Author : Abhishek Mishra

Published on Jun 04, 2021 Updated 0 Hours ago

लामू बंदरगाह ऐसे समय में शुरू हुआ है जब कोविड-19 महामारी से जुड़ी चुनौतियों की वजह से चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की दीर्घकालीन व्यावहारिकता की छानबीन हो रही है.

हिंद महासागर में एक चीनी निर्मित बंदरगाह: केन्या के लामू बंदरगाह की कहानी

केन्या ने हाल में सबसे नये मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट लामू बंदरगाह की शुरुआत की. ये परियोजना लामू (केन्या में मोम्बासा के उत्तर में एक छोटा द्वीप समूह), साउथ सूडान और इथियोपिया के बीच एक महत्वाकांक्षी ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर का हिस्सा है. लामू बंदरगाह के बारे में माना जाता है कि ये केन्या सरकार के विज़न 2030 विकास योजना की आधारशिला है और अब इसका प्रचार ‘गेम चेंजर’ प्रोजेक्ट के तौर पर किया जा रहा है. लामू बंदरगाह 23 अरब डॉलर के लामू पोर्ट-साउथ सूडान-इथियोपिया ट्रांसपोर्ट (एलएपीएसएसईटी) कॉरिडोर का हिस्सा है और इसका निर्माण चाइना कम्युनिकेशन्स कंस्ट्रक्शन कंपनी ने किया है. इस प्रोजेक्ट के तहत बनने वाले 32 लंगरों में से तीन का निर्माण 36.7 करोड़ अमेरिकी डॉलर की लागत से किया गया है. इस ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के तहत स्टैंडर्ड गेज की रेल लाइन; एक तेल पाइपलाइन और रिफाइनरी; रोड नेटवर्क; इसिओलो, लामू, लोकिचोगियो में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा; मांडा खाड़ी के लामू में बंदरगाह; और रिसॉर्ट शहर शामिल हैं. 

लामू पोर्ट प्रोजेक्ट की कब और क्यों कल्पना की गई? 

लामू पोर्ट मोम्बासा के बाद केन्या का दूसरा गहरे पानी वाला बंदरगाह बनने जा रहा है. गहरे पानी के दूसरे बंदरगाह की योजना 1970 के दशक के मध्य से बनाई जा रही है. उस वक़्त तत्कालीन ऊर्जा और संचार मंत्रालय ने केन्या के समुद्री तट पर गहरे पानी के एक बंदरगाह की स्थापना के लिए अध्ययन की शुरुआत की थी. दूसरे बंदरगाह की स्थापना की मुख्य वजह मोम्बासा बंदरगाह पर निर्भरता को कम करना था क्योंकि कारोबार की बढ़ती मात्रा और मांग के कारण मोम्बासा बंदरगाह पर दबाव बढ़ता जा रहा था. लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति में कमी, परियोजना की भारी-भरकम लागत और अलग-अलग मंत्रालयों के बीच लड़ाई ने इस परियोजना को क़रीब 30 वर्षों तक रोके रखा. इस परियोजना ने 2012 में आकार लिया जब इथियोपिया, साउथ सूडान और केन्या के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने बंदरगाह की आधारशिला रखी. सभी तीनों देश अपने-अपने हिस्से के प्रोजेक्ट का पैसा अपने राष्ट्रीय बजट से देने के लिए तैयार हुए. 

जब पहली बार प्रोजेक्ट के बारे में सोचा गया तो लामू पोर्ट का उद्देश्य चारों तरफ़ ज़मीन से घिरी पूर्वी अफ्रीका की अर्थव्यवस्थाओं को वैश्विक व्यापार के रूट से जोड़ना था. इस पोर्ट का एक और मक़सद वैकल्पिक रूट विकसित करने में मदद करना था, ख़ास तौर से साउथ सूडान के तेल के लिए भारत और सुदूर पूर्व तक जाने का रूट क्योंकि ज़्यादातर तेल ग्रेटर नील तेल पाइपलाइन से सूडान पोर्ट तक भेजा जाता है. यहां तक कि इथियोपिया भी अपने सामान के निर्यात के लिए मुख्य रूप से जिबूती, बेरबेरा (सोमालीलैंड) पोर्ट पर निर्भर है. इससे भी बढ़कर, इरिट्रिया से मेल-मिलाप के बाद इथियोपिया की पहुंच लाल सागर के असब और मसावा के बंदरगाहों तक भी हो गई. इसका ये नतीजा हुआ कि 2012 में प्रोजेक्ट को फिर से ज़िंदा करने तक ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर को लेकर अंतर्राष्ट्रीय लालसा कम हो गई. 

ऐसा होने से केन्या को न सिर्फ़ अपने उत्पादों के लिए बड़े बाज़ार तक पहुंचने में मदद मिलेगी बल्कि लामू पोर्ट के ज़रिए दूसरे देशों तक कार्गो के आने-जाने से उसे राजस्व का भी फ़ायदा होगा. 

हालांकि, पूर्वी अफ्रीका के समुद्री तट पर कई बंदरगाह हैं जिसकी वजह से पूर्वी और मध्य अफ्रीका के दूर-दराज़ के इलाक़ों में ज़्यादा सप्लाई चेन और लॉजिस्टिक कॉरिडोर की ज़रूरत है क्योंकि आने वाले दशकों में यहां जनसंख्या तेज़ी से बढ़ने वाली है. लामू पोर्ट प्रोजेक्ट और एलएपीएसएसईटी कॉरिडोर आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी पर रणनीतिक फ़ैसले लेने के महत्व को दर्शाते हैं. 

लामू पोर्ट क्या अवसर पेश करता है? 

लामू पोर्ट का उद्देश्य पूर्वी अफ्रीका और हॉर्न ऑफ अफ्रीका (सुदूर पूर्वी अफ्रीकी प्रायद्वीप)- दोनों के लिए ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक केंद्र के तौर पर केन्या के रुतबे को बढ़ाना है. ये पोर्ट सामानों को एक जगह से दूसरी जगह भेजने के प्रमुख केंद्र के रूप में काम करेगा और उम्मीद जताई जा रही है कि दक्षिण अफ्रीका में डरबन और हॉर्न ऑफ अफ्रीका में जिबूती पोर्ट के साथ इसका मुक़ाबला होगा. मोम्बासा पोर्ट की 15 मीटर गहराई के मुक़ाबले 17.5 मीटर की गहराई के साथ लामू पोर्ट उन बड़े कंटेनर जहाज़ों के संचालन के लिए उपयुक्त है जो मोम्बासा पोर्ट पर नहीं उतर पाते. ये भी संभावना जताई जा रही है कि लामू पोर्ट का ट्रैफिक 2030 तक 2 करोड़ 39 लाख टन हो जाएगा जिसमें साउथ सूडान और इथियोपिया से आने वाली मांग शामिल है. 

लामू पोर्ट के शुरू हो जाने के साथ केन्या पोर्ट्स अथॉरिटी ने केन्या रेवेन्यू अथॉरिटी के साथ मिलकर कई तरह के प्रोत्साहनों का एलान किया है जिनमें एक साल के लिए रियायती टैरिफ शामिल है जिससे पोर्ट के ग्राहक यहां की सुविधा का इस्तेमाल कर सकें. लामू या मोम्बासा में दूसरी शिपिंग लाइन का टैरिफ 50 प्रतिशत लगेगा. केन्या गोदी शुल्क और सामानों को चढ़ाने या उतारने  की सेवा में भी 40 प्रतिशत की छूट दे रहा है. इसके साथ ही 30 दिनों का मुफ़्त भंडारण समय भी दे रहा है. इन पेशकश के द्वारा केन्या सरकार को उम्मीद है कि लामू और मोम्बासा पोर्ट अफ्रीका के सुदूर इलाक़े के लिए प्रमुख एंट्री और एग्ज़िट प्वाइंट बन जाएगा. 

केन्या सरकार ने बार-बार लामू पोर्ट प्रोजेक्ट की आर्थिक व्यावहारिकता और बढ़े हुए व्यापार, एकीकरण और इंटरकनेक्टिविटी के ज़रिए क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को बदलने में इसके सामर्थ्य के पक्ष में दलील दी है. रोड, रेल और पाइपलाइन नेटवर्क के ज़रिए पोर्ट को आंतरिक इलाक़ों से जोड़ा जाएगा. इस तरह ये प्रोजेक्ट केन्या, साउथ सूडान और इथियोपिया के कुछ हिस्सों को जोड़कर केन्या में परिवहन के खर्च को घटाएगा. ऐसा होने से केन्या को न सिर्फ़ अपने उत्पादों के लिए बड़े बाज़ार तक पहुंचने में मदद मिलेगी बल्कि लामू पोर्ट के ज़रिए दूसरे देशों तक कार्गो के आने-जाने से उसे राजस्व का भी फ़ायदा होगा. 

इसका नतीजा ये हो सकता है कि स्टैंडर्ड गेज रेलवे (एसजीआर) प्रोजेक्ट, केन्या का एक और बड़ा प्रोजेक्ट जिसकी व्यावहारिकता पर सवाल उठ चुके हैं, के निर्माण के लिए चीन से लिए गए कर्ज को चुकाने में केन्या असमर्थ हो सकता है.

लेकिन दूसरे गहरे पानी के पोर्ट की आर्थिक व्यावहारिकता को लेकर कुछ अनिश्चितताएं भी बनी हुई हैं. इन अनिश्चितताओं की एक बड़ी वजह लामू और उत्तरी केन्या के बीच बुनियादी ढांचे में कमी होना है. 

लामू पोर्ट प्रोजेक्ट को लेकर बड़ी चिंताएं क्या हैं? 

कुछ सिविल सोसायटी संगठनों के अलावा उद्योग और लॉजिस्टिक के जानकार चेतावनी देते हैं कि इस पोर्ट के मुख्य इस्तेमाल को लेकर अनिश्चितता की वजह से इस सुविधा के ‘सफेद हाथी’ बन जाने का जोखिम है. लामू पोर्ट के कारोबार को बढ़ाने के लिए केन्या सरकार के फ़ैसलों की वजह से मोम्बासा पोर्ट का राजस्व कम हो सकता है. इसका नतीजा ये हो सकता है कि स्टैंडर्ड गेज रेलवे (एसजीआर) प्रोजेक्ट, केन्या का एक और बड़ा प्रोजेक्ट जिसकी व्यावहारिकता पर सवाल उठ चुके हैं, के निर्माण के लिए चीन से लिए गए कर्ज को चुकाने में केन्या असमर्थ हो सकता है.

इसके अलावा भी इस बंदरगाह के निर्माण ने भूमि अधिकार, पर्यावरण, स्थानीय आजीविका और सुरक्षा को लेकर कई चिंताओं को जन्म दिया है. केन्या का तटीय इलाक़ा लंबे समय से भूमि से जुड़े अनिर्णीत मुद्दों का सामना कर रहा है. लामू के रहने वाले बहुत कम लोगों के पास उस ज़मीन का अधिकार है जिस पर वो रहते हैं. राजनेताओं ने लगातार भूमि के स्वामित्व के मुद्दे का इस्तेमाल हिंसा फैलाने और एक समुदाय को दूसरे समुदाय से लड़ाने में किया है. स्थानीय नागरिकों ने पर्याप्त और समय पर मुआवज़े के बिना सरकार के द्वारा अनिवार्य ज़मीन अधिग्रहण की शिकायत भी की है. 

एक और बड़ा मुद्दा बंदरगाह के निर्माण के इर्द-गिर्द पर्यावरण से जुड़ी चिंताओं और इसकी वजह से आजीविका में रुकावट का है. चूंकि इस प्रोजेक्ट के तहत छिछले पानी की जगह में खुदाई और मैंग्रोव के जंगल को काटना शामिल है, ऐसे में मछली मारने के काम पर असर पड़ सकता है जो लामू की 70 प्रतिशत आबादी के लिए आमदनी का मुख्य स्रोत है. मछली मारने की जगह नहीं मिलने पर स्थानीय मछुआरों की आजीविका को ख़तरा होगा. 

आख़िर में, इस प्रोजेक्ट को लेकर सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं भी हैं. लामू काउंटी को अल-शबाब जैसे आतंकी संगठनों ने निशाना बनाया है जिसकी वजह से ये बेहद विस्फोटक इलाक़ा बन गया है. इस क्षेत्र में अल-शबाब की गतिविधियां और रणनीति साफ़ रही हैं- मज़बूत स्थिति बनाना और स्थानीय मुद्दों पर लोगों का समर्थन जुटाना. वैसे तो केन्या के रक्षा बलों द्वारा चलाए गए अभियान की वजह से हाल के वर्षों में अल-शबाब की गतिविधियां काफ़ी हद तक कम हो गई हैं लेकिन समय-समय पर और अचानक किए गए हमलों ने बंदरगाह के निर्माण पर असर डालना जारी रखा है. 

लोगों के द्वारा उठाए गए ये मुद्दे महत्वपूर्ण हैं और इन पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है क्योंकि ये लामू के निवासियों के प्रतिदिन के जीवन के कई पहलुओं पर असर डालते हैं. इसलिए केन्या सरकार का ये कर्तव्य है कि वो स्थानीय लोगों को लामू प्रोजेक्ट का सीधा हिस्सेदार और साझेदार मानकर उनकी हिस्सेदारी को बढ़ावा दे. 

सामरिक दृष्टिकोण

लामू बंदरगाह ऐसे समय में शुरू हुआ है जब कोविड-19 महामारी से जुड़ी चुनौतियों की वजह से चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की दीर्घकालीन व्यावहारिकता की छानबीन हो रही है. सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित अफ्रीका के बंदरगाह बीआरआई में एक अभिन्न भूमिका निभाते हैं और अफ्रीका के बंदरगाहों में चीन का निवेश चीन के ‘समुद्री सिल्क रोड’ का मुख्य आधार है. सेंटर फॉर स्ट्रैटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ (सीएसआईएस) के 2019 के एक अध्ययन में सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित 46 बंदरगाहों में वित्तीय, निर्माण और संचालन के काम में चीन की कंपनियों की भूमिका की पहचान की गई. इनमें निवेश के ज़रिए चीन को न सिर्फ़ बड़े बाज़ार तक पहुंचने में मदद मिली बल्कि इसके ज़रिए चीन को राजनीतिक दबाव बनाने का भी मौक़ा मिला. ऐसा करके चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) की सुरक्षा सक्रियता बढ़ी और चीन की तकनीक और विशेषज्ञता पर निर्भरता स्थापित करने में भी मदद मिली. 

लामू बंदरगाह के साथ हिंद महासागर में चीन को एक और बंदरगाह मिल गया है जहां उसकी पहुंच बिना किसी बाधा के होगी और जहां वो अपनी क्षमता को दिखा सकता है. 

चीन के द्वारा तय समय पर लामू बंदरगाह का निर्माण न सिर्फ़ विकास साझेदार के तौर पर उसकी छवि को मज़बूत बनाता है और उसका राजनीतिक असर बढ़ाता है बल्कि ये उम्मीद भी की जाती है कि इससे इस क्षेत्र की जीडीपी बढ़ोतरी में भी योगदान होगा. हिंद महासागर में पहले से एक भू-रणनीतिक प्रतिस्पर्धा चल रही है जहां क्षेत्रीय और इस क्षेत्र के बाहर की शक्तियां पूरे इलाक़े में सैन्य पहुंच और आवागमन सुनिश्चित करने के लिए मुक़ाबले में शामिल हैं. लामू बंदरगाह के साथ हिंद महासागर में चीन को एक और बंदरगाह मिल गया है जहां उसकी पहुंच बिना किसी बाधा के होगी और जहां वो अपनी क्षमता को दिखा सकता है. 

अफ्रीका के दृष्टिकोण से देखें तो बंदरगाह के विस्तार की परियोजना अफ्रीका की उन्नति और विकास को बढ़ाने के लिए ज़रूरी है क्योंकि अफ्रीका का लगभग 90 प्रतिशत निर्यात बंदरगाह पर निर्भर है. बीआरआई के ज़रिए चीन की वित्तीय मदद और निर्माण के मुक़ाबले पश्चिमी देशों की तरफ़ से किसी विश्वसनीय और प्रतिस्पर्धी विकल्प के बिना अफ्रीका के देशों से ये उम्मीद करना असंभव है कि वो चीन के क़रीब जाने की इच्छा नहीं दिखाएंगे. 

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