापन के साथ लगातार चलती रहती है।

ऑस्टिन के अनिवार्य सिद्धांत के मुताबिक़ कानून राजनीतिक संप्रभुता की कमान है, जिसे मंजूरी दी गई है। इसके विपरीत किया गया कोई भी कृत्य, भले ही वो कितना ही उचित और तर्कसंगत क्यों ना हो, उसे आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त कानून से मंज़ूरी प्राप्त करना ज़रुरी होगा।

हाउस ऑफ कॉमन्स में औपचारिक माफी पर चल रही बहस के दौरान ब्रिटिश पीएम थेरेसा मे ने इस घटना पर गहरा अफसोस व्यक्त किया था, उनका इस तरह का अफ़सोस जतलाना उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की राय के अनुरूप था, जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान जलियांवाला बाग़ हत्याकांड को एक गहरी शर्मनाक घटना बताया था। लेकिन सिर्फ इस तरह से माफ़ी मांग कर प्रभावित लोगों के कष्ट और दुःख पर मरहम नहीं लगाया जा सकता है। ब्रिटेन के विदेश कार्यालय के मुताबिक़ इस तरह से माफ़ी मांगने की वजह से आर्थिक/वित्तीय प्रभाव पड़ने की संभावना है। इन सभी बातों के मद्देनजर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे यूनाइटेड किंगडम खुद को भारत में हुई इस तरह की किसी भी घटना की ज़िम्मेदारी से मुक्त रखना चाहता है, जिसके लिए यदि उसने माफ़ी माँगी तो उसे दोषी ठहराया जा सके। इसके अलावा, यह उल्लेख करने योग्य है कि ब्रिटेन के विपक्षी नेता जेरेमी कॉर्बिन ने उनकी सरकार की आलोचना की और मांग की कि, “जो नरसंहार में अपनी जान गंवा चुके हैं, उनसे, स्पष्ट, साफ़ और इमानदारी से माफ़ी मांगना सही है।” इस प्रकार, वो चाहते हैं कि अफसोस या शर्म की भावना से आगे बढ़ते हुए औपचारिक माफी माँगने की ओर बढ़ा जाए।

इसके विपरीत, 2015 में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपनी सेना द्वारा की गई ज्यादतियों के लिए औपचारिक रूप से माफी मांगी थी। जितनी भी महिलाओं के साथ अमानुषिक बर्ताव किया गया था उन सभी के पुनर्वास के लिए जापानी सरकार ने अपने बजट में उचित प्रावधान किये। इसी तरह, 1914 में हिंदू, सिख और मुस्लिम मूल के यात्रियों को कोमागाटा मारू के रास्ते , कनाडाई तटों पर प्रवेश करने से इनकार करने के मामले में, कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने 2016 में कहा, “सबसे पहले और सबसे ज़रुरी बात यही है कि हम घटना के पीड़ितों के दर्द और तकलीफ़ के लिए माफ़ी मांगते हैं क्योंकि कोई भी शब्द उनके द्वारा अनुभव किए गए दर्द और पीड़ा को मिटा नहीं सकता है। लेकिन इस बात को इतना वक़्त गुजर चुका है और आज हमारी माफ़ी सुनने वाला यहाँ कोई मौजूद नहीं है, फिर भी हम अपने किए के लिए उन सभी पीड़ितों से दिल से माफ़ी मांगते हैं, हम माफ़ी मांगते हैं उन सभी कष्टों के लिए जिनकी पीड़ा हम पहचान नहीं सके, और हम माफ़ी मांगते हैं कि हम पहचान ही नहीं सके कि आप हमारे लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। उन सभी कानूनों के लिए हमें माफ़ कीजिये जो इतनी क्रूरतापूर्ण तरीके से आपके साथ भेदभाव करते हैं, और हमें माफ़ कीजिये कि इन सभी बातों के लिए हम आपसे पहले माफी नहीं मांग सके, और अंत में एक बार फिर हम आपसे पूर्व में की गयी अपनी भूलों के लिए दिल से माफी मांगते हैं।’’ लेकिन माऊ माऊ आपातकाल के दौरान, ब्रिटिश प्रशासन ने औपनिवेशिक केन्या से माफ़ी माँगी थी। जून 2013 में तत्कालीन विदेश सचिव विलियम हेग ने माफी मांगी थी और ब्रिटेन सरकार ने पीड़ितों को या मृतक लोगों के परिजनों को 19.9 मिलियन पाउंड का मुआवजा दिया था। इस संदर्भ में उन्होंने कहा, “हम केन्या में आपातकाल की घटनाओं में शामिल लोगों द्वारा महसूस किए गए दर्द और दुःख को समझते हैं। ब्रिटिश सरकार मानती है कि केनन औपनिवेशिक प्रशासन के हाथों अत्याचार और अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार के शिकार थे।” हालांकि, इस मामले में यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यातना पीड़ितों में से पांच पीड़ितों ने ब्रिटेन के उच्च न्यायालय में एक कानूनी मामला दायर किया था, जिसके परिणामस्वरूप ब्रिटेन का हृदय परिवर्तन हुआ और उसने अपनी पिछली गलतियों को स्वीकार किया और अपने कृत्य के लिए माफ़ी माँगी।

इस मामले में यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यातना पीड़ितों में से पांच पीड़ितों ने ब्रिटेन के उच्च न्यायालय में एक कानूनी मामला दायर किया था, जिसके परिणामस्वरूप ब्रिटेन का हृदय परिवर्तन हुआ और उसने अपनी पिछली गलतियों को स्वीकार किया और अपने कृत्य के लिए माफ़ी माँगी।

अंतर्राष्ट्रीय कानून आयोग (आईएलसी) की धाराओं में राज्य की जिम्मेदारी पर विस्तार से उल्लेख किया गया है और इसके अनुसार, राज्यों के गलत कामों से होने वाली चोट या प्रताड़ना के लिए पुनर्संयोजन तीन व्यापक रूपों में आ सकता है। पहला रूप पुनर्स्थापन है, अर्थात् उस स्थिति को फिर से स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध होना, जो गलत कार्य से पहले मौजूद थी। दूसरा, अगर बहाली संभव नहीं है तो मुआवजा है। यह किसी भी वित्तीय रूप से आकलन योग्य क्षति को कवर करता है जिसमें मुनाफे की हानि भी शामिल है। अन्त में, यदि उपरोक्त दोनों तरीकों द्वारा गलत कामों का प्रायश्चित नहीं किया जा सकता है, तो आख़िरी तरीक़ा संतुष्टि है। इसमें उल्लंघन की एक पावती, अफसोस की अभिव्यक्ति, एक औपचारिक माफी या अन्य उपयुक्त विनय शामिल हो सकते हैं। वैसे तो ये सभी पुनर्संयोजन के तीन अलग-अलग रूप हैं, लेकिन इन सभी का एक संयोजित रूप भी कम में लाया जा सकता है।

इस महीने की शुरुआत में, बेल्जियम के प्रधान मंत्री ने बुरुंडी, कांगो और रवांडा के औपनिवेशिक शासन के दौरान मिश्रित जाति के जोड़ों द्वारा पैदा हुए हजारों बच्चों के अपहरण, अलगाव, निर्वासन और जबरन गोद लिए जाने जैसे मामलों के लिए उनकी संसद के एक सत्र में औपचारिक माफी माँगी थी। इस तरह के कुछ इशारे और बातें भले ही उनके अतीत की कडवी यादों को दूर ना कर पाएं मगर पीड़ितों को आराम देते हैं और उनके भयावह अतीत को भूलने की ताकत प्रदान करते हैं। इस तरह की बातों से कानून और राजनीति के शासन का निर्माण करने में मदद मिलती है, जिसके अनुसार व्यक्ति सबसे सर्वोपरी है। यह सामाजिक न्याय को मजबूत करता है। इस तरह की गतिविधियों से मानव अधिकारों को मान्यता मिलती है और मानव अधिकारों के हनन से काफ़ी हद तक बचा भी जा सकता है। इस प्रकार, ये सभी कार्य उपनिवेशों और साम्राज्यों की शक्ति के अतीत में हुए दुरूपयोग की पीड़ा को काफी हद तक कम करने की कोशिश करते हैं और सभी के मध्य समान अधिकारों के रिश्ते बढाने में सहयोग प्रदान करते हैं।

ब्रिटिश सरकार ने आखिर स्वंय के द्वारा अतीत में की गईं ज़्यादतियों के लिए खुलकर और पूर्ण रूप से क्षमा क्यों नहीं माँगी इसका कारण तो अज्ञात है। इसकी वजह शायद बढ़ते राष्ट्रवाद और ब्रेक्सिट के माध्यम से जरूरतों को प्राप्त करने के अनुरूप हो सकती है। इस तरह की माफी माँगने से हो सकता है कि वित्तीय लागत बढ़ जाए। शायद ब्रिटेन को मऊ मऊ मामले के द्वारा जो प्रायश्चित की मिसाल स्थापित की गयी है उस तरह की मिसाल में शामिल हो जाने का डर है। उपरोक्त वजहों में से कोई भी एक वजह या फिर इन सभी वजहों का सम्मिश्रण ब्रिटेन की खुल कर माफ़ी न मांगने का कारण हो सकता है। बहरहाल, अगर थेरेसा मे की सरकार में जूनियर मंत्री मार्क फील्ड को लगता है कि अगर अक्सर माफ़ी का इस्तेमाल किया जाता है तो माफ़ी की कीमत घट जाती है तो यूके निश्चित रूप से एक दिन दिवालिया हो सकता है। पूर्व उपनिवेशित देश आख़िर कब और किस वक्त अदालतों और अन्य कानूनी तंत्रों का सहारा लेते हैं ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। अनौपचारिक प्रयासों के द्वारा केवल वही बताया जा रहा है जो कहा गया है या जो नहीं कहा जाना चाहिए था। ब्रिटिश सांसदों द्वारा अपने समाज को अपने अतीत के प्रति अधिक जागरूक बनाने का यह एक प्रयास किया गया है। यह तथ्य कि यह प्रयास आखिर किया भी गया है अपने आप में एक बेहतर भविष्य की आशा प्रदान करता है।


लेखक ORF नई दिल्ली में रिसर्च इंटर्न रह चुके है।

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