-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन के साफ सबूत के बावज़ूद, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इसे लेकर ख़ामोश है.
पिछले एक दशक में अफ़गान महिलाओं को मिले ज़्यादातर अधिकारों और स्वतंत्रताओं को फिर से ख़त्म कर, तालिबान ने महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए बड़ी बाधाएं खड़ी कर दी हैं. उनके घर से बाहर निकलने, उनकी अभिव्यक्ति और जुड़ाव की आजादी को कम कर दिया है और उन्हें आजीविका के कई साधन से वंचित कर दिया है. अधिकांश अफ़गान महिलाओं और लड़कियों के लिए, 15 अगस्त 2021 के बाद से लगभग हर गुज़रता दिन – जब तालिबान ने काबुल पर कब्ज़ा कर लिया था – उनके अधिकारों और सामाजिक-राजनीतिक स्थिति में गिरावट लेकर आया है.
पिछले एक दशक में अफ़गान महिलाओं को मिले ज़्यादातर अधिकारों और स्वतंत्रताओं को फिर से ख़त्म कर, तालिबान ने महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए बड़ी बाधाएं खड़ी कर दी हैं.
इस बीच दुनिया भर के कई देशों ने बयान जारी किये हैं, गहरी चिंता व्यक्त की है और तालिबान की कार्रवाई की आलोचना की है और उनसे महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन को रोकने की अपील की है. हालांकि- अब तक, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने अफ़ग़ान महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कोई ठोस, समन्वित और व्यावहारिक कार्रवाई नहीं की है. सीधे शब्दों में कहें तो पिछले एक साल में अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों की स्थिति के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया काफी कम और शायद बेहद अपर्याप्त रही है.
यहां तक कि स्वीडन, कनाडा और फ्रांस जैसे देशों ने भी, जिन्होंने एक नारीवादी विदेश नीति का वादा किया है और संयुक्त राष्ट्र (यूएन) महिला, शांति और सुरक्षा एज़ेंडा के कट्टर समर्थक हैं-. इसके बावज़ूद उन्होंने अभी तक तालिबान की नीतियों का विरोध करने के लिए कोई सक्रियता नहीं दिखाई है, ना ही उन्होंने अपनी विदेश नीति में अफ़ग़ान महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों को प्राथमिकता दी है.
संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था, जिसका मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना और मानवाधिकारों की रक्षा करना है, उसने भी अफ़ग़ान महिलाओं को तालिबान से बचाने के लिए कोई बहुत बड़ा काम नहीं किया है. उदाहरण के लिए, अगस्त 2021 में, अफ़ग़ानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद का एक विशेष सत्र आयोजित किया गया था और महिलाओं के अधिकारों पर तालिबान द्वारा बार-बार रोक लगाने के बावज़ूद, इस सत्र का समापन केवल तालिबान के संबंध में चिंता जताकर हो गया.
इस बीच अक्टूबर के सत्र में, अफ़ग़ानिस्तान में मानवाधिकारों पर एक विशेष प्रतिवेदक का पद सृजित किया गया. हालांकि, इसे एक सकारात्मक कदम माना जाता था लेकिन समय की मांग थी कि एक मज़बूत और स्वतंत्र फैक्ट फाइंडिंग मिशन, या कमीशन ऑफ़ एन इनक्वॉयरी को अफ़ग़ानिस्तान भेजा जाता जो तालिबान की दमनकारी नीतियों की जांच कर सकता और अफ़ग़ान महिलाओं और लड़कियों को न्याय सुनिश्चित करा पाता. फिर मार्च में सुरक्षा परिषद ने “सभी अफ़ग़ान नागरिकों के मानवाधिकार को बढ़ावा देने, लैंगिक समानता, महिलाओं और लड़कियों के सशक्तिकरण और उनके अधिकारों की सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए” अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र मिशन को फिर से स्वीकृति दे दी. इसने संयुक्त राष्ट्र के मिशन को महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन की निगरानी की ज़िम्मेदारी भी सौंपी लेकिन इसकी उपयोगिता के बावज़ूद, यह साबित करने के लिए बहुत कम सबूत हैं कि इस मिशन से किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सका.
समय की मांग थी कि एक मज़बूत और स्वतंत्र फैक्ट फाइंडिंग मिशन, या कमीशन ऑफ़ एन इनक्वॉयरी को अफ़ग़ानिस्तान भेजा जाता जो तालिबान की दमनकारी नीतियों की जांच कर सकता और अफ़ग़ान महिलाओं और लड़कियों को न्याय सुनिश्चित करा पाता.
जून में सुरक्षा परिषद ने, एक तरफ तालिबान के दो प्रतिनिधियों पर यात्रा प्रतिबंध लगाया, जो महिलाओं की शिक्षा के अधिकारों को रोकने में शामिल थे और दूसरी ओर, 13 अन्य तालिबान नेताओं के लिए यात्रा प्रतिबंध में छूट को स्वीकृति दी. हालांकि, यात्रा प्रतिबंध लगाकर तालिबान के कुछ प्रतिनिधियों को दंडित करने से न तो महिलाओं के अधिकारों के सामूहिक उल्लंघन की समस्या को हल करने में मदद मिलेगी और न ही इससे तालिबान को अफ़ग़ान महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ अत्याचार करने से रोका जा सकता है. आख़िर में, तालिबान महिलाओं की ज़िंदगी को ख़राब करने, उनके मानवाधिकारों के सभी पहलुओं को प्रभावित करने के लिए ज़िम्मेदार है.
इसके अलावा, मानवाधिकार परिषद ने जुलाई में अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों की दुर्दशा पर तत्काल बहस करने की अपील की, जिसने अफ़ग़ान महिलाओं की शिकायतों को सुनने के लिए एक मंच प्रदान किया. हालांकि नीतियों और एक्शन तैयार करने के बजाए, जिसमें मुख्यधारा की महिलाओं की चिंताएं और उनकी शिकायतों के प्रति कोई जवाबी रणनीति तैयार करने की ज़रूरत थी, वह एक बार फिर इस कदम के साथ समाप्त हुई कि सितंबर में परिषद के अगले सत्र में व्यापक तौर पर इस विषय पर चर्चा आयोजित की जाएगी.
यह कहना ठीक है कि अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण के मुद्दों को बेहतर करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया – काफी असंगठित रही है और इसमें तात्कालिकता की कमी है. इस्लामिक कट्टरपंथियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं होने से अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों के लिए संकट लगातार बढ़ता रहेगा. हालांकि इस समस्या का कोई आसान समाधान नहीं है, यह देखते हुए कि तालिबान अंतर्राष्ट्रीय दबाव के प्रति बहुत प्रतिरोधी रहा है. ऐसे में महिलाओं के अधिकारों के प्रति वैश्विक सहमति एक आक्रामक प्रतिक्रिया की मांग करती है.
शायद मानवाधिकार परिषद सत्र, जो सितंबर में होने वाला है, उसे इस प्रकार के ठोस कदम उठाने के लिए एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है जो अफ़ग़ान महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई राष्ट्रों के मज़बूत प्रतिबद्धताओं को प्रदर्शित करता है
इस तरह से दुनिया भर के देशों को अफ़ग़ानी महिलाओं के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए तालिबान नेताओं के ख़िलाफ़ यात्रा प्रतिबंध और अन्य प्रतिबंधों सहित सभी उपायों का इस्तेमाल करते हुए, एक-दूसरे के साथ समन्वय के साथ अधिक मज़बूत रुख़ अपनाना चाहिए. शायद मानवाधिकार परिषद सत्र, जो सितंबर में होने वाला है, उसे इस प्रकार के ठोस कदम उठाने के लिए एक मंच के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है जो अफ़ग़ान महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई राष्ट्रों के मज़बूत प्रतिबद्धताओं को प्रदर्शित करता है और उनके अधिकारों के उल्लंघन के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद करता है.
कहीं ऐसा न हो कि हम अफ़ग़ान महिलाओं के साथ और एक बेहतर अफ़ग़ानिस्तान के विकास के लिए सही मायने में कार्रवाई करना भूल जाएं, लिहाज़ा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं की आवाज़ को सुनना चाहिए. उनकी ज़रूरतों और प्राथमिकताओं को समझना चाहिए और उनके सुनहरे भविष्य से जुड़ी उनकी उम्मीदों को आगे बढ़ाना चाहिए.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Akanksha Khullar is a Visiting Fellow with the ORFs Strategic Studies Programme where her work focuses on the intersection of policy advice and academic research ...
Read More +