Published on Dec 24, 2020 Updated 0 Hours ago

चीन से पारदर्शिता की मांग को लेकर यूरोपीय संघ के देशों में ज़्यादा एकजुटता दिखाई दी है और यह चीन के मास्क डिप्लोमेसी के बावजूद कम नहीं हुई है.

यूरोप और चीन के बीच गतिरोध के 5 कारण

दुनिया भर में चीन विरोधी भावनाएं लोगों में बढ़ रही हैं लेकिन आधिकारिक स्तर पर भी यूरोप में चीन विरोधी भावनाओं के सक्रिय होने के संकेत दिखने लगे हैं. हैरानी होती है कि चीन के साथ आर्थिक संबंध स्थापित करने के वर्षों बाद यूरोपीय संघ अब चीन को साझेदार नहीं बल्कि प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखने लगा है. मार्च 2019 में यूरोपीय संघ और चीन के संबंधों पर तब अचानक ध्यान आकर्षित हुआ जब यूरोपीय संघ ने सामरिक दृष्टिकोण से एक रिपोर्ट जारी की जिसमें चीन को यूरोपीय संघ से सुनियोजित तरीके से प्रतिद्वन्दी रखने वाला देश बताया गया.

यूरोपीय संघ चीन का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है बावजूद इसके हाल के दिनों में यूरोपीय महादेश में चीन के निवेश की महत्वाकांक्षाओं के साथ-साथ घरेलू मानवाधिकार के मुद्दों पर गंभीर चिंता उभर कर सामने आई हैं. 

यूरोपीय संघ चीन का दूसरा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है बावजूद इसके हाल के दिनों में यूरोपीय महादेश में चीन के निवेश की महत्वाकांक्षाओं के साथ-साथ घरेलू मानवाधिकार के मुद्दों पर गंभीर चिंता उभर कर सामने आई हैं. दक्षिणी और पूर्वी यूरोप में चीन वन बेल्ट एंड वन रोड की पहल के जरिए निवेश बढ़ाता रहा है, जो एकीकृत यूरोप के लिए चीन के प्रति गंभीर चुनौती के रूप में देखा जा रहा है.

हालाँकि, 5G कनेक्टिविटी की योजना के नाकाम होने और कोविड 19 के संकट की शुरुआत के साथ यूरोपीय यूनियन के सदस्य देश चीन की मंशा और इरादों को लेकर संदेहास्पद दृष्टिकोण रखते देखे जा सकते हैं. चीन की बढ़ती अलोकप्रियता ना केवल यूरोपीय संघ के देशों बल्कि वहां के नागरिकों के बीच भी महसूस की जा रही है, जो इस बात का प्रमाण है कि यूरोपीय संघ और चीन के बीच रिश्तों में लगातार खाई बढ़ती जा रही है. ऐसे में अब सभी की निगाहें अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के नीतिगत फ़ैसलों पर टिकी हुई है. लेकिन यहां पर पश्चिमी यूरोप और चीन के बीच मौजूदा रिश्तों के आकलन की ज़रूरत होगी क्योंकि पश्चिमी यूरोप के ज़्यादातर देश अब चीन की चुनौतियों का सामना करने के लिए अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन की सरकार के साथ नज़दीकियों बढ़ाने का प्रयास करेंगे. जैसा कि हाल ही में बाइडेन प्रशासन के एक अधिकारी ने कहा कि – “चीन के संबंध में सहयोगी देशों के साथ एक ही पृष्ठ पर पहुंचने” के लिए यह देखना आवश्यक होगा कि आखिर वह पृष्ठ कैसा दिखता है ? मतलब साफ है कि चीन के साथ रिश्तों को लेकर बाइडेन प्रशासन भी सहज नहीं है और इसे लेकर चर्चा और विचार किया जाना बाकी है.

1. 5 जी

यूरोप में इन दिनों 5 जी सेवा बहाली को लेकर काफी हलचल है. हालत ये है कि यूरोपीय संघ संसद के 41 सदस्य देशों ने हुवेई और जेटीई की सेवा की आलोचना की है और इन्हें सुरक्षा के लिहाज से बेहद जोखिम भरा बताया है और यूरोपीय नेटवर्क के लिए ख़तरा कहा है. हाल ही में चुनाव नतीजों को लेकर जिस तरह की उहापोह की स्थिति रही उसके बीच कई यूरोपीय देशों ने हुवेई की सेवा बंद कर इरिकशन और नोकिया जैसी कंपनियों की सेवाओं को बहाल करा लिया. इनके बीच नज़दीकी नेल-बाइटिंग चुनाव परिणाम के रूप में निकटता से देखा जा रहा है, यूरोपीय राज्यों ने लगातार यूरोपीय कंपनियों एरिक्सन और नोकिया के लिए हुआवेई से बाहर निकल रहा है. चीनी नेटवर्क को छोड़कर दूसरे नेटवर्क की ओर जाने वालों देशों में सबसे ताजा उदाहरण स्वीडन और ऐस्टोनिया का है जिन्होंने 5 जी तकनीक के लिए हुवेई और जेटीई दोनों ही सेवाओं पर अपने देश में पाबंदी लगा दी. इतना ही नहीं, इसके बाद बुल्गारिया, कोशोवो और उत्तरी मैसोडेनिया ने भी ऐसा ही किया जो यूरोपीय देशों के नीतिगत फैसले के साथ सामंजस्य स्थापित कराने जैसा ही है. हुवेई की जगह या तो 5 जी सेवा मुहैया कराने वाली घरेलू कंपनियों के विकल्प को चुन कर या फिर उपकरणों के लाइसेंस के नवीनीकृत करने के आग्रह को ठुकरा कर यूरोपीय संघ के देशों ने चीनी कंपनियों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है.

चीनी नेटवर्क को छोड़कर दूसरे नेटवर्क की ओर जाने वालों देशों में सबसे ताजा उदाहरण स्वीडन और ऐस्टोनिया का है जिन्होंने 5 जी तकनीक के लिए हुवेई और जेटीई दोनों ही सेवाओं पर अपने देश में पाबंदी लगा दी. 

2. चीन के साथ यूरोपीय संघ का निवेश सौदा

हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ऐलान किया है कि वो चीन और यूरोपीय संघ के बीच निवेश सौदों को गति प्रदान करने के लिए बातचीत करेंगे. पिछले सात वर्षों में निवेश सौदों को लेकर 33 राउंड की बातचीत हो चुकी है ऐसे में सवाल उठता है कि विवाद की वजहें क्या हैं ? दरअसल इन निवेश सौदों की नाकामी की सबसे बड़ी वजह चीन की तरफ से बाजार को खोलने की इजाज़त नहीं देना है. जबकि जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल ने पहले ही चीन को चेताया है कि अगर साल 2020 के अंत तक चीन अपने बाजार को और ज़्यादा मुक्त नहीं करता है तो फिर यूरोपीय संघ के देशों के बाजार में भी चीन की एंट्री सीमित रहेगी.

यूरोपीय यूनियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स के प्रकाशित सर्वे के मुताबिक अगर चीन अपने बाजार को दूसरे देशों के लिए ज़्यादा खुला बनाता है तो यूरोपियन चैंबर के 62 फीसदी सदस्य देश चीन में निवेश बढ़ाने पर विचार कर सकते हैं. चीन ने भी हाल में विदेशी निवेश को ज़्यादा से ज़्यादा आकर्षित करने के लिए अपने यहां व्यापार संबंधी वातावरण को और लचीला बनाने की कोशिश की है.

साल 2019 में विदेशी निवेश नियम की घोषणा की गई थी जिसका मकसद विदेशी कंपनियों को घरेलू निजी कंपनियों के साथ बराबरी का मौका मिल सके इसके लिए वातावरण तैयार करना था – इसके लिए जरूरी प्रतिबंधात्मक और कानूनी ज़रूरतों को पूरा भी किया गया था. बावजूद इसके एफआईएल से यूरोपीय निवेशकों को आकर्षित करने का लक्ष्य नहीं पूरा किया जा सका जो अपने देश में चीनी कंपनियों को दिए गए बराबरी के खुले बाजार की उम्मीद लिए बैठे थे. जैसा कि चीन के अनरिलायबल इन्टिटी लिस्ट और नए निर्यात नियंत्रक कानून के लागू होने के बाद से चीन की स्टेट काउंसिल को अब निजी विदेश निवेशकों को दंडित करने का अधिकार मिल गया है – जो यूरोपीय संघ के देशों के निवेशकों को चीन में निवेश करने के लिए कहीं से प्रेरित नहीं करता है.

स्वीडन और फ़िनलैंड ऐसे दो देश हैं जिनके रिश्ते चीन से काफी तल्ख हुए हैं. जबकि व्यापार और सुरक्षा के मुद्दों को लेकर यूरोपीय संघ और चीन के बीच संबंधों के नेतृत्व को लेकर जर्मनी काफी मुखर रहा है

अमेरिका और चीन के बीच जारी कारोबारी प्रतिद्वन्दिता के बीच दोनों देशों के अपने हित जुड़े हुए हैं ऐसे में अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच बढ़ने वाले संभावित कारोबारी रिश्तों के मद्देनज़र चीन भी व्यापार संबंधी सुधार करने पर मजबूर होगा. क्योंकि हाल के वर्षों में यूरोपीय संघ के देशों में चीन का निवेश लगातार गिरता जा रहा है. साल 2019 में यह 33 फीसदी गिरकर यह उसी स्तर पर पहुंच गया है जो साल 2013 में यह आंकड़ा था. इसके साथ ही अक्टूबर 2020 में यूरोपीय संघ ने स्क्रीनिंग रेग्यूरलेशन के जरिए भी चीन के विदेशी निवेश पर एक तरह से अंकुश लगाने की कोशिश की.

3. कोविड–19

अगस्त के आख़िरी सप्ताह में चीन के विदेश मंत्री वांग यी पांच देशों के दौरे पर गए हुए थे जो एक तरह से चीन की कोरोना महामारी से निपटने के शुरुआती तरीकों पर उठ रहे सवालों के लिए डैमेज कंट्रोल की कोशिश
कही जा सकती है. ऐसा इस वजह से भी था क्योंकि कोरोना महामारी को लेकर शुरूआती दिनों में चीन द्वारा पारदर्शिता नहीं अपनाने की वजह से भी यूरोपीय देशों ने चीन के प्रति सख्त रवैया अपना लिया था. लिहाजा चीन के विदेश मंत्री ने अपने दौरे में ज़्यादातर देशों के साथ कोरोना महामारी की चुनौतियों से निपटने के लिए वैक्सीन बनाने, ग्रीन एनर्जी और महामारी के बाद की स्थितियों को लेकर ही चर्चा की. लेकिन जैसा कि कोरोना महामारी की चपेट से अभी भी ज़्यादातर देश निपट रहे हैं ऐसे में चीन के विदेश मंत्री वांग यी का यूरोप दौरा बेहद कामयाब नतीजों वाला नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि ज़्यादातर यूरोपीय देश चीन से हांग कांग, सुरक्षा और पारदर्शिता को लेकर सवाल पूछते रहे. कोरोना महामारी के तुरंत बाद यूरोप का दौरा करना इस बात का प्रमाण है कि चीन के लिए यूरोप कितनी अहमियत रखता है. हालांकि, चीन की ट्रांस अटलांटिक संबंधों को विस्तार देने की कोशिश भले ही असफल रही हो – यहां तक कि अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ भी यह इतना आसान नहीं होगा. क्योंकि पूरे महाद्वीप में जनता की राय चीन के प्रति बेहद खटास भरी है और इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि चीन की मीडिया लगातार इस बात को जोर शोर से प्रचारित करती रही कि यूरोपीय देश कोरोना महामारी की दूसरी लहर से निपटने में असमर्थ रहे. विदेशी संबंधों पर यूरोपीय काउंसिल द्वारा किए गए एक स्टडी में पाया गया कि कोरोना महामारी की शुरुआत के साथ ही चीन के प्रति लोगों की सोच और विचार में काफी कड़वाहट आई है. पश्चिमी यूरोप के 48 फीसदी लोगों का यह जवाब था कि चीन के प्रति उनकी सोच में काफी तल्खी आ गई है. इस अध्ययन से यह भी पता चला है कि चीन से पारदर्शिता की मांग को लेकर यूरोपीय संघ के देशों में ज़्यादा एकजुटता दिखाई दी है और यह चीन के मास्क डिप्लोमेसी के बावजूद कम नहीं हुई है.


4. 
हांग कांग और सुरक्षा

ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों ने हांग कांग में नेशनल सेक्यूरिटी लॉ के लागू होने पर चीन की जमकर आलोचना की थी. इतना ही नहीं इन देशों ने हांग कांग में लोकतांत्रिक मूल्यों के गला घोटने को लेकर भी चीन को जमकर लताड़ लगाई थी. जब चीन ने हांग कांग में नेशनल सिक्यूरिटी लॉ को लागू किया तो हाांगकांग की स्वायत्तता के लिए इसे गंभीर चोट बताते हुए यूरोपीय संघ ने इस कानून को तुरंत वापस लेने की मांग की थी और जुलाई 2020 में चीन के ख़िलाफ कई प्रतिबंध लगा दिए थे. हांग कांग में चीन के बढ़ते दखल और लोकतांत्रिक मूल्यों के गला घोंटने की चीन की कोशिशों के ख़िलाफ यूरोपीय संघ के देशों ने काफी हल्ला बोला और हांग कांग में एक देश एक व्यवस्था की नीति का समर्थन किया. यहां तक कि यूरोपीय देश के संसदों ने हांग कांग और तिब्बत में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कार्रवाई का लगातार विरोध भी किया. यह इस बात का संकेत था कि यूरोपीय संघ चीन के साथ अपने रिश्तों को लेकर दोबारा विचार और चर्चा करने की इच्छा रखता है.

हंगरी और सर्बिया को छोड़कर यह रिपोर्ट बताती है कि चीन के साथ सीईई देशों के राजनीतिक संबंध कोई नया विस्तार ले रहे हैं. ऐसी कोई बात निकट भविष्य में नहीं दिख रही है. यही वजह है कि 2012 की शुरुआत से लेकर चीन के साथ व्यापार घाटा 2018 में घटकर 75 बिलियन डॉलर रह गया है. 

हाल के दिनों में स्वीडन और फ़िनलैंड ऐसे दो देश हैं जिनके रिश्ते चीन से काफी तल्ख हुए हैं. जबकि व्यापार और सुरक्षा के मुद्दों को लेकर यूरोपीय संघ और चीन के बीच संबंधों के नेतृत्व को लेकर जर्मनी काफी मुखर रहा है. फ्रांस और जर्मनी ने भी इंडो पैसिफिक में अपने संबंधों को विस्तार देने को लेकर काफी सक्रियता दिखाई है – जिसका नतीजा क्वाड सदस्य देशों के बीच मजबूत होते संबंध हैं. यूरोपीय संघ का दरअसल मकसद यही है कि वह चीन के साथ संबंधों में संतुलन को मजबूत करना चाहता है तो दूसरी ओर चीन की ऐसी कार्रवाई जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता उसके लिए ज़िम्मेदारी तय करना है.

5. विभाजित यूरोप?

उपर की चर्चा से यह नतीजा निकलता दिखता है कि चीन के ख़िलाफ यूरोपीय देशों में बढ़ती एकजुटता बेहद साफ है. हालांकि यहां इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है कि पिछले तीन सालों में यूरोपीय देशों के चीन के साथ संबंध काफी क़रीबी रहे हैं. उपरोक्त के एक आकलन से, चीन के ख़िलाफ यूरोप में एक बढ़ा अभिसरण स्पष्ट हो सकता है. हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कुछ यूरोपीय देशों ने पिछले तीन वर्षों में बीजिंग के साथ घनिष्ठ संबंधों का अनुभव किया है. चीन के साथ 17 + 1 डायलॉग के तहत 17 सदस्यों में से ग्यारह यूरोपीय संघ के सदस्य ऐसे हैं जिन्होंने चीनी निवेश से बेहद लाभ उठाया है. मध्य और पूर्वी यूरोपीय (सीईई) देशों के साथ अपने संस्थागत संबंधों के लिए चीन की भूमिको नजरअंदाज कर पाना आसान नहीं होगा क्योंकि इसके जरिए इस क्षेत्र में अंतर्संबंध की उम्मीदों को पर लगी है. हालाँकि, क्या चीन के साथ मौजूदा माहौल को लेकर 17 + 1 सदस्य देश खुश हैं ? इस साल मध्य और पूर्वी यूरोप में चीन के पर्यवेक्षकों द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट की मानें तो ये देश चीन से खुश नहीं हैं. हंगरी और सर्बिया को छोड़कर यह रिपोर्ट बताती है कि चीन के साथ सीईई देशों के राजनीतिक संबंध कोई नया विस्तार ले रहे हैं. ऐसी कोई बात निकट भविष्य में नहीं दिख रही है. यही वजह है कि 2012 की शुरुआत से लेकर चीन के साथ व्यापार घाटा 2018 में घटकर 75 बिलियन डॉलर रह गया है. यहां तक कि कुछ सीईई देश अपने 5 जी नेटवर्क की तकनीक के लिए हुवेई जैसी कंपनियों के साथ करार को तोड़ चुके हैं और यही वजह है कि चीन के लिए यह जरूरी हो गया है कि वो इन चुनौतियों को लेकर मुल्यांकन करे. वेई से बाहर निकलते हैं, चीन को इस व्यवस्था के लिए चुनौतियों का फिर से मूल्यांकन करना होगा. ऐसे में यूरोपीय संघ के देशों को चीन के ख़िलाफ एक आम नीति बनाने के लिए सीईई राष्ट्रों के हितों को सर्वोपरि रखने की कोशिश करनी होगी.

निष्कर्ष के तौर पर

जैसे-जैसे अमेरिका के साथ चीन के संबंध लगातार बिगड़ेंगें, चीन राजनीतिक और आर्थिक रूप से यूरोपीय देशों के करीब जाने की कोशिश करेगा. ऐसे में नए भू राजनीतिक संबंधों के विस्तार के परिपेक्ष्य में यूरोपीय देशों के नेताओं को चाहिए कि वो रक्षा, तकनीक और व्यापार संबंधों में स्वायत्तता का इस्तेमाल करें. अमेरिका और चीन के बीच चल रही राजनीतिक प्रतिद्वन्दिता से खुद को अलग कर यूरोप के देश आपस में एकजुटता बढ़ाकर चीन की नीति के ख़िलाफ खुद को असरदार बना सकते हैं. इसके लिए जरूरी है कि संबंधों को लेकर स्पष्ट रेखा तय की जाए और जब ज़रूरत हो तब एक दूसरे की मदद के लिए ये देश आगे आएं. द वाशिंगटन पोस्ट के गेरी शिह ने यूरोप को स्विंग स्टेट की संज्ञा दी है. चीन और अमेरिका के बीच जारी रणनीतिक प्रतिद्वन्दिता के बीच फंसने के कारण इसे तटस्थ खिलाड़ी के रूप में देखना ज़्यादा बेहतर होगा जिसे संभावित रूप से जीतने की ज़रूरत होगी. हाल में जिस तरह से 5G सेवा को लेकर आनाकानी की गई और जो बाइडेन प्रशासन की ट्रांस अटलांटिक देशों के साथ संभावित मजबूत संबंध के आलोक में चीन के लिए संबंधों की इस चढ़ाई को चढ़ पाने की चुनौती होगी क्योंकि इस चढ़ाई में ढलान से नीचे आने की आशंका भी उतनी ही प्रबल है.

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