Author : Vinitha Revi

Published on Feb 12, 2021 Updated 0 Hours ago

ऊर्जा सुरक्षा को लेकर रुख एकीकृत होना चाहिए

मालदीव के लिए क्या है ऊर्जा सुरक्षा के मायने?

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि विश्व के सभी देशों में ऊर्जा, द्विपक्षीय समीकरणों के लिए एक आवश्यक रणनीतिक घटक बन गई है. इसका कारण यह है कि ऊर्जा सुरक्षा न केवल विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है, बल्कि किसी भी राष्ट्र की व्यापक सुरक्षा चिंताओं से भी अनिवार्य रूप से जुड़ी हुई है. अब जब भारत और मालदीव ऊर्जा भागीदार बनने का लक्ष्य रखते हैं तो उन विशिष्ट तरीकों पर विचार करना महत्वपूर्ण है, जिनमें वे एक दूसरे की ऊर्जा चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं. यह भारत के लिए एक छोटे से द्वीप राष्ट्र के विशिष्ट दृष्टिकोण से ऊर्जा सुरक्षा को समझने के लिए और भी उपयोगी व महत्वपूर्ण है.

आने वाले वर्षों में दुनिया, ऊर्जा की अधिकाधिक बढ़ती मांग को देखेगी और साथ ही जीवाश्म ईंधन के भंडार सहित पारंपरिक ईंधन के भंडारों में भी तेज़ी से कमी आ रही है, ऐसे में ऊर्जा को लेकर, दुनिया के सभी देशों के बीच प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंद्विता बढ़ेगी और खास तौर पर विश्व की महान शक्तियों के बीच. ऐसे में ऊर्जा कूटनीति का व्यापार, पर्यावरण व विकास सहायता से संबंधित अन्य प्रकार की कूटनीति के साथ परस्पर जुड़ जाना तय है. शीर्ष ऊर्जा आयातकों में से एक होने के नाते, भारत इस बात को अच्छी तरह से समझता है और भविष्य के संभावित ऊर्जा भागीदारों को अपने साथ भागीदार बनाने या इस प्रक्रिया में शामिल करने की दिशा में निवेश कर रहा है.

शीर्ष ऊर्जा आयातकों में से एक होने के नाते, भारत इस बात को अच्छी तरह से समझता है और भविष्य के संभावित ऊर्जा भागीदारों को अपने साथ भागीदार बनाने या इस प्रक्रिया में शामिल करने की दिशा में निवेश कर रहा है.

ऊर्जा सुरक्षा का अर्थ स्थिर और सस्ती कीमतों पर ऊर्जा आपूर्ति की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने की क्षमता से है. इस में लक्ष्य है जोखिम को कम करना, चाहे यह जोखिम, भू-राजनीतिक हो, पर्यावरणीय, आपूर्ति पक्ष पर, या मूल्य स्थिरता के आयाम में. किसी देश की ऊर्जा सुरक्षा की इच्छा के कई आयाम हैं. यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह दुनिया के नक्शे पर कहां बैठता है, उसकी अर्थव्यवस्था विकास के किस चरण में है, और वह आपूर्तिकर्ता है या ऊर्जा का उपभोक्ता है. जनसांख्यिकी, आकार, भौतिक क्षमताएं, ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता, तकनीकी विशेषज्ञता, मानव संसाधन विकास और कई अन्य विशेषताएं, ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियों को और अधिक जटिलता बनाती है व रणनीतिक परतों को जोड़ती हैं.

अवरोध के कारण

यह देखते हुए कि दुनिया का अधिकांश भाग जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है, ऊर्जा के क्षेत्र में सुरक्षा के लिए एक मजबूत घटक है समुद्रीय ऊर्जा. इस क्षेत्र में समुद्री डाकुओं या प्राकृतिक आपदाओं जैसे सुनामी और बाढ़ जैसी चरम मौसमी स्थितियों के साथ साथ अब वैश्विक महामारियों के कारण भी आपूर्ति श्रंखलाएं बाधित हो रही हैं. यह देरी उच्च शिपिंग लागत और कीमतों को बहुत हद तक बढ़ाने का काम करती है, चाहे प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से. हालांकि, भू-राजनीतिक तनाव वह घटक है, जो राष्ट्र राज्यों को सबसे अधिक सावधान करते हैं. आपूर्ति मार्ग विशेष रूप से अवरोध के बिंदुओं (chokepoints) को लेकर संवेदनशील होते हैं, जो संकट के समय में आसानी से अवरुद्ध हो सकते हैं, जैसे कि मलक्का जलडमरूमध्य (Malacca Straits), सुंडा जलडमरूमध्य (Sunda Strait), लोम्बोक जलडमरूमध्य (Lombok Strait) और हॉर्मुज के जलडमरूमध्य (Straits of Hormuz) आदि.

अपनी रणनीतिक स्थिति के बारे में पूरी तरह से अवगत होने के कारण, समुद्री रणनीतिकारों ने इन दो चोकपॉइंट्स को एक “टोल गेट” के रूप में संदर्भित किया है. ऐसे में मालदीव हिंद महासागर में बड़ी शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता के बीच खुद को एक महत्वपूर्ण ऊर्जा भागीदार के रूप में रखता है. 

ऐसे में इन अवरोधों से पैदा होने वाले अनुचित जोखिम को कैसे कम करें, या तो उपस्थिति को बनाए रखने के माध्यम से जैसा कि अमेरिका ने डिएगो गार्सिया में किया है (US in Diego Garcia) या फिर उन्हें घेर कर, जैसा कि चीन ने ग्वादर पोर्ट में किया है (China and Gwadar Port). यह ऊर्जा सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण पहलू है. स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज मलक्का स्ट्रेट, तेल की आवाजाही के हिसाब से, दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण और रणनीतिक चोकपॉइंट्स में से एक है. अपनी रणनीतिक स्थिति के बारे में पूरी तरह से अवगत होने के कारण, समुद्री रणनीतिकारों ने इन दो चोकपॉइंट्स को एक “टोल गेट” के रूप में संदर्भित किया है. ऐसे में मालदीव हिंद महासागर में बड़ी शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता के बीच खुद को एक महत्वपूर्ण ऊर्जा भागीदार के रूप में रखता है. मालदीव की ऊर्जा चिंताओं को दूर करने में मदद करना भारत की ऊर्जा सुरक्षा के अपने लक्ष्यों के लिए सही दिशा में उठाया गया एक कदम है.

विश्व के समुद्रीय चोकपॉइंट्स से रोज़ाना गुज़रने वाली तेल की मात्रा 

आयात पर निर्भरता

ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण से आयात पर अत्यधिक निर्भरता एक कमज़ोरी है जो किसी भी देश के लिए असुरक्षा पैदा कर सकती है. हालांकि, घरेलू उत्पादन में वृद्धि के माध्यम से ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करना आसानी से प्राप्त किए जाने वाला लक्ष्य नहीं है, विशेष रूप से छोटे विकासशील द्वीप राज्यों के लिए जिन्हें एसआईडीएस (SIDS) कहा जाता है. इसके बजाय, एसआईडीएस (SIDS) को बहु-आयामी दृष्टिकोण से आयात पर उच्च निर्भरता से पैदा होने वाले जोखिम को कम करने के तरीके खोजने की ज़रूरत है. मालदीव के पास जीवाश्म ईंधन भंडार, यानी तेल या गैस का कोई प्रमाण नहीं है, इसलिए इसकी ऊर्जा की ज़रूरतें पूरी तरह से आयात से पूरी होती हैं.

ईंधन का आयात: एनर्जी मिक्स (नज़दीकी आंकड़े)

DIESEL 82%
LPG 2%
AVIATION FUEL 6%
PETROL 10%

स्रोत: मालदीव का ऊर्जा मंत्रालय

साल 2018 में, मालदीव में ऊर्जा का आयात 643,900 टन था और इसमें हवाई उड़ानों और हवाई परिवहन से जुड़े एविएशन क्षेत्र के ईंधन, डीज़ल, पेट्रोल, तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) शामिल थे, जिसमें डीज़ल, समूचे आयात का लगभग 80 फीसदी हिस्सा था. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी, आईईए (The International Energy Agency, IEA) ने सिफारिश की है, “मालदीव जैसे एक छोटे से द्वीप राष्ट्र के लिए ऊर्जा सुरक्षा आयातित ईंधन पर निर्भरता को कम करने के लिए देश के ऊर्जा संसाधनों के विविधीकरण के माध्यम से ही प्राप्त की जा सकती है.” नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) से ऊर्जा की आपूर्ति बढ़ाना, सौर पैनल स्थापित करना और हवा, महासागर के बहाव, लहरों और यहां तक कि कचरे से ईंधन बनाने जैसे विकल्पों की खोज करना, इसलिए एक महत्वपूर्ण कदम है.

ऊर्जा का भंडारण

आयात से जुड़ी कमज़ोरियों को कम करने का एक विकल्प बेहतर ऊर्जा भंडारण है. इसे सभी ऊर्जा प्रकारों में संबोधित किया जाना चाहिए. सौर ऊर्जा के लिए, यह बैटरी के रूप में सामने आएगा, लेकिन यहां चुनौती यह है कि वे निषेधात्मक रूप से महंगी साबित होती हैं. तेल के लिए, रिज़र्व स्टॉक विकसित करना एक विकल्प है. अमेरिका के साथ अपनी ऊर्जा साझेदारी के माध्यम से भारत अमेरिका में अपने तेल भंडार को बढ़ाने के लिए अमेरिका में तेल के भंडारण की संभावनाएं तलाश रहा है (हालांकि माना जाता है कि यह भी चुनौतियों से भरा हो सकता है) साथ ही इन रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारों को बनाए रखने और संचालित करने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं (best practices) पर जानकारी का आदान-प्रदान भी ज़रूरी है. मालदीव ऊर्जा नीति और रणनीति (Maldives Energy Policy and Strategy, MEE 2016) ने इसी तरह से उत्तरी इलाक़ों में चार जगहों पर तेल के भंडारण के लिए, क्षेत्रीय तेल बंकरों के विकल्प की खोज की, जब जब तेल की कीमतें गिरती हैं, तब के लिए. भारत को इस तरह की पहल का समर्थन करना चाहिए.

मालदीव ऊर्जा नीति और रणनीति (Maldives Energy Policy and Strategy, MEE 2016) ने इसी तरह से उत्तरी इलाक़ों में चार जगहों पर तेल के भंडारण के लिए, क्षेत्रीय तेल बंकरों के विकल्प की खोज की, जब जब तेल की कीमतें गिरती हैं, तब के लिए. भारत को इस तरह की पहल का समर्थन करना चाहिए.

पर्यावरणीय चिंताएं

आज ऊर्जा सुरक्षा की एक व्यापक परिभाषा को अपना लिया गया है, जो कि ऊर्जा की खपत के पर्यावरणीय रूप से हानिकारक प्रभावों पर विचार करती है, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन से. ऐसे में राष्ट्रों को दो तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. अपनी आबादी को ऊर्जा उपलब्ध कराने और ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने की अल्पकालिक चुनौती और कार्बन शून्य अर्थव्यवस्था (zero-carbon economy) के दीर्घकालिक लक्ष्य को संबोधित करने की चुनौती. एसआईडीएस (SIDS) के मामले में यह हर मायने में सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है. भारत के लिए, क्योंकि यह अपने ऊर्जा सुरक्षा लक्ष्यों के कई आयामों को संबोधित करता है, सबसे बड़ी चुनौती अपने ऊर्जा मिश्रण में कोयले की उपलब्धता को संबोधित करना होगा. ऊर्जा लक्ष्यों को एक के बाद एक संबोधित नहीं किया जा सकता है, जैसे कि ऊर्जा तक पहले पहुंचा जाए और जलवायु परिवर्तन को मुद्दे को बाद में संबोधित किया जाए. भारत को अपने एसआईडीएस (SIDS) पड़ोसियों का समर्थन करने के साथ साथ पर्यावरणीय चिंताओं को लेकर एक एकीकृत दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता है.

पिछले कुछ समय से स्थानीय स्तर पर तैयार की गई हरित ऊर्जा मालदीव के लिए प्राथमिकता रही है. साल 2010 की राष्ट्रीय नीति और रणनीति योजना (National Policy and Strategy Plan) ने अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी में बढ़ोत्तरी करके हरित क्षेत्र में निवेश करने का आह्वान किया है. पर्यावरण मंत्री डॉ. हुसैन रशीद हसन ने हाल ही में कहा कि, “मालदीव का ऊर्जा क्षेत्र नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाकर खुद को पर्यावरण के अनुकूल ढालने को लेकर मज़बूती से परिवर्तन की दिशा में बढ़ रहा है.” नवीकरणीय ऊर्जा (Renewable energy), कार्बन उत्सर्जन को कम करने के साथ साथ ऊर्जा सुरक्षा में योगदान के दोहरे लक्ष्यों को संबोधित करती है.

मालदीव में धूप की अधिकता के कारण, सौर पीवी पैनल (solar PV panels) स्थापित करना ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम है. जैसे-जैसे भारत मालदीव की हरित ऊर्जा योजना, विशेष रूप से सौर परियोजनाओं में सहयोग करता है और उन्हें समर्थन देता है,  खास तौर पर सौर ऊर्जा परियोजनाओं को लेकर भविष्य में दिया जाने वाला सहयोग, उसे इस द्वीप राष्ट्र में सौर ऊर्जा से कई संबंधित चुनौतियों को ध्यान में रखना होगा. छोटे द्वीपों की बात करें तो एक बड़ी चुनौती ज़मीन की कमी भी है. मालदीव में तैरने वाले यानी फ्लोटिंग सोलर पैनल परियोजनाएं (Floating solar panel projects) भी शुरू की गई हैं;  हालांकि, उनकी कमियों का बारीक़ी से अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है.

एसआईडीएस (SIDS) के साथ ऊर्जा सुरक्षा की चुनौती नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने को लेकर खत्म नहीं होती है. इसमें बिल्डिंग सपोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर यानी ऐसे ढांचों को तैयार करना जो दीर्घकालिक में टिकाऊ और लचीला दोनों हैं, शामिल है. भारत जैसे बड़े देशों के विपरीत, एसआईडीएस (SIDS) के लिए, भारी वर्षा भी ऊर्जा के बुनियादी और महत्वपूर्ण ढांचे को नुकसान पहुंचा सकती है. मालदीव के माधू द्वीप में सौर डीज़ल प्रणाली (solar diesel system) की स्थापना की गई है. इस की समीक्षा से पता चला है कि आकाशीय बिजली गिरने से इलेक्ट्रॉनिक सर्किट क्षतिग्रस्त हो गए. इसी तरह, एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि ऐसी प्राकृतिक आपदाएं जो एसआईडीएस (SIDS)  को प्रभावित करती हैं, अक्सर वितरण संबंभी ढांचे और श्रंखलाओं को नष्ट कर देती हैं, और इन के पुनर्निर्माण में लंबा समय लगता है. माधू द्वीपों पर सभी उपकरण फ्रेंच कंपनियों द्वारा बनाए गए थे और ख़राब हुए उपकरणों को बदलने में कई महीने लग गए.

भारत को हिंद महासागर के करीब आपूर्तिकर्ताओं के एक क्षेत्रीय नेटवर्क के निर्माण पर विचार करना चाहिए. साथ ही, बिजली नियंत्रण के उपायों और आकस्मिक स्थिति में पुनर्निर्माण के लिए योजना सहित अक्षय ऊर्जा (renewable energy) से जुड़ी इकाईयों को प्रतिष्ठित किए जाने के संबंध में भी विचार किए जाने की आवश्यकता है.

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के एक अध्ययन ने सिफ़ारिश की है कि भविष्य की परियोजनाओं में शिपमेंट को लेकर होने वाले विस्तारित विलंब और इस से संबंधित ख़र्चों से बचने के लिए देशों को उपकरणों के क्षेत्रीय प्रदाताओं को खोजने पर विचार करना चाहिए. भारत को हिंद महासागर के करीब आपूर्तिकर्ताओं के एक क्षेत्रीय नेटवर्क के निर्माण पर विचार करना चाहिए. साथ ही, बिजली नियंत्रण के उपायों और आकस्मिक स्थिति में पुनर्निर्माण के लिए योजना सहित अक्षय ऊर्जा (renewable energy) से जुड़ी इकाईयों को प्रतिष्ठित किए जाने के संबंध में भी विचार किए जाने की आवश्यकता है.

मानव संसाधन का विकास

एक अन्य चुनौती जिसे मालदीव में संबोधित किए जाने की ज़रूरत है, वह है मानव संसाधन का विकास. अधिकांश द्वीपों में, प्रशिक्षित विद्युत इंजीनियरों की कमी है, जिनके पास नई तकनीकों से निपटने के लिए आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञता हो. दीर्घकालिक स्थायी ऊर्जा सुरक्षा के लिए, निरंतर प्रशिक्षण प्रदान करके मानव संसाधन क्षमता को बढ़ाया जाना चाहिए. आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा से चलने वाली वस्तुओं व उत्पादों को अपनाना, जबकि बुनियादी ढांचे के विकास और रखरखाव सहित तकनीकी ज्ञान और क्षमता निर्माण के लिए बाहरी मदद पर निर्भर रहना, ऊर्जा सुरक्षा की समस्या का समाधान नहीं करता है.

असमानता की चुनौती

मानव संसाधन समस्या, असमानता की एक बड़ी चुनौती पर प्रकाश डालती है, जिसे मालदीव के साथ-साथ भारत में भी संबोधित करने की आवश्यकता है. सेवाओं की गुणवत्ता, उपलब्धता और किफ़ायत के संदर्भ में भारत में कई तरह की असमानताएं मौजूद हैं. दोनों देशों में ऊर्जा सुरक्षा के साथ-साथ शहरी और ग्रामीण विभाजन (urban rural divide) मौजूद है, और इसके साथ ही एक मज़बूत शहरी पूर्वाग्रह (urban bias) भी है. मालदीव में, अक्सर ऐसा होता है कि ग्रामीण द्वीपों पर प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी होती है, जो अक्सर बेहतर वेतन के लिए द्वीप रिसॉर्ट्स पर काम करने का विकल्प चुनते हैं. स्थानीय ऑपरेटरों के बिना और यह सुनिश्चित किए बिना कि वो इन तकनीकों का संचालन कर सकते हैं, इन नई तकनीकों को अपनाना, निरर्थक है. इस संबंध में, तकनीकी कर्मियों के प्रशिक्षण को ऊर्जा क्षेत्र के सभी स्तरों, विशेष रूप से प्रवाल द्वीपों के स्तर पर किया जाना होगा. ऊर्जा सेवाओं में असमानता बाहरी द्वीपों को और अधिक प्रभावित करती है और आने वाले वर्षों में जब मालदीव महामारी के कारण अपने पर्यटन क्षेत्र को होने वाले नुकसान से उबरेगा, तो छोटे और मध्यम उद्यमों के विकास में यह असामनता और भी अधिक प्रबलता से सामने आएगी. ध्यान रहे कि इन द्वीपों को आने वाले वर्षों में विकास के नए चालक के रूप में देखा जा रहा है.

ऊर्जा सेवाओं में असमानता बाहरी द्वीपों को और अधिक प्रभावित करती है और आने वाले वर्षों में जब मालदीव महामारी के कारण अपने पर्यटन क्षेत्र को होने वाले नुकसान से उबरेगा, तो छोटे और मध्यम उद्यमों के विकास में यह असामनता और भी अधिक प्रबलता से सामने आएगी. 

ऊर्जा सुरक्षा के दृष्टिकोण का एकीकृत होना ज़रूरी है. यह ज़रूरी है कि ग़रीबी, असमानता, ग्रामीण विकास और युवा बेरोज़गारी व बुनियादी ढांचे के विकास और आपदा प्रबंधन जैसे मुद्दों के साथ ऊर्जा से संबंधित चुनौतियों का समन्वय स्थापित किया जाए. तभी इस क्षेत्र में क़ारगर रूप से आगे बढ़ा जा सकता है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.