Author : Tahir Qadiry

Published on Jan 05, 2021 Updated 0 Hours ago

 अनिश्चितता भरी वैश्विक भूराजनीति और उथलपुथल भरे वातावरण में आयोजित इस सम्मेलन में विचार के लिए विषय-वस्तु के रूप में “शांति, समृद्धि और आत्मनिर्भरता” को चुना गया था.

2020 में आयोजित अफ़गानिस्तान सम्मेलन- एक मज़बूत प्रतिबद्धता

मंत्री-स्तरीय वचनबद्धता से जुड़ा प्रत्येक चार सालों में होने वाला अफ़ग़ानिस्तान सम्मेलन 2020 स्विट्ज़रलैंड में कोविड-19 की गंभीर स्थिति को देखते हुए वर्चुअल तरीके से संपन्न हुआ. सम्मेलन का आयोजन अफगानिस्तानी इस्लामिक गणराज्य की सरकार, फिनलेंड सरकार और संयुक्त राष्ट्र की संयुक्त मेज़बानी में हुआ. सम्मेलन में कई ऐसे मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ जिनपर गौर करना ज़रूरी है. अफ़गानी शिष्टमंडल का नेतृत्व वहां के विदेश मंत्री जनाब मोहम्मद हनीफ अटमार ने किया. अनिश्चितता भरी वैश्विक भूराजनीति और उथलपुथल भरे वातावरण में आयोजित इस सम्मेलन में विचार के लिए विषय-वस्तु के रूप में “शांति, समृद्धि और आत्मनिर्भरता” को चुना गया था. वैसे तो बातचीत की रूपरेखा कमोबेश एक जैसी ही रही लेकिन जो बात इस मौके को खास बना गई वो यह कि इस सम्मेलन में 70 देशों और 330 संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. इतना ही नहीं जब वैश्विक महामारी की वजह से दुनिया आर्थिक बदहाली का सामना कर रही है उस समय भी विश्व बिरादरी ने आगे आकर अफ़गानिस्तान को अपनी मदद जारी रखते हुए करीब 13 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता की पेशकश की. साफ है कि लगातार हिंसा का शिकार होते रहने के बावजूद अफ़गानिस्तान की मदद के लिए दुनिया में एक सर्वसम्मति बन गई है.

कोरोना का पेच

हर चार साल पर होने वाले इस सम्मेलन के ज़रिए विश्व बिरादरी और अफगानिस्तान की सरकार को अफगानिस्तान में सतत विकास, समृद्धि और अमन बहाली के साझा उद्देश्यों की पूर्ति की दिशा में आगे बढ़ने का मौका मिलता है. हालांकि इस साल दुनियाभर को प्रभावित करने वाली कुछ चिंताजनक तस्वीरें भी सामने आईं. सबसे पहला और सबसे बड़ा विषय तो कोविड-19 का संकट और उससे उपजी परेशानियां ही हैं. इस महामारी ने पूरी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को हिला कर रख दिया है. महामारी ने विश्व की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया और दुनियाभर की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की रफ्तार पर विराम लगा दिया है.

महामारी ने विश्व की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया और दुनियाभर की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की रफ्तार पर विराम लगा दिया है. अफगानिस्तान को भी कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा और विश्व बैंक के मुताबिक 2020 में वहां की अर्थव्यवस्था में करीब 5.5 फीसदी की गिरावट देखने को मिलेगी. 

अफगानिस्तान को भी कई नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा और विश्व बैंक के मुताबिक 2020 में वहां की अर्थव्यवस्था में करीब 5.5 फीसदी की गिरावट देखने को मिलेगी. इन सबके बावजूद विश्व बिरादरी ने दिखा दिया कि वो अफगानिस्तान को आत्मनिर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ते देखना चाहती है. इसी मकसद से दुनिया भर के देशों ने इस चुनौती भरे कालखंड में अफगानिस्तान को खाद्य सहायता से लेकर चिकित्सा उपकरणों तक की मदद पहुंचाई. सम्मेलन की शुरुआत में ही अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने देश में स्थायी तौर पर शांति बहाली की ज़रूरत पर ज़ोर दिया. एक स्थायी अफगानी राज्यसत्ता ही वहां की जनता की इच्छा है. ऐसे में जिन महत्वपूर्ण संस्थानों पर अफगानी राज्यतंत्र टिका है उनको लगातार मज़बूत बनाए रखना ज़रूरी हो जाता है.

अब-तक हासिल लक्ष्यों को सुदृढ़ करना

2001 से लोकतांत्रिक बुनियाद को गहरा करने के रास्ते में अफगानिस्तान ने एक लंबा सफर तय किया है. फिर चाहे वो फलता-फूलता स्वतंत्र मीडिया हो, सक्रिय नागरिक संगठन हों, कौशल-युक्त युवा हों या फिर सशक्त नारीशक्ति हो, सबने देश की राजनीतिक व्यवस्था में अपना योगदान दिया है. एक गणराज्य और संवैधानिक लोकतांत्रिक समाज की परिकल्पना को मज़बूती से अपना काम करने वाली सरकारी संस्थाओं और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने धरातल पर उतारा है. पिछले 19 सालों में अफगानिस्तान की तरक्की को बेहतर परिप्रेक्ष्य में देखना हो तो हमें इस साल के सम्मेलन के एक प्रमुख भागीदार देश फिनलैंड से अफगानिस्तान की समानता ढूंढने का प्रयास करना चाहिए. फिनलैंड वो देश है जो मानव संसाधनों के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में एक है और जो पिछले तीन सालों से लगातार विश्व खुशहाली रिपोर्ट में पहले पायदान पर रहा है. यहां ये याद रखना ज़रूरी है कि फिनलैंड एक और वजह से मशहूर है और वो वजह है महिला सशक्तिकरण. फिनलैंड की संसद में कुल सदस्यों की 47 फीसदी महिलाएं हैं.

यहां के पढ़े-लिखे युवा अफगानिस्तान की शासन व्यवस्था में नियंत्रण और संतुलन स्थापित करने के लिए लगातार सक्रिय रहते हैं. इससे लोकतांत्रिक ढांचे को मज़बूत बनाने में भी मदद मिलती है. 

फिनलैंड ने दुनिया में लैंगिग समानता के मामले में नया प्रतिमान स्थापित किया है. इसके मुकाबले अफगानिस्तान की संसद में करीब 27 फीसदी सदस्य महिला हैं. इतना ही नहीं देश के मीडिया, शिक्षा-जगत, नागरिक संगठनों, शासन व्यवस्था, उद्यमिता और यहां तक कि अफगानी राष्ट्रीय रक्षा और प्रतिरक्षा बल (एएनडीएसएफ) में भी महिलाओं की समान रूप से भागीदारी है. अफगानी समाज की इन सफलताओं का आधार स्वयंसिद्ध है और पिछले दो दशकों में हासिल इन उपलब्धियों को लगातार मज़बूत किए जाने की आवश्यकता है. यहां के पढ़े-लिखे युवा अफगानिस्तान की शासन व्यवस्था में नियंत्रण और संतुलन स्थापित करने के लिए लगातार सक्रिय रहते हैं. इससे लोकतांत्रिक ढांचे को मज़बूत बनाने में भी मदद मिलती है. आर्थिक विकास के मोर्चे पर भी 2001 के बाद कई मामलों में बेहतर नतीजे देखे गए हैं. इनमें पेयजल की बेहतर उपलब्धता, स्वच्छता, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं शामिल हैं. आज राष्ट्रपति अशरफ ग़नी की आर्थिक योजनाओं से देश की अर्थव्यवस्था और वित्तीय आधार में लगातार विविधता आती जा रही है. राष्ट्रपति चाहते हैं कि उनका देश इस इलाके में विचारों, धनसंपदा और मानवसंसाधनों के प्रवाह का केंद्रबिंदु बने. इसके साथ ही कई मोर्चों पर बहादुरी से देश की रक्षा करने वाले एएनडीएसएफ ने पेशेवर सामरिक प्रशिक्षण और अत्याधुनिक हथियारों से खुद को लैस किया है.

ठोस वैश्विक प्रयास

भौगोलिक दृष्टिकोण से अफगानिस्तान दुनिया के नक्शे पर बेहद अहम स्थान पर है. प्राचीन सिल्क रूट यहीं से होकर गुज़रता था और उस समय ये एक व्यस्त व्यापारिक केंद्र था. इस नज़रिए से देखें तो अफगानिस्तान के पास इस पूरे इलाके और विश्व में विकास को प्रभावित करने की क्षमता है. इस बारे में बात करते हुए राष्ट्रपति ग़नी ने कहा भी है ’हमारी भौगोलिक स्थिति के महत्व को बेहतर ढंग से समझने के लिए दुनिया द्वारा हमें जिन नामों से पुकारा जाता है उनपर गौर किया जाना चाहिए’. वाकई अफ़गानिस्तान को एशिया का दिल, भारत का दरवाज़ा, ज़मीनी सेतु, राउंडअबाउट आदि नामों से पुकारा जाता है. अफ़गानिस्तान में स्थायी राजनीतिक बंदोबस्त एक ऐसी राज्यसत्ता की स्थापना पर निर्भर करता है जो अफगानी जनता को, इस क्षेत्र को और व्यापक तौर पर विश्व बिरादरी को स्वीकार्य हो. सरकार इस दिशा में सक्रिय रूप से काम भी कर रही है. अफ़गान इस्लामिक गणराज्य और तालिबान के बीच मौजूदा शांति वार्ताओं का भी यही मकसद है. अफ़गानी वार्ताकारों की 21 सदस्यीय टीम देश में स्थायी शांति बहाली के लिए तालिबान के साथ सीधी बातचीत कर रही है. हालांकि एक स्थायी हल के लिए एक मज़बूत आर्थिक बुनियाद निहायत ज़रूरी है.

अफ़गानी वार्ताकारों की 21 सदस्यीय टीम देश में स्थायी शांति बहाली के लिए तालिबान के साथ सीधी बातचीत कर रही है. हालांकि एक स्थायी हल के लिए एक मज़बूत आर्थिक बुनियाद निहायत ज़रूरी है.

राष्ट्रपति गनी की ओर से 2018 में तालिबान को बिना शर्त की गई पेशकश से जल्द से जल्द एक राजनीतिक समाधान खोजने की अफगान सरकार की निरंतर जारी कोशिशों का पता चलता है. हालांकि इसके लिए हिंसा पर पूरी तरह से काबू ज़रूरी है. लेकिन इन सकारात्मक कोशिशों और उठाए गए कदमों के बावजूद इस कालखंड में अफ़गानिस्तान में तालिबान और तालिबान-समर्थित संगठनों द्वारा की गई हिंसक गतिविधियों में इज़ाफा ही हुआ है. बहरहाल, अफगानिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमीदल्लाह मोहिब ने सम्मेलन में बताया कि फिलहाल देश में 96 फीसदी सैन्य कार्रवाई अफ़गानिस्तान की राष्ट्रीय रक्षा और प्रतिरक्षा बलों (एएनडीएसएफ) द्वारा स्वतंत्र रूप से जा रही है. ऐसे में विश्व बिरादरी के लिए ये और भी ज़रूरी हो जाता है कि वो इस समय अफ़गानिस्तान का साथ दे. यही वजह है कि विश्व बिरादरी द्वारा अफ़गानिस्तान को दी जा रही बहुमूल्य और उल्लेखनीय मदद की सराहना होनी चाहिए. ऐसे प्रयासों का मुख्य़ मकसद अफ़गानिस्तान को आत्मनिर्भर बनाना है और इसी वजह से राष्ट्रपति ग़नी ने दूसरे कामों के साथ-साथ ‘क्षेत्रीय परियोजनाओं से जुड़े कार्यों में तेज़ी लाने, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को मज़बूत बनाने और देश में डिजिटाइज़ेशन को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया है’.

भारत की भूमिका

अफ़गानिस्तान में भारत के योगदान को हमेशा ही अफ़गानी जनता ने स्वीकारा और सराहा है. 2001 से भारत ने अफ़गानिस्तान में 3 अरब डॉलर से ज़्यादा का निवेश किया है. भारत ने अफ़गानी समाज, राजनीतिक व्यवस्था और अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र की मदद की है. जहां तक शांति बहाली की कोशिशों का सवाल है तो भारत ने अफ़गानिस्तान की सरकार के राष्ट्रीय विमर्श का मज़बूती से समर्थन किया है. भारत हमेशा से ही इस बात का पक्षधर रहा है कि शांति प्रक्रिया ‘अफ़गानी-नेतृत्व, अफ़गानी-स्वामित्व और अफ़गानी-नियंत्रण’ वाली होनी चाहिए. दोनों देशों के बीच गर्मजोशी से भरी दोस्ती की इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जिनेवा सम्मेलन में एक बार फिर से अफ़गानिस्तान के लिए 286 मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता का वचन दिया.

भारत ने अफ़गानिस्तान की सरकार के राष्ट्रीय विमर्श का मज़बूती से समर्थन किया है. भारत हमेशा से ही इस बात का पक्षधर रहा है कि शांति प्रक्रिया ‘अफ़गानी-नेतृत्व, अफ़गानी-स्वामित्व और अफ़गानी-नियंत्रण’ वाली होनी चाहिए.

इस मदद का इस्तेमाल शहतूत डैम के निर्माण में किया जाएगा जिससे काबुल के 20 लाख लोगों को पीने का शुद्ध पानी मिल सकेगा. इतना ही नहीं भारत ने बड़े-प्रभाव वाले 150 सामुदायिक विकास परियोजनाओं के लिए अलग से 80 मिलियन डॉलर की मदद का भी एलान किया. इसके साथ-साथ भारत ने रणनीतिक सहयोग समझौते के तहत अफ़गानिस्तान में चल रहे मौजूदा कार्यक्रमों के लिए भी संसाधन मुहैया कराते रहने की घोषणा की. इसमें भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) द्वारा अफगानी छात्रों को मुहैया कराई गई सालाना 2500 छात्रवृतियां भी शामिल है. इस प्रकार के कदमों से अफ़गानिस्तान में शांति के लिए घरेलू प्रयासों में मदद मिलेगी, देश की महत्वपूर्ण संस्थाओं को मज़बूत किया जा सकेगा और अफ़गानिस्तान में आवश्यक सेवाओं के वितरण में सुधार आएगा.

आगे का रास्ता

2020 अफ़गानिस्तान सम्मेलन ने एक बार फिर एक सुरक्षित, समृद्ध और शांतिपूर्ण अफ़गानिस्तान के लिए निरंतर जारी वैश्विक प्रयासों को बुलंद किया है. देश का भविष्य बनाने के लक्ष्य के साथ जारी बहुआयामी परियोजनाओं को कामयाबी से अमल में लाए जाने से न सिर्फ अफ़गानिस्तान के लिए समृद्धि के द्वार खुलेंगे बल्कि इससे इस पूरे क्षेत्र और दुनियाभर को लाभ होगा. अफ़गानिस्तान का हित चाहने वाली वैश्विक शक्तियां इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निरंतर उसकी सहायता कर रही हैं और पूरी शिद्दत से इस दिशा में अपना योगदान दे रही हैं. हमारे लिए महत्वपूर्ण ये है कि हमने जिस मेहनत से पिछले दो दशकों में इस मॉडल का निर्माण किया है. आगे भी उस ओर अपने कदम बढ़ाते रहें ताकि हम अपनी क्षमता का पूरा-पूरा इस्तेमाल कर लाभ उठा सकें.

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