Author : Prateek Tripathi

Published on Dec 19, 2023 Updated 0 Hours ago

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और 4D प्रिंटिंग जैसी उभरती तकनीकों को शामिल करने के साथ एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग भविष्य में औद्योगिक विकास के प्रमुख प्रेरकों में से एक बनने वाला है.

भारत में एडिटिव (योगात्मक) मैन्युफैक्चरिंग!

दुनिया के पहले सिंगल-पीस 3D-प्रिंटेड इंजन का उस वक्त परीक्षण होने जा रहा है जब चेन्नई का एक एरोस्पेस स्टार्टअप अग्निकुल कॉसमॉस दिसंबर के अंत तक अपने अग्निबाण मोबाइल लॉन्च सिस्टम के लिए टेस्ट फ्लाइट आयोजित करेगा. देश में विकसित अग्निलेट इंजन का 2021 में सफल परीक्षण किया गया था और ये भारत में एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग (AM) के लिए एक बड़ा मील का पत्थर साबित हुआ है. 3D प्रिंटिंग के नाम से मशहूर एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग ऐसी तकनीक़ है जिसने हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज की है. कंस्ट्रक्शन में साफ तौर पर इस्तेमाल के अलावा AM का अब प्रमुख क्षेत्रों जैसे कि ऑटोमोबाइल, एयरक्राफ्ट और एरोस्पेस में भी व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है. इसके अलावा मेडिकल इंडस्ट्री में भी इसका बेशकीमती योगदान है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और 4D प्रिंटिंग जैसी उभरती तकनीकों को शामिल करने के साथ एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग भविष्य में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने वाली प्रमुख तकनीकों में से एक बनने वाला है.

AM की बुनियाद 80 के दशक की शुरुआत में रैपिड प्रोटोटाइपिंग नाम की एक प्रक्रिया के ज़रिए रखी गई थी लेकिन इस तकनीक़ का विकास साल 2000 के करीब हुआ जब ये काम-काज की वस्तुओं का उत्पादन करने लगी.

AM क्या है? 

AM की बुनियाद 80 के दशक की शुरुआत में रैपिड प्रोटोटाइपिंग नाम की एक प्रक्रिया के ज़रिए रखी गई थी लेकिन इस तकनीक़ का विकास साल 2000 के करीब हुआ जब ये काम-काज की वस्तुओं का उत्पादन करने लगी. AM परत-दर-परत रूप-रेखा (फ्रेमवर्क) बनाने के लिए कंप्यूटर-एडेड डिज़ाइन (CAD) या 3D ऑब्जेक्ट स्कैन का इस्तेमाल करता है जिसे बाद में एक 3D प्रिंटर को भेजा जाता है. इस तरह डिजिटल डिज़ाइन से एक फिज़िकल ऑब्जेक्ट (भौतिक वस्तु) तैयार की जाती है. ये परंपरागत या सबट्रैक्टिव मैन्युफैक्चरिंग के विपरीत है जो अंतिम उत्पाद हासिल करने के लिए एक बड़े ऑब्जेक्ट से ड्रिलिंग, बोरिंग, पिसाई या कटाई जैसी प्रक्रिया के ज़रिए अतिरिक्त मैटेरियल हटाने पर निर्भर करता है. इसके अलावा AM सिरेमिक, मेटल, थर्मोप्लास्टिक, फोम, जेल और बायोमैटेरियल जैसे कई तरह के सामानों का इस्तेमाल करने की इजाज़त देता है. 

पारंपरिक मैन्युफैक्चरिंग की तुलना में AM के कई फायदे हैं. इन फायदों में सटीक ज्यामितीय आकार बनाने की क्षमता सबसे प्रमुख है. इसके साथ बहुत ज़्यादा मैटेरियल इस्तेमाल करने की आज़ादी को जोड़ दिया जाए तो ऐसे हिस्सों की रचना होती है जिनका प्रदर्शन अच्छा होता है और जिनका वज़न परंपरागत चीज़ों के मुकाबले बहुत कम होता है. ये ऑटोमोबाइल, एयरक्राफ्ट और एरोस्पेस उद्योग के लिए ख़ास तौर पर अहम हो जाता है जहां सटीक डिज़ाइन और वज़न का काम-काज पर बहुत ज़्यादा असर हो सकता है. मिसाल के तौर पर, 3D-प्रिंटेड एयरक्राफ्ट के हिस्से जैसे कि टाइटैनियम ब्रेकेट का एयरबस के द्वारा अब काफी उपयोग किया जा रहा है, विशेष रूप से इसके A350 एयरक्राफ्ट में. 

AM तकनीक़ तेज़ गति से बदल रही है और अब ये 13.16 अरब अमेरिकी डॉलर का उद्योग बन गया है जिसकी सालाना विकास दर 22 प्रतिशत है.

AM छोटे से लेकर मीडियम आकार के खेप का उत्पादन बहुत ज़्यादा आसान बनाता है और ये वो क्षेत्र है जहां इसका सबसे ज़्यादा असर और उपयोग हो सकता है. पारंपरिक मैन्युफैक्चरिंग के साथ छोटे खेप का उत्पादन किफायती कोशिश नहीं है. इसकी वजह ढांचा (सेटअप) तैयार करने की लागत है. AM इनमें से ज़्यादातर लागतों को ख़त्म कर देता है और कस्टमाइज़्ड प्रोडक्ट (ज़रूरत के हिसाब से उत्पाद) का उत्पादन काफी सस्ता बनाता है. ये मेडिकल इस्तेमाल के लिए ख़ास तौर पर उपयोगी है जहां विशेष रूप से किसी व्यक्ति के हिसाब से प्रोस्थेटिक्स, इम्पालंट और कृत्रिम अंग की ज़रूरत होती है. उदाहरण के लिए, सुनने की मशीन (हियरिंग ऐड्स) अब लगभग पूरी तरह 3D-प्रिंटेड होती हैं.   

औद्योगिक इस्तेमाल के अलावा AM तेज़ी से व्यक्तिगत उपयोग के लिए भी व्यावहारिक बनता जा रहा है क्योंकि उपकरणों की कीमत में पिछले दशक के दौरान काफी कमी आई है. एक कंज़्यूमर-लेवल (उपभोक्ता स्तर) के 3D प्रिंटर की औसत लागत वर्तमान में लगभग 700 अमेरिकी डॉलर है जो कि एंट्री-लेवल प्रिंटर के लिए 100 अमेरिकी डॉलर तक गिर सकती है. ये एक और अवसर मुहैया कराता है जहां AM पारंपरिक मैन्युफैक्चरिंग को मात देता है और इसमें काफी बढ़ने की गुंजाइश भी है.     

AM तकनीक़ तेज़ गति से बदल रही है और अब ये 13.16 अरब अमेरिकी डॉलर का उद्योग बन गया है जिसकी सालाना विकास दर 22 प्रतिशत है. AI को शामिल करने से डिजिटल डिज़ाइन की प्रक्रिया में और भी मदद मिल रही है और ये भविष्य में इसे सुव्यवस्थित करना जारी रखेगा. 4D प्रिंटिंग के आने से भी रोमांचक नई संभावनाएं बन रही हैं. AM जहां 3D ऑब्जेक्ट तैयार करता है जो स्थिर बने रहते हैं, वहीं 4D प्रिंटिंग ऐसे ऑब्जेक्ट बना सकता है जिसमें ख़ुद को बदलने या समय के हिसाब से व्यवस्थित करने की अतिरिक्त क्षमता होती है. ये आम तौर पर “स्मार्ट मैटेरियल” जैसे कि शेप मेमोरी पॉलिमर के उपयोग से संभव हो पाता है जो बाहरी माहौल जैसे कि तापमान, दबाव या रोशनी के संपर्क में आने पर अपना आकार बदल सकता है. इसका संभावित उपयोग चरम वातावरण जैसे कि अंतरिक्ष या बायोमेडिकल एप्लीकेशन जैसे कि प्रोटीन को व्यवस्थित करने में हो सकता है. MIT की सेल्फ-असेंबली लैब इस क्षेत्र में एक अग्रणी संस्था है. 

भारत में AM का इस्तेमाल

इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने फरवरी 2022 में “एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग के लिए राष्ट्रीय रणनीति” जारी की जिसका उद्देश्य स्थानीय उत्पादकों के द्वारा AM तकनीकों के इस्तेमाल को बढ़ावा देते हुए इसके विकास और इस्तेमाल के लिए ज़्यादा अनुकूल माहौल तैयार करना और इस तरह भारत को AM के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाना है. इस रणनीति में 2025 तक वैश्विक AM बाज़ार में भारत का 5 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित करने की परिकल्पना भी की गई है. इस तरह भारत की GDP में लगभग 1 अरब अमेरिकी डॉलर जुड़ जाएगा. इसे हासिल करने के लिए अन्य बातों के अलावा भारत को ध्यान में रखकर 50 तकनीकें, 100 नए स्टार्टअप्स और 1,00,000 नए हुनरमंद कामगारों को तैयार करना शामिल है. 

IIT मद्रास में 3D-प्रिंटेड घर का उद्घाटन करते हुए माननीय वित्त मंत्री ने कहा कि “2022 तक 10 करोड़ घर बनाने की चुनौती बहुत बड़ी नहीं होगी” लेकिन इस दिशा में कोई ठोक कदम नहीं उठाया गया है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, औरंगाबाद में एक 3D प्रिंटिंग/एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग लैब की स्थापना की गई है. जून 2023 में तेलंगाना सरकार के साथ मिलकर MeitY ने नेशनल सेंटर फॉर एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग की स्थापना की. ये भारत में AM के क्षेत्र में शीर्ष संस्था के तौर पर काम करेगा और एकेडमिया (शैक्षणिक संस्थान), उद्योग और सरकार से अलग-अलग भागीदारों को शामिल करके R&D एवं कौशल विकास को बढ़ावा देते हुए AM के इस्तेमाल को बढ़ावा देगा. आंध्र प्रदेश मेडटेक ज़ोन ने विशाखापटनम में एक 3D बायोप्रिंटिंग लैब की स्थापना करने के लिए ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ वोलोगोंग के साथ साझेदारी की है. 

प्राइवेट सेक्टर में इंटेक, विप्रो और एमेस जैसी कंपनियां AM तकनीक़ के मामले में आगे हैं. इंटेक ने भारत का पहला 3D प्रिंटर बनाया है. इसके साथ-साथ इंटेक ने AM प्रक्रियाओं में मदद के लिए कई तरह के सॉफ्टवेयर और एक डिजिटल एकेडमी भी तैयार की है. विप्रो 3D ने भारत में संगठनों के द्वारा मेटल 3D प्रिंटिंग के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए 2020 में “एडवाइज़” लॉन्च किया. उसने 3D-प्रिंटेड एरोस्पेस पुर्जों को डिज़ाइन और डेवलप करने के लिए हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए. उसके बाद HAL के द्वारा बनाए गए हेलीकॉप्टर इंजन में इस्तेमाल के लिए एयरक्राफ्ट पुर्जों का उत्पादन किया. इसने पिछले दिनों देश में विकसित इंडस्ट्रियल-ग्रेड 3D प्रिंटर को लॉन्च किया है. एमेस ने एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग का इस्तेमाल करके भारत का राष्ट्रीय चिह्न तैयार किया जिसे इसरो के चंद्रयान-3 मिशन में प्रज्ञान रोवर के पहियों में लगाया गया. 

भारत के संदर्भ में AM कैसे बहुमूल्य हो सकता है

वैसे तो भारत AM के क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी देशों जैसे कि अमेरिका, UK और चीन की तुलना में काफी पीछे है लेकिन हाल के वर्षों में उसने R&D, निवेश और तकनीक़ को अपनाने की अपनी कोशिशों को महत्वपूर्ण ढंग से बढ़ाया है. शायद सबसे महत्वपूर्ण और जो चीज़ भारत को सबसे अलग बना सकती है, वो है कंस्ट्रक्शन और हाउसिंग के क्षेत्र में AM की संभावनाएं. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT), मद्रास के स्टार्टअप त्वस्ता के द्वारा 2021 में भारत के पहले 3D-प्रिंटेड घर के निर्माण ने इस बात की बुनियाद रखी है कि अगर व्यापक पैमाने पर AM को अपनाया जाता है तो ये संभावित रूप से इस सेक्टर में कैसे क्रांति ला सकता है. पारंपरिक कंस्ट्रक्शन के विपरीत, जिसमें पांच महीने तक लग सकते हैं, AM के इस्तेमाल से पांच दिन से कम समय में घरों का निर्माण किया जा सकता है और इससे लागत में भी 30 प्रतिशत से ज़्यादा की बचत होती है.

अगस्त 2023 में भारत के पहले 3D-प्रिंटेड डाकघर का उद्घाटन बेंगलुरु में किया गया. IIT मद्रास के साथ मिलकर L&T कंस्ट्रक्शन के द्वारा तैयार उल्सूर बाज़ार डाकघर सिर्फ 43 दिनों में बन गया और इसकी लागत 25 लाख रुपये से कम थी. 22 नवंबर 2023 को अपसुजा इंफ्राटेक और सिंपलीफोर्ज क्रिएशंस ने तेलंगाना के सिद्दीपेट में दुनिया के पहले 3D-प्रिंटेड मंदिर को तैयार किया. तीन गर्भगृह और लगभग 4,000 वर्ग फीट के क्षेत्रफल वाले इस मंदिर को बनाने में लगभग तीन महीने का समय लगा. 

केवल ग्रामीण आवास के मामले में AM का इस्तेमाल भारत के द्वारा इस क्षेत्र में अपनी कोशिशों को तेज़ करना सार्थक बनाता है, ख़ास तौर पर इस तथ्य को देखते हुए कि भारत में दुनिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती है. वैसे तो IIT मद्रास में 3D-प्रिंटेड घर का उद्घाटन करते हुए माननीय वित्त मंत्री ने कहा कि “2022 तक 10 करोड़ घर बनाने की चुनौती बहुत बड़ी नहीं होगी” लेकिन इस दिशा में कोई ठोक कदम नहीं उठाया गया है. एरोस्पेस उद्योग में AM के बढ़ते इस्तेमाल के साथ मेडिकल क्षेत्र में AM के बेशकीमती योगदान को देखते हुए इसको और बढ़ावा देना चाहिए. वैसे तो AI जैसी उभरती तकनीकों पर चर्चा हाल के दिनों में व्यापक होती जा रही है लेकिन जब बात AM जैसी गेम-चेंजिंग टेक्नोलॉजी की आती है तो ये चर्चा अपेक्षाकृत कम है. भारतीय संदर्भ में साफ तौर पर AM के महत्व के बावजूद लगता है कि ये फेरबदल में गुम हो गया है.  


प्रतीक त्रिपाठी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में रिसर्च असिस्टेंट हैं.

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Prateek Tripathi

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Prateek Tripathi is a Research Assistant Centre For Security Strategy and Technology at ORF. He was given a prize for outstanding physics achievement at the ...

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