Author : Antara Vats

Published on Apr 05, 2022 Updated 0 Hours ago

आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस द्वारा तैयार मीडिया से विज्ञापन उद्योग में भारी बदलाव आ रहे हैं. ऐसे में उपभोक्ताओं के भरोसे और सुरक्षा पर इसके प्रतिकूल प्रभावों का निपटारा ज़रूरी है.

डिजिटल अवतारों के ज़रिए विज्ञापनों के नए दौर का आग़ाज़

विश्व के विज्ञापन उद्योग में सिंथेटिक (या आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस द्वारा तैयार) मीडिया के बूते आमूलचूल बदलाव आना तय है. विज्ञापन जगत परंपरागत तौर पर शूटिंग के महंगे उपकरणों और फ़िल्मी दलों पर निर्भर रहा है. AI से तैयार मीडिया इन महंगे तौर-तरीक़ों की ज़रूरत ख़त्म कर देगा. इस अत्याधुनिक तकनीक ने विज्ञापनदाताओं के लिए अपार संभावनाओं के दरवाज़े खोल दिए हैं. हालांकि इनके इस्तेमाल से ग्राहकों के विश्वास से छेड़छाड़ और उपभोक्ता सुरक्षा से खिलवाड़ को लेकर कई बुनियादी चिंताएं खड़ी हो गई हैं. भारत समेत ज़्यादातर न्यायिक क्षेत्राधिकारों में ऐसे मसलों का अबतक निपटारा नहीं हो सका है. इस लेख में कैडबरी के ”नॉट जस्ट ए कैडबरी ऐड” अभियान के संदर्भ में इन्हीं चिंताओं की पड़ताल करते हुए इनके निपटारे के लिए चंद उपाय सुझाए गए हैं.

शाहरुख़ ख़ान के डिजिटल अवतार का इस्तेमाल

नवंबर 2021 में दिवाली के दौरान स्थानीय कारोबारों में जान फूंकने के लिए कैडबरी ने “नॉट जस्ट ए कैडबरी ऐड” अभियान छेड़ा था. शाहरुख़ खान (SRK)  जैसी जानी-पहचानी शख़्सियत को इस अभियान का आधार बनाया गया. उनके चेहरे, हावभाव, आवाज़ और अंदाज़-ए-बयां का इस्तेमाल कर उपभोक्ताओं से स्थानीय व्यापारियों के उत्पाद ख़रीदने की अपील की गई. इस मुहिम का मक़सद स्थानीय कारोबारियों और उनके दुकानों को बढ़ावा देना था. इसमें स्थानीय व्यापारियों को ‘अपने विज्ञापन ख़ुद तैयार करने’ या अपने उत्पादों के लिए ख़ास तौर से गढ़े गए विज्ञापन तैयार करने का मौक़ा दिया गया. इसके लिए स्थानीय दुकानदारों को महज़ कुछ जानकारियां मुहैया कराने की ज़रूरत थी. इनमें दुकान का नाम, पिन कोड और बिक्री के लिए उत्पादों की श्रेणी से जुड़ी जानकारियां शामिल हैं. इन जानकारियों के साथ कैडबरी की वेबसाइट की मदद से वो अपना विज्ञापन ख़ुद तैयार कर सकते थे. स्थानीय दुकानदारों की ख़ुशी का तब कोई ठिकाना नहीं रहा जब बिना किसी वक़्त और लागत के उनको अपने स्टोर से जुड़ा विज्ञापन व्हाट्सऐप पर मिल गया. इसे वो तमाम सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों पर व्यापक रूप से साझा कर सकते थे.

इस मुहिम का मक़सद स्थानीय कारोबारियों और उनके दुकानों को बढ़ावा देना था. इसमें स्थानीय व्यापारियों को ‘अपने विज्ञापन ख़ुद तैयार करने’ या अपने उत्पादों के लिए ख़ास तौर से गढ़े गए विज्ञापन तैयार करने का मौक़ा दिया गया. 

Rephrase.ai ने इस मुहिम के तहत हरेक श्रेणी के उत्पादों (जूते-चप्पल, फ़ैशन, किराने की दुकान और इलेक्ट्रॉनिक्स) के लिए शाहरुख़ ख़ान द्वारा फ़िल्माए गए कुछ विज्ञापनों को अपने AI मॉडल के प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल किया. डीप न्यूट्रल नेटवर्क्स और जेनेरेट AI टेक्नोलॉजी के प्रयोग से इस स्टार्ट अप ने शाहरुख़ खान के डिजिटल अवतार तैयार किए. ख़ास ज़रूरतों के हिसाब से तैयार किए गए ये डिजिटल स्वरूप बिल्कुल असली दिखाई देते हैं. इन बेहद व्यक्तिगत तरीक़े के विज्ञापनों को यूट्यूब समेत तमाम सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों पर साझा किया गया. स्थानीय तौर पर इन दुकानों को बढ़ावा देने के लिए आसपास के पिनकोड के ग्राहकों पर लक्ष्य साधा गया. इस मुहिम के तहत ख़ुद से तैयार किए गए विज्ञापनों में से कुछ अब भी यूट्यूब पर मौजूद हैं और व्हाट्सऐप पर सर्कुलेट हो रहे हैं. इस सिलसिले में लल्लन शूज़, बनर्जी गारमेंट्स और गौरव निगम-भोला किराना की मिसाल ले सकते हैं.

जो दिखता है क्या वही सच है?

​​इस मुहिम के तहत तैयार किए गए विज्ञापनों की सावधानी से पड़ताल करने पर पता चलता है कि SRK का डिजिटल अवतार इनमें से किसी भी उत्पाद की गुणवत्ता का ब्योरा नहीं देता. SRK को चाहने वाले अपने सितारे को भरोसे, गुणवत्ता और विश्वसनीयता से जोड़ते हैं. शायद यही वजह है कि कैडबरी ने उन्हें इस डिजिटल अवतार का “सितारा” बनाया ताकि इस मुहिम के लिए उनकी लोकप्रियता का भरपूर इस्तेमाल किया जा सके. पूरे आसार हैं कि इस अभियान को देख रहे ग्राहक ये मान लें कि विज्ञापन के उत्पाद एक “ख़ास गुणवत्ता वाले” हैं और इन उत्पादों को शाहरुख़ ख़ान की “स्वीकृति” हासिल है. ऐसे में हो सकता है कि वो गुमराह होकर ऐसे निम्न-गुणवत्ता वाले उत्पाद ख़रीद लें जिन्हें शायद शाहरुख़ ख़ान ने ख़ुद न तो कभी इस्तेमाल किया हो या न ही उनके इस्तेमाल का उन्हें कभी कोई तजुर्बा रहा हो. जिस तरीक़े और रफ़्तार से ये विज्ञापन तैयार किए गए, उसे देखते हुए तो ऐसा ही कहा जा सकता है. इतना ही नहीं, कैडबरी द्वारा साझा किए गए छोटे स्वरूपों वाले विज्ञापनों और दुकानदारों के साथ व्हाट्सऐप या यूट्यूब पर साझा किए विज्ञापनों में किसी तरह का कोई डिस्क्लेमर भी नहीं डाला गया. ये बात भी नहीं बताई गई कि इन विज्ञापनों को तैयार करने में सिंथेटिक मीडिया का इस्तेमाल किया गया है.

इस मुहिम के तहत तैयार किए गए विज्ञापनों की सावधानी से पड़ताल करने पर पता चलता है कि SRK का डिजिटल अवतार इनमें से किसी भी उत्पाद की गुणवत्ता का ब्योरा नहीं देता. SRK को चाहने वाले अपने सितारे को भरोसे, गुणवत्ता और विश्वसनीयता से जोड़ते हैं. 

रजिस्ट्रेशन के लिए इस्तेमाल हुई वेबसाइट में इन छोटे कारोबारियों द्वारा मुहैया कराई गई जानकारियों की सटीकता साबित करने के लिए ख़ुद से किसी तरह का सर्टिफ़िकेट देने का प्रावधान भी नहीं रखा गया. इसके मायने ये हैं कि उन उत्पादों के लिए किसी विशिष्ट गुणवत्ता मानक पर खरा उतरने को भी ज़रूरी नहीं बनाया गया. Rephrase.ai के प्लेटफ़ॉर्म पर साझा किए गए ब्लॉग “पर्सनलाइज़्ड वीडियोज़ फ़्रॉम सेलिब्रिटिज़-पीक इंटु द नेक्स्ट-जेन डिजिटल मार्केटिंग” में एक ख़ास बात का ज़िक्र किया गया है. इसमें कहा गया है कि उनकी एक टीम तमाम एंट्रियों की छंटाई करती है ताकि ऐसे वीडियो तैयार ही न हो जिनको इन जानी मानी हस्तियों द्वारा नामंज़ूर किए जाने की आशंका रहती है. बहरहाल ऐसी भी आशंकाएं हैं कि रजिस्ट्रेशन के दौरान मुहैया कराई गई सूचनाओं के ज़रिए विज्ञापन बनाने वालों ने अपने स्तर से उत्पादों की गुणवत्ता की जांच पड़ताल करवाई थी या नहीं. ऐसा लगता है कि इस प्रक्रिया से जुड़े किसी भी पक्ष ने उत्पादों का आकलन या उनकी प्रामाणिकता की जांच परख करने की क़वायद नहीं की. इन तमाम उत्पादों के विज्ञापन अब भी तमाम सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों पर मौजूद हैं.

शायद इस अभियान के निर्माताओं को लगा होगा कि वो इस मुहिम के दुरुपयोग को दुरुस्त कर लेंगे. बहरहाल, हक़ीक़त ये है कि मायावी तकनीक को अगर एक बार निरंकुश छोड़ दिया जाए तो आगे चलकर उनपर क़ाबू पाना कठिन हो जाता है. मिसाल के तौर पर लल्लन शूज़ ने बड़े आराम से अपने विज्ञापन से कैडबरी का लोगो हटा दिया. इस वाक़ये से उपभोक्ताओं के भरोसे के साथ-साथ शख़्सियत, कॉपीराइट और दूसरे बौद्धिक संपदा अधिकारों से जुड़े सवाल खड़े होते हैं. ये घटना 2001 के कुख्यात Nike कांड की याद ताज़ा कर देती है. उस घटना ने साबित किया था कि यूज़र्स को कमान थमाना किसी भी ब्रांड के लिए बर्बादी का सबब बन सकता है. Nike कंपनी को जूतों को अपने हिसाब से तैयार करने के जोना पेरेटी के अनुरोध को रद्द करना पड़ा था. दरअसल, जोना पेरेटी जूतों पर “sweatshop” छपवाना चाहते थे. इसके ज़रिए वो Nike के कारखानों में कामकाज के नुक़सानदेह माहौल को सबके सामने लाना चाहते थे.

आगे की राह

भले ही इस अभियान के पीछे कैडबरी और Rephrase.ai के इरादे नेक रहे हों और कई स्थानीय कारोबारियों को इसका फ़ायदा भी मिला हो, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस पूरी क़वायद में उपभोक्ता के भरोसे और सुरक्षा को ठेंगा दिखा दिया गया. आख़िरकार इस मुहिम से सिंथेटिक मीडिया के गुणगान और अनैतिक इस्तेमाल को ही बढ़ावा मिला. इस तरह भारत में मौजूदा उपभोक्ता संरक्षण ढांचों का संचालन करने वाली प्रशासकीय व्यवस्था की गंभीर ख़ामियां बेपर्दा हो गईं. वैसे तो भारत में सिंथेटिक मीडिया का इस्तेमाल 2017 से ही चालू हो गया था, फिर भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 (CP Act 2019) में डिजिटल अवतारों द्वारा बेची गई सामग्रियों से हुए नुक़सानों की भरपाई के लिए किसी तरह की जवाबदेही या शिकायतों का निपटारा करने वाले तंत्र का प्रावधान नहीं किया गया. दूसरे शब्दों में इन तौर-तरीक़ों से उपभोक्ताओं को बरगला कर किसी तरह का उत्पाद बेचे जाने पर उनसे जुड़ी शिकायतों के निपटारे की कोई व्यवस्था मौजूद नहीं है. सिंथेटिक विज्ञापनों के निर्माण से अनेक किरदार जुड़े होते हैं. लिहाज़ा उनकी अनैतिक हरकतों से पहुंचे नुकसान से जुड़ी देनदारी के बंटवारे को नागरिक या आपराधिक देनदारियों के सामान्य सिद्धांतों के ज़रिए हासिल नहीं किया जा सकता. ऐसे में बचाव से जुड़ा तंत्र और भी अहम हो जाता है. सिंथेटिक मीडिया में निवेश बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में उपभोक्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एहतियाती उपायों और बचाव तंत्रों के बारे में तत्काल सोचना ज़रूरी हो गया है.

हक़ीक़त ये है कि मायावी तकनीक को अगर एक बार निरंकुश छोड़ दिया जाए तो आगे चलकर उनपर क़ाबू पाना कठिन हो जाता है. मिसाल के तौर पर लल्लन शूज़ ने बड़े आराम से अपने विज्ञापन से कैडबरी का लोगो हटा दिया.

भारत सरकार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के भीतर केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (झूठे विज्ञापनों की रोकथाम और विज्ञापनों की तरफ़दारी के लिए ज़रूरी जांच पड़ताल) दिशानिर्देश, 2020 के तहत विज्ञापनदाताओं की ज़िम्मेदारियों को लेकर दिशानिर्देश जारी कर सकती है. अगर विज्ञापन में सिंथेटिक मीडिया का इस्तेमाल हुआ हो तो उनके लिए शुरुआत में ही साफ़तौर पर इस बारे में जानकारी देने को अनिवार्य बनाया जा सकता है. कैडबरी के अभियान के मामले में डिसक्लेमर दिया जाना तो और भी ज़रूरी था. इस मुहिम के तहत हरेक विज्ञापन की सटीकता सवालों के घेरे में रही है. सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों के ज़रिए वो अनगिनत लोगों तक पहुंच सकती है. 2019 में अमेरिकी संसद में डीप फ़ेक्स अकाउंटेबिलिटी एक्ट पेश किया गया था. इसके तहत हर व्यक्ति को झूठे विज्ञापनों से बचाने के लिए शोषणकारी गतिविधियों को जवाबदेही अधिनियम के दायरे में लाया गया. इसके तहत सिंथेटिक मीडिया के निर्माताओं या वीडियो से छेड़छाड़ करने की डीपफ़ेक तकनीक के प्रयोगकर्ताओं के लिए अपनी ऑडियो-विज़ुअल फ़ाइल में मौखिक और लिखित तौर पर एक वॉटरमार्क डालना अनिवार्य बना दिया गया है. वॉटरमार्क में उन्हें वीडियो बनाने में ऐसी तकनीक के इस्तेमाल के बारे में तमाम जानकारियां मुहैया करानी होती हैं. यूरोपीय संघ ने भी 2021 में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के लिए सुसंगत नियमों के प्रावधान (AI Act) और संघ के कुछ विधायी क़ानूनों में संशोधन से जुड़े दस्तावेज़ पेश किए थे. इसके तहत धारा 52 में “मौजूदा शख़्सियतों, पदार्थों, जगहों या दूसरी इकाइयों या घटनाओं से मिलते-जुलती तस्वीर, आवाज़ या वीडियो सामग्री तैयार करने वाले AI सिस्टम के प्रयोगकर्ताओं को ये ख़ुलासा करना होगा कि उनकी सामग्री कृत्रिम रूप से तैयार की गई है या असलियत से छेड़छाड़  कर बनाई गई है. तकनीक की मदद से हेराफ़ेरी कर बनाई गई ऐसी सामग्रियां किसी व्यक्ति को बेज़ा रूप से प्रामाणिक या असली (‘डीप फ़ेक’) लग सकती हैं.”

सिंथेटिक विज्ञापनों के निर्माण से अनेक किरदार जुड़े होते हैं. लिहाज़ा उनकी अनैतिक हरकतों से पहुंचे नुकसान से जुड़ी देनदारी के बंटवारे को नागरिक या आपराधिक देनदारियों के सामान्य सिद्धांतों के ज़रिए हासिल नहीं किया जा सकता. 

सोशल मीडिया के मध्यस्थों को भी बिना डिस्क्लेमर जोड़े अपने प्लेटफ़ॉर्म पर सिंथेटिक मीडिया साझा करने से परहेज़ करना चाहिए. फ़ेसबुक की पैरेंट कंपनी मेटा ने 2020 में अपनी नीति को सामयिक बनाते हुए ये कहा था कि वो उन सामग्रियों को हटा देगी जिनसे “किसी को ऐसी ग़लतफ़हमी हो जाए कि किसी वीडियो के मुख्य किरदार ने वो बातें कहीं हैं जबकि असलियत में उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा होता है.” हालांकि, फ़ेसबुक ने इस मुहिम के तहत जारी विज्ञापनों को अपने मंच पर बरकरार रखा है. सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों के ज़रिए साझा की जाने वाली प्रामाणिक सामग्रियों में उपभोक्ताओं का भरोसा क़ायम रखने के लिए ये सुझाव बेहद अहम हैं. ऑनलाइन माध्यमों में प्रचलित आम संस्कृति को लेकर नागरिकों में सामान्य रूप से फैली निराशावादी भावनाओं को और बढ़ाना इस क़वायद का मकसद कतई नहीं है. वॉटरमार्क्स और डिस्क्लेमर्स ये सुनिश्चित करेंगे कि उपभोक्ता पूरी जानकारी से लैस हों. इसके साथ ही उपभोक्ताओं को गुमराह नहीं करने का इरादा भी ज़ाहिर होगा. बहरहाल, इन तमाम क़वायदों के बावजूद विक्रेता, निर्माता और उन उत्पादों के प्रचारक अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला नहीं झाड़ सकते. उन्हें ये सुनिश्चित करना होगा  कि प्रचारित वस्तुएं सुरक्षा और गुणवत्ता के पैमानों पर खरी उतरें.

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