8 जनवरी 2024 को मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने इस द्वीप देश के पूर्व राष्ट्रपतियों की परंपरा को तोड़ते हुए भारत की बजाय चीन का पांच दिवसीय दौरा करने का निर्णय लिया. उनके इस फ़ैसले ने क्षेत्र में भारत के प्रतिद्वंद्वी नई दिल्ली के मुकाबले बीजिंग को एक कूटनीतिक जीत दिलवा दी. बीजिंग की अपनी यात्रा के दौरान मुइज़्ज़ू ने चार बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के बीस द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए. चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मालदीव के राष्ट्रपति ने कृषि, पर्यटन, ट्रांसपोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट से लेकर ब्लू इकोनामी सेक्टर जैसे फिशिंग, डीप-सी माइनिंग अर्थात गहरे समुद्र में खनन आदि क्षेत्र में समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे. दोनों देशों के मुखियाओं (हेड ऑफ स्टेट्स /HoS ) ने अपने देश के संबंधों को 'कंप्रिहेंसिव स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप' यानी समग्र कूटनीतिक साझेदारी से आगे बढ़ते हुए ' कंप्रिहेंसिव स्ट्रैटेजिक कोऑपरेटिव पार्टनरशिप' यानी समग्र कूटनीतिक सहयोग साझेदारी करने का फ़ैसला भी किया. इससे यह संकेत मिलता है कि दोनों देश अब भू-राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इंडियन ओशन रीजन (IOR) में सभी क्षेत्रों में बेहद गहरे सहयोग के लिए तैयार है.
टेबल 1 : 2023 में चीन की पार्टनरशिप अपड्रेडेशंस यानी साझेदारी उन्नतीकरण
स्त्रोत : चीन का विदेश मंत्रालय और द थर्ड बेल्ट एंड रोड फोरम आर्काइव्स.
चीन और मालदीव के बीच द्विपक्षीय साझेदारी में हुई इस प्रगति को पिछले वर्ष से ही विकासशील देशों में चीन द्वारा द्विपक्षीय साझेदारी को मजबूत करने की कोशिशों के साथ जोड़कर देखा जा रहा है. 2023 में चीन ने रिकॉर्ड 18 द्विपक्षीय साझेदारी (देखे टेबल वन) को मजबूती प्रदान की है. ये द्विपक्षीय साझेदारियां चार महाद्वीपों में फ़ैली हुई है. द्विपक्षीय साझेदारी में बीजिंग का आगे बढ़ना इस बात पर निर्भर करता है कि किस देश विशेष के साथ उसके आर्थिक तथा कूटनीतिक संबंध किस दिशा में बढ़ेंगे. इन साझेदारियों को मजबूती प्रदान करने के पीछे चीन आर्थिक और कूटनीतिक कारण ख़ोजता रहता है. उदाहरण के लिए संसाधन संपन्न देश इथियोपिया तथा वेनेजुएला के साथ बीजिंग ने अपनी साझेदारी को ' ऑल वेदर स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप' के रूप में मान्यता देते हुए यह संकेत दिया कि संकट और संपन्नता दोनों ही स्थितियों में दोनों देशों के संबंध लचीले और मजबूत रहेंगे. इसी प्रकार सिंगापुर के साथ चीन के संबंध अब ' ऑलराउंडर कोऑपरेटिव पार्टनरशिप प्रोग्रेसिंग विथ द टाइम्स' से आगे बढ़कर ' ऑलराउंड हाई क्वालिटी फ्यूचर ओरिएंटेड पार्टनरशिप' हो गए हैं. ऐसा दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग में लगातार गहराते जा रहे समन्वय और सहयोग की वज़ह से हुआ है. इस लेख का उद्देश्य वर्ष 2023 के दौरान चीन की ओर से द्विपक्षीय संबंधों अथवा साझेदारियों में की गई प्रगति का विश्लेषण करना है. इसके साथ ही चीन की इन कोशिशें का भू-राजनीतिक और भू आर्थिक परिणाम क्या होगा इस पर भी यहां बात की गई है.
इस लेख का उद्देश्य वर्ष 2023 के दौरान चीन की ओर से द्विपक्षीय संबंधों अथवा साझेदारियों में की गई प्रगति का विश्लेषण करना है.
2023 में चीन की कूटनीतिक पहल, संसाधन आधारित कूटनीति तथा BRI
इन 19 देश के साथ अपनी साझेदारियों में चीन की ओर से प्रदान की गई मजबूती की पृष्ठभूमि में इन देशों में चीन द्वारा किया गया 140 बिलियन अमेरिकी डॉलर का विशाल BRI निवेश है. नज़दीकी विश्लेषण करने पर पता चलता है कि साझेदारियों को उन्नत करने की चीन की कोशिश भू रणनीति कारणों से अथवा यह ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला के (नए अथवा पुराने) स्त्रोतों को सुरक्षित करने की कोशिश हैं.
टेबल 2 : इन देशों में पहले से मौजूद BRI इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट
स्रोत : द बेल्ट एंड रोड पोर्टल, और द थर्ड बेल्ट एंड रोड फोरम आर्काइव्स, चीन का विदेश मंत्रालय और चाइनीस स्टेट काउंसिल.
किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, गाबोन, द DRC, इथियोपिया, जांबिया, बेनिन, तिमोर-लेस्ते तथा वेनेजुएला के साथ साझेदारियों को चीन ने मजबूती प्रदान की है. इसका उद्देश्य तेल, कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस और महत्वपूर्ण खनिज जैसे की 'इलेक्ट्रिक एटीन' जो इलेक्ट्रॉनिक वाहन उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, की आपूर्ति को सुनिश्चित करना है. इसके अलावा चीन इन देशों के साथ लचीली एवं विविध ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करना चाहता है. इन ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखलाओं की उसे अपने डोमेस्टिक कंजप्शन अर्थात घरेलू उपभोग एवं मैन्युफैक्चरिंग यानी घरेलू उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए भी ज़रूरत है. वह चाहता है कि ये ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखलाएं उसके देश में उभरते हरित ऊर्जा एवं इलेक्ट्रॉनिक वाहनों के क्षेत्र को मजबूती प्रदान करें. इन देशों के साथ चीन के द्विपक्षीय सहयोग समझौतों से जुड़े दस्तावेज़ों का अवलोकन करने पर यह परिकल्पना और भी पुख़्ता हो जाती है.
तुर्कमेनिस्तान और किर्गिस्तान के साथ जिन एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए उसमें चीन को प्राकृतिक गैस के निर्यात बढ़ाने पर बल दिया गया. इसके साथ ही किर्गिस्तान-उज्बेकिस्तान-चीन (KUC) रेलवे निर्माण के मसले पर भी रोक लगाकर सहमति बनाना, अथवा इन दोनों देशों को झुकाना ही उद्देश्य था. यहां उल्लेखनीय है कि तुर्कमेनिस्तान से प्राकृतिक गैस का निर्यात इस दशक में साल-दर-साल 18.4 प्रतिशत की दर से बढ़ा है. चीन को होने वाले प्राकृतिक गैस के निर्यात में इस देश की हिस्सेदारी 98 प्रतिशत है. इसी तरह KUC रेलवे का उद्देश्य यूरेशिया के साथ चीन की भूमि आधारित कनेक्टिविटी को बढ़ाकर उसमें विविधता लाना है. इसी प्रकार यह रेलवे इन दो भूमिबद्ध देशों को एक ओर मध्य एशियाई तथा यूरोपियन बाज़ार से जोड़ेगी, जबकि दूसरी ओर से चीन से कनेक्टिविटी बन जाने की वज़ह से इन दोनों देशों के लिए दक्षिणपूर्वी देशों का बाज़र भी खुल जाएगा. बीजिंग का उद्देश्य यह है कि यह रेल लाइन उसके सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट का BRI यूरेशियन कॉरिडोर बन जाए.
इसी प्रकार अफ्रीका में गैबॉन तथा DRC के साथ चीन के द्विपक्षीय संबंधों में उन्नतीकरण को प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के इरादे से किया गया दिखाई देता है. गैबॉन से चीन को होने वाले निर्यात में तेल आपूर्ति की हिस्सेदारी 61 प्रतिशत है. इसके अलावा चीन को गैबॉन से 22 प्रतिशत मैंगनीज की आपूर्ति भी होती है. उधर DRC में चीन ने अपने सैन्य निर्यात को बढ़ाया है. इतना ही नहीं चीन ने वहां अपनी औद्योगिक उपस्थिति को भी मजबूत करते हुए पूर्वी DRC में कॉन्गो लीज विद्रोहियों को दबाने में अपनी भूमिका अदा की है. इसके बदले में उसने कॉन्गोलिज कॉपर माइन्स में कुछ हिस्सेदारी ख़रीदते हुए उत्खनन के अधिकार भी हासिल किए हैं.
चीन अपने आस-पड़ोस के प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले भू-राजनीतिक वर्चस्व हासिल करने के लिए भी अपने आर्थिक रसूख को हथियार बनाता है.
बेनिन, जांबिया और इथियोपिया में चीन दोहरे लक्ष्य के साथ काम कर रहा है. इसमें पहला लक्ष्य ऊर्जा स्रोतों की उपलब्धता को अपने लिए सुनिश्चित करना तथा दूसरा अपने इन भूमिबद्ध लेकिन संसाधन समृद्ध पड़ोसियों के साथ कनेक्टिविटी स्थापित करना है. इन देशों की भू रणनीतिक रूप से मजबूत स्थिति की वज़ह से चीन की इन देशों में रुचि बढ़ी हैं. उदाहरण के तौर पर बीजिंग ने बेनिन के साथ BRI MoUs पर हस्ताक्षर किए हैं, क्योंकि बेनिन का भूमिबद्ध पड़ोसी नाइजर ऊर्जा क्षेत्र में बड़ी मात्रा में चीनी FDI हासिल करता है. चाइनीज नेशनल पेट्रोलियम कंपनी, जो चीन की सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी है, के पास नाइजर के सबसे बड़े आयल फील्ड में 66 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. तीनों ने ही BRI सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं.
चीन अपने आस-पड़ोस के प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले भू-राजनीतिक वर्चस्व हासिल करने के लिए भी अपने आर्थिक रसूख को हथियार बनाता है. अमेरिका के निकट वाले देशों के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिशों के तहत ही चीन ने निकारागुआ, ऊरुग्वे और कोलंबिया जैसे देशों का रुख़ किया है. इसी तरह उसने मालदीव को करीब लाने की कोशिश करते हुए भारत को चिढ़ाने का काम किया है. दरअसल भारत IOR को अपनी समुद्री सुरक्षा का अहम हिस्सा मानता है. इसी तरह का कुछ मामला सोलोमन आइलैंड्स के माध्यम से साऊथ पैसिफ़िक में चीन चला रहा है. यह क्षेत्र कुछ महत्वपूर्ण शिपिंग लेन्स को अपनी गोद में लेकर बैठा होने की वज़ह से यहां के क्षेत्रीय महारथी (US, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड) एवं चीन के बीच भू रणनीतिक टकराव का केंद्रबिंदु बनता जा रहा है.
बीजिंग की कूटनीतिक एवं भू-आर्थिक सोच
चीन ने अपने समझौतों का उन्नतीकरण ऐसे वक़्त में किया है जब पश्चिम के साथ उसके संबंध अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहे है. इसी अवधि में BRI को ग्लोबल साउथ में विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है. पश्चिम के मुकाबले, जहां अधिकांश देश विकसित की श्रेणी में आते हैं, चीन ने अपना ध्यान अब विकासशील देशों के साथ अपने सहयोग को मजबूत करने पर लगाया है. चीन ने अपने सहयोग उन्नतीकरण में ‘रणनीतिक’ का भी उल्लेख किया है. यह इस बात का संकेत है कि वह अपने नव उर्जित सहयोगियों के साथ क्षेत्रीय, अंतरराष्ट्रीय और बहुउद्देशीय सहयोग को बढ़ावा दे रहा है. चीन की अर्थव्यवस्था गोते लगा रही है. ऐसे में वर्ष 2023 एक ऐसा वर्ष था, जिसमें बीजिंग ने अपने कूटनीतिक आधार को मजबूती प्रदान की. अब 2024 में चीन अपने घरेलू मुद्दों जैसे गिरते हुए शेयर बाज़ार, प्रॉपर्टी मार्केट, घरेलू उपभोग के गिरते स्तर आदि से निपटने की कोशिश करेगा. इसका सबूत चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अन्य देशों के HoS के साथ द्विपक्षीय मुलाकातों को माना जा सकता है. 2023 में जहां राष्ट्रपति शी ने 70 HoS से मुलाकातें की थीं, वहीं वर्ष 2024 में अब तक वे केवल पांच देशों के प्रमुख (नीदरलैंड्स, एंटीगुआ और बारबुडा, मालदीव, अंगोला तथा उज्बेकिस्तान) से ही मिले हैं.
संसाधन-संपन्न देशों के साथ सहयोग समझौतों का उन्नयन दरअसल इन देशों से ऊर्जा निर्यात को निरंतर जारी रखना और अपनी ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखलाओं को अधिक लचीला बनाने के उद्देश्य से ही किया गया है.
अन्य भू-आर्थिक मसला BRI का ऊर्जा क्षेत्र है. यह क्षेत्र अधिकांशत: ‘एनर्जी फॉर डेवलपमेंट’ मॉडल के तहत ही अफ्रीका, एशिया और साऊथ अमेरिका में कार्यरत रहा है. इस मॉडल के तहत चीन अपने निवेश और ऋण वसूली की किश्तों को अपने द्वारा निर्मित ऊर्जा स्रोत से जोड़ देता है. यह मॉडल BRI EMDs में विकासात्मक परिणाम देने में विफ़ल साबित हुआ है. ऐसे में संसाधन-संपन्न देशों के साथ सहयोग समझौतों का उन्नयन दरअसल इन देशों से ऊर्जा निर्यात को निरंतर जारी रखना और अपनी ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखलाओं को अधिक लचीला बनाने के उद्देश्य से ही किया गया है.
निष्कर्ष
वर्ष 2023 में चीन के द्विपक्षीय समझौतों के उन्नयन में देखी गई तेजी से यह संकेत मिलता है कि वह अब कूटनीतिक तौर पर विकासशील देशों पर ध्यान दे रहा है. ऐसा उस वक़्त हो रहा है जब उसके पश्चिमी देशों के साथ संबंध बिगड़ते जा रहे है और इसकी वज़ह से बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के समक्ष भी चुनौतियां खड़ी हो रही हैं. ऐसे में संसाधन-संपन्न देशों जैसे तुर्कमेनिस्तान, DRC और जांबिया के साथ सहयोग समझौतों का उन्नयन ऊर्जा आपूर्ति तथा महत्वपूर्ण खनिजों पर चीन की पकड़ को मजबूत ही करता है. इसके अलावा मालदीव, निकारागुआ तथा सोलोमन आइलैंड्स के साथ सहयोग उसे भू-राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अपने पैर जमाने और US के प्रभाव को लेकर संतुलन पैदा करने का अवसर प्रदान करता है. अपने कूटनीतिक आधार को मजबूत करते हुए चीन अपने आंतरिक आर्थिक संकट का मुकाबला करते हुए एक जटिल वैश्विक परिदृश्य से निपटने की तैयारी कर रहा है. लेकिन इस नीति की सफ़लता इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या चीन अपने BRI's के ‘एनर्जी-फॉर-डेवलपमेंट’ मॉडल में उठाए गए गलत कदमों से सबक सीखता है और अपने सहयोगी देशों में लचीले विकास को सुनिश्चित करता है.
प्रवीण गुप्ता, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में स्ट्रैटेजिस स्टडीज् प्रोग्राम में जूनियर फेलो हैं.
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