अफ्रीकी संघ का 34वां सामान्य शिखर सम्मेलन 7 और 8 फरवरी 2021 को इसके मुख्यालय अदिस अबाबा में हुआ. कोविड-19 महामारी के बीच अफ्रीकी संघ का ये पहला वर्चुअल सम्मेलन था. इस सम्मेलन के दौरान अफ्रीकी संघ ने पहली बार अपने आयोग के अधिकारियों का वर्चुअल चुनाव किया. ये चुनाव अफ्रीकी संघ के हालिया सुधारों के तहत कराए गए.
इस शिखर सम्मेलन में अफ्रीकी संघ की क्षेत्रीय अध्यक्षता में भी परिवर्तन हुआ. दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति, सिरिल रामाफोसा ने संघ की अध्यक्षता, कॉन्गो लोकतांत्रिक गणराज्य के राष्ट्रपति फीलिक्स–एंतोइन शिसेकेडी शिलोंबो के हवाले की. यानी, परिवर्तन की प्रक्रिया के अंतर्गत, अफ्रीकी संघ की अध्यक्षता दक्षिण से केंद्रीय अफ्रीका के पास आ गई है. वर्ष 2018 में पॉल कगामे ने पूर्वी अफ्रीका की ओर से अफ्रीकी संघ की अध्यक्षता संभाली थी. उसके बाद, वर्ष 2019 में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल–सिसी, अफ्रीकी यूनियन के अध्यक्ष रहे थे. अगले साल यानी 2022 में अफ्रीकी संघ की अध्यक्षता पश्चिमी अफ्रीका को मिलेगी. अगले साल अफ्रीकी संघ की अध्यक्षता सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी साल के पास जाने की उम्मीद है. मैकी साल इस समय अफ्रीकी संघ के पहले उपाध्यक्ष के तौर पर ब्यूरो में हैं. पश्चिमी अफ्रीकी देशों के आर्थिक समुदाय (ECOWAS) ने 2 फरवरी 2021 को अपने सम्मेलन में मैकी साल को अपनी ओर से अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष बनाने के प्रस्ताव पर मुहर लगाई थी.
अफ्रीकी संघ की क्षमताओं और लोगों की अपेक्षाओं के बीच बहुत अधिक अंतर है. ऐसे में इन थीम के ज़रिए, अफ्रीकी संघ उन चुनौतियों से निपटने का प्रयास करता है, जिनका समाधान अफ्रीकी देशों को निकालना होता है.
अफ्रीकी संघ की क्षमताओं और अपेक्षाओं के बीच बढ़ता अंतर
इस साल के अफ्रीकी संघ के शिखर सम्मेलन की थीम थी, ‘कला, संस्कृति और विरासत: भविष्य के अफ्रीका के निर्माण के स्तंभ’. वर्ष 2020 के शिखर सम्मेलन की थीम थी, ‘गोलीबारी को रोकना: अफ्रीका के विकास के लिए माहौल बनाना’. वहीं, वर्ष 2019 में अफ्रीकी संघ ने अपनी बैठक की थीम, ‘शरणार्थियों, घर वापसी करने वालों और अपने ही देश में बेघर लोग: अफ्रीका में ज़बरन बेघर किए गए लोगों के लिए स्थायी समाधान तलाशना’ थी. असल में अफ्रीकी संघ के शिखर सम्मेलनों की ये थीम, अफ्रीकी देशों को एक नैतिक आधार देने का काम करती हैं. अफ्रीकी संघ की क्षमताओं और लोगों की अपेक्षाओं के बीच बहुत अधिक अंतर है. ऐसे में इन थीम के ज़रिए, अफ्रीकी संघ उन चुनौतियों से निपटने का प्रयास करता है, जिनका समाधान अफ्रीकी देशों को निकालना होता है. हालांकि, ये थीम इसलिए बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इससे अफ्रीकी संघ (AU) को अपने काम पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करती हैं.
2021 की थीम की प्रेरणा, एजेंडा 2063-समावेशी विकास और टिकाऊ वृद्धि के लिए साझा फ्रेमवर्क और एस्पिरेशन 5 से ली गई है. इनका मानना है कि एक मज़बूत सांस्कृतिक पहचान, मूल्यों और नैतिकता वाला अफ्रीका इसे और मज़बूत बनाएगा. अफ्रीका के लोग विविधता के बावजूद, सांस्कृतिक एकता के भाव से प्रेरित किए जा सकते हैं. उनके अंदर साझा नियति, पहचान और पूरे अफ्रीका के प्रति जागरूकता का भाव पैदा किया जा सकता है. ये अपेक्षाएं काम–काज के नैतिक मूल्यों और महिलाओं की भूमिका पर ध्यान देने के साथ–साथ पारंपरिक और धार्मिक नेताओं की अहमियत को भी स्वीकार करता है. इनमें युवाओं को परिवर्तन का प्रतिनिधि माना गया है.
अफ्रीकी महाद्वीप अभी भी ऐसी संरचनात्मक चुनौतियों से जूझ रहा है, जिससे स्थायी विकास के साथ साथ टिकाऊ शांति स्थापित की जा सके.
अफ्रीकी संघ का ये शिखर सम्मेलन महामारी के दौरान हुआ, जिससे कि आर्थिक और सामाजिक पुनरुत्थान की चुनौती से निपटा जा सके. इसके साथ साथ अफ्रीकी महाद्वीप के मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) को लागू करने में हो रही देरी की चुनौती से भी निपटा जा सके. वर्ष 2020 में अफ्रीकी महाद्वीप में चल रही हिंसा को रोकने के प्रयासों के बावजूद, तमाम अफ्रीकी देशों के भीतर हिंसक संघर्ष और बेघर हुए लोगों के सीमा पर विस्थापन के चलते महाद्वीप में तनाव बना हुआ है. संघ के अध्यक्ष के तौर पर दक्षिण अफ्रीका ये चाहता था कि मई 2020 में अफ्रीकी संघ के दो असाधारण शिखर सम्मेलन आयोजित किए जाएं, जिससे कि अफ्रीकी महाद्वीप में मुक्त व्यापार क्षेत्र को लागू किया जा सके और, ‘हिंसा को रोकने’ के प्रयासों पर भी चर्चा हो सके. लेकिन, महामारी के चलते इन शिखर सम्मेलनों को स्थगित करके नवंबर 2020 में वर्चुअल सम्मेलन आयोजित किए गए थे.
अफ्रीकी देशों में चल रहे हिंसक संघर्षों में मध्य अफ्रीकी गणराज्य में पिछले साल दिसंबर में हुए चुनाव के बाद भड़की हिंसा सबसे प्रमुख है. अफ्रीकी संघ इस बात पर सहमत नहीं हो सका कि इस मामले में विभाजित हितों को एक मंच पर कैसे ले आए. अंगोला, कॉन्गो लोकतांत्रिक गणराज्य और रवांडा तो केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य के मौजूदा राष्ट्रपति का समर्थन करते हैं. लेकिन, चाड और कॉन्गो (ब्राज़ाविल) विद्रोहियों को तरज़ीह देते हैं. इस वजह से कॉन्गो लोकतांत्रिक गणराज्य और अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष की प्रतिद्वंदिता में अफ्रीकी संघ परिषद (AUC) का अध्यक्ष चाड खड़ा हो जाता है. आज अफ्रीकी संघ ऐसी ही कड़वी सच्चाइयों से दो–चार है.
लगभग यही हाल इथियोपिया के टिगरे संकट का है. इथियोपिया की सरकार इसे अपने देश के भीतर क़ानून व्यवस्था का मसला मानती है. इसी वजह से, अफ्रीकी संघ के तीन बड़े देशों की बातें इथियोपिया ने अनसुनी कर दी थीं. इससे अफ्रीकी संघ के प्रभाव में ही कमी आई है. अफ्रीकी संघ के जो प्रतिनिधि इथियोपिया गए थे, उनमें मोज़ाम्बीक के पूर्व राष्ट्रपति जोआचिम चिशानो; लाइबेरिया के पूर्व राष्ट्रपति जॉनसन सरलीफ; दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति कगालेमा मोटलांथे शामिल थे. अफ्रीकी संघ के बीच ऐसे ही मतभेद सोमालिया और केन्या के बीच मतभेद और सूडान इथियोपिया के बीच सीमा विवाद में भी दिखता है.
संरचनात्मक चुनौतियां
अफ्रीकी संघ, ग्रैंड इथियोपियन रिनेसां बांध समझौते में शामिल सभी पक्षों को एकजुट बनाए रखने में ज़रूर सफल रहा है. अध्यक्ष रामाफोसा और अफ्रीकी संघ के ब्यूरो के प्रयासों के चलते सभी पक्ष आपस में संवाद करते रहे हैं. पर, इसी दौरान टिगरे का संकट पैदा हो गया और इस समस्या में नए आयाम जुड़ गए. AUC के चार साल के प्रदर्शन की रिपोर्ट देखें, तो उसका दावा है कि उसने सूडान, दक्षिणी सूडान और इथियोपिया बनाम इरीट्रिया के मसलों का समाधान किया है. हालात की समीक्षा और भविष्य की राह तय करने से जुड़ी रिपोर्ट में ये कहा गया है कि अफ्रीकी संघ की पूर्वानुमान बताने वाली व्यवस्था, इथियोपिया के टिगरे संकट की चेतावनी देने में नाकाम रही है. अफ्रीकी महाद्वीप अभी भी ऐसी संरचनात्मक चुनौतियों से जूझ रहा है, जिससे स्थायी विकास के साथ साथ टिकाऊ शांति स्थापित की जा सके.
इस शिखर सम्मेलन में उन सुधारों में से कुछ को लागू किया जाना था, जिनका प्रस्ताव वर्ष 2016 में रवांडा के राष्ट्रपति कगामे ने रखा था. इन सुधारों का लक्ष्य पूरे महाद्वीप में लागू की जा सकने वाली गिनी चुनी प्राथमिकताओं पर ध्यान देना था; अफ्रीकी संघ की संरचना और गतिविधियों की समीक्षा करना और संस्थानों में बदलाव करके ये सुनिश्चित करना था कि सभी संस्थान बेहतर ढंग से अपनी सेवाएं दे सकें; अफ्रीकी लोगों से संपर्क बढ़ाना; क्रियान्वयन के मोर्चे पर प्रभावी और कुशल होना और अपने कार्यक्रमों के लिए पूंजी के टिकाऊ स्रोत का इंतज़ाम करना जिससे कि विकास में अपने साझेदारों पर निर्भरता कम की जा सके; इसके लिए उपयुक्त आयातों पर 0.2 प्रतिशत की दर से अफ्रीकी संघ का टैक्स लगाना, जिससे कि अफ्रीकी संघ की गतिविधियों के लिए रक़म जुटाई जा सके.
अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष मध्य अफ्रीका से आते हैं और उपाध्यक्ष पूर्वी अफ्रीका से, तो इन क्षेत्रों को आयुक्तों के चुनाव के लिए प्रत्याशी देने का अधिकार नहीं रह गया था. ऐसे में इन क्षेत्रों के जो लोग आयुक्त के चुनाव में भाग्य आज़मा रहे थे, उनकी उम्मीदवारी अपने आप रद्द हो गई.
अफ्रीकी संघ के शिखर सम्मेलन में जिन तीन स्पष्ट सुधारों को महसूस किया जा सकता है, उनमें से पहला है कि सम्मेलन को साल में दो बार के बजाय एक बार आयोजित करना (असाधारण परिस्थितियों में शिखर सम्मेलन बुलाया जा सकता है); अफ्रीकी संघ के आयोग का आकार दस से घटाकर आठ कर दिया गया. चार आयुक्तों की ज़िम्मेदारियों को दो में शामिल कर दिया गया. इसके अलावा साझेदार देशों को अब शिखर सम्मेलन में नहीं बुलाया जाएगा, क्योंकि ऐसा लगता था कि वो संघ के सम्मेलन से अफ्रीकी नेताओं का ध्यान बंटाते थे.
चूंकि अफ्रीकी संघ के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था, जब शिखर सम्मेलन के अध्यक्ष का निर्विरोध चुनाव हुआ. इस वजह से सुधारों का असर उपाध्यक्षों और छह आयुक्तों के चुनाव पर देखने को मिला. जब आयोग के कुल सदस्यों की संख्या दस थी, तब हर क्षेत्र को अफ्रीकी संघ के दो पद मिला करते थे. लेकिन, अब आयोग के सदस्यों की संख्या घटा देने के कारण अध्यक्ष का क्षेत्रीय स्तर पर विभाजन दो या अधिक कार्यकालों तक हो सकेगा. रवांडा की बैंकर और मंत्री डॉक्टर मोनीक़ एनसांज़ाबागान्वा, उपाध्यक्ष पद हासिल करके इस पद पर बैठने वाली पहली महिला बन गईं. उन्होंने दो अन्य महिलाओं से मिलने वाली चुनौती से पार पाया था. चूंकि सुधारों के तहत या तो अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष में से किसी एक पद पर महिला का होना आवश्यक था. इससे पहले महिलाओं और पुरुषों के बीच ये संतुलन केवल आठ आयुक्तों पर लागू होता था. अब अफ्रीकी संघ के दो शीर्ष पदों का चुनाव संघ के राष्ट्राध्यक्षों की सभा द्वारा होता है.
अफ्रीकी संघ के आयुक्तों का चुनाव विदेश मंत्रियों की कार्यकारी परिषद करती है. नए नियमों के अनुसार, इसमें भी क्षेत्रीय और पुरुषों–महिलाओं के बीच संतुलन होना चाहिए. लेकिन, इसका निर्धारण तभी हो सकता था, जब सभा शीर्ष के दो पदाधिकारियों का चुनाव कर ले. चूंकि, अफ्रीकी संघ के अध्यक्ष मध्य अफ्रीका से आते हैं और उपाध्यक्ष पूर्वी अफ्रीका से, तो इन क्षेत्रों को आयुक्तों के चुनाव के लिए प्रत्याशी देने का अधिकार नहीं रह गया था. ऐसे में इन क्षेत्रों के जो लोग आयुक्त के चुनाव में भाग्य आज़मा रहे थे, उनकी उम्मीदवारी अपने आप रद्द हो गई.
अफ्रीकी संघ की कार्यकारी परिषद ने 6 फरवरी 2021 को निम्नलिखित आयुक्तों का चुनाव किया:
–राजदूत बैंकोले एडेओए: नाइजीरिया के राजनयिक एडेओए को अफ्रीकी संघ के राजनीतिक मामलों, शांति और सुरक्षा का प्रमुख आयुक्त चुना गया.
–जोसेपा सकोआ: अंगोला के जोसेफा को कृषि, ग्रामीण विकास, ब्लू इकॉनमी और स्थायी विकास का आयुक्त चुना गया.
–राजदूत अल्बर्ट मुचांगा: ज़ांबिया के राजनयिक मुचांगा को आर्थिक विकास व्यापार, उद्योग और खनन का संयुक्त उपायुक्त चुना गया.
–डॉक्टर अमानी अबू–ज़ैद: मिस्र के रहने वाले डॉक्टर अमानी को मूलभूत ढांचे और ऊर्जा का आयुक्त दोबारा चुन लिया गया.
स्वास्थ्य, मानवीय मामले और सामाजिक विकास के आयुक्त व शिक्षा विज्ञान तकनीक और इनोवेशन के आयुक्तों का चुनाव कार्यकारी परिषद की अगली बैठक तक के लिए टाल दिया गया, क्योंकि इन पदों के लिए ऐसे उम्मीदवारों का अभाव था, जो लैंगिक और क्षेत्रीय संतुलन की शर्त पूरी कर सकते है. इस तरह से शांति और सुरक्षा के आयुक्त पद पर अल्जीरिया का लंबे समय से चला आ रहा क़ब्ज़ा ख़त्म हो गया. लेकिन, मिस्र अभी भी मूलभूत ढांचे के विभाग पर क़ाबिज़ है. हां, बाक़ी आयुक्तों के पदाधिकारी नियमित रूप से बदलते रहे हैं.
सुधारों के माध्यम से पुनः अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश
सितंबर 2020 तक, आयुक्तों के छह पदों के लिए 89 लोगों को नामित किया जा चुका था. वहीं, उपाध्यक्ष पद के लिए चार प्रत्याशी थे. सम्मानित लोगों के एक पैनल ने इन सभी उम्मीदवारों की समीक्षा की, जिससे कि ये पता लगाया जा सके कि वो हुनर और क़ाबिलियत के पैमाने पर सही हैं या नहीं; इस पैनल ने अपनी समीक्षा के बाद उम्मीदवारों की आख़िरी सूची सौंपी. उसके बाद जाकर मतदान हुआ. आख़िरी 25 महिला उम्मीदवारों में से केवल आठ को ही अंतिम सूची में जगह मिल सकी थी. जिससे अपेक्षित लैंगिक समानता पर असर पड़ा. असल में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव के चलते आयुक्त पदों के उम्मीदवारों की सूची की छंटाई पर भी असर पड़ा. इससे पूर्वी और मध्य अफ्रीकी उम्मीदवार रेस से बाहर हो गए. इसी कारण से अन्य क्षेत्रों से आने वाले पर्याप्त उम्मीदवार नहीं बचे जिनकी मदद से लैंगिक समानता का लक्ष्य पूरा किया जा सके. अब इन पदों को तब भरा जाएगा, जब नए नामांकन भरे जाएंगे और उनकी समीक्षा होगी.
अफ्रीकी संघ एक ऐसा संगठन बनकर रह गया है, जो कुछ काम तभी कर पाता है, जब उसे इसकी इजाज़त मिलती है.
अफ्रीकी संघ इन सुधारों के माध्यम से अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रहा है. संघ ख़ुद को अधिक कार्यकुशल और पारदर्शी बनाने की कोशिश कर रहा है. पर, दिक़्क़त यही है कि ये सुधार अभी भी राजनीतिक कम और अधिकारियों के स्तर पर अधिक केंद्रित हैं. अफ्रीकी संघ अभी भी समस्याओं के समाधान की डगर पर नहीं चल रहा है. इसके सदस्य देश इन समस्याओं के समाधान की प्रक्रिया में संघ को शामिल ही नहीं होने देना चाहते. ऐसे में अफ्रीकी संघ एक ऐसा संगठन बनकर रह गया है, जो कुछ काम तभी कर पाता है, जब उसे इसकी इजाज़त मिलती है. इस महामारी के दौर में पूरे अफ्रीका से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए अफ्रीकी संघ से काफ़ी उम्मीद की जा रही है. लेकिन, इस लक्ष्य को पाने के लिए उसे अधिक समन्वय वाला संगठन बनने की ज़रूरत है. यानी ठीक वैसा संगठन, जैसा इसे बनाने की कोशिश, अध्यक्ष रहते हुए दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा कर रहे थे.
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