Published on Apr 08, 2021 Updated 0 Hours ago

19 दिसंबर 2020 को राज्यपाल ने विधेयक को मंज़ूरी दी और दो दिन बाद सरकारी राजपत्र में इसे अधिसूचित कर इस विधेयक को अधिनियम में तब्दील किया गया.

बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका अधिनियम 2020 का आलोचनात्मक मूल्यांकन

पिछले साल 10 दिसंबर 2020 को कर्नाटक विधानसभा ने बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) या बेंगलुरु नगर निगम के संचालन के लिए नया नगरपालिका विधेयक पारित किया था. 19 दिसंबर 2020 को ही राज्यपाल ने विधेयक को मंज़ूरी दी और दो दिन बाद सरकारी राजपत्र में इसे अधिसूचित कर दिया गया और इस तरह ये विधेयक अधिनियम में तब्दील हो गया. ये क़ानून विशेष रूप से राज्य की राजधानी बेंगलुरु के लिए होगा और बेंगलुरु को कर्नाटक नगर निगम (केएमसी) अधिनियम, 1976 के दायरे से बाहर करेगा जो अभी तक राज्य की सभी नगर निगमों के लिए लागू था. 

नये अधिनियम में उन कई उद्देश्यों का ज़िक्र है जो ये क़ानून हासिल करना चाहता है. सबसे पहले, जैसा कि ऊपर ज़िक्र किया गया है, ये अधिनियम बीबीएमपी के लिए स्वतंत्र क़ानून प्रदान करता है. ऐसा माना जाता है कि साझा केएमसी अधिनियम, 1976, जो राज्य की नौ अन्य नगर निगमों पर लागू होता है, बीबीएमपी के लचीलेपन को सीमित करता है. एक विचार के मुताबिक़ अपनी ख़ासियत से भरपूर बड़े शहर के लिए अपना एक स्वतंत्र क़ानून होना चाहिए. दूसरी बात है कि इस क़ानून का लक्ष्य विकेंद्रीकरण में सुधार करना है. ऐसा महसूस किया गया कि मौजूदा क़ानून महत्वपूर्ण शासन व्यवस्था के सिद्धांत से अपर्याप्त रूप से पेश आता है. 714 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र और एक करोड़ से ज़्यादा अनुमानित जनसंख्या वाले बेंगलुरु जैसे शहर के संदर्भ में बेहद विकेंद्रित सरकारी संरचना होना महत्वपूर्ण है. तीसरी बात है कि नये क़ानून में लोगों की भागीदारी का प्रावधान है. बेंगलुरु के लोग शहर की नागरिक सुविधा को लेकर बेहद मुखर रहे हैं. क़ानून से उम्मीद है कि नागरिक सुविधा को लेकर लोगों की हिस्सेदारी बीबीएमपी के काम-काज में नई ऊर्जा और विचार लेकर आएगी और सच्चे अर्थ में स्थानीय स्तर पर अधिकार देने में शासन व्यवस्था का लोकतंत्रीकरण करेगा. चौथी बात है कि, जो कारण ऊपर बताए गए हैं उन्हीं की वजह से, साझा क़ानून शहर की कार्यक्षमता को सीमित करता है. एक अलग क़ानून से उम्मीद की जाती है कि वो निर्णय लेने की क्षमता को बढ़ाएगा. आख़िरी बात है कि मौजूदा क़ानून को “प्रशासनिक और संरचनात्मक मामलों में अपर्याप्त” पाया गया है. नये क़ानून का मक़सद इन कमियों को ठीक करना है. 

ये अधिनियम बीबीएमपी के लिए स्वतंत्र क़ानून प्रदान करता है. ऐसा माना जाता है कि साझा केएमसी अधिनियम, 1976, जो राज्य की नौ अन्य नगर निगमों पर लागू होता है, बीबीएमपी के लचीलेपन को सीमित करता है.

विकेंद्रीकरण और एकीकृत लोक-हिस्सेदारी

कुछ हद तक ये भी जिज्ञासा का विषय है कि नये क़ानून में “विकेंद्रीकरण को बेहतर करने, लोक हिस्सेदारी के एकीकरण और निर्णय लेने की कुशलता सुनिश्चित करने” के आधार पर बेंगलुरु के लिए “एक स्वतंत्र विधान” की दलील दी गई है. लेकिन केएमसी अधिननियम के लक्ष्य और आशय के ब्यौरे में इसके ठीक उलट दृष्टिकोण है. इसमें कहा गया है, “ये ज़रूरी माना जाता है कि राज्य में नगर निगमों के संचालन के लिए एक ही क़ानून हो. इससे दूसरे शहरों में नगर निगमों की स्थापना भी हो सकेगी.” कोई सोचता होगा कि जब सभी शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) का एक जैसा काम-काज है तो एक क़ानून, जिसमें बड़े शहर के मुताबिक़ कुछ प्रावधान भी हों, काफ़ी होगा. विचारों में इस अचानक बदलाव की वजह साफ़ नहीं है.

मौजूदा अधिनियम को ये श्रेय जाता है कि इसमें नागरिकों की आवाज़ को क़ानूनी जगह मुहैया कराने की ईमानदार कोशिश की गई है. भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रम, जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत राज्यों को अनुशंसित नगर राज विधेयक को देखते हुए केएमसी अधिनियम में ‘क्षेत्र सभा’ की धारणा की शुरुआत की गई. इस धारणा को मौजूदा अधिनियम की वैधानिक रूप-रेखा में भी बरकरार रखा गया है. ‘क्षेत्र सभा’ की परिभाषा है “उस क्षेत्र के किसी भी मतदान केंद्र की मतदाता सूची में वोटर के रूप में पंजीकृत सभी लोगों की एक संस्था.” अधिनियम में रेज़िडेंट वेलफेयर एसोसिएशन, स्वयं सहायता समूह और स्लम-लेवल फेडरेशन- हर किसी का ज़िक्र है. रेज़िडेंट वेलफेयर एसोसिएशन का मतलब है किसी क़ानून के तहत पंजीकृत निवासियों का स्वैच्छिक संघ. स्वयं सहायता समूह का मतलब है एक जैसे वर्ग के 20 या उससे ज़्यादा लोगों का समूह जो अपनी साझा समस्या के समाधान के लिए एक साथ जमा होते हैं. वहीं स्लम-लेवल फेडरेशन का मतलब है शहरों के झुग्गी वाले इलाक़ों में रहने वाले निवासियों द्वारा बनाए गए 20 या उससे ज़्यादा स्वयं सहायता समूहों का संघ. विकेंद्रीकरण के दृष्टिकोण से ज़ोन के साथ वार्ड विकास योजना और ज़ोनल कमिश्नर के संस्थान की शुरुआत की गई. इस धारणा को आगे बढ़ाने के लिए शहर को 225-250 वार्ड और 15 ज़ोन में बांटा जाएगा. 

मौजूदा अधिनियम को ये श्रेय जाता है कि इसमें नागरिकों की आवाज़ को क़ानूनी जगह मुहैया कराने की ईमानदार कोशिश की गई है.

नये अधिनियम की इन फ़ायदेमंद ख़ूबियों के बावजूद वो कई महत्वपूर्ण मामलों में उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता है. सबसे बड़ी खामी ये है कि स्वयं-सशक्त संस्थान के तौर पर ये शहरी स्थानीय निकायों की धारणा को आगे बढ़ाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण क़दम नहीं उठाता है जिसके बारे में 74वें संविधान संशोधन में इतने अर्थपूर्ण ढंग से बताया गया है. अभी भी राज्य सरकारों का पूरा नियंत्रण है और नगरपालिका के भविष्य का फ़ैसला राज्य सरकारें ही सुनाती हैं. जहां बीबीएमपी के भीतर विकेंद्रीकरण पर ख़ास ध्यान है, वहीं राज्य सरकार से शहर तक विकेंद्रीकरण को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया गया है. शहरी स्थानीय निकायों की स्वतंत्रता लोकसभा और विधानसभा के उन सदस्यों को स्थानीय निगमों के सदस्य के तौर पर शामिल करने से और कमज़ोर होती है जिनका लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र शहरी स्थानीय निकाय के तहत आता है. इसका नतीजा जन प्रतिनिधियों के तीन स्तरों के बीच लड़ाई के रूप में सामने आया है जो एक जैसे भौगोलिक इलाक़े में अपने मतदाता आधार को विकसित करना चाहते हैं. 

नगरपालिका के काम-काज का बंटवारा

जहां तक काम-काज की बात है तो अधिनियम में संविधान द्वारा बताए गए सभी 18 काम-काज को मुख्य काम बताया गया है. उसके साथ दूसरे काम-काज की पूरी श्रृंखला है. लेकिन इस बात को लेकर कोई स्पष्टता मुहैया नहीं कराई गई है कि नगरपालिका का काम करने वाले दूसरे संगठनों का क्या होगा. उदाहरण के लिए, अधिनियम में जिस पहले काम-काज को गिनाया गया है वो है ‘नगर योजना समेत शहरी योजना.’ लेकिन वर्तमान में ये काम बेंगलुरु विकास प्राधिकरण (बीडीए) के तहत आता है. ये प्राधिकरण आगे भी बना रहेगा या उस पर बीबीएमपी का कब्ज़ा हो जाएगा? कर्नाटक झुग्गी विकास बोर्ड (केएसबीडी) के पास शहर में सभी घोषित झुग्गी क्षेत्रों के पुनर्वास का ज़िम्मा है. लेकिन अधिनियम के मुताबिक़ “बुनियादी सुविधा मुहैया कराने समेत झुग्गी सुधार और उसे बेहतर बनाना” 10वां मुख्य काम बताया गया है. ऐसे में केएसबीडी का क्या होगा? अगर “घरेलू, औद्योगिक और व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए पानी की आपूर्ति” पांचवें मुख्य काम के तौर पर बताया गया है तो बेंगलुरु पानी आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड (बीडब्ल्यूएसएसबी) का क्या होगा? कर्नाटक अग्निशमन और आपात सेवा विभाग बेंगलुरु शहर में दमकल सेवा मुहैया कराता है लेकिन अधिनियम में दमकल सेवा को सातवां मुख्य काम बताया गया है. 

नागरिक सुविधाओं के लिए बीबीएमपी के 18 मुख्य काम, 15 सामान्य काम और क़रीब चार क्षेत्रों के काम बताए गए हैं. लेकिन इसकी वित्तीय स्थिति लगातार कमज़ोर बनी हुई है. संपत्ति कर, पेशेवर कर, मनोरंजन कर, अतिरिक्त स्टांप ड्यूटी, इंफ्रास्ट्रक्चर सेस, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सेस और शहरी ट्रांसपोर्ट सेस बीबीएमपी के आमदनी के स्रोत हैं. सभी तरह के करों को मिला दिया जाए तो भी बीबीएमपी के खर्च की पूर्ति नहीं हो पाएगी. साफ़तौर पर इस बात की कोई गंभीर कोशिश नहीं की गई है कि सभी काम-काज को पूरा करने के लिए बीबीएमपी के पास पर्याप्त संसाधन हों. ये निश्चित तौर पर नये अधिनियम की मूलभूत कमज़ोरी है. 

साफ़तौर पर इस बात की कोई गंभीर कोशिश नहीं की गई है कि सभी काम-काज को पूरा करने के लिए बीबीएमपी के पास पर्याप्त संसाधन हों. ये निश्चित तौर पर नये अधिनियम की मूलभूत कमज़ोरी है. 

निगम के कार्यकारी काम-काज को पूरा करने के मामले में कई भ्रामक नये प्रावधानों को जोड़ दिया गया है. मुख्य आयुक्त को “राज्य सरकार मेयर से सलाह-मशविरे के आधार पर नियुक्त करेगी.” उनका तबादला “सिर्फ़ निगम के साथ सलाह के बाद ही होगा और तबादले की वजह का रिकॉर्ड रखा जाएगा.” जहां स्थानीय निकाय के साथ सलाह स्वागत योग्य क़दम हो सकता है, लेकिन मुख्य आयुक्त का कार्यकाल “सरकार की ख़ुशी पर सिर्फ़ दो साल” तय किया गया है. ये पूरी तरह साफ़ है कि सलाह लेने का काम प्रक्रियागत होगा और आख़िरी फ़ैसला राज्य सरकार का होगा. इससे भी बढ़कर, मेयर का कार्यकाल ढाई साल और मुख्य आयुक्त का कार्यकाल दो साल रखकर मुख्य आयुक्त की स्थिति को कमज़ोर किया गया है. 

मुख्य आयुक्त की शक्ति और काम-काज और ज़्यादा अस्पष्ट है. उन्हें “देखभाल करना और ज़ोनल आयुक्त को निर्देश” देना है. उन्हें “सभी ज़रूरी मामलों के लिए मेयर, उप मेयर, परिषद और ज़ोनल समिति के बीच समन्वय स्थापित करना है.” उनके विचारधीन जो अंतर-क्षेत्रीय मामले लाए गए हैं, उन पर उन्हें निर्णय देना है और ऐसे दूसरे काम करने हैं जिनका “निर्देश उन्हें मेयर या सरकार की तरफ़ से मिला है.” ज़ोनल आयुक्त के मामले में उन्हें “समय-समय पर मुख्य आयुक्त या मेयर द्वारा निर्देशित काम करने हैं.” किसी भी सूरत में कई बॉस का होना लगातार संघर्ष और तकरार की निश्चित वजह है. अधिनियम में मेयर को कार्यपालिका का काम उन्हें मुख्य कार्यकारी बनाए बिना सौंपा गया है. दूसरी तरफ़, अधिनियम का उद्देश्य मुख्य आयुक्त को मुख्य कार्यकारी बनाना है लेकिन उन्हें ये भी कहा गया है कि उन्हें सरकार के साथ-साथ मेयर का भी आदेश मानना होगा. ये अटपटी व्यवस्था है जो पूरी प्रक्रिया को ख़त्म कर देगी और इसकी वजह से बार-बार गतिरोध पैदा होगा.

दुख की बात है कि अधिनियम की रूप-रेखा बीबीएमपी को न तो इधर का छोड़ती है, न उधर की. 

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