Author : Kabir Taneja

Published on Jul 29, 2020 Updated 0 Hours ago

यूरोप की शक्तियों को इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर लीबिया की क़रीब एक दशक पुरानी अभूतपूर्व हिंसा को ख़त्म करना चाहिए

कोविड19 का अतिरिक्त असर: युद्धविराम की तरफ़ बढ़ता लीबिया

3 जून को संयुक्त राष्ट्र के समर्थन वाली राष्ट्रीय समझौता सरकार (GNA) से जुड़ी सेना का त्रिपोली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के प्रांगण में आने-जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया. इससे विरोधी जनरल खलीफ़ा हफ़्तार और उनकी लीबियन नेशनल आर्मी (LNA) के बारे में शुरुआती संकेत मिले. अब महत्वाकांक्षी बाहुबली हफ़्तार ने युद्धविराम की पेशकश की है.

लीबिया का संकट 2011 से बना हुआ है जब बहुराष्ट्रीय नाटो की अगुवाई वाले मिशन ने देश में नो-फ्लाई ज़ोन की स्थापना की क्योंकि वहां तत्कालीन तानाशाह मुअम्मर गद्दाफ़ी की हुक़ूमत के ख़िलाफ़ गृह युद्ध छिड़ा हुआ था. 2011 के अक्टूबर में ही गद्दाफ़ी की हत्या हो गई थी. लेकिन तब से लीबिया अंतर्राष्ट्रीय सत्ता संघर्ष का मैदान बन गया है और वहां पूरी तरह अराजकता कायम हो चुकी है. इसकी वजह से लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत लीबिया की जनता के हाथों में सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण की उम्मीद ख़त्म हो चुकी है. जहां GNA और LNA का एक-दूसरे से संघर्ष लीबिया पर कब्ज़े को लेकर है, इस्लामिक समूहों ने सत्ता के ख़ालीपन की वजह से मौजूद इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर अपना आधार मज़बूत किया. अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट (ISIS) दोनों ने तटीय इलाक़ों में बड़े शहरों जैसे बेनग़ाज़ी, सिरते और अन्य पर कब्ज़ा कर लिया. इन आतंकी संगठनों से लड़ने की वजह से GNA और LNA- दोनों ने अलग-अलग अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय गुटों का समर्थन हासिल किया जो युद्ध के बीच में अपना एजेंडा चलाना चाहते हैं.

लेकिन पिछले कुछ महीनों के दौरान प्रधानमंत्री फ़ायेज़ अल-सर्राज के नेतृत्व में एक तरफ़ GNA और दूसरी तरफ़ हफ़्तार को समर्थन को लेकर अंतर्राष्ट्रीय लड़ाई काफ़ी बढ़ गई है. हफ़्तार को रूस, UAE, मिस्र और शुरुआत में यहां तक कि फ्रांस का भी समर्थन था. उम्मीद जताई जा रही थी कि कई गुटों को जोड़कर बनाए गए GNA को हफ़्तार की तरफ़ से कड़ी चुनौती मिलेगी और संभवत: जीत भी हासिल होगी. यूरोप में कई चरणों की बातचीत के बावजूद हफ़्तार ने किसी तरह के समझौते को मानने से आम तौर पर इनकार कर दिया. वो नये सैन्य बाहुबली के तौर पर अपने नेतृत्व में तेल से भरपूर लीबिया पर पूरा कब्ज़ा करने की फिराक में थे. लीबिया पर कब्ज़े के हफ़्तार की कोशिशों में मदद करने के लिए रूस ने पिछले महीने लीबिया में अपने सैन्य अड्डे से लड़ाकू विमान भेजे. इस बीच UAE ने भी कथित तौर पर हथियार और पैसे से हफ़्तार की मदद की. इस मामले में UAE पर अंतर्राष्ट्रीय हथियार प्रतिबंधों को तोड़ने का भी आरोप है.

दूसरी तरफ़ संयुक्त राष्ट्र की तरफ़ से मान्यता हासिल करने वाले GNA को हाल-फिलहाल में ज़्यादातर समर्थन तुर्की से मिला हुआ है जिसने अपने वफ़ादार गुट की मदद करने के लिए बड़ी तादाद में सेना तैनात की है. लीबिया में रूस के लड़ाकू विमानों की तैनाती की वजह ये डर था कि लीबिया के पश्चिमी क्षेत्रों में तुर्की के सैन्य संसाधनों के दम पर GNA के लड़ाकों की जीत के बाद हफ़्तार और उनकी सेना पीछे हट रही है. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप अर्दोआन के दखल के बाद GNA को इस कदर फ़ायदा मिला कि यूरोपियन काउंसिल फॉर फॉरेन रिलेशंस (ECFR) के विश्लेषण में ‘तुर्की का लीबिया’ शीर्षक का इस्तेमाल किया गया.

6 जून को मिस्र की राजधानी काहिरा में राष्ट्रपति अब्देल फ़तह अल-सिसी और लीबिया की संसद के अध्यक्ष अक़ीला सालेह की मौजूदगी में हफ़्तार युद्धविराम के लिए तैयार हुए. इसमें तय हुआ कि आगे की शांति वार्ता स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा में होगी. युद्धविराम लीबिया में चल रही मध्य-पूर्व की क्षेत्रीय लड़ाई को अस्थायी रूप से ख़त्म करेगा. मध्य-पूर्व की क्षेत्रीय लड़ाई इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि हफ़्तार को UAE के समर्थन का जवाब GNA को तुर्की के समर्थन के रूप में मिला. दूसरी तरफ़ ऐसी ख़बरें भी आ रही हैं कि तुर्की को क़तर का समर्थन मिल रहा है क्योंकि UAE और सऊदी अरब की तरफ़ से जो पाबंदी क़तर पर लगाई गई है वो इस महीने तीसरे साल में प्रवेश कर गई है. तुर्की ने इसका फ़ायदा उठाते हुए क़तर को आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य मदद मुहैया कराई है.

6 जून को मिस्र की राजधानी काहिरा में राष्ट्रपति अब्देल फ़तह अल-सिसी और लीबिया की संसद के अध्यक्ष अक़ीला सालेह की मौजूदगी में हफ़्तार युद्धविराम के लिए तैयार हुए. इसमें तय हुआ कि आगे की शांति वार्ता स्विट्ज़रलैंड के जेनेवा में होगी.

युद्धविराम की पहल ऐसे समय में हुई है जब नोवल कोरोनावायरस (कोविड-19) की वजह से वैश्विक उथल-पुथल मची हुई है. दुनियाभर की अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी है क्योंकि अलग-अलग देशों को राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू करने के लिए मजबूर होना पड़ा है, कारोबार ठप है और वित्तीय प्रणाली को ज़ोरदार झटका लगा है. ये हाल उन देशों का भी है जो दूसरे देशों में खर्चीला छद्म युद्ध चलाते हैं. हफ़्तार के दोनों बड़े विदेशी समर्थकों रूस और UAE को कोविड-19 के प्रकोप की वजह से काफ़ी नुक़सान हुआ है. रूस में बीमार लोगों और मरने वालों- दोनों की संख्या में तेज़ बढ़ोतरी देखी गई. रूस में 4,50,000 से ज़्यादा मामले और क़रीब 6,000 मौत दर्ज किए गए हैं और मई के महीने में तो रोज़ाना 10,000 से ज़्यादा केस सामने आए हैं. इसकी वजह से रूस को महामारी की तरफ़ राजनीतिक और वित्तीय ध्यान देने के लिए मजबूर होना पड़ा है. दूसरी तरफ़ सख़्त लॉकडाउन से गुज़र रहे UAE जहां 38,000 से ज़्यादा मामले और 275 मौतें हुई हैं, वहां भी ज़्यादातर उद्योगों, पर्यटन, उड्डयन, होटल और दूसरे सेक्टर के बंद होने से अर्थव्यवस्था को काफ़ी नुक़सान हुआ है. कुछ अनुमानों के मुताबिक़ आने वाले महीनों में दुबई के 70% छोटे और मध्यम उद्योगों को बंद करना पड़ेगा.

कोविड-19 की वजह से पैदा हुई परेशानियों ने अप्रत्यक्ष रूप से हफ़्तार के अभियान को भी चोट पहुंचाई है. राष्ट्रपति अल-सिसी ने कहा है कि युद्धविराम हफ़्तार की पहल है लेकिन ये भू-राजनीतिक वास्तविकता हो सकती है जिसमें रूस, UAE और यहां तक कि तुर्की को भी एक हद तक योगदान देना पड़ा है क्योंकि महामारी की वजह से उन्हें घरेलू मजबूरियों को प्राथमिकता देनी पड़ी है.

दूसरी तरफ़ GNA भी इस हालत को अलग तरीक़े से देख सकता है. हफ़्तार के लिए ख़राब समय का इस्तेमाल वो पूरी तरह से उन्हें घातक चोट पहुंचाने में कर सकता है. हफ़्तार की शर्तों पर आधारित युद्धविराम GNA और तुर्की- दोनों के लिए स्वीकार्य नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक़ GNA पहले ही सिरते शहर पर हमला कर चुका है और उसके प्रवक्ता ने ये बयान देकर समझौते की उम्मीदों को ख़त्म कर दिया है: “हमने इस युद्ध की शुरुआत नहीं की थी लेकिन इसे ख़त्म करने का समय और जगह हम चुनेंगे.”

वैश्विक स्वास्थ्य संकट की परेशानी आने वाले दिनों में और ज़्यादा बढ़ने की आशंका है. इसकी वजह से एक हद तक यथास्थिति बरकरार रही. ये मौक़ा युद्ध और प्रवासी संकट से घिरे लीबिया के लिए शांति और राजनीतिक स्थिरता का अच्छा मौक़ा है

यूरोप की शक्तियों को इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर लीबिया की क़रीब एक दशक पुरानी अभूतपूर्व हिंसा को ख़त्म करना चाहिए. साथ ही ये सुनिश्चित भी करना चाहिए कि जेनेवा की वार्ता का नतीजा स्थायी हल के रूप में निकले. इसमें तुर्की की बढ़त और संयुक्त राष्ट्र की तरफ़ से स्थायित्व लाने की प्रक्रिया- दोनों का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि टिकाऊ शांति कायम हो सके. GNA को संयुक्त राष्ट्र का समर्थन क्षेत्रीय शांति के साथ जोड़ना चाहिए न कि उसके अपने राजनीतिक एजेंडा और प्रतिशोध के साथ. हालांकि ये कहना आसान है, करना मुश्किल वो भी तब जब हाल के दिनों में यूरोप, अमेरिका, तुर्की और नाटो के बीच तनाव की वजह से नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं.

वैश्विक स्वास्थ्य संकट की परेशानी आने वाले दिनों में और ज़्यादा बढ़ने की आशंका है. इसकी वजह से एक हद तक यथास्थिति बरकरार रही. ये मौक़ा युद्ध और प्रवासी संकट से घिरे लीबिया के लिए शांति और राजनीतिक स्थिरता का अच्छा मौक़ा है. यूरोप की शक्तियां निश्चित रूप से साथ मिलकर काम करें और सामूहिक रूप से आगे आएं ताकि इस अवसर को गंवाया नहीं जाए. ये सिर्फ़ मध्य-पूर्व ही नहीं बल्कि यूरोप की सुरक्षा के लिए भी समान रूप से महत्वपूर्ण है.

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