Published on May 17, 2019 Updated 0 Hours ago

अधिकांश वैश्विक संस्थानों और प्लेटफॉर्म अफ्रीका को बातचीत के लिए बुलाते हैं, लेकिन शायद ही कभी बातचीत को अफ्रीकी देशों के अनुरूप बनाते हैं.

घातक ऑटोनोमस हथियारों की बहस में अफ्रीका शामिल तो है, पर केंद्र में नहीं!

25-29 मार्च 2019 को घातक ऑटोनोमस हथियार प्रणाली या लीथल ऑटोनोमस वेपन सिस्टम (एलएडब्लूएस पर यूएन जीजीई) पर सरकारी विशेषज्ञों के यूएन समूह ने जेनेवा में अपनी चौथी मीटिंग के लिए बैठक की. इस बैठक का फोकस चार चीजों पर था:

  • अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानूनों की चुनौतियों की आगे पड़ताल की जाए.
  • ऑटोनोमस हथियार प्रणालियों की ख़ास विशेषताओं पर रौशनी डाली जाए.
  • मानवीय तत्व, उत्तरदायित्व, और इंसान-मशीन की आपसी क्रिया पर ध्यान दिया जाए.
  • लॉज़ (एलएडब्लूएस) संबंधी तकनीकों के संभावित उपयोगों की पड़ताल की जाए.

लॉज़ (एलएडब्लूएस) पर किसी भी तरह के संभावित फ्रेमवर्क के लिए सभी निगाहें यूएन जीजीई पर टिकी हुई हैं. लेकिन, कन्वेंशन ऑन सर्टेन कन्वेंशनल वेपन (सीसीडब्लू) यानि (निश्चित पारंपरिक हथियारों की सभा) बेहद धीमी है और निर्णय लेने की अपनी सहमति से चलने वाले मॉडल की बाधा से जूझ रहा है. सबसे ध्यान देने की बात यह है लगातार होने वाला पक्षपात, यह सीसीडब्लू का सबसे समस्याग्रस्त हिस्सा है जो लॉज (एलएडब्लूएस) के लिए विस्तृत बहस को जन्म देता है.

यह एक तथ्य है कि अफ्रीकी देश यूएन की कुल सदस्यता का 28% है. लेकिन, इसके बावजूद उनके दृष्टिकोण को महाद्वीप के बाहर शायद ही कभी प्रस्तुत किया जाता है. यह मान लिया जाता है कि अफ्रीकी राज्य उनके अपने अलग-अलग विकास और सुरक्षा से जुड़ी हुई फ़िक्र से परेशान हैं और ऑटोनोमस हथियार उनके लिए प्राथमिकता नहीं हैं. हालांकि, वास्तविकता यह है कि अफ्रीकी देशों के लिए लॉज़ (एलएडब्लूएस) उतना ही दबाव डालता हुआ मामला है जितना पी-5 के लिए. सोमाली गृहयुद्ध, नाइजीरिया में सांप्रदायिक संघर्ष, बोको हरम का द्रोह, और हथियारों के साथ होने वाले अनेक दूसरे टकरावों के उदाहरणों के साथ, अफ्रीका एक ऐसी जगह है जहां दुनिया के सबसे खतरनाक और लगातार चलने वाले टकराव होते हैं. अपने बेहतर पुलिस ताकत के वायदे और मृत्यु को घटाने की क्षमता के बावजूद ऐसे टकरावों में ऑटोनोमस हथियार लगाया जाना खतरनाक होगा, ख़ासतौर पर जब नियम और कानूनी फ्रेमवर्क न हो.

इस संदर्भ ने अफ्रीका प्रतिक्रिया को रूप दिया है. उदाहरण के लिए, दक्षिण अफ्रीका द्वारा प्रतिनिधित्व किए जा रहे अफ्रीकी समूह के साथ अल्जीरिया, मिश्र, घाना, युगांडा और ज़िंबाब्वे उन शुरुआती देशों में से हैं, जिन्होंने हत्या करने वाले रोबोट पर प्रतिबंध का समर्थन किया था. हर एक बयान अलग प्राथमिकता को दर्शाता है: कुछ के लिए मानवीय नियंत्रण सरोकार है; दूसरों को भारी संख्या में मौतों का अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी कानून के दायरे से बाहर होने की फ़िक्र है. घाना और ज़िंबाब्वे ऐसे तर्क प्रस्तुत करते हैं जो इस बात को स्वीकार करते हैं कि बड़ी ताकतें अपने भारी सैन्य लाभों के लिए लॉज़ (एलएडब्लूएस) को विकसित करती रहेंगी चाहे छोटी ताकतों का नज़रिया कुछ भी हो. यह आखिरी बिंदु — प्रतिबंध की मांग करने वाले अफ्रीकी पक्ष द्वारा सामना किए जा रहे विरोधाभास को बेहतरीन तरीके से दर्शाता है: पी-5 को पीछे से सहयोग के बग़ैर लॉज़ (एलएडब्लूएस) पर किसी भी तरह का कानूनी-बाध्य उपकरण संभव ही नहीं है.

इसके अलावा, वैश्विक पटल पर सबसे प्रभावी गैर-सरकारी पक्ष प्रतिबंध के लिए जोर लगा रहे हैं, लेकिन वे जिन देशों से पैदा हुए हैं उन देशों की सेनाएं सक्रिय रूप से इसके समानांतर लगी हुई हैं.

इस प्रकार लॉज़ (एलएडब्लूएस) भू-राजनीतिक और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा की रंगभूमि में बदल रहे हैं और साथ ही उन्हीं असमानताओं को दर्शा रहे हैं जो तकनीकी-आधारित सैन्य पहल की दशकों से विशेषता रही है. लॉज़ (एलएडब्लूएस) के मामले में पहले आगे बढ़ने का काफी लाभ है क्योंकि गति और प्रभाव में ज़बर्दस्त सुधार के कारण घातकता में बहुत ज्यादा वृद्धि हुई है. वर्तमान में एआई/एमएल में सारा शोध और निवेश यूएस, चीन और मुट्ठी भर दूसरी ताकतों के कब्ज़े में है. साल 2016 में, निजी फर्म द्वारा आर्टिफीशियल इंटीलिजेंस (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) में निवेश किए गए 26-39 बिलियन डॉलर का 80 प्रतिशत अलीबाबा, अमेज़न, गूगल, फेसबुक और बाइजू ने किया. इसी तरह, साल 2018 में सबसे बड़े सीड-फंडेड रोबोटिक्स स्टार्टअप चीनी, अमेरिकी और जर्मन थे. इसी प्रकार, बड़ी ताकतें तकनीकी को तो नियंत्रित करती ही हैं उसके साथ-साथ संस्थानों और एजेंडा (कार्यसूची) पर भी उनका कब्ज़ा है.

अधिकांश वैश्विक स्तर के संस्थानों और प्लेटफॉर्म का अफ्रीकी समस्या के प्रति यही नज़रिया है: वे उनको बातचीत के लिए मेज़ पर तो बुलाते हैं, लेकिन शायद ही कभी वार्ता को इस तरह से बनाते और रूप देते हैं जो उनके देशों के अनुरूप हो सके. अफ्रीका में जिन देशों के हित जुड़े हैं या जो नागरिक पक्ष हैं उनको लॉज़ (एलएडब्लूएस) से जुड़े हुए नियमों और तकनीकों में शामिल करने के लिए एक अफ्रीका आधारित वार्ता का लंबे समय से इंतजार है. इनमें से अनेक देशों के लिए संघर्ष उनके दरवाज़े तक पहुंच चुका है; ज्य़ादातर बड़ी ताकतें जो भौगोलिक दृष्टि से दूर हैं और जिनके सरोकार भी आगे के भविष्य लेकर हैं वह इसमें सीधे तौर पर प्रासंगिक नहीं हैं.

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