जिस समय भारत अपनी स्वतंत्रता का 76वां जश्न मना रहा है, उस वक्त इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि “इस बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में वो सबसे महत्वपूर्ण ध्रुव” के तौर पर उभरा है. विश्व व्यवस्था में भारत का बढ़ता महत्व इस बात का भी नतीजा है कि उसने पिछले सात दशकों के दौरान कैसे अपने पड़ोस को संभाला और उनके साथ व्यवहार किया. इन वर्षों के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप ने भारत को प्रतिष्ठा और अपनी मज़बूत भौतिक एवं सैन्य क्षमता दिखाने के लिए परीक्षण का मैदान प्रदान किया है. इसके अलावा जैसे-जैसे अमृत काल का काउंटडाउन शुरू हो रहा है, वैसे-वैसे पड़ोस की अहमियत सिर्फ और सिर्फ बढ़ती जा रही है. भारत अब पाकिस्तान के साथ सामरिक रूप से बेहद व्यस्तता के बोझ से खुद को मुक्त कर रहा है; नेतृत्व की भूमिका निभा रहा है और मज़बूत भागीदारी, आर्थिक एकीकरण, साझेदारी एवं क्षेत्र में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देकर नई चुनौतियों का सामना कर रहा है.
2022 में भारत के युवाओं पर किए गए आख़िरी विदेश नीति के सर्वे में लगभग 58 प्रतिशत लोगों ने पाकिस्तान को अलग-थलग करने और उसके साथ जुड़ने से इनकार करने की भारत की नीति को असरदार माना था.
पाकिस्तानी जाल को नाकाम करना
2022 में भारत के युवाओं पर किए गए आख़िरी विदेश नीति के सर्वे में लगभग 58 प्रतिशत लोगों ने पाकिस्तान को अलग-थलग करने और उसके साथ जुड़ने से इनकार करने की भारत की नीति को असरदार माना था. इतिहास के बोझ और गहरे तौर पर जुड़ी धारणाओं, जो इस बात पर असर डालती हैं कि दोनों देश एक-दूसरे को कैसे देखते हैं, की वजह से भारत के द्वारा अपने पड़ोस में असर को बढ़ाने की किसी भी कोशिश पर पाकिस्तान की मौजूदगी का प्रभाव पड़ता है. स्वतंत्रता के तुरंत बाद के समय से 2015-16 तक पाकिस्तान वो लेंस था जिसके ज़रिये भारत अपनी पड़ोस की नीति की सफलता/विफलता को देखता था.
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान समेत दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) के सभी सदस्य देश शामिल हुए. इस घटना को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार के द्वारा पड़ोस के देशों को दी जाने वाली अहमियत में एक प्रतीकात्मक बदलाव के तौर पर देखा गया था. इसके बाद भारत ने उसी साल काठमांडू में आयोजित सार्क शिखर सम्मेलन में भागीदारी की और इस संगठन को फिर से मज़बूत बनाने का वादा किया. वैसे तो सार्क के काठमांडू घोषणापत्र पर हस्ताक्षर के दौरान कुछ असहमति थी लेकिन दक्षिण एशियाई देशों को बेहतर तरीके से एकीकृत करने के लिए एक क्षेत्रीय मंच के रूप में सार्क का उपयोग करने को लेकर आम राय थी. लेकिन एक के बाद एक आतंकी हमलों और कश्मीर में उपद्रव ने भारत के भीतर और उसके पड़ोस में इस विश्वास को ख़त्म कर दिया और पाकिस्तान के साथ संपर्क की उम्मीदें टूट गईं.
क्षेत्र की इस प्राथमिकता का उदाहरण प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा रिकॉर्ड संख्या में नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के दौरों से मिलता है. नवनियुक्त प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी ने सबसे पहले भूटान की यात्रा की और उसके बाद वो नेपाल गये जो कि 17 साल में किसी भारतीय प्रधानमंत्री के द्वारा पहला दौरा था.
2023 की बात करें तो न तो भारत के लोगों, न ही भारत की सरकार के पास पाकिस्तान के किसी भी दुस्साहस को बर्दाश्त करने का धैर्य है. इसी तरह पाकिस्तान- जिसका इस्तेमाल किसी समय दक्षिण एशिया के कुछ देशों के द्वारा भारत को पीछे धकेलने और संतुलन के लिए किया जाता था- अपनी गिरती अर्थव्यवस्था, राजनीति और सुरक्षा की वजह से अब पड़ोसी देशों के बीच अपना सामरिक महत्व खोता जा रहा है. आज के समय में सार्क लोगों की स्मृति से लगभग गायब हो गया है जबकि भारत की ‘पड़ोस सर्वप्रथम नीति’ अब बे ऑफ बंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सेक्टोरल एंगेजमेंट (BIMSTEC) और पड़ोस के छोटे देशों के साथ मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों के ज़रिये ज़्यादा बेहतर ढंग से स्पष्ट होती है. वैकल्पिक क्षेत्रीय मंचों की तरफ ये बदलाव भारत के द्वारा पड़ोस के लिए अपने नज़रिये से पाकिस्तान को बाहर रखने की कोशिशों को भी रेखांकित करता है.
मज़बूत हिस्सेदारी के लिए एक अपील
पाकिस्तान के साथ भारत की सामरिक व्यस्तता भले ही कम हो रही हो लेकिन अब भारत पड़ोस में चीन की मौजूदगी और असर के ख़िलाफ़ ज़ोर दे रहा है. इस तरह “पड़ोस सर्वप्रथम” की नीति भारत के पड़ोसियों को प्राथमिकता और मज़बूत राजनीतिक, आर्थिक एवं कूटनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देने की कोशिश करती है.
क्षेत्र की इस प्राथमिकता का उदाहरण प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा रिकॉर्ड संख्या में नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के दौरों से मिलता है. नवनियुक्त प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी ने सबसे पहले भूटान की यात्रा की और उसके बाद वो नेपाल गये जो कि 17 साल में किसी भारतीय प्रधानमंत्री के द्वारा पहला दौरा था. इन यात्राओं के बाद बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव के साथ सक्रिय कूटनीति का दौर शुरू हुआ. इन यात्राओं और बातचीत के दौरान भारत ने कनेक्टिविटी, आर्थिक एकीकरण और लोगों के स्तर पर संबध बढ़ाने का और वादा किया है. भारत ने 2016 में मालदीव के साथ रक्षा के लिए व्यापक कार्य योजना पर भी हस्ताक्षर किये. भारत ने क्षेत्र में संपर्क बढ़ाने के लिए उप-क्षेत्रीय पहल पर भी ध्यान दिया है. भारत ने 2015 में बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ BBIN-मोटर व्हीकल एग्रीमेंट (MVA) पर दस्तखत किये ताकि चारों देशों के बीच सवारी और कार्गो वाहनों के सीमा पार ट्रांसफर की सुविधा दी जा सके. इस तरह के सहयोग और कनेक्टिविटी की आवश्यकता निवेशकों और अलग-अलग देशों के द्वारा चीन से हटने और भारत की तरफ जाने की वजह से और भी बढ़ी है.
कूटनीतिक तौर पर क्वॉड में शामिल देश इंडो-पैसिफिक में मूल्य आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इन दक्षिण एशियाई देशों को तैयार करने के लिए चतुराई से भारत के साथ शामिल हो गए हैं.
भारत ने अनुदान, कर्ज़, लाइन ऑफ क्रेडिट, टेक्निकल कंसल्टेंसी, आपदा राहत, स्कॉलरशिप, क्षमता निर्माण के कार्यक्रमों, इत्यादि के माध्यम से अपने पड़ोसियों के साथ विकास की साझेदारी को भी प्राथमिकता दी है. केवल पिछले साल भारत ने तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए 5,850 करोड़ रु. का आवंटन किया है. इसमें से एक बड़ा हिस्सा पड़ोस के लिए आवंटित किया गया है. मिसाल के तौर पर, मालदीव में भारत ने केवल पिछले पांच वर्षों के दौरान 54 बेहद असरदार सामुदायिक विकास परियोजनाओं की शुरुआत की है. भूटान के मामले में भारत ने इसकी 13वीं पंचवर्षीय योजना के लिए समर्थन बढ़ाने का फैसला किया है. भारत ने संकेत दिया है कि उसकी सहायता पिछली दो योजनाओं के समर्थन, जो कि 4,500 करोड़ रु. है, से ज़्यादा होगी. भारत इस क्षेत्र में किसी संकट के आने पर सबसे पहले मदद के लिए आगे बढ़ता है. समुद्री आपदा और साथ ही आर्थिक संकट के दौरान श्रीलंका को भारत की सहायता “विकास साझेदार” और “पहले मदद पहुंचाने वाले” के रूप में भारत की बढ़ती भूमिका पर ज़ोर देती है.
नई मजबूरियां और नई साझेदारियां
आर्थिक विकास, एकीकरण और कनेक्टिविटी के एक नये युग में प्रवेश करने के अलावा स्वतंत्रता के 76 साल बाद भारत पुराने संकोच से पीछा छुड़ाने की भी कोशिश कर रहा है. हाल के वर्षों में भारत अन्य ताकतों के साथ तेज़ी से सहयोग बढ़ा रहा है, ख़ास तौर पर अपने क्वॉड पार्टनर अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ. इसके पीछे तीन इरादे हैं: दक्षिण एशिया में सच्चा विकल्प पेश करके चीन के निवेश और असर का विरोध करना; ख़ुद को क्षेत्र में और उससे आगे एक निर्विवादित लीडर के तौर पर स्थापित करने के लिए उपमहाद्वीप में आगे रहना– ऐसा करने से भारत को दुनिया के बड़े मंचों पर जगह पाने में मदद मिलेगी; और तीसरा इरादा है अपने पड़ोसियों के साथ मज़बूती से जुड़कर अपने आर्थिक विकास और व्यापार को प्रोत्साहित करना.
भारत की ये रणनीति एक नई क्षेत्रीय व्यवस्था को आकार दे रही है जो कि भारत, क्वॉड और दक्षिण एशिया के देशों के लिए फायदेमंद है. कूटनीतिक तौर पर क्वॉड में शामिल देश इंडो-पैसिफिक में मूल्य आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इन दक्षिण एशियाई देशों को तैयार करने के लिए चतुराई से भारत के साथ शामिल हो गए हैं. अमेरिका और जापान से बांग्लादेश और श्रीलंका के दौरे काफी बढ़ गए हैं, साथ ही ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका- दोनों देशों ने मालदीव में अब अपने राजनयिक मिशन की शुरुआत की है. बुनियादी ढांचे के लिहाज से जापान संकट से ग्रस्त श्रीलंका और आर्थिक रूप से फलते-फूलते बांग्लादेश में निवेश बढ़ा रहा है. ख़बरों के मुताबिक भारत ने नेपाल में अमेरिका के मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (MCC) को मंज़ूरी दिलाने में सहायता भी की है. इस तरह ये दक्षिण एशिया में MCC का एकमात्र निवेश बन गया है. यहां तक कि संकट के समय में भी, जैसा कि श्रीलंका के संकट के दौरान देखा गया, इस साझेदारी ने हालात को स्थिर करने में सहयोग और समन्वय प्रदान किया है. अंत में, भारत ने इन देशों के द्वारा क्षेत्र में रक्षा और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देने की कोशिशों पर आपत्ति भी नहीं जताई है. अमेरिका ने 2020 में मालदीव के साथ एक रक्षा और सुरक्षा समझौते को अंतिम रूप दिया और नेपाल को स्टेट पार्टनरशिप प्रोग्राम में शामिल होने का न्योता दिया. जापान ने भी बांग्लादेश के साथ अपनी समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग को बढ़ाया है.
क्षेत्र में भारत के द्वारा इस तरह के सहयोग को सुविधाजनक बनाने की सीमा और स्वरूप के बारे में कुछ साल पहले तक सोचा भी नहीं जा सकता था. ये बदलाव विकसित हो रही विश्व व्यवस्था के अनुसार भारत के द्वारा ख़ुद को ढालने की बढ़ती क्षमता पर ज़ोर देता है. क्वॉड के किसी भी साझेदार के साथ औपचारिक गठबंधन नहीं होने के बावजूद इन देशों के साथ भरोसा और विश्वसनीयता है. सबसे महतवपूर्ण बात ये है कि क्षेत्र में सहयोग और नेतृत्व के नये युग में प्रवेश करने के लिए भारत में अधिक ऊर्जा है. जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 76 साल का जश्न मना रहा है, उस समय वो अपने पड़ोसियों के साथ मज़बूती और एहतियात के साथ जुड़ रहा है, नई क्षेत्रीय चुनौतियों का मुकाबला कर रहा है और नई साझेदारी को बढ़ावा दे रहा है.
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