बाहरी अंतरिक्ष में हथियार तैनात करने पर प्रतिबंध को क़ानूनी तौर पर बाध्य बनाने के प्रस्तावों का नए सिरे से निर्माण करने की हालिया पहल हो, या फिर ज़िम्मेदारी भरे बर्ताव से अंतरिक्ष से पैदा होने वाले ख़तरे को कम करने की परिचर्चा हो. इन दोनों ही बातों से वैश्विक स्थिरता बनाए रखने को लेकर एक व्यापक चिंता ही उजागर होती है. अंतरिक्ष उद्योग द्वारा सामाजिक लाभ और कारोबारी फ़ायदे के अवसर बढ़ाए जाने से भविष्य के अभियानों के साथ-साथ, अंतरिक्ष की व्यवस्था को सुरक्षित बनाने की ज़रूरत और बढ़ गई है. हालांकि, इनमें से कुछ देशों या संस्थाओं की अंतरिक्ष की संपत्तियां, अन्य देशों की नज़र में ख़तरा भी हो सकती हैं. इसलिए, उन्हें अपने सामरिक अहमियत के हिसाब से निशाना बनाया जाने का ख़तरा भी बढ़ेगा.ऐसा होता है तो, इससे अंतरिक्ष में दूसरे देशों को भी ऐसा करने के लिए बढ़ावा मिलेगा, और हथियारों की होड़ भी बढ़ेगी.
नए तरह के अंतरिक्ष अभियानों के ज़रिए दूसरे देश की व्यवस्था में ख़लल डालने की क्षमता रखने वाले सिस्टम और रणनीतियों का इस्तेमाल आज पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन गया है. इनमें से कई अभियान तो बहुत तेज़ रफ़्तार से चल रहे हैं. वहीं, पहले से चलाए जा रहे अंतरिक्ष के कुछ अभियानों की गति धीमी भी पड़ी है.
नए तरह के अंतरिक्ष अभियानों के ज़रिए दूसरे देश की व्यवस्था में ख़लल डालने की क्षमता रखने वाले सिस्टम और रणनीतियों का इस्तेमाल आज पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन गया है. इनमें से कई अभियान तो बहुत तेज़ रफ़्तार से चल रहे हैं. वहीं, पहले से चलाए जा रहे अंतरिक्ष के कुछ अभियानों की गति धीमी भी पड़ी है. अंतरिक्ष में अभियान के इन नए और उभरते तरीक़ों की रफ़्तार इतनी तेज़ है कि इससे दूसरों को दबाया भी जा सकता है. दूसरे देशों के अभियानों से अंतरिक्ष में मेल-मुलाक़ात और एक दूसरे के क़रीब के अभियान, अंतरिक्ष के सैन्य बल का निर्माण, किसी एक ऑपरेटर द्वारा हज़ारों उपग्रह लॉन्च करना, कुछ ख़ास तरह के गोपनीय ‘अंतरिक्ष हथियार’ या बाधा डालने वाली तकनीकों का आग़ाज़ या फिर अंतरिक्ष के किसी एक संसाधन को दो अलग अलग तरह के कामों के लिए बांटने जैसे कई क़दम हैं, जो कूटनीतिक संवाद को नुक़सान पहुंचाने और तनाव बढ़ाने का काम कर सकते हैं.
वैसे तो अंतरिक्ष की सुरक्षा पर परिचर्चा, पिछले चालीस वर्षों से निरस्त्रीकरण सम्मेलन का अहम हिस्सा बनी हुई है. लेकिन, हाल की गतिविधियां ये इशारा करती हैं कि अंतरिक्ष में सक्रिय देशों के बीच अविश्वास का भाव काफ़ी बढ़ गया है. ऐसे में सामरिक रक्षा और अंतरिक्ष की सुरक्षा के लिए उठाए जा रहे नए क़दमों का विश्लेषण करने की ज़रूरत है. ये समीक्षा अंतरिक्ष की गतिविधियों पर लागू होने वाले मौजूदा क़ानूनी ढांचे की नज़र से होगी.
कुछ रिसर्चरों और विशेषज्ञों ने ऐसे प्रस्ताव रखे हैं, जिससे कि एक पारदर्शी और आपसी सहयोग के नज़रिए को आगे बढ़ाया जा सके और बाहरी अंतरिक्ष और ज़मीन से लॉन्च किए जा सकने वाले तबाही लाने वाले अभियान रोके जा सकें.
बढ़ते तनाव के बीच अंतरिक्ष के नियम बनाना कोई नई बात नहीं है. लेकिन, आज के दौर में इस परिचर्चा में जो देश शामिल हो रहे हैं, उनके नाम और परिचर्चा के विषय और संख्या, इस वक़्त काफ़ी दिलचस्पी पैदा करने वाले हैं. जिस वक़्त बाहरी अंतरिक्ष की सुरक्षा को लेकर वैश्विक समझौता हुआ था, उस समय इन देशों की संख्या भी कम थी और इससे जुड़े मुद्दों की तादाद भी सीमित थी. 1967 में वार्ता में शामिल देश एक ऐसे समझौते को अपनाने पर सहमत हुए, जो लागू होते ही अंतरिक्ष के अंतरराष्ट्रीय क़ानून का मुख्य स्तंभ बन गई. बाद में कई और देश भी इस समझौते का हिस्सा बने थे. पिछले कुछ दशकों के दौरान, बाहरी अंतरिक्ष से जुड़ी व्यवस्था की वार्ताओं में शामिल होने वाले देशों की संख्या बढ़ती ही गई है. 1967 में बाहरी अंतरिक्ष की संधि ‘सभी देशों पर लागू होने वाला समझौता बन गई’. इसने संयुक्त राष्ट्र के चार्टर को मानने वाले देशों के लिए एक सारांश और बाहरी अंतरिक्ष के इस्तेमाल और अन्वेषण के लिए तमाम देशों के बीच आम सहमति बनाने का भी काम किया. इसके साथ-साथ, 1967 की संधि अंतरिक्ष की गतिविधियों के नियमन का शुरुआती बिंदु भी बन गई.
इस प्रक्रिया ने दिखाया है कि दुनिया के तमाम देश आपसी समझौता करके एक मज़बूत और क़ानूनी तौर पर बाध्य ऐसी व्यवस्थाएं बना सकते हैं, जो नई-नई तकनीकों के उभार के साथ पैदा होने वाली ख़ास चुनौतियों और अंतरिक्ष में नई गतिविधियों का नियमन कर सकें. हालांकि, हाल के वर्षों में अंतरिक्ष में सक्रिय देशों और ग़ैर सरकारी संस्थाओं, उनकी बढ़ती गतिविधियों और संपत्तियों की बढ़ती संख्या ने क़ानून और नीति निर्माताओं के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं.
अंतरिक्ष में सक्रियता के बढ़ते किरदार का अंतरिक्ष नीति पर पड़ने वाला असर
नज़रियों में विविधता आने से उन मुद्दों पर फिर से ध्यान केंद्रित हो सकेगा, जो सभी भागीदारों के लिए अहम है: जैसे कि, अंतरिक्ष के पर्यावरण का संरक्षण या फिर अंतरिक्ष में मौजूद मूलभूत ढांचे की सुरक्षा. अंतरिक्ष उद्योग न केवल सैन्य और सामरिक हितों के लिहाज़ से ज़रूरी है. बल्कि ये मानवीय, सरकारी और आर्थिक मक़सद के लिहाज़ से भी काफ़ी अहम है. बाहरी अंतरिक्ष में शांति और सुरक्षा क़ायम करने की अंतरराष्ट्रीय कोशिश में इनका योगदान इसलिए ज़रूरी है, जिससे कि अंतरिक्ष में स्थापित व्यवस्थाओं का फ़ायदा उठाया जा सके और इसके साथ इस बात का भी ध्यान रखा जा सके कि आज के दौर में, ‘टिकाऊ विकास और सुरक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,’ और सुरक्षा और सावधानी एक दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं.
हाल ही में पर्यवेक्षकों ने अंतरिक्ष सुरक्षा से जुड़ी परिचर्चा को फिर से एक ख़ास विषय पर केंद्रित कर दिया है, जिसका नाम है एंटी सैटेलाइट (ASAT) तकनीकें. अंतरिक्ष में स्थित संपत्तियों की तबाही का मुद्दा उनकी उस सूची में सबसे अहम है, जिस पर फ़ौरी तौर पर कार्रवाई करने की ज़रूरत है. इसका नतीजा ये हुआ है कि कुछ रिसर्चरों और विशेषज्ञों ने ऐसे प्रस्ताव रखे हैं, जिससे कि एक पारदर्शी और आपसी सहयोग के नज़रिए को आगे बढ़ाया जा सके और बाहरी अंतरिक्ष और ज़मीन से लॉन्च किए जा सकने वाले तबाही लाने वाले अभियान रोके जा सकें. इस नज़रिए के तहत एक प्रस्ताव, ASAT परीक्षण के दिशा-निर्देश बनाने का था. इस प्रस्ताव को सबसे पहले 2013 में बाहरी अंतरिक्ष में पारदर्शिता लाने और विश्वास बहाली वाले सरकारी विशेषज्ञों के समूह ने आगे बढ़ाया था. दूसरा प्रस्ताव, एंटी-सैटेलाइट टेस्ट को बंद करने की आम तौर पर की जारी मांग से उभरा था जिससे बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों के नियंत्रण की व्यापक व्यवस्था बनाई जा सके और कचरा पैदा होने से भी रोका जा सके. इसके साथ ही अंतरिक्ष की सुरक्षा के लिए ख़तरे को कम करने के साथ अस्थिरता लाने वाली ताक़तों पर क़ाबू पाया जा सके. संयुक्त राष्ट्र महासभा से एंटी सैटेलाइट टेस्ट पर पाबंदी लगाने के विषय पर चर्चा की अपील करने वाले एक ख़त को अंतरिक्ष समुदाय के काफ़ी सदस्यों ने अपना समर्थन दिया था. इसका मक़सद धरती की कक्षा तक सुरक्षित पहुंच बनाना और अंतरिक्ष में जमा हो रहे कचरे को फैलने से रोकना और टकराव की चिंताएं कम करना था. बाहरी अंतरिक्ष से जुड़ी संधि को लागू करने के प्रोटोकॉल को लेकर एक पूर्व राजनयिक द्वारा पेश किए गए हालिया प्रस्ताव का एक महत्वपूर्ण बिंदु ये भी है कि बड़े पैमाने पर तबाही लाने वाले हथियारों पर लगी रोक को सभी तरह के हथियारों पर लागू कर दिया जाए. इन सभी पहलों का ज़ोर ख़तरे के स्रोत पर केंद्रित है, जो अंतरिक्ष की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों के दायरे में आता है. हालांकि इन ख़तरों का लक्ष्य अंतरिक्ष का ग़ैर सामरिक इन्फ्रास्ट्रक्चर भी हो सकता है और ऐसे हालात से पैदा हुई गड़बड़ का असर सिर्फ़ सैन्य संसाधनों और किरदारों पर ही नहीं पड़ेगा, बल्कि सभी भागीदार इसकी चपेट में आ जाएंगे. संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के बीच चल रही निरस्त्रीकरण की संधि को लेकर हो रही चर्चाओं में ये चिंताएं भी शामिल हैं.
अंतरिक्ष नीति और बहुपक्षीयवाद
संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर बहुत से देश नए बाध्यकारी नियम और स्वेच्छा से लागू किए जाने वाले उपायों को आगे बढ़ा रहे हैं. ये प्रस्ताव देशों के बर्ताव और अंतरिक्ष की तकनीक दोनों से जुड़े हुए हैं. कारोबारी, राजनीतिक और सामरिक कारणों से अंतरिक्ष की बढ़ती अहमियत को देखते हुए, कूटनीतिज्ञ अब मौजूदा क़ानूनों और नीतियों को अंतरिक्ष के क्षेत्र की नई गतिविधियों के हिसाब से ढाल रहे हैं.
7 दिसंबर 2020 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव 75/36 को स्वीकार किया था. ये प्रस्ताव नियमों, क़ानूनों और ज़िम्मेदारी भरे बर्ताव के सिद्धांतों के ज़रिए अंतरिक्ष से ख़तरों को कम करने को लेकर था. ये नया क़दम बाहरी अंतरिक्ष में ज़िम्मेदारी भरे बर्ताव की बुनियादें तय करने के लिए उठाया गया है. ज़मीनी स्तर पर उपाय करने वाला नज़रिया अपनाने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव 75/36 का मक़सद तनाव कम करना और अंतरिक्ष पर आधारित हथियारों की होड़ को बढ़ावा देने से रोकना है. इस पहल का एक नतीजा ये हुआ कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने संयुक्त राष्ट्र के निरस्त्रीकरण से जुड़े मामले देखने वाले विभाग की मदद से अंतरिक्ष के ख़तरे कम करने पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की. प्रस्ताव 75/36 ने बाहरी अंतरिक्ष में ज़िम्मेदाराना व्यवहार, ग़ैर-ज़िम्मेदाराना क़दम और धमकाने वाले बर्ताव को परिभाषित करने के लिए तमाम देशों के बीच संवाद को बढ़ावा देने का काम किया है. इसका नतीजा ये हुआ है कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश यूरोपीय संघ और ग़ैर सरकारी संगठनों ने इन रिपोर्ट में शामिल करने के लिए अपने अपने प्रस्ताव दिए हैं. इस रिपोर्ट में बाहरी अंतरिक्ष के प्रशासन की दिशा में आगे के काम की मुख्य ज़िम्मेदारी संयुक्त राष्ट्र के हवाले कर दी है. अब संयुक्त राष्ट्र महासभा एंटी सैटेलाइट परीक्षणों से जुड़ी चिंताओं पर विचार के लिए तैयार होती है, या ऐसी मांगों की अनदेखी कर देती है. इस बड़े सवाल का जवाब तो आने वाले वक़्त में ही मिलेगा.
इस पहल के साथ साथ, जो एक और बहुपक्षीय पहल की गई है, वो रूस के विदेश मंत्री द्वारा अप्रैल 2021 में क़ानूनी तौर पर बाध्यकारी उपायों वाले प्रस्ताव का एलान है. ट्रीटी ऑन प्रिवेंशन ऑफ़ प्लेसमेंट ऑफ़ वेपन्स इन आउटर स्पेस (PPWT) का ये ड्राफ्ट सबसे पहले साल 2008 में सामने रखा गया था. 2014 में इसे दोबारा कुछ बदलावों के साथ पेश किया गया था. शुरुआती प्रस्ताव तो एंटी सैटेलाइट मिसाइलों के परीक्षण के बाद ही सामने आया था, जिसके ज़रिए अंतरिक्ष की बड़ी ताक़तों और संयुक्त राष्ट्र के एजेंडों में अंतरिक्ष की सुरक्षा को बढ़ावा देने की कोशिश की गई थी. चीन और रूस द्वारा लाए गई इस पहल का मक़सद बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की तैनाती रोकना है. पर्यवेक्षकों ने इस प्रस्ताव की भाषा की आलोचना की है. उनका मानना है कि बाहरी अंतरिक्ष के लिए बड़ा ख़तरा ख़ुद अंतरिक्ष से नहीं, बल्कि ज़मीन से आने वाला है.
चीन और रूस द्वारा लाए गई इस पहल का मक़सद बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की तैनाती रोकना है. पर्यवेक्षकों ने इस प्रस्ताव की भाषा की आलोचना की है. उनका मानना है कि बाहरी अंतरिक्ष के लिए बड़ा ख़तरा ख़ुद अंतरिक्ष से नहीं, बल्कि ज़मीन से आने वाला है.
बाहरी अंतरिक्ष से जुड़े जिन जोखिमों और ख़तरों का ज़िक्र किया गया है, उनकी परिचर्चा में नए संभावित ‘हथियारों’ के खुले एलान से और इज़ाफ़ा ही होता जा रहा है. इससे न सिर्फ तनाव बढ़ रहा है बल्कि कई बार तो उसके मुक़ाबले नई आक्रामक या सुरक्षात्मक अंतरिक्ष तकनीक का विकास भी किया जा रहा है. चीन और रूस मिलकर एक बहुपक्षीय प्रस्ताव पर काम कर रहे हैं. उन्होंने निरस्त्रीकरण सम्मेलन में शामिल अन्य देशों से भी इस वार्ता का हिस्सा बनने की अपील की है. हालांकि, कुछ पर्यवेक्षक ऐसी कोशिशों की सफलता को लेकर आशंकाएं ज़ाहिर कर रहे हैं. वहीं कुछ ऐसे विशेषज्ञ भी हैं, जिन्होंने इस पहल को एक अच्छी शुरुआत कहा है. ऐसा लगता है कि रूस और चीन की पहली प्राथमिकता बहुपक्षीयवाद है, जिसमें वो अन्य सदस्यों से भी भागीदार बनने और शुरुआती वार्ताओं में शामिल होने की अपील कर रहे हैं.
अंतरिक्ष के क्षेत्र में सक्रिय देशों की मौजूदा क़ानूनी व्यवस्था की कमियां दूर करने की ये कोशिशें निश्चित रूप से तारीफ़ के क़ाबिल हैं. लेकिन, एक ही क्षेत्र में की जा रही ऐसी अलग अलग कोशिशें एक तरह से राजनीतिक इच्छाशक्ति की दोधारी तलवारें बन गई हैं. हालांकि कई दशकों से चली आ रही अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं के तजुर्बे हमें ये सबक़ देते हैं कि ऐसी बातचीत में नए पक्षों को जोड़ने और परिचर्चा में नए विषय शामिल करने से कुछ ऐसे सहयोगी प्रस्ताव भी सामने आते हैं, जो चर्चा के मुख्य विषय के समाधान का बेहतर विकल्प उपलब्ध कराते हैं.
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