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Published on Sep 17, 2025 Updated 1 Days ago

वैश्विक व्यापार को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त करने, आपूर्ति श्रृंखलाओं को सशक्त करने और कम कार्बन उत्सर्जन वाले समुद्री परिवहन में परिवर्तन को समावेशी व न्यायसंगत बनाने के लिए ग्रीन शिपिंग गलियारे बेहद महत्वपूर्ण विकल्प के रूप में उभर रहे हैं.

हरित समुद्री व्यापारिक गलियारे के लिए एक वैश्विक रूपरेखा!

Image Source: गेटी

यह लेख सागरमंथन एडिट 2025 निबंध श्रृंखला का हिस्सा है.


वैश्विक व्यापार में माल परिवहन के लिए समुद्री मार्गों और जहाजों की भागीदारी 80 प्रतिशत से अधिक है. इससे साफ ज़ाहिर होता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और व्यापार की मज़बूती के लिए समुद्री परिवहन की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है. वर्तमान में जहां स्वेज और पनामा नहरों से लेकर लाल सागर तक समुद्री परिवहन में कई दिक़्क़तें हैं, वहीं जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों और लगातार बढ़ रहे भू-राजनीतिक तनाव की वजह से भी समुद्री मार्गों के ज़रिए होने वाले ट्रांसपोर्ट में परेशानियां आ रही हैं. ऐसे में तमाम देश माल परिवहन के लिए समुद्री मार्गों के रणनीतिक प्रबंधन को लेकर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. इसके अलावा, तमाम दूसरी चीजें, जैसे कि अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) का डीकार्बोनाइजेशन एजेंडा, हरित और स्वच्छ ईंधन, ऑटोमेशन और जलवायु-अनुकूल बंदरगाहों में प्रगति भी समुद्री परिवहन सेक्टर को एक नया आयाम प्रदान कर रहे हैं. ये बदलाव हरित समुद्री व्यापारिक गलियारे को बढ़ावा देने के लिए हैं। हरित समुद्री व्यापारिक गलियारे यानी हरित ऊर्जा से संचालित समुद्री मार्गों का विकास है. हरित समुद्री व्यापारिक गलियारे ऐसे विशेष समुद्री मार्ग हैं, जहां उन जहाजों को संचालित किया जाता है, जिनसे शून्य कार्बन उत्सर्जन होता है, जिनमें वैकल्पिक ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है और ऊर्जा दक्षता के उपायों को अपनाया जाता है. यानी इन ख़ास समुद्री मार्गों को डीकार्बोनाइजेशन को बढ़ावा देने के लिहाज़ से विकसित किया जाता है. अलग-अलग देशों की सरकारों और उद्योगों ने इस दिशा में साझा प्रयास किए हैं, जिनसे हरित ऊर्जा से संचालित समुद्री मार्गों के विकास को गति मिली है.

समुद्री मार्गों को हरित कॉरिडोर्स में बदलने में दुनिया भर के देश प्रयासरत हैं. एक ओर सिंगापुर एक वैश्विक ग्रीन फ्यूल हब के रूप में उभर रहा है, वहीं दूसरी तरफ नॉर्वे शून्य-उत्सर्जन पोत टेक्नोलॉजी के मामले में अग्रणी देशों में शुमार हो गया है. इसी तरह से चिली पैसिफिक ग्रीन कॉरिडोर्स में अग्रणी है, वहीं समुद्र तटीय अफ्रीकी देश अपने बंदरगाह विस्तार को ब्लू इकोनॉमी ग्रोथ के साथ जोड़ने में अग्रसर हैं. ज़ाहिर है कि विश्व भर में किए जा रहे इन प्रयासों का उद्देश्य एक ही है, यानी कम कार्बन उत्सर्जन वाले और लचीले शिपिंग कॉरिडोर्स का निर्माण, जो कि अब टिकाऊ समुद्री व्यापार के लिए अनिवार्य हो गए हैं.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र की बात की जाए, तो वहां समुद्री कनेक्टिविटी बेहद अहम है और क्षेत्र के राष्ट्रों की आर्थिक मज़बूती व क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से बहुत महत्वपूर्ण है. इस क्षेत्र में जहां ऑस्ट्रेलिया अपने बंदरगाहों को अपग्रेड कर रहा है, ताकि एशियाई आपूर्ति श्रृंखलाओं के साथ बेहतर तालमेल स्थापित कर सके, वहीं पैसिफिक आइलैंड के कई दूसरे राष्ट्र भी समुद्री परिवहन की लागत और कार्बन उत्सर्जन कम करने में जुटे हुए हैं, साथ ही कम कार्बन उत्सर्जन वाले अंतर-द्वीपीय समुद्री जहाजों का संचालन कर रहे हैं. इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के न्यूज़ीलैंड की बात करें, तो उसका व्यापार भी मुख्य रूप से समुद्री मार्गों के ज़रिए ही होता है. इतना ही नहीं, जिस प्रकार से हवाई माध्यमों से माल ढुलाई की लागत बढ़ रही है और उसमें कार्बन उत्सर्जन भी बहुत ज़्यादा होता है, उसे देखते हुए आने वाले दिनों में न्यूज़ीलैंड की समुद्री मार्गों पर निर्भरता और ज़्यादा बढ़ सकती है. ऐसे में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के ओशिनिया राष्ट्रों के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार तक पहुंच सुनिश्चित करने, जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने और वैश्विक उथल-पुथल से आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित रखने के लिहाज़ से लचीले और हरित शिपिंग कॉरिडोर्स का निर्माण बेहद अहम होगा.

जिस प्रकार से हवाई माध्यमों से माल ढुलाई की लागत बढ़ रही है और उसमें कार्बन उत्सर्जन भी बहुत ज़्यादा होता है, उसे देखते हुए आने वाले दिनों में न्यूज़ीलैंड की समुद्री मार्गों पर निर्भरता और ज़्यादा बढ़ सकती है. ऐसे में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के ओशिनिया राष्ट्रों के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार तक पहुंच सुनिश्चित करने, जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने और वैश्विक उथल-पुथल से आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित रखने के लिहाज़ से लचीले और हरित शिपिंग कॉरिडोर्स का निर्माण बेहद अहम होगा.

अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार मार्गों को वर्तमान में हरित ऊर्जा से संचालित होने वाले शिपिंग गलियारों में बदल कर, डिजिटल लॉजिस्टिक्स को अपनाकर और साझा परिचालन को बढ़ावा देकर एक नया स्वरूप दिया जा रहा है. लेकिन वैश्विक दक्षिण के ज़्यादातर देश विकसित देशों के इन प्रयासों के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं और अपनी सीमित डिजिटल क्षमता व स्वच्छ ईंधन व बंदरगाहों को अपग्रेड करने के लिए ज़रूरी फंड की कमी के चलते पिछड़ते जा रहे हैं. ऐसे में पूरे क्षेत्र में एक मज़बूत, सुव्यवस्थित और हरित समुद्री परिवहन प्रणाली का निर्माण नहीं हो पा रहा है. यानी विकसित राष्ट्र तो इसमें अपनी सशक्त भागीदारी निभा रहे हैं, लेकिन ग्लोबल साउथ के कई विकासशील देश इसमें पीछे छूट जा रहे हैं. इससे विकसित देशों को ज़्यादा लाभ हो रहा है और कहीं न कहीं वैश्विक असमानता बढ़ रही है. 

माल परिवहन लचीलेपन को जलवायु कूटनीति से जोड़ना

देखा जाए तो हरित समुद्री व्यापारिक गलियारे सिर्फ़ उन्नत इन्फ्रास्ट्रक्चर का ही प्रतीक नहीं हैं, बल्कि यह जलवायु कूटनीति के भी सशक्त माध्यम बन गए हैं. ज़ाहिर है कि जब व्यापार और जलवायु प्राथमिकताओं को परस्पर जोड़कर आगे बढ़ा जाता है, तो इससे न केवल स्वच्छ-ईंधन से जुड़े साझा बुनियादी ढांचे का निर्माण संभव होता है, बल्कि अंतर-संचालनीय डिजिटल और क़ानूनी मापदंड़ों के साथ ही दीर्घकालिक सीमा-पार सहयोग भी विकसित होता है. उदाहरण के तौर पर पश्चिम अफ्रीका में घाना अंतर्राष्ट्रीय समुद्र संगठन (IMO) और दूसरे क्षेत्रीय हितधारकों के साथ मिलकर हरित नौवहन के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना बना रहा है. घाना की इस पहल का मकसद तटीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए समुद्री परिवहन में कार्बन उत्सर्जन कम करना और टिकाऊ व जलवायु अनुकूल बंदरगाहों एवं समुद्री गतिविधियों को प्रोत्साहित करना है. इसी तरह से दूसरे व्यापारिक साझेदार देश अपने रणनीतिक निर्यात संबंधों को सशक्त करने के लिए हरित शिपिंग मार्गों का इस्तेमाल कर सकते हैं. जैसे कि भारत और न्यूज़ीलैंड, दोनों ही बेहद व्यस्त समुद्री मार्गों के ज़रिए दक्षिण पूर्व एशिया को कृषि और बागवानी उत्पादों का निर्यात करते हैं. अगर विभिन्न राष्ट्रों की ओर से स्वच्छ-ईंधन की आपूर्ति और बंदरगाहों के डिजिटलीकरण से जुड़े मानकों पर बेहतर सामंजस्य स्थापित किया जाता है, इससे जहां आपूर्ति-श्रृंखलाओं का लचीलापन बढ़ सकता है, बल्कि साझा बाज़ारों में जलवायु विश्वसनीयता यानी जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से प्रभावी तरीक़े से निपटने के भरोसे को भी मज़बूती मिल सकती है.

कुछ बुनियादी सिद्धांत है, जिनके ज़रिए प्रभावशाली और सफल ग्रीन शिपिंग गलियारे उपयोगिता, कार्यक्षमता और भविष्य की ज़रूरतों के बीच तालमेल बनाते हैं. कहने का मतलब यह है कि ये हरित शिपिंग कॉरिडोर किसी विशिष्ट तकनीक़ से बंधे रहने के बजाए उन्नत टेक्नोलॉजी को अपनाने के लिए खुले होते हैं. यानी ये समुद्री मार्ग स्वच्छ ऊर्जा, डिजिटल और लॉजिस्टिक्स प्रणालियों के साथ तो एकीकृत होते ही हैं, साथ ही अलग-अलग हितधारकों की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए खुद को बेहतर समुद्री संचालन नीति के मुताबिक़ भी ढालते हैं. ये कॉरिडोर न केवल आर्थिक लिहाज़ से व्यावहारिक होते हैं, बल्कि नियम-क़ानूनों और नियामक निकायों के दिशानिर्देशों के साथ भी बेहतर सामंजस्य स्थापित करते हैं. इसके अलावा, सामने आने वाली रुकावटों का सामना करने के लिए भी पूरी तरह से तैयार रहते हैं. इन हरित गलियारों के विकास में सभी हितधारकों और देशों की समान भागीदारी सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी है. यानी लक्षित वित्तपोषण, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण के दौरान वैश्विक दक्षिण के देशों की स्थिति और आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए उन्हें प्राथमिकता देना चाहिए, ताकि वे भी इस बदलाव में अपनी सहभागिता निभाएं, न कि पीछे-पीछे चलें. हालांकि, हरित समुद्री गलियारों के विकास में यह चुनौती क़ायम है. ज़ाहिर है कि वैश्विक दक्षिण के देशों की भागीदारी के लिए इस तरह की गंभीर कोशिशें नहीं किए जाने की वजह से वे ग्रीन शिपिंग परिवर्तन की प्रक्रिया में शामिल नहीं हो पाते हैं और इसके लिए नीति निर्माता बनने बजाय नीतियों और नियमों को मानने वाले बनकर रह जाते हैं. अगर हरित समुद्री मार्गों के विकास के दौरान इन बातों पर ध्यान दिया जाता है और हर क़दम की निगरानी की जाती है, तो इससे न सिर्फ़ पारदर्शिता बढ़ेगी और जवाबदेही सुनिश्चित होगी, बल्कि इन गलियारों को लेकर भरोसा मज़बूत होगा, साथ ही इनका तेज़ी गति से विकास भी सुनिश्चित होगा.

ग्रीन शिपिंग को आर्थिक अनिवार्यता बनाना

ग्रीन शिपिंग गलियारे बनाने की दिशा में अहम क़दम उठाते हुए COP26 के दौरान 20 से ज़्यादा देशों ने क्लैडबैंक डिक्लेरेशन पर हस्ताक्षर किए थे. इस घोषणा के तहत वर्ष 2025 तक कम से कम छह शून्य-कॉर्बन उत्सर्जन समुद्री गलियारे स्थापित करने का संकल्प लिया गया था. क्लैडबैंक घोषणा में विकसित और विकासशील दोनों राष्ट्रों ने हस्ताक्षर किए हैं. इससे ज़ाहिर होता है कि वैश्विक स्तर पर सभी देश मिलकर समुद्री परिवहन को कार्बन मुक्त करना चाहते हैं. इस दिशा में काफ़ी कुछ किया भी गया है और कई समुद्री मार्ग कार्बन उत्सर्जन से पहले ही मुक्त हो चुके हैं या फिर वहां इस दिशा में तेज़ी से काम किया जा रहा है. उदाहरण के तौर पर सिंगापुर-रॉटरडैम गलियारा अमोनिया और मेथनॉल के लिए स्वच्छ-ईंधन आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण कर रहा है. इसी तरह से होलीहेड-डबलिन ग्रीन कॉरिडोर पर मेथनॉल से चलने वाले समुद्री जहाजों और उन्हें बंदरगाहों से बिजली की आपूर्ति देने का परीक्षण किया जा रहा है. इसी प्रकार से सिंगापुर तक फैला लॉस एंजिल्स-शंघाई ग्रीन शिपिंग कॉरिडोर डिजिटल पोर्ट प्रबंधन, शून्य कार्बन उत्सर्जन वाले जहाजों और स्वच्छ-ईंधन आपूर्ति को एकीकृत करने की दिशा में तेज़ी से काम कर रहा है. इसके अलावा, कनाडा का ग्रेट लेक्स - सेंट लॉरेंस नेटवर्क नेशनल ग्रीन मैरीन फ्रेमवर्क के अंतर्गत पायलट प्रोजेक्ट के रूप में कम कार्बन उत्सर्जन वाले समुद्री मार्गों पर जहाजों का संचालन कर रहा है. भारत भी इस दिशा में अग्रसर है और भारत का इनलैंड एवं कोस्टल नेटवर्क अगले पांच सालों में सभी जहाजों को नवीकरणीय ऊर्जा से चलाने में सक्षम बनाने में जुटा है. इसके लिए जहां हाइड्रोजन और सौर ऊर्जा के उत्पादन में निवेश किया जा रहा है, वहीं मैरीटाइम डेवलपमेंट फंड के माध्यम से ग्रीन पोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास किया जा रहा है.

हरित समुद्री व्यापारिक गलियारे सिर्फ़ उन्नत इन्फ्रास्ट्रक्चर का ही प्रतीक नहीं हैं, बल्कि यह जलवायु कूटनीति के भी सशक्त माध्यम बन गए हैं.

कुल मिलाकर दुनिया भर में हरित समुद्री मार्गों और बुनियादी ढांचे के विकास में तेज़ी आ रही है. पूरी दुनिया में चल रही इन पहलों को अनिवार्य बनाने के लिए यानी समुद्र के ज़रिए होने वाले परिवहन को कार्बन उत्सर्जन मुक्त बनाने के लिए इन्हें जितना पर्यावरणीय दायित्व से जोड़ने की ज़रूरत है, उतना ही व्यापक रणनीतिक आर्थिक अवसर के रूप में भी तैयार करने की आवश्यकता है. न्यूज़ीलैंड के एओटेरोआ सर्कल की ताज़ा फ्यूचर फिट शिपिंग रिपोर्ट के विश्लेषण में ग्रीन शिपिंग गलियारों को रणनीतिक आर्थिक अवसरों से जोड़ने की बात पर ज़ोर दिया गया है. हालांकि, इस विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि समुद्री मार्ग से न्यूज़ीलैंड का 80 प्रतिशत निर्यात ऐसे देशों में किया जाता है, जो जलवायु संबंधी जोख़िमों और प्रभावों के बारे में जानकारी मांगते हैं. ऐसे में अगर न्यूज़ीलैंड उन्नत ग्रीन शिपिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण में देरी करता है, तो उसकी माल ढुलाई की कार्बन लागत बढ़ जाएगी और इस वजह से इस क्षेत्र में उसके वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ने का भी ख़तरा है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऐसा होने पर वर्ष 2050 तक न्यूज़ीलैंड के माल निर्यात में 5 से 15 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है.

 

ग्रीन समुद्री गलियारों के विकास में नई तकनीक़ों का उपयोग बेहद ज़रूरी है और इस रिपोर्ट से साफ ज़ाहिर होता है कि हरित शिपिंग को व्यापार, ऊर्जा और इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी रणनीतियों में शामिल करके ही समुद्री माल ढुलाई के मामले में एक स्थायी बढ़त हासिल की जा सकती है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जो देश हरित समुद्री परिवहन की दिशा में अभी क़दम उठाते हैं और इसके मुताबिक़ बुनियादी ढांचा विकसित करते हैं, वे भविष्य में न सिर्फ़ बाज़ार तक अपनी बेहतर पहुंच बनाए रख सकते हैं, बल्कि उत्सर्जन नियमों के कारण पैदा होने वाले व्यापारिक विवादों से भी बच सकते हैं. इसके अलावा, आर्थिक मज़बूती के लिए स्वच्छ ईंधन से संचालित परिवहन के साधनों का इस्तेमाल कर सकते हैं.

 

समावेशी ग्रीन शिपिंग गलियारे: टिकाऊ आर्थिक समृद्धि के लिए एक साझा इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण

 

  • समानता और लचीलापन के लिहाज़ से गलियारों का निर्माण करना: हरित समुद्री व्यापारिक गलियारे के विकास के दौरान लचीलेपन और समानता का विशेष फोकस की ज़रूरत है. यदि प्रमुख समुद्री परिवहन मार्गों पर देशों की तरफ से सामूहिक तौर पर संसाधनों को जुटाया जाता है और इन्फ्रास्ट्रक्चर को साझा किया जाता है, तो निश्चित रूप से स्वच्छ ईंधन के उपयोग को व्यावसायिक रूप से लाभदायक बनाया जा सकता है. हालांकि, इस दिशा में निवेश को आकर्षित करने के लिए कार्बन उत्सर्जन के न्यायसंगत नियम बनाने, पूरे कॉरिडोर में स्वच्छ ईंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करने और पारस्परिक रूप से संचालित होने वाली बंदरगाह प्रणालियों के निर्माण को लेकर नीतिगत सुधार ज़रूरी हैं. इतना ही नहीं, एक ग्रीन शिपिंग कॉरिडोर के विकास में ख़ास तौर पर वैश्विक दक्षिण के निर्यात पर निर्भर छोटे देशों और द्वीपीय राष्ट्रों की ज़रूरतों का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए. ऐसा करने पर ही ग्लोबल साउथ के देश इस बदलाव में अपनी पूरी भागीदारी निभा पाएंगे और उन्हें इसका पूरा लाभ भी मिल सकेगा.

 पैसिफिक ब्लू शिपिंग पार्टनरशिप इसका बेहतरीन उदाहरण है. यह साझेदारी पैसिफिक आइलैंड के राष्ट्रों को न्यूज़ीलैंड के साथ जोड़ती है. इसके अलावा, यह साझेदारी न केवल स्वच्छ नौवहन के साझा लक्ष्यों को आगे बढ़ाती है, बल्कि दूर-दराज़ के क्षेत्रों में स्थित शिपिंग उद्योग को उच्च परिवहन लागत से निजात दिलाती है, साथ ही जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को भी कम से कम करने में मदद करती है.

  • क्षेत्रीय साझेदारियों को सशक्त करना: ग्रीन शिपिंग को ज़्यादा सुलभ और आर्थिक रूप से लाभदायक बनाने में क्षेत्रीय सहयोग बहुत कारगर साबित हो सकता है. इससे जहां प्रौद्योगिकी हस्तांतरण आसान हो सकता है, वहीं साझा निवेश को बढ़ावा मिलने के साथ ही एकसमान मानक निर्धारित करने में भी मदद मिल सकती है. पैसिफिक ब्लू शिपिंग पार्टनरशिप इसका बेहतरीन उदाहरण है. यह साझेदारी पैसिफिक आइलैंड के राष्ट्रों को न्यूज़ीलैंड के साथ जोड़ती है. इसके अलावा, यह साझेदारी न केवल स्वच्छ नौवहन के साझा लक्ष्यों को आगे बढ़ाती है, बल्कि दूर-दराज़ के क्षेत्रों में स्थित शिपिंग उद्योग को उच्च परिवहन लागत से निजात दिलाती है, साथ ही जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को भी कम से कम करने में मदद करती है. इसी तरह से भारत को नवीकरणीय ऊर्जा से संचालित बंदरगाहों और जहाजों को ऐसी साझेदारियों से जोड़ा जा सकता है. ऐसा करने पर जहां भारत की वैश्विक बाज़ार तक पहुंच बढ़ेगी, वहीं जानकारी व तकनीक़ के आदन-प्रदान को भी बढ़ावा मिलेगा. इतना ही नहीं, हरित समुद्री गलियारों के विकास और हरित परिवहन में सभी देशों व हितधारकों की व्यापक भागीदारी के लिए पुराने और अप्रचलित पोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर को हटाना होगा और स्वच्छ ईंधन तक बेहतर पहुंच स्थापित करनी होगी.

  • विकासशील देशों में वित्तपोषण बढ़ाने को प्राथमिकता: ग्रीन शिपिंग गलियारों का विकास सुनिश्चित करने के लिए विकासशील देशों में इससे जुड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास यानी बंदरगाहों के उन्नयन, स्वच्छ ईंधन आपूर्ति श्रृंखलाओं को मज़बूत करने और बंदरगाह प्रणाली के डिजिटलीकरण को बढ़ावा देने के लिए वित्तपोषण बढ़ाए जाने की आवश्यकता है. इसके लिए बहुपक्षीय विकास बैंकों, क्लाइमेट फंड्स और उद्योग-आधारित फ्रेमवर्कों के ज़रिए वित्तपोषण को बढ़ाया जाना चाहिए. जब सोच-समझकर कर उठाए गए क़दमों और नई तकनीक़ को समाहित करने वाली रणनीतियों को व्यापार, ऊर्जा और इन्फ्रास्ट्रक्चर से संबंधित नीतियों के साथ जोड़ा जाता है, तो इससे जलवायु कार्रवाई में भी फायदा होता है और यह आर्थिक रूप से भी लाभदायक होता है. इसके अलावा, इस तरह के निवेश से जहां ग्रीन शिपिंग परिवर्तन में तेज़ी आती है, वहीं आपूर्ति-श्रृंखलाओं को भी मज़बूती मिलती है. इस तरह से लक्षित निवेश से व्यापक स्तर पर रोज़गार के मौके पैदा होते हैं और विकासशील देशों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कम कार्बन उत्सर्जन वाली समुद्री अर्थव्यवस्था में अपनी सक्रिय भागीदार का भी अवसर मिलता है.

  • भविष्य की ज़रूरतों के मुताबिक़ समावेशी हरित गलियारों का कार्यान्वयन: हरित समुद्री व्यापारिक गलियारे के विकास में यदि समावेशी नज़रिए यानी सभी की समान सहभागिता का ध्यान रखा जाता है, तो निसंदेह तौर पर यह छोटे-बड़े सभी देशों की प्रगति में क्रांतिकारी साबित हो सकता है. कहने का मतलब है कि ये हरित नौवहन गलियारे न केवल भागीदार देशों में आर्थिक लचीलापन बढ़ा सकते हैं, बल्कि जलवायु विश्वसनीयता को भी सशक्त कर सकते हैं और देशों की आपूर्ति श्रृंखलाओं को सशक्त कर सकते हैं. इसके अलावा, ये कॉरिडोर यह सुनिश्चित करके कि हरित समुद्री परिवहन के दौरान कार्बन उत्सर्जन में जो कमी आती है, उसका फायदा विकसित और विकासशील दोनों देशों को समान रूप से मिले, वैश्विक समानता को भी बढ़ावा दे सकते हैं. ज़ाहिर है कि न्यूज़ीलैंड, भारत, सिंगापुर, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों ने अपने क़दमों से यह साबित किया है कि मैरीटाइम डिकार्बोनाइजेशन के मुद्दे को व्यापार और जलवायु नीति के केंद्र में लाया जा सकता है. इस दिशा में अब अगला क़दम वैश्विक दक्षिण के देशों की इसमें सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए उठाना है, जिससे वे एक निम्न-कार्बन समुद्री व्यवस्था के निर्माण में अपनी सक्रिय भूमिका निभा पाएं और नीति निर्धारण से लेकर उसके कार्यान्वयन तक उनकी भूमिका हो.

निष्कर्ष

आख़िर में, वैश्विक स्तर पर समुद्री परिवहन में परिवर्तन अब बेहद ज़रूरी हो गया है और कोई भी देश इससे खुद को अलग नहीं कर सकता है, यानी कहीं न कहीं यह सभी राष्ट्रों के लिए एक रणनीतिक प्राथमिकता बन चुका है. अच्छी तरह से व्यवस्थित और विकसित हरित समुद्री व्यापारिक गलियारे, जिनके विकास में समावेशिता यानी सभी हितधारकों के हितों और भागीदारी का पूरा ध्यान रखा गया हो, वे ही नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन और व्यापार लचीलेपन के बीच के अंतर को समाप्त कर सकते हैं. इतना ही नहीं, ऐसे हरित समुद्री परिवहन गलियारे ही यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि स्वच्छ, सक्षम और न्यायसंगत समुद्री प्रणालियां भविष्य की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का आधार बने. कुल मिलाकर, समुद्री परिवहन को कार्बन मुक्त और जलवायु अनुकूल बनाने के लिए वैश्विक स्तर पर साझा प्रयास करने का समय अब आ गया है. यानी हरित समुद्री व्यापारिक गलियारे के विकास में नई तकनीक़ को अपनाने और वित्तपोषण व सरकारी नीतियों के ज़रिए अब यह सुनिश्चित करना ज़रूरी हो गया है कि कोई भी देश, चाहे वो छोटा हो, अविकसित हो या आर्थिक रूप से कमज़ोर हो, वह न केवल कम कार्बन उत्सर्जन वाले समुद्री परिवहन के विकास में सहभागी बने, बल्कि इससे होने वाले फायदे भी उसे मिलें, जिससे वह भी आर्थिक समृद्धि की ओर अग्रसर हो सके.


इज़ी फेनविक न्यूज़ीलैंड के NEXT फाउंडेशन में फेलो हैं और दि एओटेरोआ सर्कल के बोर्ड में कार्यरत हैं.

अनुषा केसरकर गावनकर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक डिप्लोमेसी में सीनियर फेलो हैं.

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