Author : Manoj Joshi

Published on Mar 01, 2024 Updated 0 Hours ago

हाल ही में रूस द्वारा अंतरिक्ष में नई तकनीक के प्रयोग की ख़बरें आई थीं, जिन्होंने दुनिया भर के देशों में ख़तरे की घंटी बजा दी है.

अंतरिक्ष में युद्ध: एक नया मोर्चा

भविष्य के युद्धों के बारे में कहा जा रहा है कि ये स्वचालित हथियारों, रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से लड़े जाएंगे. लेकिन, इस होड़ में जो एक और अहम तत्व उभरकर आया है, वो अंतरिक्ष में दबदबा क़ायम करने का मुक़ाबला है. अंतरिक्ष में मौजूद उपग्रह, युद्ध में काम आने वाले हथियारों और सिस्टमों को कई तरह की क्षमताओं से लैस करते हैं. जैसे कि हथियारों और सैनिकों को जीपीएस से दिशा निर्देश देना, दुश्मन की गतिविधियों की निगरानी, कमांड और कंट्रोल की सुविधा वग़ैरह. इन उपग्रहों को तबाह करने या बंद कर देने का ज़मीन पर चल रहे युद्ध में कई तरह से असर हो सकता है.

 वैसे तो इस बारे में तब से कोई और जानकारी सामने नहीं आई है. लेकिन, इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि रूस की परमाणु हथियारों से लैस इस अंतरिक्ष तकनीक से अमेरिका के ख़ुफ़िया और संचार उपग्रहों के लिए बड़ा ख़तरा हो सकता है.

फरवरी महीने की शुरुआत में अमेरिका की हाउस इंटेलिजेंस कमेटी के अध्यक्ष माइकल आर टर्नर ने कहा कि रूस द्वारा अंतरिक्ष में एक नई तकनीक की तैनाती, ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा बनकर उभर रही है. अगले ही दिन, अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने इस बात की पुष्टि की कि ये जानकारी अमेरिका की इंटेलिजेंस कमेटी से साझा की गई है और बहुत जल्द इसकी जानकारी दूसरे सांसदों को भी दी जाएगी. इससे पहले रूस की नई तकनीक के बारे में राष्ट्रपति जो बाइडेन को भी ब्रीफिंग दी गई थी और उन्होंने देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन को आदेश दिया है कि वो वरिष्ठ सांसदों को इस बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध कराएं. वहीं, रूसी राष्ट्रपति के कार्यालय क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने अमेरिका की इस चेतावनी को ख़ारिज करते हुए कहा कि येबदनीयती से झूठ फैलानेका प्रयास और अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यालय द्वारा चली गई चाल है, जिससे वो रूस का मुक़ाबला करने के लिए यूक्रेन को अमेरिका से और मदद देने के लिए सांसदों को राज़ी कर सकें.

 

वैसे तो इस बारे में तब से कोई और जानकारी सामने नहीं आई है. लेकिन, इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि रूस की परमाणु हथियारों से लैस इस अंतरिक्ष तकनीक से अमेरिका के ख़ुफ़िया और संचार उपग्रहों के लिए बड़ा ख़तरा हो सकता है. अगर ऐसा हथियार अंतरिक्ष में तैनात किया जाता है, तो वो अमेरिका की संचार, अंतरिक्ष से निगरानी और सैन्य कमांड और कंट्रोल व्यवस्था को तबाह कर सकता है. हालांकि, इस बात की आशंका कम ही है कि रूस, अंतरिक्ष में कोई परमाणु हथियार तैनात करेगा. इसके बजाय, ये जानकारी रूस के किसी ऐसे हथियार के बारे में हो सकती है, जो परमाणु शक्ति से चलता हो और अमेरिका के उपग्रहों के भीतर मौजूद इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बंद कर सकता है, जाम कर सकता है या फिर निष्क्रिय कर सकता है. या फिर, रूस का ये हथियार एक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स (EMP) का प्रक्षेपण कर सकता है, जो किसी ख़ास रेंज के भीतर मौजूद उपग्रहों के सारे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बर्बाद कर सकता है.

 

अंतरिक्ष में युद्ध की तैयारी

 

अंतरिक्ष में सक्रिय बहुत से अन्य प्रमुख देशों की तरह रूस ने भी अंतरिक्ष में उपग्रहों को निष्क्रिय करने वाले हथियारों के प्रयोग किए हैं. इसमें कक्षा में घूम रहे सैटेलाइट को निशाना बनाकर तबाह करने के लिए ज़मीन से लॉन्च होने वाली मिसाइलों से लेकर, परमाणु ऊर्जा और सैटेलाइट को दूसरे किसी सैटेलाइट से ऊर्जा देकर तबाह करने के हथियार भी शामिल हैं. 2021 में रूस ने अपने ही एक पुराने उपग्रह को ज़मीन से मिसाइल लॉन्च करके नष्ट किया था. 2019 में भारत ने भी ऐसा ही प्रयोग किया था. एक परमाणु विस्फोट एक ख़ास दायरे में मौजूद सारे के सारे उपग्रहों को बिना किसी विभेद के नष्ट कर सकता है और इसकी ज़द में ख़ुद रूस के सैटेलाइट भी सकते हैं. अंतरिक्ष में परमाणु हथियार की तैनाती, संयुक्त राष्ट्र की 1967 की बाहरी अंतरिक्ष की संधि का भी उल्लंघ होगी, क्योंकि इस संधि के तहत देशों द्वाराधरती के आस-पास की कक्षा में ऐसा कोई भी उपकरण तैनात करने पर रोक है, जिसमें परमाणु हथियार हों या फिर बड़े पैमाने पर तबाही मचाने वाले दूसरे हथियार हों.’

 

हालांकि, कई देशों ने दुश्मन के उपग्रहों को निष्क्रिय करने के कई और तरीक़ों को आज़माने वाले प्रयोग किए हैं. इनमें से एक सह कक्षा में तैनात किया जाने वाला एंटी सैटेलाइट सिस्टम (ASAT) भी शामिल है, जो किसी बड़े सैटेलाइट के क़रीब भेजे जाना वाला ऐसा छोटा उपग्रह भी हो सकता है, जिसे बड़े सैटेलाइट के पास ले जाकर उसमें विस्फोट करा दिया जाए. एक और तकनीक जो इस्तेमाल की जा सकती है, वो रोबोट की तरह संचालित होने वाला उपकरण भी है, जिससे किसी सैटेलाइट को पकड़कर उसे निष्क्रिय कर दिया जाए.

 

इसके अतिरिक्त, बड़ी ताक़त वाले लेज़र और माइक्रोवेव भी टारेगट किए गए सैटेलाइट को नष्ट करने या निष्क्रिय करने में इस्तेमाल की जा सकती हैं. 2006 में चीन के बारे में अमेरिका की पत्रिका डिफेंस न्यूज़ ने बतया था कि उसने ज़मीन से लेज़र छोड़कर अमेरिका के एक निगरानी करने वाले उपग्रह को कई बारचौंधियानेया निष्क्रिय करने का प्रयास किया था. ख़ुद चीन ने ये स्वीकार किया था कि उन्होंने 2005 में ज़मीन से लेज़र गन चलाकर अंतरिक्ष में उपग्रह को निष्क्रिय करने का सफल प्रयोग किया था. चीन की सैन्य पत्रिकाओं में अक्सर ऐसे विमानों और सैटेलाइट पर आधारित लेज़रों की चर्चा होती रहती है. इसी तरह की परिचर्चाएं माइक्रोवेव पर आधारित हथियारों की भी होती हैं, जिनको वैसे तो समुद्री जहाज़ों से इस्तेमाल करने के प्रयास चल रहे हैं. लेकिन, इनका प्रयोग अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी हो सकता है.

 रूस ने अंतरिक्ष में जिस नए हथियार को तैनात किया है, वो यूक्रेन द्वारा स्टारलिंक के इस्तेमाल के जवाब में हो सकता है. स्टारलिंक के ज़रिए यूक्रेन अपनी संचार व्यवस्था को निष्क्रिय करने के रूसी प्रयासों से बच जा रहा है.

ऐसा लगता है कि रूस ने अंतरिक्ष में जिस नए हथियार को तैनात किया है, वो यूक्रेन द्वारा स्टारलिंक के इस्तेमाल के जवाब में हो सकता है. स्टारलिंक के ज़रिए यूक्रेन अपनी संचार व्यवस्था को निष्क्रिय करने के रूसी प्रयासों से बच जा रहा है. इसके अलावा, स्टारलिंक ने यूक्रेन को तमाम अलग अलग स्रोतों से जानकारी साझा करने की बेशक़ीमती सुविधा भी मुहैया कराई है. इनमें कारोबारी उपग्रह से मिली तस्वीरें और पश्चिमी देशों से हासिल होने वाली ख़ुफ़िया जानकारी भी शामिल है. ये और बात है कि 2023 में ये युद्ध लंबे संघर्ष में तब्दील हो गया, जिसमें यूक्रेन के पास एल्गोरिदम के मामले में भले ही बढ़त हो, मगर रूस से मुक़ाबला करने के लिए उसके पास तोपखाने और गोला-बारूद की क़िल्लत है.

 

हज़ारों उपग्रहों से चलने वाला स्टारलिंक सिस्टम पारंपरिक एंटी-सैटेलाइट हथियारों जैसे कि ASAT और सीधे सैटेलाइट को निशाना बनाने वाली किरणें फेंकने वाले हथियारों से पार पाने में मदद करता है. लेकिन, किसी परमाणु विस्फोट से स्टारलिंक से जुड़े हज़ारों नहीं, तो सैकड़ों उपग्रह तो नष्ट किए ही जा सकते हैं. दिक़्क़त ये है कि किसी देश ने अंतरिक्ष में परमाणु विस्फोट किया, तो दुश्मन के साथ साथ उसके अपने उपग्रह भी नष्ट होने का अंदेशा रहेगा. ऐसे में रूस के सामने अपने सैटेलाइट और उनके साथ साथ उन देशों के उपग्रह भी निष्क्रिय हो जाने का ख़तरा रहेगा, जो इस युद्ध में शामिल नहीं हैं.

 

अंतरिक्ष से इसी कमज़ोरी से निपटने के लिए अमेरिका ने 2019 में एक अलग अंतरिक्ष बल की स्थापना की थी. इस स्पेस फोर्स के गठन का संबंध चीन और रूस द्वारा विकसित ऐसी तकनीकों का मुक़ाबला करना था, जिनको इन देशों ने अमेरिका के सेटेलाइट पर आधारित संचार जैसे कि जीपीएस की काट और मिसाइल लॉन्च का पता लगाने के लिए किया है. रूस और चीन की इन क्षमताओं में सैटेलाइट जाम करने, उनसे मिल रही फीड को हासिल करने, सैटेलाइट के काम को ठप करने, उन्हें मारकर गिरा देने या फिर रोबोट के ज़रिए अमेरिका के उपग्रहों को उनकी कक्षा से बाहर करके बेकार करने की ताक़त शामिल है.

 

निष्कर्ष

 

न्यूयॉर्क टाइम्स ने कहा है कि अमेरिका इन ख़तरों से निपटने के लिए पहले ही काफ़ी समय से काम कर रहा है. यहां तक कि जब रूस के नए अंतरिक्ष हथियार की ख़बरें आईं, तो अमेरिका ने कक्षा में मिसाइलों को ट्रैक करने के सिस्टम का एक नमूना स्थापित किया था, ताकि प्रोफ्लिरेटेड वारपाइटर स्पेस आर्किटेक्चर नाम की नई योजना का प्रयोग कर सके. इस नई व्यवस्था का मक़सद धरती की निचली कक्षा (LEO) में स्टारलिंक की तरह सैकड़ों छोटे और सस्ते उपग्रहों की तैनाती की बाढ़ लाना है. ये सिस्टम वैसी स्थिति में भी काम करता रहेगा, जब इसके दर्जनों उपग्रह नष्ट हो जाएंगे.

 इस नई व्यवस्था का मक़सद धरती की निचली कक्षा (LEO) में स्टारलिंक की तरह सैकड़ों छोटे और सस्ते उपग्रहों की तैनाती की बाढ़ लाना है. ये सिस्टम वैसी स्थिति में भी काम करता रहेगा, जब इसके दर्जनों उपग्रह नष्ट हो जाएंगे.

एक ख़बर के मुताबिक़, रूस ने यूक्रेन में जीपीएस सैटेलाइट से मिलने वाले सिग्नलों को बड़े पैमाने पर जाम किया है, ताकि ड्रोन के संचालन को बाधित कर सके. लेकिन, अब तक रूस ने सैटेलाइट को अंधा बना देने वाले हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया है, जबकि उसके पास ऐसी क्षमता मौजूद है. अक्टूबर 2022 में रू के एक राजनयिक ने संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण में चेतावनी दी थी युद्ध में ये असैन्य उपग्रह भी वाजिब लक्ष्य बन सकते हैं, और येअर्ध सैन्य मूलभूत ढांचा पलटवार का एक वाजिब लक्ष्यबन सकता है.

 

रूस की गतिविधियां, भारत के लिए अनदेखी का मसला नहीं हैं. क्योंकि भारत भी संचार, निगरानी और नेविगेशन के लिए उपग्रहों पर बहुत निर्भर है. ख़बरों के मुताबिक़ अमेरिका ने अपनी सरकार को निर्देश दिया है कि वो इस मसले पर रूस से बात करे और चीन और भारत से भी संपर्क करें, ताकि वो रूस को अंतरिक्ष में ऐसे हथियार तैनात करने से रोकने में मदद कर सकें.

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