Author : Abhijit Singh

Expert Speak Raisina Debates
Published on Mar 12, 2024 Updated 0 Hours ago

लक्षद्वीप में एक नया नौसैनिक अड्डा साथियों और दुश्मनों के लिए एक संकेत है कि भारत पूर्वी हिंद महासागर में अभी भी सबसे बड़ी शक्ति बना हुआ है.

आईएनएस जटायु: समुद्र में एक प्रहरी

6 मार्च को भारत ने लक्षद्वीप द्वीप समूहों के मिनिकॉय द्वीप पर एक नए नौसैनिक अड्डे आईएनएस जटायुका शुभारंभ किया. जटायु, रामायण का एक पौराणिक किरदार है, जिसने सीता को अगवा किए जाने से रोकने की कोशिश की थी. इस नए नौसैनिक अड्डे का उद्घाटन करने वाले नौसेना प्रमुख एडमिरल हरि कुमार के शब्दों में कहें, तोजटायु पहला प्रतिकार था, जिसने अपनी जान को जोखिम में डालकर सीता जी के अपहरण को रोकने की कोशिश की थी और इस तरह ख़ुद से ऊपर सेवा की मिसाल बना था.’ अपने उद्घाटन भाषण में एडमिरल हरि कुमार ने कहा था कि इस नए नौसैनिक अड्डे का नामसुरक्षा की निगरानी और स्वार्थ रहित सेवा देने की भावनाका बिल्कुल सही सम्मान है.

अदन की खाड़ी और अरब सागर में समुद्री डकैतों की बढ़ती गतिविधियों और लाल सागर में हूतियों के बढ़ते हमलों को देखते हुए भारतीय नौसेना ने इस द्वीप पर मौजूद अपने केंद्र को एक पूर्ण सैनिक अड्डे में तब्दील करने का फ़ैसला किया है.

ये आयोजन भारतीय नौसेना के लिए एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम है, जो हिंद महासागर में सुरक्षा देने वाले सबसे प्रमुख संगठन के तौर पर अपनी पहचान को और चमकाने का प्रयास कर रही है. मिनिकॉय, हिंद महासागर के प्रमुख समुद्री मार्गों के बीच में पड़ता है. इसमें जहाज़ों की आवाजाही का बेहद अहम मार्ग नाइन डिग्री चैनल भी पड़ता है. मिनिकॉय में एक नौसैनिक ठिकाना पहले से मौजूद था. अदन की खाड़ी और अरब सागर में समुद्री डकैतों की बढ़ती गतिविधियों और लाल सागर में हूतियों के बढ़ते हमलों को देखते हुए भारतीय नौसेना ने इस द्वीप पर मौजूद अपने केंद्र को एक पूर्ण सैनिक अड्डे में तब्दील करने का फ़ैसला किया है. नौसेना के संचालन के योजनाकार ये मानते हैं कि मिनिकॉय में एक निगरानी चौकी होने से इसके आस-पास के इलाक़ों में अवैध गतिविधियों का पता लगाने के साथ साथ समुद्री प्रदूषण और अवैध रूप से मछली मारने जैसे ख़तरों पर भी नज़र रखी जा सकेगी.

 

लक्षद्वीप में नौसैनिक अड्डा

 

हालांकि, नौसैनिक अड्डा जटायु समुद्र में चौकसी बरतने से कहीं आगे का ठिकाना है. इस अड्डे का मक़सद, भारतीय नौसेना के संचालन के क्षेत्र का और विस्तार करना, सैनिकों की तेज़ी से तैनाती करना और सामरिक मौजूदगी बनाए रखना है. ख़बरों के मुताबिक़, मिनिकॉय के नौसैनिक अड्डे को अरब सागर और उसके आगे के क्षेत्र में अभियान चलाने और लॉजिस्टिक्स में मदद का प्रमुख बिंदु बनाने की योजना है. इत्तिफ़ाक़ से आईएनएस जटायु, लक्षद्वीप में आईएनएस द्वीपरक्षक के बाद बनाया गया दूसरा नौसैनिक अड्डा है, जो कवरत्ती द्वीप पर स्थित है. आज जब जहाज़ों की आवाजाही के लिए ख़तरे बढ़ते जा रहे हैं, तब मिनिकॉय में एक नया अड्डा, भारतीय नौसेना को बेहद महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्र में एक उपयोगी अग्रिम चौकी मुहैया कराता है.

 

ये नया नौसैनिक अड्डा, भारत के पड़ोसी देशों को भी साफ़ संदेश देता है कि भारतीय नौसेना देश के अहम समुद्री हितों की रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम है. विशेष रूप से भारत के सुरक्षा प्रबंधक, मालदीव पर नज़दीकी से नज़र बनाए हुए हैं. जब मालदीव ने अपने यहां तैनात भारतीय सैनिकों को वापस बुलाने को कहा था, तब से ही भारतीय नौसेना अरब सागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति को लेकर आशंकित है. पिछले महीने ही मालदीव ने चीन के रिसर्च करने वाले जहाज़ शियांग यांग हॉन्ग 03 को अपने यहां लंगर डालने की इजाज़त दी थी, जिसकी वजह से भारत के साथ तनाव और बढ़ गया था. मालदीव और चीन ने रक्षा क्षेत्र में सहयोग के एक समझौते पर भी दस्तख़त किए हैं, जिसके तहत मालदीव को चीन से मुफ़्त में सैन्य सहायता मिल सकेगी. भारत में बहुत से लोगों को ऐसा लगता है कि मालदीव, भारत को चिढ़ाने और अपने नज़दीकी इलाक़े में ही भारत की हैसियत और प्रभाव को नीचा दिखाने के लिए ही चीन से नज़दीकी बढ़ा रहा है.

 आईएनएस जटायु की शुरुआत के सामरिक के अलावा भी अन्य कई पहलू हैं. भारत इस क्षेत्र में क्षमता का निर्माण और विकास को बढ़ावा देना चाहता है.

हमें समझना होगा कि आईएनएस जटायु की शुरुआत के सामरिक के अलावा भी अन्य कई पहलू हैं. भारत इस क्षेत्र में क्षमता का निर्माण और विकास को बढ़ावा देना चाहता है. नए अड्डे का उद्घाटन होने से यहां मूलभूत ढांचे के विकास में काफ़ी तेज़ी आने की संभावना है. इससे संचार, लॉजिस्टिक और स्थानीय समुदायों के लिए फ़ायदेमंद सहयोग की सुविधाएं बढ़ने की संभावना है. कुछ ख़बरों के मुताबिक़, जटायु में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, रोज़गार पैदा करने और स्थानीय वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ाने की भी संभावना है. भारत के नौसैनिक योजनाकार, इस नए अड्डे में मूलभूत ढांचे के विकास की अपनी योजनाओं में पर्यावरण को टिकाऊ बनाने के पहलू को भी शामिल करने के उत्सुक हैं.

 

लक्षद्वीप में सुरक्षा के लिहाज़ से भारत ने जो ये क़दम बढ़ाया है, उसके पीछे कुछ और विचार भी हैं. हाल ही में मालदीव के राष्ट्रीय रक्षा बल ने अपने यहां के विशेष आर्थिक क्षेत्र में कुछ भारतीय मछुआरों और उनकी नौकाओं को भी ज़ब्त कर लिया था. ये हाल के महीनों में दूसरा मौक़ा था, जब भारतीय मछुआरों को मालदीव के समुद्री क्षेत्र में अवैध घुसपैठ करने पर पकड़ा गया था. वैसे तो भारत के मछुआरों का मछली की तलाश में पड़ोसी देशों के समुद्री क्षेत्र में घुसने की घटना कोई असामान्य बात नहीं है. लेकिन, मालदीव अपने विशेष समुद्री क्षेत्र में मछली पकड़ने की विदेशी नौकाओं और तटरक्षकों की घुसपैठ को लेकर कुछ अधिक ही संवेदनशील हो गया है.

 

इसके बावजूद, लक्षद्वीप में भारत द्वारा एक नया नौसैनिक अड्डा स्थापित करने का फ़ैसला मोटे तौर पर भू-राजनीतिक माना जा रहा है. मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू के लगातार चीन से नज़दीकी बढ़ाने की वजह से भारत के सब्र का पैमाना छलकने की स्थिति में जा पहुंचा है. हाल ही में माले द्वारा जो भारत विरोधी क़दम उठाए हैं, उनसे इस बात में कोई शक नहीं रह गया है कि मुइज़्ज़ू की सरकार, चीन को तरज़ीह देने के लिए भारत के साथ अपने रिश्तों में बदलाव ला रही है, जो भारत के लिए अस्वीकार्य है.

 आगे चलकर इस अड्डे को बनाए रखना और लंबी अवधि में इसकी उत्पादकता सुनिश्चित करना संभव होगा या नहीं, ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.

इसके बावजूद, मालदीव के सबसे उत्तरी द्वीप से महज़ 125 किलोमीटर दूर मिनिकॉय में एक नए नौसैनिक अड्डे की शुरुआत, ऐसा लगता है कि बहुत सोच समझकर नहीं की गई है. पहली बात तो ये कि ये फ़ैसला भारत के विदेश नीति तंत्र की लंबे समय से चली रही उस आम सहमति को तोड़ने वाला है, जिसके तहत ये कहा जाता है कि भारत को अपने द्वीपीय क्षेत्रों का ज़रूरत से अधिक सैन्यीकरण करने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे भारत के पड़ोसियों को परेशानी हो सकती है. अब ये विचार चलन में नहीं रह गया है. आज भारत अपने समुद्री क्षेत्र में अपनी ताक़त को दिखाना चाहता है. इसकी बड़ी वजह चीन का विस्तारवाद है. ऐसे में द्वीपों को सैन्य संसाधनों से लैस करने की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत हो गई लगती है. फिर भी लक्षद्वीप में तमाम संसाधनों से लैस एक सैनिक अड्डे की स्थापना के जटिल होने की आशंका है.

 

आगे की राह 

 

भारत के लिए मिनिकॉय में नौसैनिक अड्डा बनाना कोई समस्या नहीं है; चुनौती, जिसका बहुत से समुद्री मामलों के जानकार भी समर्थन करेंगे, वो ये है कि एक अग्रिम सैनिक अड्डे का रख-रखाव और उसे बनाए रखने की होगी. भारत की मुख्य भूमि से चार सौ किलोमीटर दूर एक द्वीप में एक सैनिक अड्डे के लिए ज़रूरी संसाधन उपलब्ध कराना बहुत बड़ा काम होगा, क्योंकि वहां तो पीने का पानी भी मुश्किल से मिल पाता है. एक छोटे से द्वीप में ऐसे हवाई अड्डे के निर्माण में भी दिक़्कतें आएंगी, जहां पर निगरानी जहाज़ों और लड़ाकू विमानों को रखने की जगह भी उपलब्ध हो; छोटे से द्वीप में इससे जुड़े मूलभूत ढांचे, जैसे कि सैनिकों के लिए मकान, भंडारण की सुविधाएं और ज़मीन के भीतर ईंधन का गोदाम बनाना भी आसान काम नहीं होगा. इसके अलावा मिनिकॉय की नाज़ुक पारिस्थितिकी इस काम को और जटिल बना देगी, जिसके बाधक बनने की पूरी संभावना है.

 

फिलहाल तो मिनिकॉय की नौसैनिक चौकी को औपचारिक रूप से एक अड्डे का दर्जा दे दिया गया है. इस द्वीप में समय के साथ साथ ज़रूरी मंज़ूरी हासिल करके आवश्यक सामरिक मूलभूत ढांचे का भी निर्माण हो जाएगा. निश्चित रूप से एक द्वीप पर सैनिक अड्डा बनाने का यही संवेदनशील तरीक़ा भी है. अगर मिनिकॉय में एक नौसैनिक अड्डा बनाया जाता है, तो धीरे धीरे क़दम बढ़ाना ही आगे के लिए सबसे व्यावहारिक और कम लागत वाला तरीक़ा होगा. यहां इस बात का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है कि जटायु के रणनीतिक लाभ तो निश्चित रूप से हैं. इससे भारत के समुद्री क्षेत्र की निगरानी निश्चित रूप से बेहतर होगी और समान सोच वाले साझीदारों के साथ सहयोग करने के अवसर भी पैदा होंगे. अब आगे चलकर इस अड्डे को बनाए रखना और लंबी अवधि में इसकी उत्पादकता सुनिश्चित करना संभव होगा या नहीं, ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.