Published on Sep 25, 2023 Updated 0 Hours ago
भारत-ग्रीस रिश्तों में नया सवेरा: प्राचीन सभ्यताओं से रणनीतिक भागीदारी की ओर

यूरोपीय संघ से ग्रीस के बाहर निकलने यानी ग्रेक्सिट की आशंका अब बीते दिनों की बात हो गई है. ग्रीस के समुद्री तटों पर अब सैलानियों का जमावड़ा लग रहा है और एथेंस के प्राचीन क़िले एक्रोपोलिस के प्रवेश द्वार पर अभूतपूर्व कतारें लगी हैं. ग्रीस अब “यूरोप का काला धब्बा” नहीं रहा. उसने 2008 के वित्तीय संकट से उबरकर यूरोज़ोन (यूरोप का वो भूक्षेत्र जहां यूरो मुद्रा प्रचलित है) की सबसे तेज़ गति से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में अपनी जगह बना ली है. ऊर्जा की महंगी क़ीमतों और महंगाई की ऊंची दरों के बावजूद देश में पिछले साल 5.9 प्रतिशत की दर से आर्थिक वृद्धि हुई है. प्रधानमंत्री किरियाकोस  मित्सोताकिस के आर्थिक सुधारों द्वारा ग्रीस को एक नए प्रगतिशील मार्ग पर स्थापित किए जाने के बाद ये कमाल देखा गया है.

25 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ग्रीस दौरा पिछले 40 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा ग्रीस की पहली यात्रा रही. प्रधानमंत्री के दौरे से पहले 2021 में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ग्रीस की यात्रा कर चुके थे.

इस संदर्भ में, 25 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ग्रीस दौरा पिछले 40 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा ग्रीस की पहली यात्रा रही. प्रधानमंत्री के दौरे से पहले 2021 में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ग्रीस की यात्रा कर चुके थे. उसके बाद मार्च 2022 में ग्रीस के विदेश मंत्री निकोस डेंडियास भारत के दौरे पर आए थे. इस साल जून में 13वें द्विपक्षीय फॉरेन ऑफिस कंसल्टेशंस का आयोजन किया गया था. प्रधानमंत्री मोदी के दौरे ने इन तमाम जुड़ावों से पैदा रफ़्तार का लाभ उठाया.

प्राचीन सभ्यताओं के रूप में, दोनों देश मज़बूत कूटनीतिक रिश्ते साझा करते हैं. हालांकि जैसा कि विदेश मंत्री जयशंकर ने दोहराया है, ये संबंध “सुखद तो हैं, मगर महत्वाकांक्षी नहीं हैं”. प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा ने इस “सुखदायक” यथास्थिति को पलटकर भारत-ग्रीस संबंधों को रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक उन्नत कर दिया है. इसका लक्ष्य व्यापार, निवेश, सुरक्षा, रक्षा, ऊर्जा, प्रवासन, बुनियादी ढांचे, पर्यटन, कनेक्टिविटी और कृषि जैसे क्षेत्रों में सहयोग को गहरा करना है.

हिंदप्रशांत और भूमध्य सागर का मिलन 

रिश्तों में नई जान फूंकने वाली इन क़वायदों के केंद्र में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक खुले, समावेशी और नियम-आधारित व्यवस्था का आम दृष्टिकोण है, जहां से वैश्विक व्यापार का अधिकांश हिस्सा गुज़रता है. इसके साथ-साथ यूरोप, एशिया और अफ्रीका के चौराहे पर स्थित भूमध्यसागरीय क्षेत्र में स्थिरता से जुड़ी चिंताओं ने भी इन प्रयासों को हवा दी है. भारत और ग्रीस, दोनों ऐतिहासिक समुद्री राष्ट्र हैं, और “समुद्री क़ानून के अनुरूप, विशेष रूप से UNCLOS के प्रावधानों के मुताबिक, और संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और आवाजाही की स्वतंत्रता के लिए पूर्ण सम्मान के साथ समुद्री स्थिरता के प्रति प्रतिबद्धता साझा करते हैं, ताकि अंतरराष्ट्रीय शांति, स्थिरता और सुरक्षा को फ़ायदा पहुंच सके.” दोनों देशों के संयुक्त बयान में भी इस पर ज़ोर दिया गया है.

भूमध्यसागरीय क्षेत्र, जहां चीन सुरक्षा और आर्थिक मोर्चे पर अपनी मज़बूत उपस्थिति बनाए हुए है, ऊर्जा के भूखे भारत के लिए रणनीतिक रूप से अहम है. ग़ौरतलब है कि इस इलाक़े में 112 खरब क्यूबिक फीट गैस और 1.7 अरब बैरल तेल के भंडार मौजूद हैं. पूर्वी भूमध्य सागर में ग्रीस की महत्वपूर्ण और निर्णायक स्थिति के साथ-साथ यूरोपीय संघ और नेटो, दोनों के सदस्य के रूप में इसका दर्जा, ग्रीस को भारत के लिए यूरोपीय संघ में एक संभावित प्रवेश द्वार बनाता है. ख़ासतौर से पीरियस बंदरगाह के माध्यम से यूरोप में प्रवेश करने की इच्छुक भारतीय कंपनियों के लिए ग्रीस बेहद अहम हो जाता है. ये क्षेत्र का सबसे बड़ा बंदरगाह और एशिया-यूरोप कनेक्टिविटी का प्रमुख केंद्र है.

पूर्वी भूमध्य सागर में ग्रीस की महत्वपूर्ण और निर्णायक स्थिति के साथ-साथ यूरोपीय संघ और नेटो, दोनों के सदस्य के रूप में इसका दर्जा, ग्रीस को भारत के लिए यूरोपीय संघ में एक संभावित प्रवेश द्वार बनाता है.

फिर भी, इस आशावाद पर एक बड़ी चेतावनी का साया है. चीनी निवेश से रणनीतिक क्षेत्रों को ‘जोख़िम-मुक्त’ करने के यूरोपीय संघ के लक्ष्यों के बावजूद चीनी राज्यसत्ता के स्वामित्व वाली शिपिंग कंपनी COSCO अपनी 60 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ पीरियस बंदरगाह को नियंत्रित करती है. अक्सर इस बंदरगाह को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का ‘ड्रैगन्स हेड’ क़रार दिया जाता है. हालांकि इसके बावजूद नए सिरे से शुरू की गई यूरोपीय संघ-भारत मुक्त व्यापार समझौते की वार्ताएं पूरे ज़ोर-शोर से चल रही है. ग्रीस के बंदरगाहों, उसके रणनीतिक स्थान यानी लोकेशन और प्रमुख शिपिंग उद्योग के साथ रसद से जुड़ा उसका उन्नत बुनियादी ढांचा, भारत के साथ यूरोप के व्यापारिक संबंधों को गहरा करने में योगदान देगा.

दोनों देशों को दीर्घकालिक रक्षा सहयोग से भी लाभ मिलता है. मई 1998 में भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद ग्रीस ने उसी साल भारत के साथ रक्षा सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन पर दस्तख़त किए थे. इतना ही नहीं, भारत और ग्रीस ने भूमध्य सागर में संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों में भी हिस्सा लिया है. साथ ही इस साल अनेक देशों की हिस्सेदारी वाले वायु सेना के अभ्यास, INIOCHOS-23 में भी शामिल हुए हैं. 2024 में ग्रीस के F-16 लड़ाकू विमानों द्वारा भारतीय तरंग शक्ति वायु अभ्यास में हिस्सा लेने की संभावना है. समुद्री सुरक्षा बरक़रार रखने के अलावा भू-राजनीति से जुड़ी ठोस अनिवार्यताएं भी इस संवर्धित सुरक्षा सहयोग को रेखांकित करती हैं. दरअसल तुर्किए और पाकिस्तान की नौसेनाएं भी भूमध्य सागर में संयुक्त सैन्य अभ्यास कर चुकी हैं और F-16 लड़ाकू विमान, पाकिस्तान की रक्षा क्षमताओं का एक प्रमुख घटक हैं.

ग्रीस को अपने फार्मास्यूटिकल्स, नवीकरणीय ऊर्जा, टेक्नोलॉजी और कृषि समेत तमाम रणनीतिक क्षेत्रों में भारतीय निवेश की उम्मीद है. उसे आर्थिक कायाकल्प से जुड़े ग्रीस 2.0 प्लान के अनुरूप ऐसे निवेश की आशा है. 

भारत के मेक इन इंडिया कार्यक्रम के तहत सैन्य हार्डवेयर के सह-उत्पादन और टेक्नोलॉजी के आदान-प्रदान की भी पड़ताल की जा रही है. दोनों ही देशों के लिए सैन्य बलों का आधुनिकीकरण एक अहम लक्ष्य है. ग्रीस का रक्षा ख़र्च 2019 में 5 अरब अमेरिकी डॉलर था, जो 2022 में बढ़कर 8.4 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया है. इसके अलावा, ग्रीस दुनिया में सबसे बड़े व्यापारी बेड़े का भी दावा करता है. ग्रीस का व्यापारी बेड़ा, यूरोपीय संघ द्वारा नियंत्रित बेड़े के 59 प्रतिशत हिस्से की नुमाइंदगी करता है. इस तरह ग्रीस, भारत की ब्लू इकोनॉमी से जुड़ी महत्वाकांक्षाओं के लिए एकदम उपयुक्त बन जाता है.

दुश्मन का दुश्मनमेरा दोस्त

तनावपूर्ण भू-राजनीतिक वातावरण का सामना करते हुए ग्रीस और आर्मेनिया  के साथ भारत के रिश्ते मज़बूत हुए हैं. तुर्किए-पाकिस्तान-अज़रबैजान की उभरती शत्रुतापूर्ण सैन्य धुरी (जिसे अक्सर थ्री ब्रदर्स के नाम से पुकारा जाता है) के संदर्भ में ग्रीस और आर्मेनिया के साथ भारत के संबंधों में गर्मजोशी आई है. एक ओर तुर्किए हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर कश्मीर मुद्दे को आक्रामकता से उठाता है, तो दूसरी ओर ग्रीस ने कश्मीर पर भारत के रुख़ के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत के प्रयासों का भी निरंतर समर्थन किया है. बदले में भारत ने तुर्किए के क़ब्ज़े वाले उत्तरी साइप्रस पर ग्रीस के रुख़ की हिमायत की है. साथ ही एजियन सागर में तुर्किए के साथ द्वीपों के विवाद पर भी भारत ने ग्रीस का साथ दिया है. दिसंबर 2022 में विदेश मंत्री जयशंकर का साइप्रस दौरा अहम भू-राजनीतिक मसलों पर भारत और ग्रीस के बीच इसी तालमेल को दर्शाता है. भारत और ग्रीस, दोनों ही अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के सभी स्वरूपों की कठोर शब्दों में निंदा करते हैं.

आर्थिक सहयोग के अवसर

भारत और ग्रीस का लक्ष्य 2030 तक अपने द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करना है. 2022-2023 में दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार का मूल्य लगभग 2 अरब अमेरिकी डॉलर रहा है. आर्थिक संकट के बाद नए सिरे से उभरती अर्थव्यवस्था के साथ ग्रीस एक विश्वसनीय आर्थिक खिलाड़ी के तौर पर वैश्विक परिदृश्य पर लौट आया है. फिर भी प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के हिसाब से यूरोपीय संघ में बुल्गारिया के बाद ग्रीस का स्थान नीचे से दूसरा है.

ग्रीस के लिए भारत एक विशाल संभावित बाज़ार है, जहां वो अपने जैतून, फेटा चीज़, ग्रीक योगर्ट, रेट्सिना और असिर्टिको वाइन समेत तमाम खाद्य उत्पादों की बिक्री कर सकता है. ये तमाम उत्पाद ग्रीस के कुल निर्यात का एक तिहाई से अधिक हिस्सा हैं. ग्रीस में भारतीय कंपनियों के लिए बुनियादी ढांचे के बहुत सारे अवसर भी मौजूद हैं. 2017 में 8.5 करोड़ यूरो के क्रेते हवाई अड्डा परियोजना के लिए GMR की कामयाब बोली ने इसके लिए रास्ता साफ़ किया है. भले ही भारतीय कारोबार जगत सालाना थेसालोनिकी अंतरराष्ट्रीय मेले में नियमित रूप से हिस्सा लेता रहा है, लेकिन द्विपक्षीय निवेश, क्षमता से कम रहा है. ग्रीस को अपने फार्मास्यूटिकल्स, नवीकरणीय ऊर्जा, टेक्नोलॉजी और कृषि समेत तमाम रणनीतिक क्षेत्रों में भारतीय निवेश की उम्मीद है. उसे आर्थिक कायाकल्प से जुड़े ग्रीस 2.0 प्लान के अनुरूप ऐसे निवेश की आशा है.

ग्रीस की अर्थव्यवस्था में पर्यटन क्षेत्र का हिस्सा 25 प्रतिशत है और यूरोप का ये देश भारतीयों के बीच एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल के रूप में उभर रहा है. सीधी उड़ानों से व्यापार और पर्यटन संबंधों में मज़बूती आएगी. इसके अलावा, तक़रीबन 20,000 भारतीय पहले से ही ग्रीस में काम करते हैं और वहीं रहते हैं. कामगारों के सुचारू प्रवाह को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रवासन और गतिशीलता समझौते को जल्द ही अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है.

प्राचीन सभ्यताओं से रणनीतिक भागीदारों तक

यूरोप में भारत की व्यापक रणनीति वहां की परंपरागत शक्तियों फ्रांस और जर्मनी से परे अपने रणनीतिक छाप को आगे बढ़ाने की है. ग्रीस की धुरी भारत की इसी रणनीति का हिस्सा है. हाल के वर्षों में भारत ने यूरोप में अपनी साझेदारियों में विविधता लाई है. नॉर्डिक देशों, मध्य और पूर्वी यूरोपीय राष्ट्रों के साथ-साथ ब्रुसेल्स स्थित यूरोपीय संघ के साथ जुड़ाव के माध्यम से इस क़वायद को अंजाम दिया गया है.

रणनीतिक साझेदारी का संस्थागत तंत्र दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्रों (भारत और ग्रीस) के लिए सक्षमकारी साबित होगा. इसके ज़रिए वो अनेक क्षेत्रों में अपने तालमेलों को निरंतर जुड़ाव में तब्दील कर सकेंगे. ये दोनों पक्षों के लिए फ़ायदे का सौदा साबित होगा. ग्रीस के प्रधानमंत्री मित्सोताकिस भी कह चुके हैं कि इसके लिए “संकेत शुभ और अनुकूल हैं.”


शायरी मल्होत्रा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.

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