Published on Feb 20, 2019 Updated 0 Hours ago

भारत और दक्षिण अफ्रीका को चाहिए कि वो आधुनिक वैश्वीकृत युग में आर्थिक कूटनीति के क्षेत्र में वैश्विक धरातल पर एक महत्त्वपूर्ण तत्व के रूप में उभरे, एवं दोनों देश वैश्वीकरण के प्रभाव के कारण विदेश नीति में राजनीतिक तत्त्वों के स्थान पर आर्थिक तत्त्वों का महत्त्व दे।

21वीं सदी में भारत-दक्षिण अफ्रीका के सम्बन्धों का नया अध्याय

दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सीरिल रामाफोसा, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 70वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर। स्रोत: GovernmentZA — © फ़्लिकर/CC BY-ND 2.0

दक्षिण अफ्रीका के साथ भारत के संबंध सदियों पुराने हैं। अतीत में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच स्थापित भौगोलिक एवं ऐतिहासिक जुड़ाव शांति, प्रगति और समृद्धि के अपने साझा लक्ष्यों के साथ वर्तमान में भी जारी है। दोनों देशों के बीच में यह जुड़ाव ऐसे ही स्थापित नही हो गया बल्कि यह दोनों देशों के साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्लीय भेदभाव और रंगभेद के खिलाफ जो साझा संघर्ष रहा है उससे विकसित हुआ है। वर्तमान समय में भले ही वह दौर पीछे छूट गया हो, लेकिन उस साझा संघर्ष से उपजी एकता ही है जो आज भी दोनों देशों के मध्य में द्विपक्षीय संबंधों को पोषित कर रही है। भारत के दक्षिण अफ्रीका से संबंधों को स्थापित करने में महात्मा गाँधी की बहुत बड़ी भूमिका रही है क्योंकि गांधी जी की कर्मभूमि दक्षिण अफ्रिका ही थी। गाँधी जी के कार्यों ने ही दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को उपनिवेशिक काल में एक नया आयाम प्रदान किया था। उसी का ही परिणाम है कि स्वतंत्रता के बाद दोनों देशों के सम्बन्धों में बड़ा बदलाव देखने को मिला है।

इस बार देश के गणतंत्र दिवस के अवसर पर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति साइरिल रामाफोसा भारत के मुख्य अतिथि रहे। उनकी मौजूदगी भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों देशों के लिए बहुत ही खास है, क्योंकि इस वर्ष महात्मा गांधी की 150वीं जयंती है। दोनों देशों ने पिछले वर्ष ही नेल्सन मंडेला की जन्म शताब्दी और आपसी राजनयिक संबंधों की रजत जयंती (25 वर्ष) को बड़ी ही धूमधाम से मनाया। इस विशेष मौके पर रामाफोसा के भारत आने पर प्रधान मंत्री मोदी ने कहा कि हमारे द्विपक्षीय संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं। वर्तमान समय में 10 बिलियन डॉलर का व्यापार दोनों देश के बीच में हो रहा है।

वहीं दूसरी ओर दक्षिण अफ्रीका में निवेश बढ़ाने को लेकर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति के प्रयासों पर भारत की विभिन्न कंपनियाँ बढ़ चढ़कर के हिस्सा ले रही है। इसका ही परिणाम है कि अन्य क्षेत्रों के अतरिक्त भारत कौशल विकास के प्रयासों में भी सहयोग कर रहा है। जल्द ही भारत प्रिटोरिया में गांधी मंडेला स्किल इंस्टीट्यूट की स्थापना करने जा रहा है। इस बदलते वैश्विक परिवेश में दोनों देशों के संबंधों को मजबूती प्रदान करने का कार्य इनके ऐतिहासिक जुड़ाव ने किया है, जिसका परिणाम यह है कि द्विपक्षीय सम्बन्ध मधुर हुए है।


दक्षिण अफ्रीका में निवेश बढ़ाने को लेकर दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति के प्रयासों पर भारत की विभिन्न कंपनियाँ बढ़ चढ़कर के हिस्सा ले रही है। इसका ही परिणाम है कि अन्य क्षेत्रों के अतरिक्त भारत कौशल विकास के प्रयासों में भी सहयोग कर रहा है।


स्वतंत्रता के बाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की विदेश नीति के मूल सिद्धांतों में साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्लीय भेदभाव, रंगभेद, गुट-निरपेक्षता और दक्षिण–दक्षिण सहयोग जैसे विषय प्रमुख थे जिसके फलस्वरूप प्रधानमंत्री नेहरु ने दक्षिण अफ्रीका को प्रमुखता दी। आज उसी का परिणाम है की दोनों देशों के बीच आर्थिक और राजनैतिक सम्बन्ध एक नये रूप में उभरकर सामने आये है। नेहरु की प्रमुखता के कारण ही भारत ने 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ में जातीय भेदभाव की नीति पर प्रश्न उठाया था तथा दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के विरुद्ध आंदोलन के कारण भारत वह पहला देश बना जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस समस्या के कारण दक्षिण अफ्रीका से अपने आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक संबंधों पर प्रतिबंध लगा दिया था। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के अलावा गुटनिरपेक्ष आंदोलन एवं 1955 कि अफ्रीका-एशिया सम्मेलन तथा अन्य बहुपक्षीय संगठनों के माध्यम से रंगभेद की नीति को समाप्त करने एवं दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध इस नीति के कारण आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए निरंतर प्रयास किया था। भारत सरकार ने अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस (ANC) का नई दिल्ली में कार्यालय खोलने में सहयोग किया एवं रंगभेद नीति के विरुद्ध में आर्थिक सहयोग के माध्यम से भी अपनी सक्रियता निभाई।

भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य द्विपक्षीय संबंधों में बदलाव मुख्य रूप से उस समय उभर कर सामने आया, जब नेल्सन मंडेला को जेल से रिहा कर 1993 में देश का प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बनाया गया। इसके उपरान्त ही भारत ने मई 1993 को जोहानेसबर्ग में सांस्कृतिक केंद्र का उद्घाटन किया, जिससे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में जो कटुता थी उसको नए सिरे से बदलते हुए राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक वातावरण को मधुर बनाया जा सके। भारत-दक्षिण अफ्रीका के मध्य में औपचारिक रूप से राजनयिक एवं कूटनीतिक संबंध नवंबर 1993 में दक्षिण अफ्रीका के तत्कालीन विदेश मंत्री श्री पीक बोथा के भारत आगमन के बाद में हुआ। इसी परिपेक्ष्य में भारत सरकार द्वारा दक्षिण अफ्रीका में 1994 में अपना उच्चायोग खोला और इसको स्थायी कार्यालय के रूप में स्थापित किया गया।

मार्कोपोलो जैसे विभिन्न इतिहासकारों एवं विद्वानों का मानना है कि भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य में आर्थिक एवं व्यापारिक संबंध प्राचीन काल से विद्यमान थे। बड़े पैमाने पर उस समय के केप ऑफ गुड होप से भारत का मसालों, कपड़ों, सोना-चांदी आदि जैसे बहुमूल्य वस्तुओं का आदान-प्रदान होता था जिसके परिणाम स्वरूप भारत और दक्षिण अफ्रीका के आर्थिक संबंधों से राजनीतिक संबंधों को भी बढ़ावा मिला। 16वीं शताब्दी में यूरोपीय कंपनियों के आगमन के बाद दोनों देशों के बीच में आर्थिक और राजनीतिक संबंधों के बदलाव का दौर प्रारंभ हुआ जिसमें कि बड़े पैमाने पर भारतीयों को दक्षिण अफ्रीका के नटाल क्षेत्र में गन्ने की खेती के लिए पूर्वी एवं मध्य भारत से लाया गया। इन अप्रवासी भारतीयों के आगमन से दोनों देशों के संबंधों में बड़ा बदलाव आया, परंतु स्वतंत्रता के बाद भारत द्वारा रंगभेद की नीति के विरोध करने के कारण दोनों देशों के आर्थिक संबंध प्रभावित हुए और इससे दोनों देशों के बीच का व्यापार भी थोड़ा कम हुआ। 1993 में जब नेल्सन मंडेला के नेतृत्व में दक्षिण अफ्रीका में पहली अश्वेत सरकार बनी तो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार एवं वाणिज्यिक समझौतें में बदलाव आया। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार बड़ी ही तीव्र गति से वैश्विकरण के दौर में बढ़ने लगा। वर्ष 1993 में दोनों देशों के मध्य जब राजनयिक संबंध स्थापित हुए तो वाणिज्य भी सुदृढ़ होने लगा।


भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य द्विपक्षीय संबंधों में बदलाव मुख्य रूप से उस समय उभर कर सामने आया, जब नेल्सन मंडेला को जेल से रिहा कर 1993 में देश का प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बनाया गया। इसके उपरान्त ही भारत ने मई 1993 को जोहानेसबर्ग में सांस्कृतिक केंद्र का उद्घाटन किया, जिससे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में जो कटुता थी उसको नए सिरे से बदलते हुए राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक वातावरण को मधुर बनाया जा सके।


दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा 2010 में भारत की यात्रा पर आए जिसमें कि दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार को 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर करने की सहमति हुई। तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री जनवरी 2011 में दक्षिण अफ्रीका की यात्रा की तो इस लक्ष्य को 2014 का 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर करने का लक्ष्य रखा। 2012 -13 एवं 2013- 14 में दक्षिण अफ्रीका द्वारा भारत के व्यापार में मुख्य रूप से सोने के आयात पर प्रतिबंध के कारण गिरावट आ गयी थी। इसके बाद दोनों देश के मध्य 2014 में 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य को रखा गया है। भारत की तरफ से दक्षिण अफ्रीका में जिन वस्तुओं का निर्यात किया जाता है उनमे मुख्य रूप से वाहन तकनीक, परिवहन के उपकरण, औषधियां एवं स्वास्थ्य एवं अन्य स्वास्थ्य से संबंधित तकनीकी ज्ञान और नवीन खोजों, एवं संरचनात्मक विकास के लिए इंजीनियरिंग तकनीकी एवं ज्ञान का आदान-प्रदान किया जा रहा है। भारत सरकार बड़े पैमाने पर यहां रसायन, खाद्यान्न एवं शिक्षा संबंधी जो भी जरूरतें हैं उस पर भी निवेश करने का कार्य कर रही है। दक्षिण अफ्रीका के द्वारा भी भारत में बड़े पैमाने पर विभिन्न वस्तुओं का आयात किया जा रहा है जिसमें प्रमुख रूप से सोना, स्टील, कॉपर तथा अन्य खनिज पदार्थ शामिल है। भारत के द्वारा प्रमुख कंपनियों के माध्यम से बड़े पैमाने पर संरचनात्मक एवं मानवीय विकास पर निवेश किया जा रहा है जिसमें कि टाटा ऑटोमोबाइल, युवी ग्रुप, महिंद्रा तथा रैनबैक्सी एवं सिप्ला जैसी प्रमुख कंपनियां शामिल है। भारत सरकार ने दक्षिण अफ्रीका के बैंकिंग सेक्टर को भी मजबूत करने के लिए बहुत व्यापक कदम उठाए है। इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका के प्रमुख बैंक फर्स्ट नेशनल बैंक की कई शाखाओं को अप्रैल 2012 में भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में खोला गया है।

भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य में भले ही द्विपक्षीय सम्बन्ध प्रगाढ़ हो परन्तु दोनों देशों के समक्ष खतरे भी लगभग समान ही है जिसमे अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, निर्धनता, बीमारी, अशिक्षा, भुखमरी, जलवायु परिवर्तन की चुनौती तथा अपने नागरिकों के समग्र विकास को बढ़ावा देने संबंधी चुनौतियां प्रमुख है। भारत और दक्षिण अफ्रीका को चाहिए कि वो आधुनिक वैश्वीकृत युग में आर्थिक कूटनीति के क्षेत्र में वैश्विक धरातल पर एक महत्त्वपूर्ण तत्व के रूप में उभरे, एवं दोनों देश वैश्वीकरण के प्रभाव के कारण विदेश नीति में राजनीतिक तत्त्वों के स्थान पर आर्थिक तत्त्वों का महत्त्व दे। वर्ष 2008 में नई दिल्ली में आयोजित पहले भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन के साथ आपसी संबंधों को गति देने की कोशिश शुरू की गई थी, उसमे समान हितों का विस्तार करने के साथ-साथ नवीनता प्रदान करने कि जरूरत है। इसके आलवा भारत और दक्षिण अफ्रीका को इब्सा, ब्रिक्स और अफ्रीकन यूनियन के माध्यम से अपने द्विपक्षीय सम्बन्धों को सोहार्दपूर्ण बनाना होगा जिससे कि चीन का इस क्षेत्र में जो आर्थिक और राजनैतिक प्रभाव बढ़ रहा है उसको नियंत्रित किया जा सके जो की भारत और दक्षिण अफ्रीका समेत संपूर्ण अफ्रीकी देशों के लिए कारगर सिद्ध होगा।


लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के अफ्रीका अध्ययन विभाग में एक शोध छात्र है।

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